कुछ नयी कहावतें
आलोक पुराणिक
इधर सीरियस चिंतन कर रहा हूं, पुरानी कहावतों पर।
अब जैसे एक कहावत है बकरी की मां कब तक खैर मनायेगी।
यह कहावत मूलत पापा विरोधी है, जो बताती है कि बकरी के पापा निहायत गैर-जिम्मेदार हैं, जो अपनी बकरी की खैर नहीं मनाते। खैर मनाने की होलसेल ड्यूटी बकरी की मां को दे दी गयी है, यह बात ठीक नहीं है।
अब इसे यूं रिवाइज करना चाहिए, नोएडा का बच्चा कब तक खैर मनायेगा। या नोएडा का बच्चा, अपने घर में ही अच्छा।
एक और कहावत है-गंगा गये गंगादास, जमुना गये जमुनादास।
अब तो गंगा जाकर भी बंदा जमुना से टच में बना रह सकता है जी, सैलफोन क्यों है जी। गंगादासजी अपनी जमुनाजी को एक ही कंपनी का सैल ले लें, तो फिर आपसी बातचीत फ्री भी हो सकती है। ऐसे ही जमुनाप्रसादजी अपनी गंगा के टच में बने रह सकते हैं।
कलाकार किस्म के लोग एक साथ गंगा और जमुना को साध सकते हैं।
अब पुरानी कहावत है-घर की मुर्गी दाल बराबर। अब इस कहावत लिखने वाले कभी सोचा न होगा कि बर्ड फ्लू के चलते मुर्गियां फ्री में भी बंटेगीं और मौका देखकर उड़द की दाल मुर्गी तो छोड़ो, चांदी के भावों पर पहुंच जायेगी।
एक नयी कहावत यूं हो सकती है-उड़द की दाल मुर्गी के बराबर।
एक कहावत है चाह घटे नित के घर जाये, यानी कहीं रोज-रोज जाने से चाह, मान घट जाता है।
मैंने गहन शोध करके पता लगाया कि आखिर पत्नी की निगाह में कुछ समय बाद पति की इज्जत क्यों कम हो जाती है-वजह वही है, रोज –रोज आने से मान घट जाता है।
इस कहावत को कुछ इस अंदाज में भी समझाया जा सकता है-
हसबैंड सुन घटेगा ही तेरा मान, अबे रोज घर क्यों आ जाते हो श्रीमान
इस कहावत का आशय यह है पति दूर का अच्छा, और भी अच्छा अगर कमाने के लिए बहुत दूर चला जाये अमेरिका, कनाडा, दुबई वगैरह। नोट छाप, और भेज दे। पर रोज ही घर आने के चक्कर में रहेगा, तो विदेश जाकर कमायेगा कैसे।
एक कहावत है-देर आये, दुरुस्त आये यानी जो देर से आते हैं, उन्हे ही दुरुस्त माना जाता है। जल्दी आने वालों को फोकटी-फालतू टाइप माना जाता है, जिनके पास कोई काम नहीं होता। देखिये, किसी शादी-बर्थडे समारोह में जो सबसे पहले आते हैं, उन्हे टेंट हाऊस के बंदों के तौर पर ट्रीट किया जाता है। मुख्य अतिथि पर्याप्त विलंब से आते हैं, चिरकुट अतिथि सबसे पहले आते हैं सो अतिथि समझ-देर आये, दुरस्त आये। इस कहावत में दुरस्त शब्द नये बच्चों को समझ में नही आता, वो कहते हैं कि ये इंगलिश टाइप का शब्द है, कुछ हिंदी में कहावत बनाइये। बच्चों को हिंदी में समझ में आने वाली कहावत यूं हो सकती है-अगर नहीं पहुंचोगे लेट, तो कैसे पाओगे रेसपेक्ट।
आलोक पुराणिक एफ-1 बी-39 रामप्रस्थ गाजियाबाद-201011 मोबाइल-9810018799
Thursday, May 24, 2007
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5 comments:
you are right sir._ mohanlal gupta
बहुत बढ़िया ।
नोएडा का बच्चा कब तक खैर मनायेगा।
वाकई सीरियस चिंतन है.
बच्चों को हिंदी में समझ में आने वाली कहावत यूं हो सकती है-अगर नहीं पहुंचोगे लेट, तो कैसे पाओगे रेसपेक्ट।
--वाह, क्या हिन्दी है!!! लगता है हिन्दी साहित्य में एम. ए. किये हैं. हा हा!!! तभी मैं सोचता था कि ये इतना बेहतरीन कैसे लिख लेते हैं. :)
अब तक छब्बीस.....।
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