Wednesday, May 30, 2007

कामरेड शंख बजायेगा, टाटा बढ़ता जायेगा

कामरेड शंख बजायेगा, टाटा बढ़ता जायेगा
आलोक पुराणिक
पश्चिम बंगाल के एक सीनियर कामरेड नेता की डायरी हाथ लग गयी है। डायरी के सारे विवरण चूंकि आन रिकार्ड कर रहा हूं, इसलिए उन नेता का नाम आफ रिकार्ड कर दिया है।
दिनांक मई दिवस, 2007
अभी कल सबको समझा कर आया हूं, चीन की कंपनी शूंशां फूं फां को इंडिया में आने दिया जाये। अभी सबको समझाना है कि टाटा समूह का निवेश बहुत जरुरी है। टाटा मोटर्स की कारें यहां बनना क्रांति की बुनियादी शर्त है।
सबको समझाना आसान है, पर कुछ कामरेडों को समझाना मुश्किल है, पहले हम कहते थे कि दुनिया के मजदूरों एक हो जाओ, और अब हम ऐसा क्यों कह रहे हैं कि दुनिया के पूंजीपतियों पश्चिम बंगाल में एक हो जाओ। हां याद आया अभी कुछ कुछ कंपनियों को और लाने की बात करनी है। महिंद्रा एंड महिंद्रा और अशोक लैलेंड से बात चल रही है।
लोगों को बहुत सी बातें समझानी हैं, कि कैसे नंदीग्राम में लोगों को उखाड़ने से क्रांति की जड़ें मजबूती से जमेंगी। पर यहां के लोग बातों को समझते नहीं हैं। ये बातें मैं क्यूबा में होने वाले क्रांति इंटरनेशनल सेमिनार में समझाऊंगा। वहां लोग इंडिया की बातें समझ जाते हैं। यह स्ट्राटेजी ठीक है। मैं इंडिया की बातें क्यूबा में समझाऊंगा, क्यूबा की बातें वेनेजुएला में समझाऊंगा और वेनेजुएला की क्रांति इंडिया में डिस्कस करुंगा।
हां, कलकत्ता में कार की फैक्ट्री लाक-आउट हो गयी है। मजदूर बेकार हो गये हैं।
इन्हे समझाना है कि तब ही तो टाटा की मोटर फैक्ट्री ला रहे हैं। पर मैं इनसे नहीं मिलूंगा, ये हल्ला काटते हैं। क्यूबा में क्रांति डिस्कस करना अच्छा लगता है, कितनी अच्छी एंबियेंस है ना वहां की।

दिनांक 5 मई 2007
लोग समझते नहीं हैं। हम क्रांति के रास्ते पर बहुत तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। लोग हमारी टैक्टीज नहीं समझ रहे हैं। हम ऐसी रणनीति पर काम कर रहे हैं, जिससे बस क्रांति यूं आ जायेगी।
पहले हम कहते थे-दुनिया के मजदूरों एक हो जाओ।
अब हम कहते हैं कि-दुनिया के पूंजीपतियों पश्चिम बंगाल में आकर एक हो जाओ।
हमने पाया कि मजदूर एक नहीं हो पाये। अरे एक होते कैसे। पहले सारे पूंजीपति एक जगह हो जायेंगे, उनकी कंपनियां एक जगह हो जायेंगी, तब ही तो उनके मजदूर एक हो जायेंगे।
फिर जैसे ही सारे मजदूर एक होंगे, खट से क्रांति हो जायेगी।
तो समझने की बात यह है कि अब जब फूंफां कंपनी को, टाटा कंपनी को और दूसरी कंपनियों को बुलाते हैं, तो हम क्रांति की तरफ ही आगे बढ़ रहे हैं।
दरअसल अभी क्रांति इसलिए नहीं हो पा रही है कि पश्चिम बंगाल में उतनी कंपनियां नहीं आ पायी हैं। जैसे ही वे आयीं, समझिये कि वैसे ही क्रांति हुई। हमारा नारा है-दुनिया के पूंजीपतियों एक हो-पश्चिम बंगाल में।
दिनांक 6 मई 2007
पश्चिम बंगाल के लीडरान को अमेरिका भेजना है निवेश आमंत्रित करने।
पर कनफ्यूजन यह है कि हमारे कामरेड अमेरिका से कैसे बात करेंगे-देखिये हम आपका विरोध करते हैं कि इराक में आप गये। पर आपका हम स्वागत करेंगे कि अगर आप कलकत्ता में आयें। देखिये वैसे तो आप निहायत बदमाश, लुच्चे हैं, पर आपका स्वागत है। आ ही जाइये। वैसे हम आपका विरोध भी करते हैं, करते रहेंगे। आपके लिए छह बयान छोड़े जाते हैं, एक दिन विरोध का बयान हो जायेगा, एक दिन समर्थन का बयान हो जायेगा। अदल-बदल कर करते रहेंगे। वैसे आप आ ही जाइए। वैसे हमने बुश का विरोध किया था, पर हम अमेरिकी कंपनियों का सपोर्ट करते हैं। नहीं, नहीं, मतलब इसका मतलब यह नहीं माना जाये कि हम अमेरिका का सपोर्ट करते हैं। नहीं, नहीं वैसे हम अमेरिकी कंपनियों का सपोर्ट कर सकते हैं। ....सारी यह कनफ्यूजन सा हो रहा है। ..
चलूं कल कईयों को समझाना है कि अमेरिकन कंपनियों को लाने से क्रांति जल्दी कैसे आ जायेगी।
दुनिया के पूंजीपतियों एक हो जाओ-पश्चिम बंगाल में।
दुनिया के पूंजीपतियों एक हो जाओ-पश्चिम बंगाल में।
डायरी पर लेखक की टिप्पणी
हाल में यूपी में मायावतीजी की सोशल इंजीनियरिंग के हल्ले में एक नारा चल निकला है-
ब्राह्मण शंख बजायेगा, हाथी बढ़ता जायेगा
थोड़े से बदलाव के बाद इसे यूं किया जा सकता है-
कामरेड शंख बजायेगा, टाटा बढ़ता जायेगा।

आलोक पुराणिक
मोबाइल-9810018799



6 comments:

Arun Arora said...

पहलॆ कारखाने लगावायेगे
फ़िर बंद हमी करायेगे
नया भी हम ही अपनायेगे
कामरेड बन हडताल करायेगे

Udan Tashtari said...

काश, कामरेड आपका लेख पढ़ रहे होते...हा हा..बहुत बढ़िया. :)

संजय बेंगाणी said...

पूरी पोस्ट पर शिर्षक भारी.

मैं तो शिर्षक पढ़ कर ही हँसता रहा. बहुत खूब.

Avinash Das said...

मस्‍त है भाई साहब...

काकेश said...

ये कामरेड शुक्र है हिन्दी भाषी थे ...हम को बंगाली बाबू कामरेड मिले उनको पढ़ाये तो बोले .."ई शाला कल का मानूष ...छोकरा का माफीक बात करता है ..हम पूंजीपती को नहीं बुलायेगा तो माछ भात कैसे खायेगा.. शाला जब से सारा कंपनी यहां बंद होता ..हमार पेट पे लात पड़ता है.. हम भाषण देता है तो सुनने वाला कोई नहीं होता .अऊर ये हमको सीखायेगा ...कल से हम इसका ब्लौग बंद करवाता ..सारे बलौगर एक हो..."

पंकज बेंगाणी said...

क्या खूब मारी है लाल झंडों की. हा हा हा हा....