Thursday, May 31, 2007

धांसू समीक्षा कैसे करें-12 मिनट का क्रैश कोर्स




धांसू समीक्षा कैसे करें-12 मिनट का क्रैश कोर्स
आलोक पुराणिक
यह खाकसार बरसों से समीक्षा का एक क्रैश कोर्स चलाता रहा है। 12 मिनट में निम्नलिखित अगड़म-बगड़म को पढ़कर कोई भी सुधी समीक्षक हो सकता है। सारे गुर इस लेख में लेखक ने धर दिये हैं। पेश है क्रैश कोर्स-
समीक्षा से पहले
समीक्षा से पहले यह तड़ें कि अखबार का संपादक, या उपसंपादक, या कैसा भी संपादक, जो आपको किताब दे रहा है, उसकी उस उसके लेखक के बारे में क्या राय है।
गौरतलब है कि गुर नंबर एक यह है कि हिंदी में समीक्षा लेखक की होती है, किताबों की नहीं होती है। हिंदी वाले जीवंत परंपरा के बंदे हैं जी, सीधे लेखक पर फोकस कीजिये। हां, यह समझ लीजिये कि हिंदी में पुस्तक का मतलब होता है, साहित्य की पुस्तक।
जरा तड़िये कि किताबदेयक संपादक की राय लेखक के बारे में क्या है। कई न्यूट्रल से दिखने की कोशिश करने वाले खुल कर नहीं खुलते। ऐसों की गरिमा कायम रखने के लिए कुछ पतली गली के सवाल पूछिये-कविताएं तो ठीक हैं, पर एकाध जगह कुछ ऐसा है, जिसके बारे में सोचना पड़ेगा।
किताबदेयक अगर उखाड़ने वाली समीक्षा चाहता है, तो कहेगा-हां अब क्या करें, यही सब आ रहा है। अब हमारे टाइम वाली बात कहां रही साहब।
इशारा साफ है, उखाड़ना है।
किताबदेयक अगर यह कह उठे कि नहीं भई,एकाध जगह ऐसी कोई बात होगी, बाकी लेखक तो ठीक ही है, थोड़ा सा गौर से देखकर लिखो।
इशारा साफ है, जमाना है।
किताबदेयक अगर यह कह उठे कि देख लेना जैसा भी हो कर देना। पर छोटा करना।
इशारा साफ है कि मामला न्यूट्रल है। लेखक किताबदेयक से नकारात्मक या सकारात्मक संबंध बनाने में कतई विफल रहा है।
वैसे मोटा नियम यह है कि आईएएस अधिकारी (कतिपय मामलों में पुलिस और आयकर अधिकारी भी) दूतावासों के अधिकारी, किसी भी विभाग से सस्ती शराब का जुगाड़मेंट कर सकने में समर्थ अधिकारी, कोई फैलोशिप दिलवाने वाले अधिकारी, मुख्य अतिथि बनाने में सक्षम बंदे, किसी पुरस्कार कमेटी के मेंबरान, संभावनाशील सुंदरियां(जिनकी प्रतिबद्धताओं के बारे में खुले तौर पर कुछ ज्ञात न हो), ये सब जमाये जाने के पात्र हैं।
विपरीत गुट के लेखक, अपने ही गुट के किंचित कम अंतरंग लेखक, टाईम खोटी करने वाले(अर्थात दारुविहीन साहित्यिक गोष्ठियां करवाने वाले), कभी भी आपको किसी पेमेंट वाले कार्यक्रम में न बुलाने वाले लेखक उखाड़े जाने के पात्र हैं।
बाकी सारे लावारिस टाइप के लेखकों के प्रति न्यूट्रल हुआ जा सकता है। चतुर-चौकन्ने-स्मार्ट नौजवानों के प्रति न्यूट्रल हुआ जा सकता है, इनमें से कई आगे संपादक, तरह-तरह के जुगाड़ू बन सकते हैं। काम आ सकते हैं। इस संबंध में समीक्षक को विवेक से काम लेना चाहिए।

तो साहब तय हो गया ना कि क्या करना है, अब हम एक उदाहरण के साथ बात करते हैं। किसी की किताब के पहला पेज देख लें, फिर उसी पर सब कुछ ताना जा सकता है।
अब जैसे किसी कविता की पुस्तक के पहले पेज पर कविता है-
हूं हूं,
फूं फूं,
खौं खौं,
टें
इस कविता की जमाने की समीक्षा-
रचनाएं तो यूं बहुत हो रही हैं, पर इस लेखक ने कविता को नया आयाम दिया है, उससे एक नया कोण खुलता है। यूं इस कविता में शब्द बहुत कम हैं, पर यह कहना ही होगा कि यह कविता कतिपय उन चुनिंदा, बल्कि बहुत ही चुनिंदा, बल्कि यूं भी कहा जा सकता है कि उन अपवादस्वरुप कविताओं में से है, जहां चुप्पी चुप नहीं रहती, चुप्पी बोलती है।
पोलियांस्का के कवि फूंद्रो कासोब्लैंक ने इस तरह की कविताओं में जो महाऱथ हासिल की है, ठीक वही इस कविता में दिखती है। ( कासोब्लैंक जैसे कवियों और पोलियांस्का जैसे देशों को नाम आप अपनी मर्जी से गढ़ सकते हैं, कोई पलटकर नहीं पूछता) लेखक हूं, हूं के जरिये अपने अस्तित्व को रेखांकित कर रहा है। फूं फूं के जरिये वह एक अग्निकामी चेतना का आह्वान भी कर रहा ह। फूं फूं यानी वह फुफकार रहा है। खौं खौं यानी वह सिर्फ आह्वान ही नहीं कर रहा है, वह सीधे एक्शन में उतरने का आकांक्षी है। टें यानी वह इस बीमार, सड़ी-गली व्यवस्था के टें बुलवा कर छोड़ेगा। वाह, वाह।
उखाड़ने की समीक्षा
हूं हूं, यानी मैं हूं, उफ कवि कितना आत्ममुग्ध है, आत्ममुग्ध क्या आत्मरत है। जब समय समाज के सामने ऐसे विकट सवाल खड़े हों, जब पूरी मानवीय चेतना अपनी नियति के साक्षात्कार से जुड़े भविष्यगामी सवालों से भिड़ रही हो, उनसे जूझ रही हो। तब ऐसे में लेखक की ऐसी आत्मरति, न सिर्फ निंदनीय है, बल्कि दंडनीय भी है। फूं फूं और खौं खौं में तो लेखक अपनी मानवीय गरिमा को खोकर जानवरों के साथ खड़ा दिखता है। टें यानी मृत्यु, ऐसे मृत्युकामी लेखन के प्रति सिर्फ संवेदना नहीं, शोक संवेदना व्यक्त की जानी चाहिए।
न्यूट्रल
(ये लिखी कितनी भी जाये, छोटी कर दी जाती है)
लेखक ने संभावनाएं दिखायी हैं। अलबत्ता उन्हे ढूंढ़ने में मेहनत बहुत करनी पड़ती है। पर उनके लेखन में विशिष्ट किस्म की ऊष्मा है, जो उनके समकालीनों में अनुपस्थित दिखती है। लेखक को अभी बहुत श्रम करना है।
आलोक पुराणिक मोबाइल-09810018799

Wednesday, May 30, 2007

कामरेड शंख बजायेगा, टाटा बढ़ता जायेगा

कामरेड शंख बजायेगा, टाटा बढ़ता जायेगा
आलोक पुराणिक
पश्चिम बंगाल के एक सीनियर कामरेड नेता की डायरी हाथ लग गयी है। डायरी के सारे विवरण चूंकि आन रिकार्ड कर रहा हूं, इसलिए उन नेता का नाम आफ रिकार्ड कर दिया है।
दिनांक मई दिवस, 2007
अभी कल सबको समझा कर आया हूं, चीन की कंपनी शूंशां फूं फां को इंडिया में आने दिया जाये। अभी सबको समझाना है कि टाटा समूह का निवेश बहुत जरुरी है। टाटा मोटर्स की कारें यहां बनना क्रांति की बुनियादी शर्त है।
सबको समझाना आसान है, पर कुछ कामरेडों को समझाना मुश्किल है, पहले हम कहते थे कि दुनिया के मजदूरों एक हो जाओ, और अब हम ऐसा क्यों कह रहे हैं कि दुनिया के पूंजीपतियों पश्चिम बंगाल में एक हो जाओ। हां याद आया अभी कुछ कुछ कंपनियों को और लाने की बात करनी है। महिंद्रा एंड महिंद्रा और अशोक लैलेंड से बात चल रही है।
लोगों को बहुत सी बातें समझानी हैं, कि कैसे नंदीग्राम में लोगों को उखाड़ने से क्रांति की जड़ें मजबूती से जमेंगी। पर यहां के लोग बातों को समझते नहीं हैं। ये बातें मैं क्यूबा में होने वाले क्रांति इंटरनेशनल सेमिनार में समझाऊंगा। वहां लोग इंडिया की बातें समझ जाते हैं। यह स्ट्राटेजी ठीक है। मैं इंडिया की बातें क्यूबा में समझाऊंगा, क्यूबा की बातें वेनेजुएला में समझाऊंगा और वेनेजुएला की क्रांति इंडिया में डिस्कस करुंगा।
हां, कलकत्ता में कार की फैक्ट्री लाक-आउट हो गयी है। मजदूर बेकार हो गये हैं।
इन्हे समझाना है कि तब ही तो टाटा की मोटर फैक्ट्री ला रहे हैं। पर मैं इनसे नहीं मिलूंगा, ये हल्ला काटते हैं। क्यूबा में क्रांति डिस्कस करना अच्छा लगता है, कितनी अच्छी एंबियेंस है ना वहां की।

दिनांक 5 मई 2007
लोग समझते नहीं हैं। हम क्रांति के रास्ते पर बहुत तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। लोग हमारी टैक्टीज नहीं समझ रहे हैं। हम ऐसी रणनीति पर काम कर रहे हैं, जिससे बस क्रांति यूं आ जायेगी।
पहले हम कहते थे-दुनिया के मजदूरों एक हो जाओ।
अब हम कहते हैं कि-दुनिया के पूंजीपतियों पश्चिम बंगाल में आकर एक हो जाओ।
हमने पाया कि मजदूर एक नहीं हो पाये। अरे एक होते कैसे। पहले सारे पूंजीपति एक जगह हो जायेंगे, उनकी कंपनियां एक जगह हो जायेंगी, तब ही तो उनके मजदूर एक हो जायेंगे।
फिर जैसे ही सारे मजदूर एक होंगे, खट से क्रांति हो जायेगी।
तो समझने की बात यह है कि अब जब फूंफां कंपनी को, टाटा कंपनी को और दूसरी कंपनियों को बुलाते हैं, तो हम क्रांति की तरफ ही आगे बढ़ रहे हैं।
दरअसल अभी क्रांति इसलिए नहीं हो पा रही है कि पश्चिम बंगाल में उतनी कंपनियां नहीं आ पायी हैं। जैसे ही वे आयीं, समझिये कि वैसे ही क्रांति हुई। हमारा नारा है-दुनिया के पूंजीपतियों एक हो-पश्चिम बंगाल में।
दिनांक 6 मई 2007
पश्चिम बंगाल के लीडरान को अमेरिका भेजना है निवेश आमंत्रित करने।
पर कनफ्यूजन यह है कि हमारे कामरेड अमेरिका से कैसे बात करेंगे-देखिये हम आपका विरोध करते हैं कि इराक में आप गये। पर आपका हम स्वागत करेंगे कि अगर आप कलकत्ता में आयें। देखिये वैसे तो आप निहायत बदमाश, लुच्चे हैं, पर आपका स्वागत है। आ ही जाइये। वैसे हम आपका विरोध भी करते हैं, करते रहेंगे। आपके लिए छह बयान छोड़े जाते हैं, एक दिन विरोध का बयान हो जायेगा, एक दिन समर्थन का बयान हो जायेगा। अदल-बदल कर करते रहेंगे। वैसे आप आ ही जाइए। वैसे हमने बुश का विरोध किया था, पर हम अमेरिकी कंपनियों का सपोर्ट करते हैं। नहीं, नहीं, मतलब इसका मतलब यह नहीं माना जाये कि हम अमेरिका का सपोर्ट करते हैं। नहीं, नहीं वैसे हम अमेरिकी कंपनियों का सपोर्ट कर सकते हैं। ....सारी यह कनफ्यूजन सा हो रहा है। ..
चलूं कल कईयों को समझाना है कि अमेरिकन कंपनियों को लाने से क्रांति जल्दी कैसे आ जायेगी।
दुनिया के पूंजीपतियों एक हो जाओ-पश्चिम बंगाल में।
दुनिया के पूंजीपतियों एक हो जाओ-पश्चिम बंगाल में।
डायरी पर लेखक की टिप्पणी
हाल में यूपी में मायावतीजी की सोशल इंजीनियरिंग के हल्ले में एक नारा चल निकला है-
ब्राह्मण शंख बजायेगा, हाथी बढ़ता जायेगा
थोड़े से बदलाव के बाद इसे यूं किया जा सकता है-
कामरेड शंख बजायेगा, टाटा बढ़ता जायेगा।

आलोक पुराणिक
मोबाइल-9810018799



Tuesday, May 29, 2007

प्रेम पेंटियम सिक्स की स्पीड का


प्रेम पेंटियम सिक्स की स्पीड का
आलोक पुराणिक
राजू की हाईट बहुत छोटी है, वह तो अपने पापा का लैपटाप एडीशन दिखायी देता है-एक बालिका एक बालक की हाईट के बारे में कमेंट कर रही है।
राजू के पापा की हाईट ठीक-ठाक है, सो वह हुए कंप्यूटर के डेस्कटाप एडीशन।
परिभाषाओं का यह खेल आगे चला, तो मुझे लग रहा है कि एक दिन नये बच्चे अपने दादा- दादी को सर्वर कहेंगे, कंप्यूटर की भाषा में सर्वर ही मूल कंप्यूटर होता है। बाकी सब उसकी शाखाओं में शुमार किये जाते हैं।
पापा आपकी हार्ड-डिस्क बहुत जल्दी नो रिस्पोंस का सिग्नल देने लगती है-बच्चे यह कहेंगे, उस हालत में जब पापाजी बच्चों की तमाम फऱमाईशों को सुनने से इनकार कर देंगे।
बहुत मुश्किल हो गया है नयी कंप्यूटर वाली पीढ़ी से बात करना।
मेरी आठ साल की बेटी ने दादीजी से कुछ लाने के लिए कहा, दादीजी भूल गयीं।
बेटी ने सवाल किया-क्यों भूल गयीं।
दादीजी ने बताया-बेटा याद नहीं रहा।
याद नहीं रहा-दादीजी आप तो संस्कृत बोल रही हैं, प्लीज मुझे हिंदी में समझाइए ना-बेटी ने पूछा।
मैंने समझाया कि बेटी समझ कि दादी की मेमोरी में नहीं रहा।
अच्छा तो दादीजी की मेमोरी कम है, कितने जीबी की मेमोरी है दादीजी आपकी। आप हार्ड डिस्क का साइज बढ़ा क्यों नहीं लेतीं-बेटी ने आगे पूछा। इन दिनों वह कंप्यूटर की क्लासेज फुलमफुल जोरदारी से ले रही है।
मैं डर रहा हूं कि कुछ दिनों बाद अगर मेरा और पत्नी का झगड़ा हो जाये, तो वह इसे बाहर कुछ इस तरह से रिपोर्ट करेगी-
हमारे घऱ में नेटवर्किंग का प्राबलम चल रहा है। कनेक्शन नहीं जुड़ पा रहा है।
कोई सोकर नहीं उठ रहा हो, तो उसके बारे में कहा जा सकता है कि इसे रिस्टार्ट करने के लिए रिबूट करो। बूट बोले तो जुतियाओ।
मामले टेंशनात्मक होते जा रहे हैं। शब्दावली तकनीकी होती जा रही है।
मैं डर रहा हूं यह कल्पना करके कि अच्छी –अच्छी बातों का एक प्रवचन में अपनी बेटी को दूं और वह पलटकर कहे-बेकार की जंक फाइल मेरी हार्डडिस्क में डाऊनलोड मत किया करो। इस फाइल को मैं अभी डिलीट करती हूं।
अभी एक छात्र से मैंने एक कंप्यूटरी प्रेमपत्र मैंने बरामद किया है। वह यूं है-
हाय
जिसे मैं पेंटियम फोर की स्पीड का समझ रहा था, वह तो पेंटियम वन से भी धीमे निकली। अरे पहला लव लैटर देने में तुमने पांच दिन लगा दिये हैं,तो आगे कैसे चलेगा। देखो,मुझे लगता है कि तुम्हारी प्रेम की प्रोग्राम फाइल में बहुत वायरस आपरेट कर रहे हैं। इसलिए रिस्पांस सही नहीं आ रहा है। तुम्हारे मेलबाक्स से मेरी लव-मेल तीन बार वापस आ चुकी है। देखो, अगर तुम्हारा लवबाक्स पहले ही फुल है, तो मेरा टाइम वेस्ट न करो। मैं कहीं और ट्राई करूंगा, दो दिन तुम पर जो समय वेस्ट किया है, उसे ट्रेश बाक्स में डाल दूंगा।
मैं समझ रहा था कि तुम्हारा दिल 78 इंची कंप्यूटर स्क्रीन की तरह बड़ा है, पर तुम्हारा दिल तो लैपटाप भी नहीं, पामटाप की तरह छोटा निकला।
एक घंटे में अगर जवाब नहीं दिया, तो समझ लेना कि मैंने तुम्हारी फाइल अपने दिल से हटाकर दिल की फाइलों पूरे तौर पर रि-फार्मेट कर लिया है।
बाय, हैप्पी सर्फिंग आफ न्यू हार्ट्स
तुम्हारा
पेंटियम सिक्स
हालात बदल रहे हैं। भाषा भी बदल रही है।
मैं तो अब से बीस-तीस साल बाद का सीन सोचकर डर रहा हूं। बीस-तीस साल अगर मैं टें बोलता हूं, तो मेरी बेटियां मेरी डैथ की सूचना, शोकसभा की सूचना कुछ इस प्रकार देंगी-
कल शुक्रवार को हमारे पापा का सर्वर परमानेंटली डाउन हो गया है। वैसे तो कल रात तक उनके सारे प्रोग्राम ठीक-ठाक काम कर रहे थे। पर हार्ट का प्रोग्राम रिबूट होने में ट्रबल कर रहा था। डाक्टरों ने यही कहा कि पुराने हार्डवेयर से ज्यादा छेड़-छाड़ नहीं की जा सकती। जब तक पुराना हार्डवेयर चल रहा है, चलाओ।
कुछ एक्सपर्टों ने पेसमेकर लगाकर सेफ मोड में चलाने की कोशिश भी की। पर सिस्टम ने रिस्पांस देने से इनकार कर दिया।
आखिर में बैकअप सपोर्ट का पूरा जोर लगा लिया, फिर भी सिस्टम ने रिस्पांस नहीं दिया।
सो जैसी ऊपर वाले की इच्छा, कल रात को सोने के बाद पापा रिस्टार्ट नहीं हुए।
सो, आप सबको उनकी शोकसभा में आना है, कृपया शोकसंदेश ई-मेल से न भेजें।
क्योंकि चार बंदे चाहिए ही चाहिए उठाने के लिए।
आलोक पुराणिक मोबाइल-09810018799

Monday, May 28, 2007

महिला सशक्तीकरण अमेरिकन स्टाइल,...अमिताभ किसान





महिला सशक्तीकरण अमेरिकन स्टाइल, ..तो बड़े भईया किसान
आलोक पुराणिक
क्रियेटिव राइटिंग कंपटीशन में कुछ शब्दों के आशय जैसे बताये गये, वे पेश हैं-
महिला सशक्तीकरण
महिलाओं को सशक्तीकरण के अमेरिकी मतलब को हमें समझना चाहिए, क्योंकि जो अमेरिका में होता है, वह देर-सबेर पूरे विश्व में फालो किया जाता है। अमेरिका में महिला सशक्तीकरण के जिस स्वरुप पर आजकल बहस हो रही है, उसका चलन बिल क्लिंटन ने शुरु किया था। मोनिका लेवेंस्की को उन्होने व्हाइट हाऊस में बहुत पावरफुल, बहुत सशक्त बना दिया था। कुछ ऐसा ही काम हाल तक विश्व बैंक के प्रेजीडेंट रहे वोल्वोविट्ज कर रहे थे। एक महिला को विश्व बैंक में बहुत सशक्त बना दिया, इतना कि शक्ति संतुलन के लिए बैंक के मैनेजमेंट को वोल्वोविट्ज को अशक्त करना पड़ा। वैसे इस महिला सशक्तीकरण पर वोल्वोविट्ज का कहना है कि विश्व बैंक का काम है गरीबी दूर करना, वही वह कर रहे थे। सबसे पहले अपनी मित्र की गरीबी दूर करने के लिए उसे प्रमोशन दे रहे थे।
कुल मिलाकर हमें यही शिक्षा मिलती है कि इस तरह के महिला सशक्तीकरण के चक्कर में पड़ने वाले बहुत जल्दी किसी भी किस्म की शक्ति से वंचित हो जाते हैं।
किसान


किसान के कई तरह के अर्थ हैं। पुराने टाइप के किसान का अर्थ बलराज साहनी जैसी छवि वाला कोई इंसान होता था, जिसके पास दो बीघा जमीन होती थी। पर अमिताभ बच्चन नयी चाल के किसान हैं। जिन्हे यूपी में बाराबंकी से लेकर महाराष्ट्र में भी किसान माना जाता रहा है। अलबत्ता उगाने के नाम पर अमिताभजी ने पिछले कुछ सालों में सिर्फ सफेद दाढ़ी उगाई है, पर छोटे भईया अमर सिंहजी ने इसे ही खेती मानकर उन्हे यूपी में किसान घोषित करवा दिया। छोटा भाई मेहरबान, तो बड़ा भाई किसान। पर जैसा कि खबर कि अब सूखे के आसार हैं। किसान परेशान होंगे, अमिताभ बच्चन समेत। कुल मिलाकर इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि किसानी अपने बूते पर करनी चाहिए, छोटे भईया के बूते की किसानी मरवा देती है।




आलोक पुराणिक मोबाइल -9810018799

Sunday, May 27, 2007

आलोक पुराणिक की संडे सूक्तियां-जब अंधेरा होता है...

आलोक पुराणिक की संडे सूक्ति










वक्त का चेहरा बदल पाना कहां मुमकिन है
वक्त ही सबके चेहरों को बदल देता है



एक हम ही हैं, जो खुद से कभी ना मिल पाये
वैसे जिसका करे मन, हमसे वो मिल लेता है

कितने चेहरे हैं मेरे, किस को कहूं ओरिजनल
एक हंसता ही रहे, दूसरा रो लेता है

अब जो आ ही गये हैं आप, तो झेलें हमको
आप पढ़ते रहें, चिरकुट ये विदा लेता है

पाठकगण प्लीज यह ना सोचिये कि यह व्यंग्यकार पकाऊ शायर हो रहा है। ना जी, यह तो बस यूं ही कभी-कभी मेरे दिल में ख्याल आता है –टाइप कुछ है।
अब मैं अपनी वाली पर आता हूं

जब अंधेरा होता है
आलोक पुराणिक
यहां बिजली क्यों जाती है-अमेरिका से आये मेहमान एक बुनियादी सा सवाल पूछ रहे हैं।

बिजली क्यों जाती है-यह सवाल तो हमने कभी पूछा ही नहीं। बचपन से जा रही है। हवा क्यों चलती है,हमने कभी नहीं पूछा। बड़े बुनियादी से मसले हैं। नेता क्यों खाता है। बाबू दफ्तर में लेट क्यों आता है। इमरान हाशमी दूसरों की बीबियों को क्यों पटाता है। बुश को दूसरे देशों पर कब्जा करने में क्यों मजा आता है। हमने कभी सोचा ही नहीं।
बस समझिये कि यूं ही चली जाती है-मैंने टालने की गरज से कहा।
यूं ही कैसे चली जाती है। हमारे अमेरिका में तो नहीं जाती। व्हाईट हाऊस में बिजली कभी नहीं जाती।-अमेरिकन बोला।
व्हाईट हाऊस में बिजली चली जाये, तो बहुत प्राबलम साल्व हो जायेंगी। बुश अगर दो-चार दिन काम न करें, तो बहुत भला हो जाये दुनिया का। बुश जब छुट्टी पर जाते हैं, तो शेयर बाजार ऊपर उठ जाते हैं, उनकी अकर्मण्यमता के सम्मान में -मैंने बताया।
जब बिजली जाती है, तो आप लोग क्या करते हैं-अमेरिकन ने पूछा।
तब हम लोग निकल कर देखते हैं कि कहां तक बिजली गयी ही। किसकी गयी है। अगर दूर-दर तक सबकी गयी होती है, तो हम तसल्ली से बैठ जाते हैं कि एक हम ही नहीं अंधेरे में गालिब, जमाने भर में अंधेरा है, टाइप। बड़ी अच्छी सी फीलिंग होती है-कौमी एकता टाइप फीलिंग -मैंने उसे समझाया।
कौमी एकता की सी फीलिंग बिजली जाने से आती है, कैसे-अमेरिकन पूछ रहा है।
जी यूं लगता है कि उसके अंधेरे हमारे अंधेरे, सबके अंधेरे एक से अंधेरे, इस अंधेरे में हम एक हैं। उजालों के मामले में हम भले ही एक न हों, पर अंधेरे हमें एक कर देते हैं। उजाले सबके अलग हैं, तेरा हजार वाट वाला, मेरा सौ वाट वाला। उजाले हमें बांटते हैं। उजाले हमारे बीच खाईयां बड़ी करते हैं। तेरा नियोन वाला, मेरा बल्ब वाला। तेरा चीनी बल्ब वाला, मेरा इंडियन बल्ब वाला। पर अंधेरा सबका एक सा। पूरे शहर में ब्लैक आउट हो जाये, पूरे शहर में बिजली –निरपेक्षता मच जाये,तो मैं एकदम भावुक टाइप हो जाता हूं-मैंने विस्तार से बताया।
जी आपकी बातें कुछ समझ में नहीं आ रही हैं-अमेरिकन बोला।
देखिये आपकी समझ में नहीं आयेंगी, समझदारी की बातें है। बिजली इसलिए जाती है कि दिन में सूरज रहता है। धूप रहती है-मैंने साफ किया।
पर धूप का बिजली से क्या मतलब-अमेरिकन आगे बोला।
देखिये दिन में धूप लूट-पाट, उचक्केबाजी नहीं हो सकती। लोकल उचक्के जो थानेदार को हफ्ता देते हैं, उतने भर की कमाई भी वो नहीं कर पाते। तो वह रात में करते हैं। रात में वातावरण उचक्का-फ्रेंडली बनाने के लिए वो बिजली वालों से बिजली गायब करवा देते हैं-मैंने समझाया।
तो आप बिजली मंत्री से बात कीजिये-अमेरिकन ने बताया।
गठबंधन सरकार में बिजली मंत्री जिस पार्टी से आते हैं,उसी पार्टी के कार्यकर्ता ये उचक्के हैं-मैंने आगे बताया।
ओह टाप टू डाऊन करेंट चल रहा है-अमेरिकन ने कहा।
राइट, अब बात अमेरिकन की समझ में आ गयी है।
आलोक पुराणिक
मोबाइल-0910018799

Saturday, May 26, 2007

आम और आदमी








आलोक पुराणिक
पंचायत मंत्री मणिशंकर अय्यर कह रहे हैं कि यह सरकार आम आदमी के लिए नहीं सोचती।
अय्यर साहब ठीक कह रहे हैं- अरे सिर्फ सोचने में क्या जाता है। और सोचे भी नहीं, सिर्फ इतना भर कहने में क्या जाता है कि सोच रही है।
अय्यर साहब पंचायत के काम को देख रहे हैं, सो उन्हे पंचायत करने का शौक हो लिया है। पंचायत से पहले एक बखेडा करना जरुरी है। अय्यर साहब अभी इस स्टेप पर हैं।
पर मसला यह है कि अय्यरजी ने आम आदमी का सवाल उठा दिया है।
बरसों से देख रहा हूं, खास नेता खास तवज्जो न दें, तो नेताओं को आम आदमी ध्यान में आने लगता है। वीपी सिंहजी ने भी यही किया था। आम आदमी से शुरु हुए थे, आजकल पेंटिंग पर पहुंच गये हैं। पेंटिंग वैसी खास वाली, जो आम आदमी की समझ में नहीं आती।
आम आदमी का मामला यही है-समझना मुश्किल है।
मैंने एक से पूछा -भईया आम आदमी के बारे में क्या समझते हो।
वह बोला-भईया आम तो बीस रुपये किलो बिकते हैं, आदमी ना बिकता इस भाव पर। अस्सी किलो के आम के सोलह सौ रुपये देने को ग्राहक तैयार हैं, पर अस्सी किलो के आदमी के सोलह सौ रुपये नहीं मिलते। आम का मामला खास है, उसे आदमी से क्यों जोडते हो। आम और आदमी में एक फर्क यह भी है कि आम को निचोडे जाने का सैट सीजन होता है, पर आदमी की चौबीस घंटे, बारह महीने, सातों दिन निचोडा जा सकता है।
खैर, आम का मसला अलग है, आदमी का मसला अलग है।
पर नेता जब चिंतित होते हैं, तो न आम पर होते हैं, न आदमी पर होते हैं, वह अपने लिए होते हैं। और वे आम पर नहीं, किसी पर भी चिंतित हो सकते हैं। कामरेड कार फैक्ट्री पर चिंतित हो जाते हैं। हिंदुत्व वाले एक पेटिंग पर चिंतित हो जाते हैं।
मैंने एक आदमी से पूछा-आप किस मसले पर चिंतित हैं। कई सारी चिंताएं होंगी आपकी।
नहीं, अब चिंता सिर्फ आटे की होती है। बाकी की चिंताएं कहां से करें। एक में ही सारी ताकत खर्च हो जाती है-एक निचोड़े हुए आम टाइप आदमी ने बताया।
यह भी एक मसला है, आम टाइप आदमी एकाध चिंता ही अफोर्ड कर सकता है।
अय्यर साहब भी अगर आम टाइप आदमी होते, तो सिर्फ आटे पर चिंतित होते।
मंत्री हैं , तो कुछ बहुत कुछ अफोर्ड कर सकते हैं।
देखते हैं कितना असर आम पर पडता है और कितना आदमी पर।
आलोक पुराणिक मोबाइल -09810018799

Friday, May 25, 2007

पोस्टमैन पर निबंध और पड़ोसी पर



पोस्टमैन पर निबंध और पड़ोसी पर
आलोक पुराणिक


अब वो वाली बात नहीं रही, जैसी पुराने निबंधों में थी। हालांकि वैसी बात अब कहीं भी नहीं रही, जैसी थी। जब वैसी बात थी, तब भी सब यही बात करते थे, अब वैसी बात कहां रही।
खैर, मसला बात का नहीं है, निबंधों का है। कैसे-कैसे निबंध इम्तिहानों में आया करते थे। गाय पर, पोस्टमैन पर, पड़ोसी पर, यात्रा पर। इधर मामला कुछ पेंचात्मक हो गया है। नयी चाल के बच्चों को पुरानी टाइप के निबंध बताओ तो उनकी समझ में नहीं आते। अब कल ही एक बच्चे को पोस्टमैन के बारे में बारे में बता रहा था। बच्चे ने पूछा-पोस्टमैन क्या होता है। मैंने कहा, जो मनीआर्डर लेकर आता है। उसने आगे पूछा-मनीआर्डर क्या होता है। मैंने बताया जब पहले लोग शहर कमाने जाते थे, तब अपने गांव मनीआर्डर के जरिये रुपये भेजते हैं। उसने बताया कि अब तो समझदार लोग देश से बाहर जाते हैं।
फिर उसने मुझे मनीआर्डर का नया मतलब समझाया कि जेब में अगर मनी होता है, तो आपके आर्डर पर हर चीज हो सकती है। जेब में मनी हो, तो सारी चीजें आर्डर में दिखायी पड़ती हैं। वरना हर चीज से नाराजगी होती है।
मनीआर्डर पर निबंध कैंसल किया। फिर मैं आया गाय पर।
गाय हमारे बहुत काम आती है, मैंने बच्चे को बताया।
हमारे काम नहीं आती, वो तो उनके काम आती है, जो उसका चारा खा जाते हैं। हम क्या करेंगे गाय का-बच्चे ने पूछा।
नहीं बेटे, हम गाय का दूध पीते हैं-मैंने समझाया।
झूठ, दूध तो हम मदर डेयरी का पीते हैं-उसने खंडन किया।
पर मदर डेयरी पर दूध गाय से आता है-मैंने समझाया।
तो यूं कहो कि मदर डेयरी के काम आती है गाय। हमें क्या मतलब गाय से-बच्चे ने डिक्लेयर किया।
यूं गाय पर निबंध कैंसल हुआ।
फिर पड़ोसी पर निबंध शुरु किया।
मैंने समझाया कि पड़ोसियों का हमारी जिंदगी में बहुत महत्व है।
हां, पुलिस के इश्तिहारों में भी लिखा होता है पड़ोसियों पर ध्यान दें, वह आतंकवादी भी हो सकता है। इस तरह से हम पड़ोसी पर ध्यान दें

और अगर वह आतंकवादी हो, तो हमें भी बहुत फायदा हो सकता है, क्योंकि सुना है कि आतंकवादी बहुत नोट कमाते हैं-बच्चे ने अपना विश्लेषण पेश किया।
नहीं बेटा, हमें पड़ोसियों के बारे में इस तरह से नहीं समझना चाहिए-मैंने उसे समझाया।
तो किस तरह से समझना चाहिए-उसने फिर पूछा।
देखो, हमारे पड़ोसी होते हैं, हमारे पास कई लोग रहते हैं-मैंने उसे समझाने की कोशिश की।
कहां कोई रहता है, मिसेज गुप्ता, मिसेज शर्मा, मिसेज अग्रवाल और इनके मिस्टर भी सुबह से ही चले जाते हैं अपने काम-धंधे पर। इनके यहां तो कोई और आकर रहता है, आया या फिर कोई और, तो इन्हे पड़ोसी मानकर इनका ख्याल रखना चाहिए-बच्चे ने फिर पूछा।
हां, ऐसा ही मान लो-मैंने समझाने की कोशिश की।
पर मिसेज गुप्ता ने मिस्टर गुप्ता की पिटाई उस दिन इसलिए की थी कि वह अपनी पड़ोस वाली आया का बहुत ख्याल रख रहे थे। तो इसका मतलब यह हुआ है कि हमें पड़ोसी का ध्यान रखना चाहिए, बहुत ज्यादा नहीं-बच्चा पूछ रहा है।
हां, बेटा ज्यादा ध्यान नहीं रखना चाहिए-मैंने अंतिम तौर पर समझाया।
इस तरह से पड़ोसी पर निबंध खत्म हुआ।
बताइए अब कैसे और किस विषय पर निबंध लिखा जाये।
आलोक पुराणिक एफ-1 बी-39 रामप्रस्थ गाजियाबाद-201011
मोबाइल--9810018799

Thursday, May 24, 2007

कुछ नयी कहावतें

कुछ नयी कहावतें
आलोक पुराणिक
इधर सीरियस चिंतन कर रहा हूं, पुरानी कहावतों पर।
अब जैसे एक कहावत है बकरी की मां कब तक खैर मनायेगी।
यह कहावत मूलत पापा विरोधी है, जो बताती है कि बकरी के पापा निहायत गैर-जिम्मेदार हैं, जो अपनी बकरी की खैर नहीं मनाते। खैर मनाने की होलसेल ड्यूटी बकरी की मां को दे दी गयी है, यह बात ठीक नहीं है।
अब इसे यूं रिवाइज करना चाहिए, नोएडा का बच्चा कब तक खैर मनायेगा। या नोएडा का बच्चा, अपने घर में ही अच्छा।
एक और कहावत है-गंगा गये गंगादास, जमुना गये जमुनादास।
अब तो गंगा जाकर भी बंदा जमुना से टच में बना रह सकता है जी, सैलफोन क्यों है जी। गंगादासजी अपनी जमुनाजी को एक ही कंपनी का सैल ले लें, तो फिर आपसी बातचीत फ्री भी हो सकती है। ऐसे ही जमुनाप्रसादजी अपनी गंगा के टच में बने रह सकते हैं।
कलाकार किस्म के लोग एक साथ गंगा और जमुना को साध सकते हैं।
अब पुरानी कहावत है-घर की मुर्गी दाल बराबर। अब इस कहावत लिखने वाले कभी सोचा न होगा कि बर्ड फ्लू के चलते मुर्गियां फ्री में भी बंटेगीं और मौका देखकर उड़द की दाल मुर्गी तो छोड़ो, चांदी के भावों पर पहुंच जायेगी।
एक नयी कहावत यूं हो सकती है-उड़द की दाल मुर्गी के बराबर।
एक कहावत है चाह घटे नित के घर जाये, यानी कहीं रोज-रोज जाने से चाह, मान घट जाता है।
मैंने गहन शोध करके पता लगाया कि आखिर पत्नी की निगाह में कुछ समय बाद पति की इज्जत क्यों कम हो जाती है-वजह वही है, रोज –रोज आने से मान घट जाता है।
इस कहावत को कुछ इस अंदाज में भी समझाया जा सकता है-
हसबैंड सुन घटेगा ही तेरा मान, अबे रोज घर क्यों आ जाते हो श्रीमान
इस कहावत का आशय यह है पति दूर का अच्छा, और भी अच्छा अगर कमाने के लिए बहुत दूर चला जाये अमेरिका, कनाडा, दुबई वगैरह। नोट छाप, और भेज दे। पर रोज ही घर आने के चक्कर में रहेगा, तो विदेश जाकर कमायेगा कैसे।
एक कहावत है-देर आये, दुरुस्त आये यानी जो देर से आते हैं, उन्हे ही दुरुस्त माना जाता है। जल्दी आने वालों को फोकटी-फालतू टाइप माना जाता है, जिनके पास कोई काम नहीं होता। देखिये, किसी शादी-बर्थडे समारोह में जो सबसे पहले आते हैं, उन्हे टेंट हाऊस के बंदों के तौर पर ट्रीट किया जाता है। मुख्य अतिथि पर्याप्त विलंब से आते हैं, चिरकुट अतिथि सबसे पहले आते हैं सो अतिथि समझ-देर आये, दुरस्त आये। इस कहावत में दुरस्त शब्द नये बच्चों को समझ में नही आता, वो कहते हैं कि ये इंगलिश टाइप का शब्द है, कुछ हिंदी में कहावत बनाइये। बच्चों को हिंदी में समझ में आने वाली कहावत यूं हो सकती है-अगर नहीं पहुंचोगे लेट, तो कैसे पाओगे रेसपेक्ट।
आलोक पुराणिक एफ-1 बी-39 रामप्रस्थ गाजियाबाद-201011 मोबाइल-9810018799

कुछ मकड़ीली कथाएं


कुछ मकड़ीली कथाएं
आलोक पुराणिक
लोग बहुत स्मार्ट हो गये हैं।
पुरानी कथाएं सुनाओ, तो लोग नये सबक ले लेते हैं।
26 बार फेल होने दो
एक बच्चे को मैंने कथा सुनायी कि एक समय की बात है एक राजा दुश्मन राजा से परास्त होकर एक गुफा में घुस गया। वहां गुफा में उसने देखा कि एक मकड़ी दीवार पर चढ़ने की कोशिश कर रही है। वह बार-बार चढ़ती और गिरती।
वह 26 बार गिरी और फिर जाकर फाइनली चढ़ गयी।
मैंने पूछा एक बच्चे से कहा-इससे तुम्हे क्या शिक्षा मिलती है।
बच्चा बोला-
जी इससे तो मेरे पिता को शिक्षा लेनी चाहिए। मैं सिर्फ पांच बार फेल हुआ हूं. और वो मुझे डांटते हैं। अब मैं जाकर उन्हे बताऊंगा कि छब्बीस बार फेल होना तो मकड़ी तक को माफ है।
यही कथा मैंने एक कंपनी में कई कर्मचारियों को सुनाई तो उनमें से एक ने उठकर कहा कि इससे हमें यह शिक्षा मिलती है कि किसी प्रोजेक्ट में छब्बीस बार फेल हो जायें, तो बास को कोई प्राबलम नहीं होनी चाहिए।
सत्ताईसवीं बार भी अगर मामला न जमे, तो फिर उस पर आगे कार्रवाई होनी चाहिए। छब्बीस बार तक तो बजट देने में ऊपर वालों को प्राबलम नहीं होनी चाहिए।
यही कहानी मैंने केंद्रीय सचिवालय में सरकारी कर्मचारियों को सुनाई।
तो एक सरकारी कर्मचारी बोला-
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि वह मकड़ी प्राइवेट सेक्टर की होगी, तब ही जल्दी काम निपटा लिया।
छब्बीस बार में ही काम निपटा लिया। सरकारी सेक्टर की मकड़ी होती, तो 126 ट्रायल रन लेती।
जो मकड़ियां जल्दी चढ़ जाती हैं, वो बास लोगों की आदतें खराब कर देती हैं।
सो इस कहानी से हमें शिक्षा लेनी नहीं चाहिए, मकड़ी को शिक्षा देनी चाहिए कि ज्यादा जल्दी मत किया करे। गिनती में छब्बीस से आगे के नंबर भी होते हैं ना।
पुलिस वालों को यह कथा सुनायी, तो एक पुलिस वाला बोला-
यह मकड़ी मेरे इलाके की नहीं हो सकती। बिना रकम दिये मेरे इलाके में कोई कहीं चढ़-उतर नहीं सकता। आ-जा नहीं सकता।
इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि कुछ पुलिस वाले ऐसे भी निकम्मे होते हैं, जो बिना कुछ लिये –दिये ही किसी को आने-जाने देते हैं।
गलत बात है। बहुत गलत बात है।
यह कथा मैंने नेताओं के बीच सुनायी, तो एक घुटा हुआ नेता बोला-
पर सवाल यह है कि मकड़ी चढ़ी ही क्यों। क्या मकड़ी ने चढ़ने का वादा किया था। अगर वादा नहीं किया था, तो चढ़ी क्यों। क्या चढ़ने की कोई रकम मिली क्या। अगर रकम नहीं मिली, तो फिर फोकटी में मकड़ी चढ़ी ही क्यों।
एक नये नेता ने कहा-
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि छब्बीस बार तक झूठे वादों से काम चलाया जा सकता है। इसके बाद कुछ करके दिखाना पड़ेगा।
पर इसके बाद भी कुछ करके दिखाने की जरुरत क्या है।
इस कहानी से हम यह शिक्षा भी ले सकते हैं कि सत्ताईसवीं बार गुफा को ही बदल दो।
एक नये सरकारी इंजीनियर ने कहा-अऱे वाह, तब तो छब्बीस बार गिरने का टीए डीए बना होगा। अरे मकड़ी और बनाती टीए डीए, काहे को चढ़ गयी सत्ताईसवीं बार। अगर चढ़ने का रास्ता आसान बनाने के लिए पुल बनाना पड़ा, तो कितने करोड़ का बजट बनेगा। उसमें अपन का हिस्सा कितना होगा।
एक डाक्टर ने कहा-छब्बीस बार गिरी, और एक बार भी चोट नहीं लगी। इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि सबके खाने-पीने का इंतजाम है, बस डाक्टरों के खाने का इंतजाम नहीं है। इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि डाक्टरी के धंधे में ज्यादा कमाई नहीं है।


कुल मिलाकर मुझे पुरानी कहानियों से ये नयी शिक्षाएं मिली हैं-
1- जो बंदे जल्दी काम निपटा देते हैं, वो बास लोगों की आदतें खराब कर देते हैं।
2- सीबीएसई के रिजल्ट आने वाले हैं, छब्बीस बार तक फेल होने की परमीशन बच्चों को मिलनी ही चाहिए।
3- पुरानी कथाएं संभल कर सुनानी चाहिए। पता नहीं कोई क्या नया सबक ले ले।







Wednesday, May 23, 2007

यूं टें बोला स्पाइडरमैन


यूं टें बोला स्पाइडरमैन
आलोक पुराणिक
तो साहब जैसा कि आप सभी नहीं जानते हैं -स्पाइडरमैन हिंदी, भोजपुरी में झक्कास हिट हुआ, सो स्पाइडरमैन ने तय किया कि अपने करतब इंडिया में ही दिखायेगा। स्पाइडरमैन इंडिया में रुक गया, और भारतवर्ष के चौर्यपुरम् में बस गया और साधो फिर सुनो स्पाइडरमैन की कथा।
स्पाइडरमैन एक दिन रेस्ट कर रहा था कि मोबाइल की घंटी बजी, मिस काल आया था। स्पाइडरमैन ने सोचा शायद किसी से गलती से नंबर दब गया होगा।
फिर दोबारा मिस काल आया।
स्पाइडरमैन ने दोबारा सोचा, शायद दोबारा नंबर गलत दब गया होगा।
तीसरी बार घंटी बजी, अबकी फुलमफुल बजी-उधर से स्वर उभरा-
कै दमाग खराब हो गया सै तेरा। साडे, इत्ता ठोकूंगा कि सपाइडरीमैनगिरी भूल जाओगा। दो बेर मिस काल मारीं, पलट के फोन क्यों ना क्किया बे।
स्पाइडरमैन घबरा गया और बोला-हू यू, आप कौन हैं।
अब्बे हमें ना जाणता, हम बोड़ रै हैं तेरे बाप पांडु हवडदार इंडियन पुलिस से-उधर से परिचय आया।
जी पर आप मिस काल करके बंद क्यूं कर रहे थे, पूरी बात करने ना-स्पाइडरमैन ग़िडग़िडायमान मुद्रा में बोला।
ल्लै तू ना जाणता इधर के चलन को, हम काल नहीं करते, मिस काल करते हैं। फिर फुल काल उधर से होती है, समझ्झा कि नही। अबे ल्लै इत्ती सी बात भी ना समझता कि बात हमें करनी है, तो क्या उसके पैसे भी हम्मी खर्च करेंगे। तू पुलिस हेडक्वार्टर आ जा, यहां प्पे चोरी हो ली है-उधर से बात पूरी हुई।
स्पाइडरमैन ड्रेस टांग कर निकल लिया पुलिस हेडक्वार्टर में।
हेडक्वार्टर पर कि एक पुलिस वाला बोला-शायद चोर कुछ फाइलें लेकर ऊपर पचासवीं मंजिल की ओर गये हैं।
स्पाइडरमैन दीवार पर चढने लगा, फिसलने लगा, विकट काई। बिल्डिंग की दीवारें पचास सालों से कभी साफ ही नही हुई। स्पाइडरमैन को चिकनी अमेरिकी दीवारों पर काम करने की आदत थी, मुश्किल से स्पाइडरमैन ऊपर पहुंचा।
वहां एक चोर था, जिसके पास फाइलें थी, फाइलें एक घपले की इन्क्वायरी की थी।
चोर बोला-ले ले पचास लाख ले ले स्पाइडरमैन और मुझे छोड़ दे।
क्या यहां पचास लाख लेकर छोड़ देते हैं-स्पाइरमैन ने पूछा।
चोर ने बताया कि नहीं कम में भी छोड़ देते हैं-चोर ने बताया।
तो तुम्हे छोड़ क्यों नहीं दिया पुलिस ने, काहे को पकड रही है-स्पाइडरमैन ने कहा।
पुलिस कहां पकड रही है, तुम पकड रहे हो। तुम पचास लाख मुझसे लोगे, नीचे पुलिस तुमसे पचास लाख ले लेगी। पुलिस इधर डाइरेक्ट नहीं लेती, स्टिंग आपरेशन हो रहे हैं ना। अब पचासवीं फ्लोर पर तो स्टिंग आपरेशन नहीं ना होगा, सो यह इलाका सेफ है। इस सेफ इलाके में डील के लिए हमें भेजा गया है-चोर ने बताया।
स्पाइडरमैन गुस्सा हुआ और बोला मैं इस डिपार्टमेंट के मिनिस्टर के बात करुंगा, सब साफ कर दूंगा।
मिनिस्टर का मैं तो भतीजा हूं, उन्ही के इशारे पे तो मैं फाइलें ले जा रहा हूं। ये उनके घपले की फाइलें हैं। देखो, तुमने अगर कोआपरेट नहीं किया, तो तुम प्राबलम में आ जाओगे। पुलिस बतायेगी कि चोरी स्पाइडरमैन कर रहा था और मैं गवाह हो जाऊंगा कि चोरी तुम ही कर रहे थे। तुम्हारे पास पुलिस हेडक्वार्टर में घुसने की वजह क्या है-चोर ने पूछा।
तो तुम्हारे पास पुलिस हेडक्वार्टर में घुसने की वजह क्या है-स्पाइडरमैन ने पलट कर पूछा।
मैं चोर हूं डिक्लेयर्ड चोर, यहां चोर पुलिस से मिलता-जुलता है, तो इसे नेचुरल एक्टिविटी ही माना जाता है। मेरी वजह तो नार्मल है-चोर एकदम तार्किक बात कर रहा था।
चोर के तर्कों को सुनकर स्पाइडरमैन की समझ में आ रहा था कि ज्ञान-चिंतन के मामले में भारत को अब विकसित देश क्यों माना जाता है।
हे स्पाइडरमैन तू मुझे छोड़ वरना, अभी मिनिस्टर अंकल को बुलाकर सबके सामने तुझे अरेस्ट करवाता हूं। तुझे चोर डिक्लेयर करके इंडिया से निकलवाता हूं-चोर ने धमकाया।
स्पाइडरमैन स्तब्ध हो गया। आखों के सामने मकडी के जाले जैसा कुछ नाचने लगा। स्पाइडरमैन बेहोश होकर नीचे गिर गया।
और गिरते-गिरते उसकी समझ में यह आ गया कि इंडिया में चोर को पकडना तो आसान है, पर उसे पकडे रहना मुश्किल है। जैसे स्पाइडरमैन को समझ में आया, वैसे ही सबकी समझ में आये, बोल ..................की जय।

Tuesday, May 22, 2007

किस ब्रांड की धूप



किस ब्रांड की धूप
आलोक पुराणिक
चट गये जी वो ही पालिटिक्स, मीडिया, क्रिकेट, अगड़म-बगड़म लिखकर। मैंने बास को कह दिया कि अब इन पर नहीं लिखूंगा। बास ने काम दिया कि जाओ गर्मी पर लिखो। सो साहब मैं निकल लिया गर्मी पर लोगों से बातचीत करने।
लखनऊ में एक बंदे से पूछा कि बताइए आप गर्मी को किस तरह से देखते हैं। ये तो तेज धूप पड़ रही है, उसे किस तरह से देखते हैं।
वह बंदा मायावती का सपोर्टर निकला।
वह बोला-देखिये, यह सब मुलायम सिंह और अमर सिंह ने कराया हुआ है। इसकी जांच करायी जायेगी। छोड़ा नहीं जायेगा। यह जंगलराज है।
तो क्या आपके राज में धूप नहीं होगी-मैंने पूछा।
वो बोला-नहीं होगी, पर अलग टाइप की होगी। मुलायम सिंह के अपने अमर सिंह थे, हमारे अपने अमर सिंह होंगे।
पर देखिये मैं आपसे गर्मी की बात कर रहा हूं, और आप इसे पालिटिक्स पर ले जा रहे हैं।
यूपी में कोई बात मुलायम सिंह –अमर सिंह के बगैर कैसे हो सकती है-मायावती के सपोर्टर ने बताया।
मैं पालिटिक्स से चटकर मुंबई चला गया। वहां एकता कपूर के एक सीरियल की शूटिंग चल रही थी। मैंने एकताजी से पूछा-इतनी गर्मी को आप किस तरह से देखती हैं।
गर्मी हमारे सीरियलों में होती ही कहां है। हमारे कैरेक्टर एसी कारों से निकल कर एसी घरों में घुस जाते हैं और फिर फेमिली की ऐसी-तैसी में लग जाते हैं। गर्मी कहां से आती है इसमें-एकताजी ने पूछा।
देखिये, आप भारत की नागरिक हैं, भारत में धूप पड़ती है। आप समाज की सचाई को दिखाती हैं, ऐसे में धूप को ना दिखाना कितना सही है-मैंने एकताजी को भारतीयता का हवाला दिया।
ओ के राइट मैं गर्मी को दिखा सकती हूं। मैं दिखा सकती हूं तुलसी का चौथा हसबैंड पांचवी बार जब मरे, तो लू से मर जाये। पर यू सी, लू से डैथ विजुअल नहीं होती। मजा नहीं आता। बंदा कैंसर से मरता है, तो लंबे-लंबे डायलाग झाड़कर टें बोलता है। पर लू में तो झाग डालकर बेहोश हो जाता है। ये सीन कुछ जमता नहीं है। बेहोशी में डायलाग क्या बोलेगा। नो, लू-गरमी सीरियल फ्रेंडली नही है। नहीं चलेगा-एकताजी ने लू को रिजेक्ट कर दिया।
सामने ही न्यूज चैनल थे। एक चैनल में घुसकर मैंने पूछा-सर आप गर्मी-लू को किस तरह देखते हैं। जिससे पूछा था, वह काइम शो बनाने में बिजी था। कुछ सोचकर बोला-यार ये धूप-गर्मी का मामला ठीक नहीं है। धूप निकली हो, दिन निकला हो, तो क्राइम खुलकर नहीं होते। क्राइम खुलकर नहीं होंगे, तो हम प्रोग्राम कैसे बनायेंगे। प्रोगाम नहीं बने, तो टीआरपी कम हो जायेगी। टीआरपी कम हो जायेगी, तो चैनल बंद हो जायेंगे। चैनल बंद हो जायेंगे, तो बेरोजगारी बढ़ जायेगी। बेरोजगारी बढ़ जायेगी, तो राष्ट्र को खतरा पैदा हो जायेगा। इसलिए राष्ट्र के हित में यही है कि धूप ना ही निकले, रात रहे। क्राइम चलते रहें, अंधेरा कायम रहे।
नहीं, हमें हर हाल में क्राइम की सूरत निकालनी चाहिए। हम धूप में भी क्राइम दिखा सकते हैं। जो क्राइम रात में होते हैं, उनका नाट्य रुपांतरण दिन में दिखा देंगे। स्क्रिप्ट यूं हो सकती है-देखिये धूप निकल रही है। लू चल रही है। दिन-दहाड़े धूप निकल रही है। दिन दहाड़े धूप दहाड़ रही है। सावधान, खबरदार, होशियार।
लो जी, धूप में भी रात का खौफ कार्यक्रम शुरु हो लिया।
मैं परेशान होकर अमिताभ बच्चनजी के पास चला गया और पूछा-धूप पर कुछ कहिए।
क्या मैं धूप की माडलिंग कर रहा हूं। मुझे किस ब्रांड की धूप बेचनी है, पहले यह बताइए। अगर मुझे धूप बेचनी ही नहीं है, तो मैं इस पर क्यों बोलू-अमिताभजी ने बहुत बुनियादी सवाल रख दिया।
मैं घबराकर दूसरी तरफ भागा, वहां पब्लिक की बात करने वाले चैनल के लोग भी थे। एक रिपोर्टर ने धूप पर शेर पढ़ा-
सुन ऐ ब्यूटी, धूप में सारे रूप उजड़ जाते हैं
जैसे तमाम तख्तो-ताज जड़ से उखड़ जाते हैं
यह शेर ठेलकर वह एयरकंडीशंड कार में बैठकर निकल लिया।
मैं घबराकर भागा, सामने कुछ अमेरिकन टाइप लोग थे।
मैंने पूछा उनसे -बताइए इस तेज धूप को आप कैसे देखते हैं।
यू सी, ये सब अलकायदा ओसामा बिन लादेन ने किया है। वही सारी गड़बड़ियों की जड़ है-अमेरिकन बोला। वह बुश का सपोर्टर था।
एक दूसरे विदेशी से मैंने धूप के बारे में पूछा, तो वह बोला-इसी पर में ओसामा बिन लादेन का टेप दिखायेगा। मैं हर बात पर ओसामा बिन लादेन का टेप दिखायेगा। वह एक अरबी न्यूज चैनल का बंदा था। उसके टेप में लादेन कह रहे थे-अमेरिकिया धूपिया फैलिया, वर्ल्ड की ऐसी-तैसिया। मैं अमेरिकिया पर बंबिया।
आप ही बताइए कि क्या करुं, बात धूप से शुरु करो, फिर भी घूम –फिर कर पालिटिक्स पर आ जाती है।
आलोक पुराणिक एफ-1 बी-39 रामप्रस्थ गाजियाबाद-201011
मोबाइल-09810018799

Monday, May 21, 2007

प्रति व्यक्ति गप



प्रति व्यक्ति गप
आलोक पुराणिक
निम्नलिखित निबंध एमए हिंदी के उस छात्र की कापी से लिया गया है, जिसने हिंदी निबंध के परचे में टाप किया है। छात्र ने गप विषय पर ललित निबंध यूं लिखा है-
गप जैसा कि सब जानते हैं कि गप होती है।
गप का हमारे राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक जीवन में महती महत्व है।
बल्कि कतिपय विशेषज्ञ जानकार तो मानव जीवन की उत्पत्ति के मूल में गप का योगदान मानते हैं। गप स्कूल आफ मानव ओरिजिन स्कूल के विशेषज्ञों का विचार है कि जब कुछ नहीं था, तब परमेश्वर थे और हव्वा और आदम थे।
परमेश्वर रोज अपना प्रवचन दोनों को सुनाया करते थे।
उनके प्रवचनों से बोर होकर एक दिन आदम ने हव्वा से कहा या हव्वा ने आदम से कहा-चल छोड़, ऐसे बोरिंग प्रवचनों को, गार्डन में चलकर गप करते हैं।
दोनों ने खूब गप की।
तत्पश्चात भूख लगी तो सेब खाया।
सेब खाने के बाद जो हुआ, वह सब जानते हैं। मानव जाति यूं अस्तित्व में आयी। जरा कल्पना कीजिये कि अगर आदम-हव्वा गप के लिए गार्डन में नहीं आते, तो क्या होता। तो बस यह होता जी कि परमेश्वर अब भी प्रवचन सुना रहे होते और आदम और हव्वा अब भी प्रवचन सुन रहे होते।
और कोई ना होता।
इस तरह से गप ने मानव जाति के विकास का मार्ग प्रशस्त किया।
गप का भारी राजनीतिक महत्व भी है। ऐसा कई विद्वानों का मानना है कि संसद में जो भी कुछ नेतागण करते हैं, वह दरअसल परिष्कृत किस्म की गप की श्रेणी में ही आता है। पर कुछ विद्वानों का मत है कि नहीं ऐसा नहीं है। नेता संसद में और भी बहुत कुछ करते है, जिन्हे गपबाजों के खाते में नहीं डाला जा सकता। जैसे इतिहास में किसी गपबाज पर कभी यह आरोप नहीं लगा कि उसने सवाल पूछने के लिए किसी से पैसे लिये। असली गपबाज घंटों सिर्फ और सिर्फ निर्मल आनंद के लिए बहुत चिरकुट किसिम के सवाल पूछ सकते हैं, बिना कुछ लिये हुए। सो सांसदों की हरकतों को गप मानना सरासर अनुचित है।
कई विद्वानों का मानना है कि क्या ही बेहतर हो कि हमारे नेता लोग सिर्फ और सिर्फ सच्ची की गप करें। तब हम उनकी दूसरी हरकतों से बच जायेंगे।
गप का बौद्धिक योगदान भी कम नहीं है, एक जमाने में जिन आइटमों को विशुद्ध चंडूखाने की, चकाचक लंतरानी की श्रेणी में रखा जाता था, अब उन्हे बाकायदा खबर, बौद्धिक चिंतन का विषय माना जाता है। जैसे कुछ दिनों पहले कुंजीलाल नामक एक गपोड़ी ने एक ऊंची छोड़ी थी कि वह अलां दिन फलां बजे टें बोल जायेगा। ढेर से टीवी चैनल कूद लिये भाई को कवर करने। इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि वही आइटम टाप क्लास खबर बनने योग्य है,जिसमें गप के हाई लेवल तत्व हों। उदाहरण के लिए टीवी चैनलों के लिए यह खबर नहीं मानी जायेगी कि उड़ीसा में आदिवासी पुलिस द्वारा मार डाले गये। पर कोई फुंजीलाल अगर भविष्य में किसी दिन मरने की हांक दे, तो फिर वह चकाचक खबर है।
इस तरह हम कह सकते हैं कि गप का हमारे समाचार जगत और बौद्धिक जगत में भारी योगदान है, गप और गपोड़ी न हों, तो सारे समाचार चैनल सूने हो जायें।
खैर गप का सिर्फ इतना भर योगदान नहीं है। गप का प्रेम संबंधों में भी योगदान है।
उदाहरण के लिए प्रेमी प्रेमिका से कहता है-आई लव यू।
वही प्रेमिका पत्नी बनने के पांचेक साल बाद सोचती है कि हाय आई लव यू बयान सिर्फ गप ही था। पर अगर तब ही इसे गप मान लिया गया होता, तो प्रेम संबंधों का विकास कैसे होता। अर्थात सफल प्रेम संबंधों की नींव सफल गप पर ही टिकी होती है, विफल प्रेम संबंधों के मूल में प्राय वे प्रेमी होते हैं, जिनके पास गप-कौशल नहीं होता।
कई आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि जिन्हे हम पंचवर्षीय योजनाओं के नाम से पुकारते हैं, वे भी दरअसल गप ही हैं। थोड़ी जटिल किस्म की गप, जिनका आनंद तमाम फाइव स्टार सेमिनारों में अर्थशास्त्री आदि ही ले पाते हैं।
भारतीय सामाजिक जीवन में तो गपों का अत्यधिक ही योगदान है।
अरैंज्ड मैरिज में दोनों पक्ष बात की शुरुआत गप से ही करते हैं।
जैसे कन्या पक्ष कह सकता है-लड़की के मामा अमेरिका के लुजियाना स्टेट में डिप्टी गवर्नर हैं।
जैसे वर पक्ष कह सकता है-लड़के के चाचा हवाई द्वीप में पांच फाइव स्टार होटलों के मालिक हैं।
लड़का और लड़की के क्रमश फूफा, ताऊजी, ताऊजी के साढ़ूजी, साढ़ूजी के सालेजी,सालेजी के साढ़ूजी-सबकी गप होने के बाद ही बात इस ठिकाने पर पहुंच पाती है कि असल में लड़की और लड़की क्या हैं।
जैसा कि सब जानते हैं कि इस तरह की सामाजिक बातचीत में इस तरह की गप को बहुत समादृत भाव से देखा जाता है। इस श्रेणी के गप-कुशल बंदों को व्यवहार कुशल, दुनियादार, चालू आदि विशेषणों से विभूषित किया जाता है।
गप की साहित्य में भी महती भूमिका है।
बल्कि यह कहना अनुचित न होगा, कि बहुत कायदे के गपोड़ी ही श्रेष्ठ साहित्यकार बन पाये हैं। जैसे भारत के प्राचीन ग्रंथ –आल्हा-ऊदल में एक महत्वपूर्ण बयान है, जिसका आशय है कि आल्हा ऊदल बड़े लड़ैया जिनकी मार सही ना जाये, जा दिन जन्म भयो आल्हा को, धरती धंसी अढ़ाई हाथ। अर्थात पृथ्वी अपने लोंगिट्यूड और लेटिट्यूट से करीब ढाई हाथ खिसक गयी। वैज्ञानिक इस विशुद्ध गप मानते हैं, पर गपोड़ी इसे विशुद्ध वैज्ञानिक तथ्य मानते हैं और बताते हैं कि एकदम सटीक कैलकुलेशन है कि ढाई हाथ, वरना तो तीन हाथ भी लिखा जा सकता था।
कई विशेषज्ञों का मानना है कि किसी राष्ट्र की प्रगति का सही पैमाना प्रति व्यक्ति आय नहीं है, बल्कि यह तो पतन का पैमाना है। जहां आय बढ़ती है, वहां गप कम हो जाती है। अरे आदमी कमाता क्यों है, ताकि चैन से आराम से बैठकर गप-शप कर सके। पर हा हंत, ऐसा नहीं होता। विकास का एकैदम सटीक पैमाना है -प्रति व्यक्ति गप। अर्थात किस राष्ट्र में बंदे कितनी गप करते हैं। कहना अनावश्यक है कि गपों का आधिक्य उस राष्ट्र की मौज का इंडेक्स माना जा सकता है। अत यह भी कहना अनावश्यक है कि इस पैमाने पर भारत विश्व का सर्वाधिक विकसित राष्ट्र है। औसतन एक भारतीय रोज कम से कम पांच घंटे की गपबाजी अपने अंदर करता है, बाबाओं और नेताओं के भाषणों समेत।
इस तरह से हम कह सकते हैं कि गपों का राष्ट्र के सामाजिक राजनीतिक आर्थिक और सांस्कृतिक जीवन में महती योगदान है।
आलोक पुराणिक एफ-1 बी-39 रामप्रस्थ गाजियाबाद -201011, मोबाइल -9810018799

Sunday, May 20, 2007

आलोक पुराणिक की संडे सूक्तियां-संडे सदविचार

संडे सूक्तियां-संडे सदविचार

कैसे होगा तू बता, तेरा-मेरा मेल
तेरे अपने खेल हैं, मेरे अपने खेल

हिंदी ब्लागरों की एक-दूसरे को झेलने की क्षमताओं और झेलेबिलिटी को समर्पित –

मैंने ठेले व्यंग्य दस, तू दस गजलें ठेल
मैंने झेला है तुझे, अब तू मुझको झेल

आलस
आलस को लेकर शर्मिंदा न हों, अगर ऊपर वाले ने आपको इंसान बनाया है, तो वह आपसे इसकी उम्मीद करता है। गधे कभी आलस करते हैं, नहीं। बंदर कभी आलस करते हैं, नहीं। तो समझिये कि जो बंदे आलस नहीं करते, वो क्या हैं।


कुछ और नये धंधे –भूतो ही भविष्यति
आलोक पुराणिक
आने वाले टाइम में इन धंधों की भारी डिमांड रहेगी-
यंत्र एक्सप्लेनर
अभी मेरे जैसों को आई पोड और मोबाइल की शक्ल-सूरत में फर्क नहीं समझ में आता। आई पोड के जरिये एक बंदे को दिल्ली से न्यूयार्क कैसे फैक्स किया जा सकता है, यह बताने वालों के सख्त जरुरत है। जल्दी ही एक यंत्र आने वाला है- लाई पोड,इसके जरिये बंदा तरह-तरह के झूठ बोलने में सक्षम हो जायेगा। झूठ के कितने फोल्डर कितनी तरह की फाइलों में रखे जा सकते हैं, यह कोई लाई पोड एक्सप्लेनर बता सकता है।
भूत कैचर उर्फ भूतो ही भविष्यति
सारे टीवी चैनल या तो भूत के सहारे चल रहे हैं या नागिनों के सहारे। नागिनों की धरपकड़ तो थोड़ी आसान ही है। असली खेल भूतों का है। भूतो में ही भविष्यति यानी चकाचक भविष्य छिपा है। स्मार्ट बंदे अगर कुछ तंत्र-वंत्र की नालेज ले लें, तो फिर वो अपमार्केट भूतों को कैच कर सकते हैं। पेज थ्री टाइप भूतों को कैच करने वाले के तो क्या ही कहने। किसी माडल के भूत से अगर किसी किसी माडलनी की भूतनी के अफेयर के किस्से पर जो कार्यक्रम बना पाये, उसके लिए हर टेलीविजन चैनल के दरवाजे खुले हैं। टीवी चैनलों में नौकरी का रास्ता अब भुतहा हवेलियों से जाता है, पर प्लीज माइंड, अपमार्केट भूत चाहिए।
सीरियल ट्रेकर
सुबह से शाम तक इतने सीरियल आते हैं, जिनमें यह ट्रेक रखना मुश्किल हो जाता है कि इस की जो पांचवीं गर्लफ्रेंड है, वह उसकी दूसरी गर्लफ्रेंड थी या पहली।
उसमें उनका रोल वैसा वाला है, पर इसमें ऐसा वाला है। इसमें तो फलां उस पर लाइन मार रहा है, पर उस सीरियल में उसे बाप की निगाह से देख रहा है।
बहुत टेंशन है साहब स्टोरी समझ नहीं आती।
हर घंटे पर कोई ऐसा बंदा तमाम सीरियलों की लेटेस्ट किस्से, घिस्से आकर बता जाये, तो मामला कम झेलू हो जायेगा।
खैर, मैं तो भूत कैचर या लाई पोड एक्सप्लेनर बनूंगा।

आलोक पुराणिक एफ-1 बी-39 रामप्रस्थ गाजियाबाद-201011

Saturday, May 19, 2007

अमिताभजी का च्यवनप्राश, अमिताभजी के नेता

अमिताभजी का च्यवनप्राश, अमिताभजी के नेता
आलोक पुराणिक
मैं बहुत यकीन करता था अमिताभ बच्चनजी की बात का। और तो और मैंने ब्यूटी क्रीम भी वही लगायी, जिसकी सिफारिश अमिताभ बच्चन करते थे। पर अब समझ में आया कि मैं ब्यूटीफुल क्यों नहीं हुआ। यूपी के चुनावों में मुलायम सिंहजी का जो हाल हुआ, उसे देखकर लगता है अमिताभजी के सारे बयानों के साथ एक बयान अटैच कर दिया जाये-इस बयान की सारी बातें, घटनाएं और पात्र काल्पनिक हैं। हर सीरियल वगैरह से पहले इस तरह का कुछ देना पडता है। और अमिताभजी तो आइटमों की सेल का अनंत सीरियल चलाते हैं।
अंकल आप तो कहते थे कि बकौल अमिताभ बच्चन, मुलायम सिंह के यूपी में जुर्म है कम। फिर पब्लिक ने जुर्म कम करने वाले नेता को क्यों नहीं चुना-एक बच्चा पूछ रहा है।
पब्लिक का टेस्ट बदल गया है। उसे जुर्म चाहिए, ताकि रात का खौफ, मुर्दे की मीटिंग, कब्रिस्तान की लाइफ, क्राइम पोफाइल जैसे टीवी कार्यक्रम बन सकें और पब्लिक का मनोरंजन हो सके। पब्लिक बोर नहीं होना चाहिए, इसलिए वह जुर्म में कमी नहीं चाहती-मैंने उसे समझाने की कोशिश की।
पर अमिताभजी तो यह भी कह रहे थे कि पुनर्जन्म यदि हो, तो यहीं यूपी में हो। अमिताभजी खुद यूपी में आने का आफर दे रहे थे, फिर भी पब्लिक नहीं पिघली-बच्चा पूछ रहा है।
पब्लिक यूं डर गयी कि इस जन्म में अमिताभजी को टीवी, होर्डिंग से लेकर अखबार-पोस्टरों तक में देख रहे हैं। जिस आइटम की सेल हो, उसी में अमिताभजी को देख रहे हैं। अब अगले जन्म मे भी अमिताभजी को यहीं देखेंगे, तो खौफ खाकर मर जायेगे। अब हमेशा यूपी वाले ही क्यों झेलें, अगली बार अमिताभजी तमिल, तेलुगु, मलयालम फिल्मों के एक्टर बनें-मैंने समझाने की कोशिश की।
पर इसका मतलब तो यह हुआ कि अब अमिताभजी की किसी बात का यकीन नहीं करना चाहिए। अब तो उस वाले च्यवनप्राश के मामले में भी अमिताभजी की बात नहीं माननी चाहिए-बच्चा कह रहा है।
नहीं च्यवनप्राश के बारे में दिये गये बयान और नेताओं के बारे में दिये गये बयानों में फर्क होता है। च्यवनप्राश के बारे में तो आदमी सोच-समझकर बोलता है, नेताओं के बारे में तो जो मन चाहे सो बोल दिया। यही अमिताभजी ने किया होगा-मैं बच्चे को समझाने की कोशिश कर रहा हूं।
मैं समझ गया कि नेताओं पर कोई सीरियस नहीं होता, च्यवनप्राश के मामले में ही सब सीरियस होते हैं-बच्चा कह रहा है।
मैं आश्वस्त हूं कि बच्चे को समझ में आ गया।
आलोक पुराणिक मोबाइल-09810018799

Friday, May 18, 2007

कुछ आलसी आइडिये

कुछ आलसी आइडिये
आलोक पुराणिक
वैसे यह कहने की जरुरत नहीं है कि मैं आलसी हूं। सुधी पाठक खुद ही समझ लेंगे कि अगर कुछ और कर ही सकता यह आलसी, तो सिर्फ लिखता ही थोड़े ही बैठता।
इधर नयी तकनीक भी आलसियों के फुल सपोर्ट में हो गयी है।
रोज तमाम धरने-प्रदर्शन होते रहते हैं, और लोग उम्मीद करते हैं कि मेरा जैसा लेखक भी उनमें पहुंचेगा। पहुंचना चाहिए कि कुछ जिम्मेदारी बनती है, लेखक की समाज के प्रति। इधर मैंने कुछ नयी तरकीबें निकाली हैं, जिनमें मेरे जैसे समझदार लोग एक साथ आलस और जिम्मेदारी निभा सकते हैं। निम्नलिखित प्रस्तावों पर गौर करें-
एसएमएस सत्याग्रह
राष्ट्र व्यापी सत्याग्रह चलाना अब आसान है।
अब जैसे किसी को सरकार के खिलाफ आंदोलन चलाना है कि वह ऐसा कर रही है, या वैसा कर रही है, या जैसा भी कर रही है। तो यूं हो सकता है कि एक बंदा अहमदाबाद से प्रधानमंत्री को विरोध का एसएमएस भेजे, एक बंदा कलकत्ता से भेजे, एक बंदा चेन्नई से भेजे, एक बंदा मुंबई से भेजे, एक बंदा दिल्ली से भेजे।
बाद में इन सारी गतिविधियों को राष्ट्रीय सत्याग्रह का नाम दिया जा सकता है।
तमाम मोबाइल कंपनियां इस संबंध में अपनी सेवाएं प्रदान कर सकती हैं।
बल्कि यूं भी हो सकता है कि एक मोबाइल कंपनी अपने इश्तिहार में यूं कहे-सबसे सस्ता सत्याग्रह हमारा है।
दूसरी मोबाइल कंपनी अपने इश्तिहार में कह सकती है कि छह महीने तक सत्याग्रह फ्री। एक ही नेटवर्क में सत्याग्रह करने के लिए तो हमेशा ही फ्री।
तेरा सत्याग्रह मेरे सत्याग्रह से सस्ता कैसे, टाइप नारे दिखने लगेंगे तमाम इश्तिहारों में।
वाह क्या सीन होगा। सत्याग्रह का मामला दोबारा जमने लगेगा।

आनलाइन गिरफ्तारी
बताइए इतनी गरमी है। सच्ची की गिरफ्तारी कैसे दी जाये। एक सिलसिला यूं हो सकता है कि सारे गिरफ्तारी-प्रदायक तय कर लें कि गिरफ्तारी दिन में 12 बजे दी जायेगी। सारे गिरफ्तारी-प्रदायक बारह बजे दिल्ली पुलिस या मुंबई पुलिस की वैबसाइट पर जाकर मैसेज देंगे, गिरफ्तारी दी। पुलिस अफसर मैसेज के बदले जवाब देंगे, गिरफ्तारी ली।
गिरफ्तारी की रसीद ले ली। बाद में विज्ञप्ति जारी कर दी अखबारों में कि इतनी गिरफ्तारी दे दी जी।
ना किसी को टेंशन, सब काम राजी-खुशी हो जायेगा।
नेता लोग तब यह कहेंगे जी आज तो मैंने इराक में अमेरिका के कब्जे के खिलाफ न्यूयार्क में गिरफ्तारी दे दी, यहीं से। इसलिए मुझे वोट मिलने चाहिए।
दूसरा नेता कहेगा कि महंगाई के खिलाफ मैंने दिन में बीस बार गिरफ्तारी दी। एक बार आईटीओ थाने पर, एक बार कनाट प्लेस थाने पर, एक बार ........।
हर नेता अपने बायोडेटा में कम से कम से एक लाख गिरफ्तारियों का जिक्र करेगा।
पुलिस में बेरोजगारी फैल जायेगी, एक हवलदार ही पांच लाख गिरफ्तारियों को कंप्यूटर पर क्लिक करके ले लेगा।
बल्कि इंटरनेट सेवा देने वाली कंपनियां खुद ही आफर करने लगेंगी कि पचास लाख की आनलाइन गिरफ्तारी का पैकेज सिर्फ एक हजार में। सरकार के विरोध में गिरफ्तारी में पचास लाख लोग आयेंगे। सरकार के पक्ष में गिरफ्तारी में भी वही पचास लाख लोग आयेंगे।
एक नया रोजगार मिलेगा इंडिया के लोगों को। एक नयी तरह की सेवा की आउटसोर्सिंग शुरु हो जायेगी। अब मान लो आस्ट्रेलिया में विपक्ष को सरकार के खिलाफ धऱना देना है। चार करोड़ लोग इंडिया से आनलाइन गिरफ्तारी दे देंगे, आस्ट्रेलिया की सरकार के खिलाफ। सरकार के नेता बेहोश हो जायेंगे, इतनी आनलाइन गिरफ्तारी देखकर, वहां की जनसंख्या कुल दो करोड़, आनलाइन गिरफ्तारी चार करोड़ की। पूरे विश्व की सरकारें हिल उठेंगी जी।

मोबाइल धरना
यह भी विकट धऱना होगा। फिजिकल धरने में तो बंदे को अपनी जगह से हिलने-डुलने नहीं दिया जाता है। मोबाइल धरने में होगा यूं कि एक तय टाइम पर बारी –बारी से कई लोग किसी अफसर, या नेता को एसएमएस पर एसएमएस करेंगे। इतने एसएमएस आयेंगे उस नेता और अफसर के मोबाइल पर कि वह कुछ और कर ही नहीं पायेगा। सिर्फ एसएमएस देखने भर का हो जायेगा। कोई काल नहीं कर पायेगा, कोई काल रिसीव नहीं कर पायेगा।
मोबाइल की घेराबंदी इस तरह से एसएमएस धऱने से कर दी जायेगी। मांग पूरी होने तक यह घेराबंदी की जा सकती है। अनवरत एसएमएसबाजी से कई मसले निपटाये जा सकते हैं।
है ना धांसू आइडिये, समझे ना, आवश्यकता नये आविष्कारों की जननी भले हो न हो, पर आलस्य कई आविष्कारों का पापा जरुर होता है।
आलोक पुराणिक एफ-1 बी-39 रामप्रस्थ गाजियाबाद -201011
मोबाइल-09810018799

Thursday, May 17, 2007

नेताओं की फोटोकापियां

नेताओं की फोटोकापियां
आलोक पुराणिक
इस खाकसार के हाथ टाईम मशीन लग गयी है और वह मई, 2857 तक पहुंच गया। यानी तब पहले स्वतंत्रता संग्राम की हजारवीं वर्षगांठ मनायी जा रही होगी, अब से करीब साढे आठ सौ सालों बाद-स्पीकर का सिर टेबल पर आयेगा। और मैसेज देगा-बाकी के बाडीपार्ट्स ओवरहाल होने के लिए गये हैं, सिर्फ सिर एवेलेबल है। वही स्पीच देगा।
डीयर मेंबर्स
आज पहले स्वतंत्रता संग्राम की हजारवीं वर्षगांठ है। इस मौके पर हमें अतीत से सबक लेना चाहिए। हमें देखना चाहिए कि हम कैसा आचरण कर रहे हैं और हमारे पूर्वज सांसद कैसा आचरण करते थे। अब टेकनोलोजी बहुत प्रोग्रेस कर गयी है, बाडी के सारे पार्ट अलग -अलग इलाकों में अलग-अलग काम करने के लिए भेजी जा सकती है। पर मुझे बहुत सौरी होकर कहना पड रहा है कि ज्यादा सांसद अपने दिमाग को सांसद में भेजते नहीं है, उसे खोलकर कहीं और भेज देते हैं। वो सिर्फ पेट और जेब को ही संसद में भेज देते हैं। यह गलत है, संसद में हमारे पूर्वज ऐसा नहीं करते थे। 2007 के आसपास के रिकार्ड हमारे पास मौजूद है, सांसद लोग अपने दिमाग को भी संसद में लाते थे, और फुल इनर्जी से लडने-भिडने, बायकाट, हाय-हाय, कांय-कांय में लगाते थे। अरे संसद में ही सोते थे। संसद में दिमाग को रेस्ट देते थे, आज की तरह नहीं कि अपने दिमाग को बाहर छोड कर आयें।
मुझे शिकायत मिली है कि कई सांसद अपने दिमाग में दूसरे देशों की चिप फिट करवा कर आते हैं, इस वजह से वे इस देश के हितों के डिसीजन नहीं,बल्कि दूसरे देशों के हितों के डिसीजन लेते हैं। वो विदेशों के घोटालों पर ध्यान लगाते थे। हमारे पूर्वज ऐसा नहीं करते थे, वे सारे घपले डोमेस्टिक करते थे। चारा हो या कोलतार, सब कुछ यहीं करते थे। यही कमाते थे, यही मकान बनाते थे। यही महंगी कारें खरीदकर यहीं कईयों को रोजगार देते थे। मैं प्रार्थना करता हूं कि सारे सांसद डोमेस्टिक घोटालों पर ही ध्यान दें और उसकी रकम स्वदेश में ही खर्च करें, विदेश में नहीं। यही स्वदेश और गदर के सेनानियों के प्रति हमारी राइट श्रध्दांजलि होगी।
टेकनीक ने बहुत डेवलपमेंट कर लिया है, और अब कोई बंदा जितनी चाहे अपनी फोटोकापी करवा सकता है। यह सुविधा हमारे पूर्वजों को नहीं थी। मुझे बहुत सौरी होकर कहना पड रहा है कि एक- एक सांसद अपनी हजारों फोटोकापी करवा कर मार मचा रहा है। एक फोटो कापी कहीं चारा घोटाला कर रही है, दूसरी कहीं तेल घोटाला कर रही है, तीसरी फोटोकापी कबूतरबाजी कर रही है। पांचवीं छठी, सातवीं, आठवीं कुछ और कर रही है। यह गलत बात है, एक नेता अपनी पांच फोटोकापी ही करवाये, और अपने क्रिया-कलाप को पांच तक ही सीमित रखे। पांच फोटोकापी प्रति नेता कम नहीं हैं। ऐसी छूट हमारे पूर्वजों को नहीं थी।
एक नेता अपनी सिर्फ पांच ही कापियां करवाये, यही हमारे पूर्वजों को हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
आलोक पुराणिक मोबाइल-09810018799

Wednesday, May 16, 2007

लव लैटर उर्फ कीड़ा

लव लैटर उर्फ कीड़ा
आलोक पुराणिक
सच्चे प्रेमियों के साथ होने वाली धोखाधड़ी का यह पहला उदाहरण नहीं था।
अपने कंप्यूटर के ई-मेल बाक्स में जिसे मैं लव –लैटर समझ रहा था, वह दरअसल कीड़ा निकला, कंप्यूटर कीड़ा। मेरे कंप्यूटर की सारी फाइलों को वह लव-लैटर ऐसे चौपट कर गया, मानो किसी लड़की के पहलवान भाईयों ने अपनी बहन के अवांछित प्रेमी की ठुकाई की हो।
इधर कंप्यूटर के कीड़ों के ऐसे-ऐसे नाम हो गये हैं कि संवेदनशील बंदा तो धोखा खा जाये। अब बताइए लव-लैटर नाम का मैसेज ई-मेल में आया हो, तो कौन मनहूस होगा, जो उसे नहीं खोलेगा। और जो खोलेगा, वो.........।
गालिब होते तो कुछ यूं कहते-
किया जो इश्क तो आशिक की गली में बखेड़ा निकला
था जो ऊपर से लव-लैटर, कंप्यूटर का कीड़ा निकला
हुई यूं खत्म जमा कंप्यूटर की सारी फाइल्स
बाद मरने के ना खत एक भी हसीनों का निकला
बड़े पेचीदा मामले हैं साहब।
कंप्यूटर की फाइलों में सुरक्षित हसीनों के सारे खत एक ही झटके में तबाह। लव-लैटर से तबाह होने के बाद मैंने तमाम प्रेमियों को सलाह दी है कि ई-मेल से प्राप्त पत्र का प्रिंट आउट निकाल कर उसकी हार्ड कापी अपने पास रख लो। ताकि सनद रहे और वक्त-जरुरत काम आये। वरना अगला या अगली कह दे, जी आप कौन-खामखा।
पुराने टाइप की फिल्मों में एक सीन यह होता था-कोई कन्या विलेन टाइप बंदे के आगे गिड़गिड़ा रही है, मेरी शादी कहीं और हो रही है, मेरे लव-लैटर वापस कर दो।
विलेन टाइप बंदा कह रहा है-नहीं, नहीं।
अब आधुनिक कन्या यह नहीं करेगी। वो फाइनल प्रेम-पत्र लिखेगी और उसमें अटैच करेगी वायरस-लव लैटर। और फिर.....................।
इधर कंप्यूटर वायरस पर रिसर्च की है, तो पता लगा है कि कैसे-कैसे कातिल नाम हैं, कीड़ों के- हैप्पी 99, माई लाईफ, प्रैटी पार्क, याहा, बैकडोर एजेंट, बडी लिस्ट, एक कंप्यूटर वायरस का नाम तो पाप स्टार एवरील लेविग्ने के नाम पर है।
प्रैटी पार्क कंप्यूटर वायरस आपके कंप्यूटर में पार्क सारी फाइलों को प्रैटी नहीं बनाता है, उनकी ऐसी-तैसी करता है।
बैकडोर एजेंट नामक कंप्यूटर वायरस चुपके से नहीं, फुलमफुल धुआंधारी से आपके कंप्यूटर में घुसता है और खुलेआम सारी फाइलों पर कब्जा करके बैठ जाता है।
इन कीड़ों के नाम और इनके काम देखकर मुझे कुछ और याद आ रहा है।
एक अफसर,जिनका नाम नगर विकास अधिकारी हुआ करता था, बाद में नगर के सारे पार्कों पर बिल्डरों का कब्जा करवाने के दोषी पाये गये। एक सज्जन, जिनका नाम थानेदार हुआ करता था, वह अपने इलाके में चरस की दुकान चलाते पाये गये।
सुंदर नामों वाले खतरनाक कीड़े सिर्फ कंप्यूटर में ही नहीं होते। उसके बाहर भी होते हैं।
इधऱ मैं सोच रहा हूं कि सारे कीड़ों के नाम विदेशी ही क्यों हों, कुछ नाम भारतीय भी तो हों। इधर कंप्यूटर में एक वायरस आता है-सेसर, यह अच्छे-भले चलते इंटरनेट को बंद कर देता है, पूरे कंप्यूटर को बंद कर देता है, फिर कुछ समय बाद कंप्यूटर को दोबारा स्टार्ट करता है। कई बार यह हर पांच मिनट में ऐसा करता है, कई बार यह हर दो मिनट में ही ऐसा करता है।
इस वायरस का नाम रखना चाहिए –इंडिबा यानी इंडियन बाबू। सरकारी दफ्तरों में काम करने वाला ऐसा बाबू, जो हर पांच मिनट पर चाय पीने के लिए अपना काम बंद करता है। चाय पीने के बाद फिर अपना काम दोबारा स्टार्ट करता है। कभी-कभी वह ऐसा हर दो मिनट बाद भी करता है।
एक वायरस कंप्यूटर में आता है, जिसके चलते कंप्यूटर स्टार्ट होकर पहली ही स्क्रीन पर अटक जाता है, उससे आगे नहीं जाता है। ऐसा अटकता है, ऐसा अटकता है, जैसे पुराने टाइप का आशिक, जो किसी भी हालत में टलता ही नहीं है। इस वायरस का नाम होना चाहिए-पुटाल। यानी पुराने टाइप का लवर, जो टलता नहीं है। नये टाइप के लवर इस तरह की हठधर्मिता नहीं दिखाते। बराबर नये-नये मौकों के लिए ट्राई मारते रहते हैं।
आलोक पुराणिक एफ-1 बी-39 रामप्रस्थ गाजियाबाद -201011 मोबाइल-9810018799

Tuesday, May 15, 2007

चमचा महात्म्य

हर दफ्तर में दो तरह के लोग होते हैं, एक जो काम करते हैं, और दूसरे जिनका प्रमोशन होता है। दोनों की स्टाइल, प्रोफाइल पर फोकस यह कव्वाली हर दफ्तर को समर्पित है।

कव्वाली की धुन-है अगर दुश्मन जमाना, गम नहीं।

पुरुष स्वर-है अगर दुश्मन दुश्मन जमाना , गम नहीं गम नहीं
बास के चमचे हम भी कम नहीं, कम नहीं

स्त्री स्वर-लो जरा अपनी खबर भी
जाओ कभी तुम दफ्तर भी
फाइल पे फाइल है पड़ी
है वहां आफत की घड़ी
पब्लिक शोर मचाती है
सर पे आकाश उठाती है
जाकर कुछ काम करो
यूं ना आराम करो
पुरुष स्वर- है अगर दुश्मन दुश्मन जमाना , गम नहीं गम नहीं
बास के चमचे हम भी कम नहीं, कम नहीं
काम हम आखिर क्यों करें
जाकर दफ्तर में क्यूं मरें
बास के घर पर तो हमें ही जाना है
बास के बच्चों को हमें खिलाना है
काम करने से भला आखिर क्या होता है
काम करने वाला आखिर में रोता है
है अगर दुश्मन दुश्मन जमाना , गम नहीं गम नहीं
बास के चमचे हम भी कम नहीं, कम नहीं

स्त्री स्वर-हाल ये अच्छा कुछ नहीं
चमचई में रखा कुछ नहीं
काम करने में है मजा
निठल्लापन तो है सजा
काम करके जो तुम ठीक दिखलाओगे
अपनी सीआर को तुम अच्छा करवाओगे
लाइफ में आगे जाओगे
नाम रोशन करवाओगे

पुरुष स्वर- है अगर दुश्मन दुश्मन जमाना , गम नहीं गम नहीं
बास के चमचे हम भी कम नहीं, कम नहीं
अरे तुझको ना कुछ कुछ पता
पर इसमें ना तेरी खता
तूने चमचागिरी को कभी परखा ही नहीं
तूने इसमें भरोसा कभी रखा ही नहीं
सीआर के चक्कर में हम ना यूं आयेंगे
बास के घर पे हम सीआर लिखवायेंगे
है अगर दुश्मन दुश्मन जमाना , गम नहीं गम नहीं
बास के चमचे हम भी कम नहीं, कम नहीं

कुछ नये धंधे

कुछ नये धंधे
आलोक पुराणिक
शायद करोड़पति सज्जन थे। चेहरे पर ग्रेटनेस की चौबीस कैरेटी आभा, फर्स्ट ए सी में यात्रा कर रहे थे। रास्ते भर अपने धंधे के किस्से सुनाते रहे कि वह ऐसे महान, वह वैसे महान।
गाड़ी रात को ग्यारह बजे स्टेशन पहुंची, कुली से सामान उतरवाया, टैक्सी पकड़ने के लिए बाहर निकल पड़े।
मेरे मुंह से निकल गया-अरे कोई लेने नहीं आया आपको।
वो बोले रात में बेटे लेने आने की परेशानी क्यों उठायें, मैं ही चला जाऊंगा।
मैंने नोट किया, उनके मुंह का बड़प्पन नेताओं के ईमान की तरह एकदम गिरा सा दिख रहा था।
उनकी इस स्थिति में मुझे एक धंधे की संभावना नजर आयी-
स्टेशन, एयरपोर्ट रिसीवू और छोड़ू सर्विस
इस सेवा के तहत किसी बंदे को छोड़ने और रिसीव करने के विशेष इंतजाम किये जायेंगे।
ट्रेन पर चढ़ते समय और उतरते समय बंदा फील गुड करे, इसका चौकस इंतजाम किया जायेगा।
इसमें तीन तरह के सर्विस होगी। आर्डीनरी, स्पेशल, सुपर स्पेशल।
आर्डीनरी सर्विस में पांच बंदे पैसेंजर को छोड़ने जायेंगे। फूल-मालाएं लादकर विदा किया जायेगा। अगले स्टेशन पर पांच बंदे रिसीव करने आयेंगे, फूल-मालाओं के साथ।
कीमत सिर्फ दस हजार रुपये।
स्पेशल सर्विस में पांच माडल किस्म की कन्याएं पैसेंजर को छोड़ने आयेंगी। स्टेशन पर पहुंचकर पैसेंजर को किस भी करती रहेंगी, और हर दो मिनट बाद बोलेंगी कि ओह रीयली आई विल मिस यू।
पांच सुंदरियां पैसेंजर को रिसीव करने भी आयेंगी और फी किस दो हजार चार्ज करेंगी। पैसेंजर अगर ज्यादा फील गुड करे, तो अपनी मर्जी से एक्स्ट्रा टिप भी दे सकता है।
सुपर स्पेशल सर्विस में अमेरिकन, अंगरेज किस्म की कन्याएं छोड़ने आयेंगी।
सी आफ के टाइम पर एक धांसू म्यूजिक बजाया जायेगा।
रिसीव करने के टाइम पर एक स्पेशल बैंड म्यूजिक बजायेगा।
फुलमफुल जलवा रहेगा।
कीमत सिर्फ एक लाख रुपये।

रिश्तेदार प्रोवाइडिंग सर्विस
अभी कल पड़ोस में शादी हुई, श्रीवास्तवजी के यहां।
बड़ी-बड़ी किरकिरी हुई उनकी, कोई भी रिश्तेदार नहीं पहुंचा। ना साला, ना जीजा, ना बड़ा भाई, ना छोटा भाई।
श्रीवास्तवजी भी नहीं पहुंच पाये थे, किसी रिश्तेदार के परिवार में शादी में।
हर शादी में श्रीवास्तवजी को कोई काम पड़ गया था, सो जब श्रीवास्तवजी के यहां शादी हुई, तो सबने मिलकर श्रीवास्तवजी का काम लगा दिया।
बहुत परेशान थे। उनकी परेशानी में मुझे एक नये धंधे की संभावनाएं नजर आयीं-रिश्तेदार प्रोवाइडिंग सर्विस।
इसमें भी तीन तरह की सर्विस होगी-वन स्टार, थ्री स्टार, फाइव स्टार।
वन स्टार सर्विस में शहर के दूर के मुहल्लों से रिश्तेदार जुटाये जायेंगे-फी रिश्तेदार दो हजार। चार साले इकठ्ठे या चार भाई इकठ्ठे लेने पर पच्चीस परसेंट का डिस्काउंट दिया जायेगा।
थ्री स्टार सर्विस थोड़ी सी बेहतर इसलिए होगी कि इसमें रिश्तेदारों को किसी दूसरे शहर से लाया जायेगा। शहर के लोकल बंदों को रिश्तेदार बनाने में कभी-कभी पोल खुलने का खतरा हो सकता है।
इस सर्विस में रिश्तेदार खुद को आईएएस,बहुराष्टीय कंपियों के अधिकारी, सीरियल निर्माता, फैशन डिजाइनर बतायेंगे। मामला फुल चकाचक रहेगा। रिश्तेदार एकैदम फूं-फां टाइप बात करेंगे।
थ्री स्टार सर्विस में फी रिश्तेदार कीमत दस हजार रुपये।
फाइव स्टार सर्विस में हम आपके सारे रिश्तेदारों को एनआरआई बता देंगे।
इस पैकेज में चार अमेरिकन सुंदरियों को आप अपनी डिस्टेंट रिलेटिव बता सकते हैं।
इस पैकेज में आपके साले बोस्टन, टोरंटो, पेरिस, लंदन में अपने डिपार्टमेंटल स्टोरों, रेस्टोरेंटों के बारे में फुल फूं-फां इंप्रेशन झाड़ेंगे। आपके लोकल पड़ोसी गेस्ट लोग आपकी रिश्तेदारियों को देखकर दांतों तले उंगलियां दबा कर रह जायेंगे।
दो लाख डालर दें, तो पामेला एंडरसन को आपकी साली बताये जाने के इंतजाम भी इस सेवा में किये जा सकते हैं।
बताइए ये धंधे चलेंगे या नहीं।
आलोक पुराणिक एफ-1 बी-39 रामप्रस्थ गाजियाबाद -201011,फोन-9810019799

Monday, May 14, 2007

लोकतंत्र कथाएं

लोकतंत्र कथाएं
आलोक पुराणिक
ऐसी सीडी बनाम बनाम वैसी सीडी
लोकतंत्र की प्रेक्टीकल क्लास समझाने के लिए मैं छात्रों को नेताओं के मुहल्ले में ले गया। चर्चा क्रमश सीडी, कबूतरबाजी, सिवान, बाहुबली, शहाबुद्दीन, कटारा आदि पर हो रही थी। बच्चों ने जो देखा-
तेरी सीडी में ऐसी बातें छि।
तेरी सीडी में वैसी बातें थू।
तेरे वाले कबूतर बाज हाय।
तेरे वाले तो मर्डर करते हैं।
अबे मेरे वाले तो कनाडा ले जाते हैं इंडियन लोगों को, कनाडा की ऐसी-तैसी करते हैं। तेरे तो इंडिया की ऐसी-तैसी करते हैं।
हम ग्लोबल हैं, सिर्फ देश की ऐसी-तैसी क्यों करें, जब पूरा विश्व हमारे सामने है।
जूता लात, जूता लात।
बच्चों ने जो समझा- लोकतंत्र चुनने का विकल्प देता है।कबूतरबाज का विकल्प हत्यारा होता है। ऐसी सीडी वाले का विकल्प वैसी सीडी वाला होता है।
कथा नं टू-वैराइटी
इस बार बच्चों को पाकिस्तान ले जाया गया। वही चाऊं चाऊं वहां भी। अफसर दूसरे से कह रहे थे तूने खाया, अबे मैंने इतना नही खाय़ा। मैंने अकेले थोड़े ही खाया। तूने वहां खाया था, तब मैं कुछ बोला। अब क्यों बोल रहा है। भौं, भौं। पब्लिक वहां भी यही पूछ रही थी-क्यों, क्यों।
बच्चों देखो मुशर्रफ वहां जमे हुए हैं कई साल से।
पर सर, हालात तो वहां के भी वैसे ही हैं। तो हमारे यहां की डेमोक्रेसी में भी यही होता है और वहां डेमोक्रेसी नहीं है, फिर वही यही होता है, फर्क क्या है।
नहीं, नहीं, वहां सिर्फ मुशर्रफ ही मुशर्ऱफ होते हैं। यहां एक तरफ कटारा जी होते हैं, तो दूसरी तरफ शहाबुद्दीन होते हैं। डेमोक्रेसी में वैराइटी होती है। पाकिस्तान में वैराइटी नहीं है।
ओ के गुरुजी मुझे समझ में आ गया है डेमोक्रेसी और तानाशाही का फर्क। तानाशाही में एक लुच्चा बहुत सालों तक चलता है। डेमोक्रेसी में पब्लिक को यह चाइस होती है कि पांच साल में वह एक लुच्चे को बदलकर दूसरी वैराइटी का लुच्चा ले आये।
बच्चों को पालिटिक्स समझ में आ गयी है।

कुछ नयी मोबाइल कथाएं-कालिदास,शकुंतला और स्पांसर

कुछ नयी मोबाइल कथाएं-कालिदास, शकुंतला और स्पांसर
आलोक पुराणिक
और यूं शकुंतला ने कालिदास को भगा दिया
कालिदास अपने कैरेक्टर, शकुंतला,दुष्यंत को बता रहे हैं-अपनी स्टोरी में तुम ऐसे-ऐसे चलोगे। दुष्यंत तुम शकुंतला को अंगूठी दोगे। और तुम शकुंतला तुम यह अंगूठी खो दोगी। और फिर तुम दुष्यंत के दरबार में जाओगी।
..शकुंतला, दुष्यंत सुन कम रहे हैं, मोबाइल से ज्यादा खेल रहे हैं।
स्टोरी आगे चल रही है।
दुष्यंत के दरबार में शकुंतला पहुंची है।
दुष्यंत ओरिजनल स्टोरी के मुताबिक कह रहे हैं-हे देवी मैं तुम्हे नहीं जानता। कृपया मुझे अंगूठी दिखाओ, जो मैंने तुम्हे दी थी।
शकुंतला कहती है-हे राजन, देखो मेरे मोबाइल में तुम्हारा वो वाला एसएमएस सेव है, जिसमें तुमने प्रणय निवेदन किया था। राजन मोबाइल नहीं है, ये है फरिश्ता, हमेशा अपनों से कायम रखे अपना रिश्ता( स्पांसर्ड बाई ......)
कालिदास डांट रहे हैं-हे शकुंतले, अंगूठी वाली स्टोरी कहां गयी।
शकुंतला बता रही है- अंगूठी वाली स्टोरी का स्पांसर कोई नहीं था। एसएमएस के टिवस्ट से हमें स्पांसर मिल गये।
कालिदास डांट रहे हैं-हे शकुंतले, तुम स्टोरी बदल रही हो।
शकुंतला-देखिये, स्टोरी कट कीजिये। स्टोरी एसएमएस की तरह छोटी होनी चाहिए। पब्लिक लंबी सुनकर उखड. जाती है, अब चार लाइन की स्टोरी लंबी मानी जाती है। फिर स्पांसर हमें इसी स्टोरी के मिल रहे हैं। आप जाइए, मैं आपकी नहीं सुनूंगी, मैं मोबाइल कंपनी से रकम ले चुकी हूं।
कालिदास को शकुंतला ने भगा दिया है।

मुन्नाभाई एसएमएस वाले
भारी इंडियन म्यूजिक शो चल रहा है। तानसेन पहुंचे हुए हैं। बैजू-बावरा पहुंचे हुए हैं। और भी बहुत पहुंचे हुए वहां पहुंचे हुए हैं।
तानसेन पक्का गा रहे हैं। बैजू तो और भी पक्का गा रहे हैं।
तानसेन को पक्का है कि अपना कंपटीशन तो सिर्फ और सिर्फ बैजू से है और बैजू को तो यूं ही निपटा लेंगे।
बैजू सोच रहे हैं कि कंपटीशन तो सिर्फ तानसेन से है, बाकियों को तो यूं ही निपटा लेंगे।
पर यह क्या एक बालक धुआंधार मचा रहा है, गाना दिखा रहा है-हिमेश रेमशिया का रिमिक्स, टेढी मुद्राओं में नृत्य करते हुए-ऊ, ऊ, ऊ, ऊ, ऊ, ऊ।
तानसेन कह रहे हैं-जरुर इस बालक को लू-लपट का आघात हुआ है, तब ही ऊ, ऊ जैसी विकट दारुण ध्वनि इसके मुख से आ रही है।
बैजू असहमति व्यक्त कर रहे हैं-कदाचित यह श्वान-दंश से पीडित है। कोई श्वान इसे काट गया है, प्रतिकिया-स्वरुप यह रुदन कर रहा है।
तानसेन-हां बैजू, हमे इस बालक के प्रति सहानुभूति रखनी चाहिए। मैं म्यूजिक शो जीतने के बाद सहानुभूति व्यक्त करने जाऊंगा। तुम भी चलना।
पर अचानक मंच से घोषणा हो रही है- झुमरीतलैया का वह बालक किशोर प्रसाद म्यूजिक चैपियन हो गया है।
कार्यक्रम खत्म होने के बाद तानसेन कुंठित निराश मुद्रा में किशोर प्रसाद से पूछ रहे हैं-हे बालक तुझे रागों का ज्ञान है क्या।
बालक पूछ रहा है-ये राग क्या होते हैं।
बैजू पूछ रहे हैं-कदाचित तुम तो स्वर- लहरियों को भी नहीं जानते।
बालक कह रहा है-ये स्वर क्या होते हैं।
तानसेन-हे बालक तुम म्यूजिक चैंपियन कैसे हो गये।
बालक बताता है कि मुन्नाभाई एसएमएस वाले ठेका लेते हैं, इत्ते एसएमएस मेरे फेवर में ठोंके कि मेरे अलावा कोई और चैंपियन हो ही नहीं सकता था।
तानसेन और बैजू एक दूसरे को बताते हैं-बताओ संगीत का असली गुरु कौन-मुन्ना भाई एसएमएस वाले।

आधा हस्तिनापुर एसएमएस के नाम
महाभारत में संजय चट गये हैं महाभारत का सचित्र हाल धृतराष्ट्र को सुनाते हुए।
संजय ने अपने काम की आउटसोर्सिंग कर दी है और एक चेला महाभारत का हाल उन्हे एसएमएस पर भेज देता है। संजय ने धृतराष्ट्र से कहा महाराज चट गये हैं, हाल सुनाते सुनाते। मैं अब सारा हाल आपको आडियो एसएमएस के जरिये आफ मोबाइल पर भेज दूंगा, कंडीशन्स अप्लाई।
धृतराष्ट्र मान गये।
आखिरी दिन पांडव युद्ध जीतकर जब हस्तिनापुर का चार्ज लेने आते हैं, तब उन्हे पता लगता है कि धृतराष्ट्र का मोबाइल बिल एसएमएसबाजी के चलते बहुत भारी हो गया है।
संजय कह रहे हैं-महाराज बिल के बदले आधा हस्तिनापुर अब मेरा हुआ, आडियो एसएमएस सर्विस वाली कंपनी मेरी ही है।
पांडव आपत्ति कर रहे हैं कि यह तो बहुत महंगी एसएमएस सेवा है।
जवाब में संजय बता रहे हैं-मैंने तो महाराज को पहले ही बता दिया था-कंडीशंस एप्लाई।

Sunday, May 13, 2007

1857 और चालू चैनल-मंगल पांडे, कांटेपररी लुक लाइए ना

1857 और चालू चैनल-मंगल पांडे, कांटेपररी लुक में आइये ना
दो इंतजार में उर्फ आठ लाख की मोटरसाइकिल
आलोक पुराणिक
चालू चैनल परेशान हैं, 1857 को डेंढ सौ साल हो लिये हैं। साक्षात् बहादुरशाह जफर, मंगल पांडे खुद आये हैं ऊपर से इस मौके पर कुछ बताने।
चालू चैनल परेशान यूं है कि मामला अपमार्केट जमाना है। मंगल पांडे देसी मजबूत आदमी, आंखों में जोश। बहादुरशाह जफर शायर- चैनल वाले परेशान हैं, इन्हे कैसे सैट करें। क्या सैट बनायें।
प्रोग्राम जमाने के लिए स्पांसर जमाना जरुरी है। स्पांसर जमाने के लिए अपमार्केट जमाना जरुरी है।
बाई दि वे आप कुछ अपमार्केट ड्रेस में नहीं हो सकते क्या-एक प्रोड्यूसर मंगल पांडे से पूछ रहा है।
आपका आशय क्या है-मंगल पांडे पूछ रहे हैं।
देखिये आपको थोंडा कंटेपररी लुक देना जरुरी है। फिर आपको पता नहीं, मंगल पांडे से बंडी अलग तरह की एक्सपेक्टेशन्स हो गयी हैं। मतलब जैसे कि आमिर खान जब से मंगल पांडे बने हैं, तब से मामला यह हो गया है कि कोल्ड ड्रिंक बेचने का हुनर तो मंगल पांडे में जरुरी है-प्रोड्यूसर कह रहा है।
कोल्ड ड्रिंक से आपका आशय क्या है-मंगल पांडे फिर पूछ रहे हैं।
ओफ्फो, आपको तो कुछ पता ही नहीं है- प्रोड्यूसर झल्ला रहा है।
ओ. के. जफर साहब क्या यह पासिबल है कि आपने जो शेर कहे हैं, उनमें कुछ अंगरेजी शब्द मिला लें, अप मार्केट हो जायेगा। इतना एडजस्टमेंट तो करना पंडेगा-प्रोड्यूसर बहादुरशाह जफर से कह रहा है।
जफर साहब नाराज हैं-मैंने अंगरेजों से एडजस्टमेंट नहीं किया, अंगरेजी से एडजस्टमेंट क्यों करुंगा।
देखिये, फिर हम यूं करेंगे कि मंगल पांडे और आपको रीयल में नहीं लेंगे, हम आपकी जगह कुछ और लोगों को मंगल पांडे और बहादुर शाह जफंर बना देंगे, इसे हम नाटय रुपातंरण कहते हैं- प्रोड्यूसर समझा रहा है।
मंगल पांडे और बहादुरशाह जफर स्टूडियो के कोने में बैठा दिये गये हैं।
कुछ अपमार्केट बंदे लाये गये हैं, एक मंगल पांडे हो गये हैं, दूसरे जफर।
चालू चैनल का पोग्राम शुरु हो गया है-फ्रीडम एड न्यू हाइट, 1857 की फ्रीडम फाइट।
एंकर-हां तो मंगल पांडेजी बताइए। आपने कैसे किया, क्या किया।
मंगल पांडे का माडल-जी मैंने वही किया, जो आपने मंगल पांडे फिल्म में किया। बस थोंडा सा फर्क यह है कि फिल्म वाले मंगल पांडे को यादा पैसे दिये गये होंगे, मुझे तो बहुत कम पैसे में सैट कर लिया गया है।
(प्रोड्यूसर एंकर को डांटता है, कुछ इंटरेस्टिंग एक्शन की बात करो ना )
एंकर- तो बताइए मंगल पांडेजी जो आपने किया, उसके पीछे क्या था। कैसे आपने वह सब कर दिया। जरा बताइए।
बीच में कमर्शियल ब्रेक कूद लेता है-
हर सिचुएशन के लिए हाजिर है सर, अलां-फलां कोल्ड ड्रिंक की पावर।
मंगल पांडे का माडल-जी मैं क्या बताऊं। आपने कमर्शियल ब्रेक में बता दिया है।
ओरिजिनल मंगल पांडे स्टूडियो में गुस्सा हो रहे हैं। एक असिस्टेंट प्र्रोडयूसर उन्हे कोल्ड ड्रिंक आफर कर रहा है। मंगल पांडे और गुस्सा हो रहे हैं।
एंकर-जफर सर आप रंगून क्यों गये, रंगून तो बहुत बोरिंग प्लेस है। आप कहीं और क्यों नहीं गये, जैसे पेरिस, जैसे न्यूयार्क।
जफर का माडल-जी मेरे हाथ में कहां था जाना, अपनी मर्जी कहां चलती है।
कमर्शियल ब्रेक फिर कूद लेता है-अपनी मर्जी पर चलिये, सबको चलाइए, हर चीज के लिए हमसे लोन ले जाइए। चौबीस घंटे लोन उपलब्ध, गिव मी मनी बैंक।
एंकर-ओह, क्या उस टाइम इस तरह से लोन देने वाले बैंक नहीं थे, जो आप अपनी मर्जी से न्यूयार्क या पेरिस नहीं जा सकते थे।
ओरिजनल बहादुरशाह जफर स्टूडियो में गुस्सा हो रहे हैं। उन्हे एक एक्जीक्यूटिव टाइप बंदा कह रहा है-सर नाराज न हों, हम आपको बहुत ही कंसेशनल रेट वाला लोन देंगे। प्लीज कोआपरेशन कीजिये।
एंकर- ओके बहादुरशाह जफर साहब प्लीज वो वाला शेर सुनाइए, जो बहुत हिट था।
जफर का माडल-उम्र-ए-दराज मांग कर लाये थे चार दिन,
दो आरजू में कट गये, दो इंतजार में
एंकर-सर इसका हिंदी में ट्रांसलेशन कर दीजिये।
जफर का माडल -ओ. के. इसे हिंदी में यूं कहेंगे कि टू डेज तो विश में कट गये, टू वेटिंग में।
एक और कमर्शियल ब्रेक कूद लेता है-नो वेटिंग इंस्टैंट डिलीवरी, अलां -फलां पिजा।
एक और कमर्शियल ब्रेक कूदता है-वेट करना पंडता है, अच्छी चीजों के लिए वेट करना पंडता है। आठ लाख रुपये देकर इंपोटर्ेड मोटरसाइकिल बुक कराइए। पांच साल बाद नंबर आयेगा।
एंकर-जफर साहब क्या आपने अपना शेर इस मोटरसाइकिल कंपनी के लिए लिखा था कि कुछ सालों तक तो तक इसकी आरजू करो, फिर कई सालों तक इसका इंतजार करो।
जफंर का माडल मुस्कुराता है।
ओरिजिनल जफर और ओरिजनल मंगल पांडे स्टूडियो में बहुत गुस्सा हो रहे हैं।
चैनल वालों ने उन्हे मिलकर स्टूडियो से बाहर निकाल दिया है।
1857 शो हिट हो लिया है।
आलोक पुराणिक एफ-1 बी-39 रामप्रस्थ गाजियाबाद-201011
मोबाइल-09810018799

Saturday, May 12, 2007

1857-मेरठ से दिल्ली वाया पटना

1857-मेरठ से दिल्ली वाया पटना
आलोक पुराणिक
निम्नलिखित लेख कक्षा सात के उस छात्र की कापी से लिया गया है, जिसे यथार्थवादी हिंदी निबंध प्रतियोगिता में पहला पुरस्कार मिला है-
गदर यानी 1857 का हमारे सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक और आर्थिक जीवन में बहुत महत्व है। जैसा कि हम जानते हैं कि गदर पर एक फिल्म बन चुकी है, जिसमें सन्नी देओल ने बहुत धांसू एक्शन किया था। इस फिल्म को देखकर ही हमें पता चला कि गदर तो बहुत मजेदार होता था। 1942 के बारे भी हमें ऐसे ही पता चला था, जब एक डाइरेक्टर ने फिल्म बनायी थी 1942- एक लव स्टोरी। 1857 पर कोई लव स्टोरी टाइप कुछ बनायेगा, तो हमें 1857 के बारे में और भी बहुत कुछ समझ में आयेगा।
हमें पता चला कि इस दिन की याद में सरकार ने ऐसे जुगाड किये, जिसमें मेरठ से दिल्ली तक लोग चलकर पहुंचे। केंद्रीय सचिवालय में काम करने वाले मेरे चाचाजी कहते हैं, सारे सरकारी कर्मचारियों को भी इस जश्न में भागीदार बनाया जाना चाहिए। यह किया जाना चाहिए था कि मेरठ से जिस रास्ते में क्रांतिकारी चलकर दिल्ली आये थे, उस रुट का टीए डीए सरकार सारे सरकारी कर्मचारियों को दिलवा देती। यह भी क्रांति के खाते में डाल दिया जाता। 1857 तब सरकारी कर्मचारियों के लिए जोरदारी से मनता। वैसे मेरे अंकल का कहना है कि अनलिमिटेड टीए डीए का इंतजाम होना हो, तो फिर सारे सरकारी कर्मचारी मेरठ से दिल्ली वाया चेन्नई और अंडमान निकोबार आते।
किसी ने रेलवे मंत्रालय के किसी अफसर को सुझाव दिया कि बेहतर होता अगर इस मौके पर रेल गदर एक्सप्रेस चलाये। इस पर उस पर अफसर ने आफ दि रिकार्ड बताया कि मेरठ से लेकर दिल्ली तक के रुट पर गदर एक्सप्रेस चलानी हो तो भी लालूजी उसे वाया पटना ले आयेंगे। और करुणानिधि वीटो लगा देंगे कि मेरठ से दिल्ली का रास्ता अगर वाया चेन्नई नहीं निकाला, तो सपोर्ट वापस ले लेंगे। और लेफ्ट वाले पुरानी धमकी देंगे कि अगर मेरठ से दिल्ली का रास्ता वाया कलकत्ता नहीं निकाला, तो हम सपोर्ट वापस नहीं लेंगे, और कांग्रेस नेताओं को टेंशन में डाले रहेंगे।
तो इस तरह से हम देख सकते हैं कि गदर का भारी राजनीतिक महत्व है। इसके अलावा, हमने देखा कि इसका भारी आर्थिक महत्व भी है। कई शोध परियोजनाएं इस पर चली हैं, और एकाध इतिहासकार नहीं, बल्कि इतिहासकारों की कई पीढियां इस पर पली हैं। इतिहास के अलावा अन्य विषयों वाले गदर से कैसे खा-पी सकते हैं, इस पर शोध होना अभी बाकी है।

आलोक पुराणिक एफ-१ बी-३९ रामप्रस्थ गाजियाबाद-201011 मोबाइल -09810018799

Friday, May 11, 2007

मोबाइल कथा-यूं हारा गया पानीपत

मोबाइल कथा-यूं हारा गया पानीपत
आलोक पुराणिक
पानीपत की तीसरी जंग की तैयारियां चल रही थी। सुपरटाप मोबाइल कंपनी के मोबाइल मराठा सरदारों को दिये गये थे। मराठा सरदारों को बता दिया गया था कि इस मोबाइल सर्विस में सब कुछ मिल जाता है। किसी भी किस्म की हेल्प चाहिए, तो 420 नंबर पर फोन करो। हेल्प फौरन हो जायेगी।
आगे का किस्सा यूं है कि पानीपत में लंबे अरसे तक लड़ाई की तैयारी चल रही थी, लड़ाई नहीं हो रही थी। सैनिक बोर हो रहे थे। वो दिल्ली आ गये इंडियन टीम का कोई क्रिकेट मैच देखने, ताकि कुछ अलग तरह से बोर हो सकें।
सैनिकों को बताया गया कि कोई चिंता की बात नहीं है, सुपरटाप मोबाइल कंपनी के नेटवर्क के जरिये उन्हे मौका-ए-एक्शन की खबर कर दी जायेगी और तब वे आ जायें।
उधर से अहमद शाह अब्दाली चला आ रहा था। वह पानीपत के ठीक पहले आ पहुंचा।
मराठे सरदारों ने दिल्ली से अपने सैनिकों को बुलाने के लिए फोन लगाया। बातचीत कुछ यूं हुई-
हलो-420 हेल्पलाइन, देखिये मैं पानीपत से मराठा सरदार विश्वास राव बोल रहा हूं। मुझे अपने सैनिकों से बात करने दीजिये।
उधर से किसी सुकन्या की सुमधुर आवाज आयी- हिंदी में बात करने के लिए एक नंबर दबाइए, मराठी में बात करने के लिए दो नंबर दबाइए। अफगानी में बात करने के लिए तीन नंबर दबाइए, स्पेनिश में बात करने के लिए चार नंबर दबाइए।
मराठा सरदार-जी मैं आपका गला दबा दूंगा, मामला इमर्जेंसी का है। आप हेल्पलाइन से फौरन मेरे सैनिकों से बात कराइए।
फोन सुकन्या-आप हमारे बहुत महत्वपूर्ण कस्टमर हैं। हमारे सारे के सारे कस्टमर केयर एक्जीक्यूटिव दूसरी फोन लाइनों पर बिजी हैं। आप अपना नंबर हमारे पास छोड़ सकते हैं। आप हमें अपना नंबर इस नंबर पर एसएमएस कर दें, हमारा नंबर है-420420420। आप अपना नंबर हमें इस पते पर ई-मेल कर सकते हैं-सुपरटाप @फोकटीकीबात डाट काम। हमारे कस्टमर केयर एक्जीक्यूटिव आपसे बात कर लेंगे।
मराठा सरदार-अजी क्या बात कर लेंगे। वहां से अहमद शाह अब्दाली चढ़ा आ रहा है। खाक हो जायेंगे, हम तुझको खबर होने तक।
फोन सुकन्या-ग्रेट आप लगता है शेरों के शौकीन हैं। हमारी वैबसाइट से आप घटिया और अच्छे शेर बतौर रिंगटोन डाऊनलोड कर सकते हैं। अच्छे शेरों को आप एक रुपये प्रति रिंगटोन के हिसाब से डाऊनलोड कर सकते हैं। घटिया शेरों की रेट पांच रुपये प्रति रिंगटोन है। कंडीशंस अप्लाई। और बताइए मैं आपके लिए क्या कर सकती हूं। आप सुकन्या से बात कर रहे थे। आप का दिन अच्छा हो। सुपर टाप से बात करने के लिए धन्यवाद।
मराठा सरदार-अजी दिन क्या खाक अच्छा होगा। हेल्पलाइन के जरिये मुझे अपने सैनिकों तक मैसेज पहुंचाना है। जब हमने आपका नेटवर्क खऱीदा था, तब आपने वादा किया था कि हेल्पलाइन के जरिये फौरन हेल्प मिल जायेगी।
फोन सुकन्या-हेल्पलाइन के लिए आप 4 नंबर दबाइए।
मराठा सरदार चार नंबर दबाता है। फिर फोन पर कोई और स्वर उभरता है-
हेल्प अभी चाहिए, तो एक नंबर दबाइए। दोपहर में चाहिए, तो दो दबाइए। रात में चाहिए, तीन दबाइए। मेन मैनू में जाने के लिए चार दबाइए। हमारे कस्टमर केयर एक्जीक्यूटिव से बात करने के लिए नौ नंबर दबाइए।
मराठा सरदार नौ नंबर दबाता है
फोन पर एक इंगलिश टाइप की धुन बजती हैं और फिर इश्तिहार शुरु हो जाता है-धन्यवाद सुपर टाप से बातचीत करने के लिए धन्यवाद। हमारी नयी सर्विसेज के बारे में जानने के लिए 1 नंबर दबाइए। हमारी पुराने बिल के बारे में जानने के लिए दो दबाइए। नये बिल के बारे में जानने के लिए तीन दबाइए। दिन में अमेरिका बातचीत करना अब सस्ता। उलनबटोर, होनोलूलू, सोमालिया, कीनिया, जकार्ता, मालदीव दिन में बात करेंगे, तो पचास प्रतिशत सस्ता। अमेरिकन डांसरों के वैसे वाले फोटू देखने के लिए हमारी वैबसाइट पर आइए, यह प्रीमियम सर्विस है। कंडीशंस अप्लाई।
मराठा सरदार चीखता है-देखिये मुझे होनोलूलू बात नहीं करनी है। आप प्लीज दिल्ली में मेरे सैनिकों से बात करवा दीजिये।
फोन पर स्वर उभरता है-कस्टमर केयर एक्जीक्यूटिव से बात करने के लिए नौ नंबर दबाइए।
मराठा सरदार नौ नंबर दबाता है।
फिर एक सुकन्या कहती है-हमारे सारे कस्टमर केयर एक्जीक्यूटिव दूसरी फोन लाइनों पर बिजी हैं। वो समय मिलते ही आपसे बात करेंगे।
तब तक अब्दाली के सैनिक पानीपत पहुंचकर मराठा सरदारों को मारने में बिजी हो जाते हैं।
आलोक पुराणिक एफ-1 बी-39 रामप्रस्थ गाजियाबाद-201011, मोबाइल-9810018799

Thursday, May 10, 2007

तस्कर की गर्लफ्रेंड -एक पारिवारिक धारावाहिक

तस्कर की गर्लफ्रेंड उर्फ सास का खूनी बदला-एक पारिवारिक धारावाहिक-
आलोक पुराणिक
अच्छा राइटर सजेस्ट करो-मुंबई से सीरियल प्रोड्यूसर खोकावाला का फोन था।
देवकीनंदन खत्री, प्रेमचंद, मंटो, बहुत शानदार लिखा है इन्होने-मैंने सजेस्ट किया।
ओके इनके मोबाइल नंबर देने का-मुंबई के प्रोड्यूसर ने आगे कहा।
इनके मोबाइल नंबर नहीं हैं-मैंने कहा।
क्या बौत गरीब राइटर लोग है क्या, मोबाइल भी अफोर्ड नहीं कर सकते, तो क्या राइटिंग करेंगा। कुछ अच्छा राइटर बताओ ना-मुंबई के प्रोड्यूसर आगे बोले।
पर आपको राइटर क्यों चाहिए-अब मैंने पूछा।
एक ऐसा सीरियल बनाना है, जिसमें सास-बहू के इमोशन हों, जिसमें हारर का टेरर हो, जिसमें फैमिली कामेडी हो, जिसमें थ्रिल हो, सब मांगता, हमकू सब मांगता, तुम राइटर हो, तो लिखकर बताओ-टीवी प्रोड्यूसर आगे बोला।
एक दिन लगाया, और स्टोरी बनायी। अगले दिन फिर प्रोड्यूसर से बात हुई-
देखिये, स्टोरी कुछ ऐसी रहेगी कि एक सास होती है, और एक बहू होती है, सास एक दिन बाजार से भिंडी लेकर लौट रही थी, कि लौट कर हार्ड अटैक हो जाता है...
स्टोरी में क्राइम थ्रिलर एलीमेंट डालना मांगता। तू ऐसा दिखा कि सास को एक तस्कर गोली मारता है, समझ खाऊद भाई सास को गोली मारता है-प्रोड्यूसर ने कहा।
पर घरेलू सास को एक तस्कर मारेगा,इसमें अपन कैसे एडजस्ट करेंगे। सास का और तस्कर का लिंक कैसे जोड़ेंगे-मैंने परेशान होकर पूछा।
ओये लिंक मैं जोड़ देगा। मैं दिखा देगा फ्लैश बैक में कि तस्कर को पुराना बर्थ का स्टोरी याद आ गया। पुरानी बर्थ में सास उसका गर्लफ्रेंड था, उसने उसके साथ बेवफाई किया। सो पुराने जन्म की याद करके इस जन्म में गोली मार दिया, खल्लास। थ्रिल आयेंगा, मजा आयेंगा-प्रोड्यूसर ने मुझे समझाया।
पर इमोशनल स्टोरी में तुम तस्कर को कैसे एडजस्ट करेगा। फिर सीरियल में इमोशन फिर कैसे आयेगा-मैंने पूछा।
ओये आयेगा, बरोब्बर आयेगा। फिर इमोशन ऐसे आयेगा कि सास मरकर भूत बनेगी। भूत बनकर वह बहू को परेशान करने के लिए रोज रात में फ्रिज में रखा दूध पी जायेगी बिल्ली बनकर। सुबह बेटा चाय मांगेगा, चाय के लिए दूध नहीं होंगा, तो बेटे और बहू में झगड़ा होंगा। बेटा बहू से बोलेगा, आज तुम मुझको चाय भी नहीं देता, एक जमाने में तुम मुझसे कितना प्यार करता था, मेरे लिए जान देता था। बेटा रोयेगा, बहू भी शादी के पुराने दिनों की याद करके इमोशनल हो जायेगी। इमोशनल बहू को वो बिल्ली बनी सास घूरेगी, और एक झपट्टा मारकर घर से बाहर हो जायेगी। अगले दिन फिर आकर दूध पी जायेगी, इस तरह से हम एक महीने तक इमोशन दिखायेंगे। बिल्ली रात का सीन, म्याऊं, सन्नाटा, क्या सीन बनेला है बाप। एकदम थ्रिलिंग, हारर बाप, हारर बाप-खोकावाला स्टोरी को इमोशनल से हारर पर लाने लगे।
पर खोकावालाजी स्टोरी कईसे बनेंगा ऐसे-मैंने समझाने की कोशिश की।
स्टोरी नहीं मंगता, स्टोरी कौन मांगता तुमसे, अपन को इमोशन, हारर, थ्रिल मांगता है। स्टोरी-विस्टोरी लिख कर तुम राइटर लोग का दिमाग थकेला हो गया है। गिव मी हारर इमोशन थ्रिल फाइट- खोकावाला बोले।
देखिये एक काम इसमें यह हो सकता है कि हम स्टोरी में फाइट लाने के लिए ऐसा करते हैं कि सास को एक खतरनाक भूत बना देते हैं, जो रात में आकर बहू को डराती है ड्रेकुला की तरह। फिर ड्रेकुला और बहू में फाइट होती है, क्या हारर है-मैं स्टोरी को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहा हूं।
आइडिया ठीक है, पर ड्रेकुला बनाने में बजट बढ़ जायेगा, एक काम करने का । एक कुत्ता बना देते हैं, जो भौंकने के बजाय भूत सरीखा आवाज निकालेगा हौंओ हौंओ, बहू को कुत्ता डरा रहा है इसमें हारर है, डरी हुई बहू को बेटा समझाने की कोशिश कर रहा है, इसमें इमोशन है, पूरे छह महीने तो हम इसी पर खेंच जायेगा-मजा आ गया बाप-खोकावाला आश्वस्त हो रहे हैं कि सीरियल हिट जायेगा।
पर सीरियल का नाम क्या रखेंगे-मैंने पूछा।
तस्कर की गर्लफ्रेंड उर्फ सास का खूनी बदला-एक पारिवारिक धारावाहिक-खोकावाला ने सजेस्ट किया।
पर ये कुछ जासूसी सीरियल हो जायेगा ना-मैंने शंका व्यक्त की।
नो, फैमिली कामेडी सीरियल बना देंगा इसको ऐसा कि डरी हुई बहू को सांत्वना देने के लिए बहू की मां घर में आ जाती है। उसका अफेयर पड़ोस के गुप्ताजी से हो जाता है। फिर दोनों के अफेयर में कामेडी डाल देंगे कि बहू और बहू की मां दोनों समझ नहीं पाती कि गुप्ताजी किस पर लाइन मार रहे हैं-खोकावाला आगे सजेस्ट कर रहे हैं।
पर खोकावालाजी यह स्टोरी समझ नहीं आ रही मुझे-मैंने कहा।
समझ नहीं आ रही, ओके फिर तो बिलकुल हिट जायेगा। जो भी स्टोरी राइटर लोगों को समझ में आ जाती है, वह हिट नहीं होती, कम आन कल आ ना मुहूर्त करना है -तस्कर की गर्लफ्रेंड उर्फ सास का खूनी बदला-एक पारिवारिक धारावाहिक-का। वैसे मेरी कंपनी में रहेगा, तो कायदे का राइटर बन जायेगा। आ जा मुंबई-खोकावाला कर रहे हैं। सोच रहा हूं, सही राइटर बन ही जाऊं।
आलोक पुराणिक एफ-1 बी-39 रामप्रस्थ गाजियाबाद-201011 मो-9810018799

Wednesday, May 9, 2007

सद्दाम और चार कट्टे

सद्दाम और चार कट्टे
आलोक पुराणिक
करीब तीस सालों से एक खबर परमानेंट अखबारों में देख रहा हूं, और लोग तो शायद तीस सालों से भी ज्यादा से देख रहे होंगे-थानाध्यक्ष गश्त पर मय फोर्स जा रहे थे। फोर्स ने झाडियों में बैठे बदमाशों को डकैती की योजना बनाते हुए देख लिया। मौके पर थानाध्यक्ष ने बदमाशों को ललकारा। जवाब में बदमाशों ने फायरिंग शुरु कर दी। इसके जवाब में थानाध्यक्ष ने बहादुरी से मुकाबला किया। मौका-ए-वारदात पर बदमाश मारे गये। चार कट्टे बरामद हुआ। थानाध्यक्ष की पदोन्नति की सिफारिश अफसरों ने की है।
उधर गुजरात में फर्जी एनकाउंटरों में गुजरात के सच्ची के आईपीएस पुलिस अफसर डी डी वंजारा अंदर हो गये हैं।
ये भी वैसे ही थानाध्यक्ष हैं, जिनका जिक्र बरसों से रिपोर्टों र्में होता रहता है।
जब मैं पत्रकार था, तो एक थानेदार ऐसी विज्ञप्ति लेकर बार-बार आते थे, शायद वह अब आईपीएस हो कर गुजरात में डी डी वंजारा हो गये हैं।
एक बार मैंने उनसे कहा-महाराज रिपोर्ट में जहां आप झाडियां बता रहे हैं, वहां तो बिल्डरों ने कब्जा करके प्लाट काट कर बेच लिये हैं।
थानेदार ने कहा-मालूम है, वहां मेरे प्लाट हैं। बिल्डर भी मैं ही हूं।
तब आप कैसे कह रहे हैं कि वहां झाडियां है, जो चीज वहां है ही नहीं, उसे आप वहां कैसे बता रहे हैं-मैंने पूछा।
उन्होने बताया कि अब होने को तो कट्टे भी हमारे पास नहीं हैं, पर क्या हम कट्टे भी नहीं दिखायें-थानेदार ने पूछा।
बात में दम है, अब कट्टे न दिखायें, तो क्या तोप दिखायें। कट्टा सस्ता सुंदर और टिकाऊ होता है। एक कट्टा एक हजार मुठभेडों में काम देता है। अमेरिकी मिसाइलें पानी मांग जायें, पुलिस के हुनर को देखकर। एक ही कट्टे से हजारों निपट रहे हैं।
वैसे अपना सुझाव है कि जो नर-रत्न इधर गुजरात से निकल रहे हैं, उनकी जगह जेल नहीं है। पुलिस अफसर वंजारा साहब तो अमेरिका को बतौर तोहफा दिये जाने चाहिए। बल्कि पहले ही दे दिये जाने चाहिए थे। सद्दाम को मारने की फजीहत से बुश बच जाते। वंजारा साहब के नेतृत्व में रिपोर्ट यूं बनती। जेल लाक अप के पास से वंजारा साहब गुजर रहे थे। उन्होने सद्दाम को डकैती की योजना बनाते हुए देख लिया। मौके पर वंजारा ने सद्दाम को ललकारा।............ मौका-ए-वारदात से सद्दाम और चार कट्टे बरामद हुए।
वंजारा साहब, प्लीज चले ही जाइए, अमेरिका बुश के पास, अपनी सी सोहबत में रहेंगे। आप बुश को कुछ सिखायेंगे, कुछ वो आपको सिखायेंगे। एनकाउंटर करना आप सिखा दीजिये, और मारने के बाद बेशर्म-स्माइल का काउंटर लगाना बुश आपको सिखा देंगे।
आलोक पुराणिक 09810018799

Tuesday, May 8, 2007

प्रार्थनाओं के साथ मेरे कुछ प्रयोग

प्रार्थनाओं के साथ मेरे कुछ प्रयोग
आलोक पुराणिक
विद्वानों का मानना है कि प्रार्थनाएं करते रहना चाहिए।
विद्वानों का यह भी मानना है कि ऊपर वाला सबकी सुनता है। मेरी मां भी यही कहा करती थी। बचपन में इस पर मैंने आपत्ति यह की-कि ऊपर वाला सबकी क्यों सुनता है। ऊपर वाला पुलिस वाले की भी सुनता है, और चोर की भी। ऊपर वाला किडनैप्ड की सुनता है, और किडनैपर की भी। तो फिर ऊपर वाले को सुनाने का क्या फायदा। इस तरह के तर्कों का जवाब मेरी मां पांच-सात चांटों के साथ दिया करती थी। मैं गांधीजी का अहिंसावाद समझाने की कोशिश करता था, तो चार-छह और पड़ जाते थे। मैं गांधीवाद का यह आयाम तब ही समझ गया था कि गांधीगिरी करने के लिए बंदे का संजय दत्त टाइप टाइप टपोरी होना या बहुत तगड़ा होना बहुत जरुरी है।
हर ऐरा-गैरा बंदा गांधीगिरी अफोर्ड नहीं कर सकता।
खैर जिस स्कूल में मुझे डाला गया वहां प्रार्थना थी-ऐसी शक्ति हमें देना दाता, मन का विश्वास कमजोर हो ना.........। प्रार्थना करते हुए तीन दिन बीते ही थे कि तीन लड़कों ने प्लान बनाया कि गुरुजी के पर्स से दस का नोट पार करके सिगरेट पी जायेगी। हमने यही प्रार्थना करते हुए ही चोरी के लिए प्रयाण किया-मन का विश्वास कमजोर हो ना। गुरुजी का पर्स उनके झोले में था, झोला टेबल पर था। सब बाहर थे, तीनों ने मुझे ही चुना गुरुजी का झोला खखोलने के लिए। वाया झोला,मैं पर्स तक पहुंचा ही था कि मेरे हाथ कांपने लगे,मन का विश्वास कमजोर होने लगा। पसीना आने लगा। जरा से काम में बहुत देर लगने लगी, तब तक गुरुजी आ गये। बहुत पिटाई हुई। स्कूल से निकाल दिया गया।
मुझे इस प्रार्थना की व्यर्थता समझ में आ गयी कि तीन दिनों तक प्रार्थना करने के बाद भी जरा से काम में मन का विश्वास कमजोर हो गया।
मन का विश्वास कमजोर था, इसलिए सिर्फ लेखक बन गया।
वरना तो स्मगलर, से लेकर नेता तक कुछ भी बन सकता था।
खैर साहब फिर मेरे घर वालों ने मुझे एक कानवेंट स्कूल में डाल दिया। वहां की रेगुलर प्रार्थना के कुछ अंश इस प्रकार थे कि हमें आज की रोटी दे, हमें बुराईयों से बचा और हमें परीक्षा में न डाल।
इस प्रार्थना को पढ़ने के बाद मैंने घरवालों को बताया कि ये बहुत बढ़िया प्रार्थना है, क्योंकि इसमें कहा गया है- हमें परीक्षा से बचा। यानी इस प्रार्थना के बाद हमें स्कूल की तिमाही, छमाही और सालाना परीक्षाओं में नहीं बैठना पड़ेगा। हमें परीक्षा से बचा-स्कूल के इतने बच्चे यही प्रार्थना करते हैं, तो ऊपर वाला तो हमें परीक्षाओं से बचा ही लेगा
ऊपर वाला हमें परीक्षाओं से बचा लेगा, ऐसे सहज विश्वास के कारण मैंने एक्स्ट्रा क्यूरिकुलर गतिविधियों में बढ़-चढ़कर भाग लेना शुरु कर दिया-जैसे स्कूल के पास वाले सिनेमा हाल में नियमित फिल्म देखना, सिगरेट के सुट्टों को तरह-तरह से खींचना। हमें बुराईयों से बचा-प्रार्थना के इस अंश का मैंने यह आशय लगाया कि जो आइटम, जो लोग हमें बुरे लगते हैं, हमें उनसे बचा। यानी हमें मैथ की टीचर से बचा। हमें संस्कृत के शास्त्रीजी से बचा। इन बुराईयों से मैंने बचने की कोशिश की और मैं सफल भी हुआ। क्लास से उड़ी मार कर मैंने जब भी सिनेमा हालों के टिकट के लिए ट्राई किया, हमेंशा टिकट मिली। यानी प्रार्थना के इस अंश पर मैंने जो कोशिशें की, वो रंग लायीं। पुरुषार्थ के नतीजे आते हैं, यह बात मुझे तब ही समझ में आ गयी थी, बारह वाले शो के लिए अगर बंदा सुबह नौ बजे से ही टिकट लाइन में खड़ा हो जाये, तो टिकट मिलेगा ही औऱ बुराईयों से भी छुटकारा मिलेगा।
खैर, मैं आश्वस्त था कि प्रार्थना में पहले ही कह दिया गया है-हमें परीक्षा से बचा। पर हाय, प्रार्थना ने मुझे परीक्षा से नहीं बचाया। तिमाही, छमाही परीक्षाएं आयीं, अपना सूपड़ा साफ था। घर वालों ने बहुत ठोंका, प्रार्थना ने इससे भी नहीं बचाया।
तब से अपना भरोसा प्रार्थनाओं पर उठ सा गया है। अपन से प्रार्थना नहीं होती जी।
आलोक पुराणिक एफ-1 बी-38 रामप्रस्थ गाजियाबाद-201011
मोबाइल-9810018799

Monday, May 7, 2007

शेर और बकरी की नयी कहानियां

शेर और बकरी
आलोक पुराणिक
मसला डिफरेंटात्मक हो गया है।
पुरानी कहावतों के नये मायने बच्चे तलाश लाते हैं, उन्हे समझाना मुश्किल हो गया है।
शेर और बकरी एक ही घाट पे पानी पीते थे-इस कहावत के कई आशय मेरे छात्रों ने यूं लिखे हैं-
आशय नंबर एक-शेर और बकरी एक ही घाट पर पानी पीते थे, इसमें यह नहीं बताया गया है कि पानी पीने के बाद बकरी का क्या हुआ।
जैसे कोई यह कहे कि इस इलाके में सारे वोटर एक ही बूथ पर वोट डालने जाते थे, सिर्फ इसीसे तो यह पता नहीं चल जाता कि सब मामला चकाचक था।
शेर और बकरी एक घाट पर पीने पीते हों, फिर बकरी शेर के पेट के अंदर के घाट पर पायी जाती हो। कहावतकार इस पर मौन है। इसलिए इस कहावत से कुछ साफ नहीं होता।
फिर इसका एक मतलब और हो सकता है कि शेर का कब्जा अपने घाट पर पक्का ही हो। बकरी के घाट पर कब्जा करने की नीयत से वह कभी-कभार बकरी के घाट पर भी आ जाता हो। बकरी चुप्पा-चुप्पी में कुछ बोल न पाती हो। कहावतकार ने ऐसा ही कोई सीन देख लिया हो, कह दिया हो कि देखो, शेर और बकरी एक ही घाट पर पानी पी रहे हैं। अऱे भईया यूं भी तो कह सकते थे कि शेर बकरी के घाट पर कब्जा करके उसका पानी भी पी रहा है।

आशय नंबर दो-शेर और बकरी एक ही घाट पर पानी पीते हैं, इसका मतलब है कि शेर को इस तरह से बकरी से साथ एक ही घाट पर पानी पीने में कुछ फायदा है। शेर और बकरी एक ही घाट पर साथ-साथ पानी पीने तब ही आते हैं, जब शेर की मजबूरी हो। वरना शेर बकरी से सिर्फ एक ही रिश्ता रखता है, खाने का। साथ पीने का मामला बहुत मजबूरी का है।
हो न हो, मीडिया को दिखाना होगा। कौमी एकता या ऐसा ही कोई समारोह चल रहा होगा। जिसमें फोटो सेशन होना होगा। शेर बकरी के साथ फोटू खिंचाने आ गया होगा। कुछ मौकों पर शेर को जरुरी होता होगा, ऐसी फोटू दिखाना।
यह फोटू दिखाकर शेर किसी इंटरनेशनल बकरी राइट्स एनजीओ से ग्रांट खींच सकता है, बकरी राइट्स की सुरक्षा के लिए।
यह फोटू दिखाकर शेर मीडियावालों को जब-तब बता सकता है कि जंगल में सब समान हैं। फोटू देख लो।
और तो और,बकरी दिवस मनाने के लिए शेर तमाम इंटरनेशनल संगठनों से पैसे खींच सकता है।
इस सबके लिए यह वाली फोटू काम आयेगी।

आशय नंबर तीन-हो सकता है कि शेर तो शेर हो, पर जिसे बकरी समझा जा रहा हो, वह भी शेर हो। बकरी की खाल ओढ़ कर आ गया हो।
कोई सच्ची की बकरी शेर के साथ पानी पीने को राजी न हुई हो।
बकरी के साथ फोटू खिंचाना जरुरी हो। ऊपर से आर्डर आ गये हों कि हर शेर को और बकरी खाने का लाइसेंस तब ही मिलेगा, जब वह बकरी के प्रति दयालुता दिखाने के लिए बकरी के साथ-साथ फोटू खिंचायेगा।
कोई बकरी यह फोटू खिंचाने के तैयार नहीं हुई हो, तो फिर कोई शेर खुद ही बकरी बन गया हो। बकरी की खाल ओढ़ने वाले शेर सच्ची की बकरी से भी ज्यादा बकरी लगते हैं।
ऐसा बकरीपना मचाते हैं कि सच्ची की बकरी भी शरमा जाये।
ऐसी बकरी तो शेर के साथ खड़ी होकर बयान तक दे सकती है कि शेरों के चलते ही उनका अस्तित्व बचा हुआ है। शेर न हों, तो बकरी भी न हों। शेरों का पूरा जीवन बकरियों को ही समर्पित है। शेरों के प्रति आभार, धन्यवाद ज्ञापन टाइप की बातें।
थैंक्यू की ऐसी विकट गचागच कि सच्ची की बकरियां शरमा जायें कि ऐसी बातें तो हमने सबसे स्मार्ट बकरे के बारे में भी कभी नहीं कीं, जैसी ये इस शेर के बारे में कह रही है।
पर किसी सच्ची की बकरी की हिम्मत नहीं होती कि वह खंडन कर दे।
बयान वही, जो शेर दिलवाये।
खंडन वही, जो शेर करवाये।
शेर की तरफ से तो शेर है ही, बकरी की तरफ से भी शेर ही।
शेर बकरी-हित में काम नहीं कर रहा है,यह बात कहने की हिम्मत किसी बकरी में है क्या।
अजी छोड़िये, जिस दिन यह बात कहने की बात बकरी में आ जायेगी, वह बकरी न होकर शेर हो जायेगी और फिर एक दिन देर-सबेर शेरों की जमात में जाकर शेरों जैसे ही बकरी-ऐसीतैसीकरण में जुट जायेगी।
आलोक पुराणिक एफ-1 बी-39 रामप्रस्थ गाजियाबाद-201011
मोबाइल-9810018799

Sunday, May 6, 2007

मोबाइल शिष्टाचार

मोबाइल शिष्टाचार
आलोक पुराणिक
हलो हाऊ डू यू टाइप शिष्टाचार के दिन सिर्फ लद ही नहीं गये हैं, बल्कि बहुत पहले लद गये हैं। अब मामला बहुत फूं-फां हो गया है।
नयी ट्रेंड्स की बहुत-बहुत गहराई से यानी करीब आधे घंटे स्टडी करने के बाद इस खाकसार ने न्यू-शिष्टाचार का एक मैनुअल बनाया है। जनहित में इसके कुछ अंश आप सबके लिए छापे जा रहे हैं।
मोबाइल
सिर्फ मोबाइल रखना अब काफी नहीं है।
मोबाइल की स्टाइल और प्रोफाइल का ख्याल रखना जरुरी है।
कौन सा माडल है-7897 या 5549, इस सवाल का जवाब आप दे सकती हैं या नहीं।
अगर नहीं, तो समझिये कि आप अभी भी पिछड़ेपन का शिकार हैं।
तमाम पार्टियों में मोबाइल विषयक कुछ बातचीत इस प्रकार दर्ज की गयी है-
हाय हाऊ आर योर मोबाइल।
मेरा मोबाइल फाइन है। 8765 है। नया आया है। धांसू फीचर हैं। इसमें सामने वाला का सिर्फ फोटू ही नहीं, एक्सरे भी लिया जा सकता है।
अच्छा, मेरा वाला 78655 है। इसमें सिर्फ मैसेज ही नहीं, पूरा का पूरा आदमी ही ई-मेल किया जा सकता है।
पर पूरे आदमी को ई-मेल करने की जरुरत तुम्हे क्यों पड़ेगी।
क्या किसी आदमी की एक्सरे करने की जरुरत तुम्हे पड़ेगी।
हुंह।
हुंह।
बातचीत नंबर टू-
ओ वाऊ, तुम्हारा मोबाइल बहुत क्यूट है।
नहीं ऐसे ही है। परसों पिच्चासी हजार का लिया था।
तुम्हारी यही गंदी आदत है, हमेशा सस्ते आइटम खरीदती हो। सिर्फ क्यूट होने से क्या होता है। ग्रेस भी होनी चाहिए। अपन तो दो लाख से कम का मोबाइल खरीदते ही नहीं हैं।
ओ के बाय।
बातचीत नंबर थ्री
वेरी पुअर, आपके मोबाइल का कलर आपकी लिपस्टिक के रंग से मैच नहीं कर रहा है।
तो क्या हुआ आपका मोबाइल भी तो आपके सैंडिल से मैच नहीं कर रहा है।
मोबाइल के शेड्स सबसे अच्छे वहां मिलते हैं-नेहरु प्लेस में।
ओ नो, मुझे तो ब्यूनर आयर्स के शेड्स ही पसंद हैं।
मोबाइल विषयक हवाबाजी के लिए जरुरी है।
आप मोबाइल से जुड़ी जानकारियां पढ़ती रहें। जानकारियां न भी पढ़ें, तो भी ऐसा इंप्रेशन जरुर दें कि मोबाइल की सारी जानकारियां आपके पास सबसे पहले आती हैं। आप चाहें, तो अपनी कल्पनाशक्ति का सहारा भी ले सकती हैं। और कह सकती हैं कि ऐसा जर्नल आफ मोबाइल टेक्नोलोजी में छपा है।
वैसे यह कहां से छपता है, मुझे भी नहीं पता।
सीपी आरपी
देखिये, नये शिष्टाचार की बानगी यह है कि स्टाइल के तहत किसी जगह के पूरे नाम नहीं लिये जाते हैं।
जैसे आपको जाना हो दिल्ली में कनाट प्लेस तो बोलिये सी पी जाना है।
अगर आपको कानपुर में चुन्नीगंज जाना हो, तो बोलिये सीजी जाना है।
उदाहऱण स्वरुप कुछ बातचीत देखिये-बातचीत नंबर-1
हाय कहां से आ रही हो।
सीपी से आ रही हूं, एनपी जाना है।
ओहो एनपी में खरीदारी करना बहुत मुश्किल हो गया है, वहां का क्राउड बहुत पुअर है।
हां, सीपी का क्राउड भी अब वैसा नहीं रहा।
भावार्थ-
सीपी का मतलब कनाट प्लेस और एनपी का मतलब नेहरु प्लेस।
क्राउड का मतलब भीड़ भड़क्के से नहीं होता।
अच्छे क्राउड का मतलब है फूंफां टाइप लोग।
खराब क्राउड का मतलब है बहुत ही लोअर लेवल के लोग, समझो कि जिनके पास मारुति 800 होती है।
बातचीत नंबर टू
सीपी से कल खरीदी ये साड़ी।
अब वहां का लेवल बहुत बेकार हो गया है। मैं तो अब सिंफे या दुफे से ही लाती हूं।
हां, मैं जा नहीं पायी वहां, बफे में ही बिजी हो गयी।
ओ के सी यू तुम न्यूफे में आ रही हो क्या।
नो, मुझे उस टाइम सिफे में रहना होगा।
बाय।
भावार्थ-
सिर्फ अत्यधिक विपन्न लोग ही भारत में शापिंग करते हैं। थोड़े भी ठीक-ठाक लोग अब सिफे या दुफे जा रहे हैं।
सिंफे से आशय सिंगापुर सेल फेस्टिवल,
दुफे से आशय दुबई सेल फेस्टिवल,
बफे का मतलब बर्लिन फेस्टिवल, ,
सिफे से मतलब सिडनी फेस्टिवल,
न्यूफे का मतलब न्यूयार्क फेस्टिवल।
भले ही आप यहां जा पायें या नहीं। पर आपका कर्तव्य बनता है कि आप इन फेस्टिवलों की तारीखों का पूरा हिसाब-किताब रखें, वरना शापिंग डिस्कशन में आप पिछड़ जायेंगी।
नाटी बाय
ओ मन्नू बहुत ही नाटी है।
नो मंशू भी बहुत नाटी चैप है।

भावार्थ-
पहली वाली महिला मनमोहन सिंह के बारे में बात कर रही है।
दूसरी वाली महिला सीनियर नेता मणिशंकर अय्यर के बारे में बात कर रही है।
अर्थात अब पार्टीबाजी के दौरान सीनियर नेताओं को पूरे नाम से बुलाना पिछड़ेपन की निशानी है।
उन्हे नाटी बाय, नाटी चैप कह कर ही पुकारा जाता है।
आप और इंप्रेशन मारने के लिए कह सकती हैं-
पिंटू इस वैरी नाटी बाय।
पिंटू कौन।
अऱे जार्ज डब्लू बुश को हम तो पिंटू ही कहते हैं। बचपन का याराना है ना।
किसी के बारे में सम्मान के साथ बात करने का मतलब है कि आप सत्तरवीं शताब्दी में रह रहे हैं।
एक पार्टी में मुझे एक महिला मिलीं, जो कह रही थीं कि हेंस बहुत परेशान करता है।
बाद में पता लगा कि हेंस से आशय उनके ससुर से था, जिनका नाम हरबंस सिंह था।
इसी पार्टी में एक बालिका दूसरी बालिका से कह रही थी-
मुझे कनफ्यूजन है कि बाब हुम का फादर था या हुम बाब का फादर था।
बाद में मुझे पता लगा कि दोनों बाबर और हुमायूं के बारे में बात कर रही थीं।
इस डिस्कशन के बाद बहस इस बात पर चली कि अक बेहतर था या एमपी।
बहस में हिस्सा लेने के लिए मैंने पूछना चाहा कि अक औऱ एमपी से क्या मतलब है, तो मुझे पता लगा कि अक से मतलब अकबर और एमपी से मतलब महाराणा प्रताप।
मामला बहुत पेचीदा हो गया है। इस नयी ट्रेंड को समझना बहुत जरुरी है। इस हिसाब से पुराने राजा चंद्रगुप्त मौर्य सीएम हो गये हैं और सलीम और अनारकली क्रमश सैम और ऐन हो गये हैं।
इस सबको जो न समझे, वह डिस्कशन मे हिस्सा नहीं ले सकता या ले सकती।
अगर आप पूरे-पूरे नाम लेंगे, तो आपके बारे में समझा जायेगा कि आप निहायत फालतू टाइप के बंदे हैं, जिसके पास बहुत फालतू टाइम है। तब ही तो, आप पूरा का पूरा नाम लेने का टाइम निकाल लेते हैं। बिजी और स्मार्ट बंदे वो होते हैं, जिनके पास पूरा नाम लेने का टाइम नहीं होता।
स्टेट्स में हैं
हर पार्टी में हर दूसरा नहीं, हर पहला बंदा ही कहता दिखता है-मेरे भाई स्टेट्स में हैं।
ऐसे में आप बिलकुल न बतायें कि आपके भाई गंजडुंडवारा में हैं या डूंगरगढ़ में हैं।
स्टेटस चौपट हो जायेगा।
आपका भाई स्टेट्स में अगर छोले बेचता होगा, तो स्टेटस टनाटन माना जायेगा। पर अगर आपके भाई का गंजबासौदा में टाप क्लास शोरुम है, तो भी आपका स्टेटस टाप टनाटन नहीं माना जायेगा।
स्टेट्स से आशय भारत की स्टेट्स से नहीं है। स्टेट्स से आशय युनाईटेड स्टेट्स आफ अमेरिका से है।
जिनके रिश्तेदार आजकल अमेरिका में नहीं हैं, यह उनकी तकदीर का दोष है।
तकदीर के इस दोष को आप झूठ बोलकर खत्म कर सकती हैं।
आप ये करें कि अमेरिका का नक्शा लेकर बैठें और उसमें से अपनी पसंद की स्टेट चुन लें फिर अपने भाई या किसी और रिश्तेदार को वहां सैट करा दें।
एकाध अमेरिकन आइटम किसी चोर बाजार से ले आयें और सबको दिखा दें, इससे अमेरिका में आपके भाई होने की बात कनफर्म हो जायेगी।
यू नो टाइम नहीं है
नये शिष्टाचार के तहत एक झटके से किसी बात पर सहमत हो जाना निहायत पिछड़ेपन की निशानी है।
हर बात में कहना चाहिए-यू नो आजकल टाइम नहीं है। मुझे शैड्यूल देखना पड़ेगा।
टाइम होना आजकल चिरकुटई की निशानी है।
कोई आपसे कहे कि आपसे मिलना है, तो कहिए कि ओ के बीस दिनों बाद फोन पर फिक्स कर लेंगे। मुझे शैड्यूल देखना पड़ेगा।
कोई आपको अपने घर बुलाये, तो कहिए कि टाइम नहीं है, यू नो बहुत बिजी हूं।
लोग ये नहीं पूछते कि किस चीज में बिजी हैं।
लोग मानकर चलते हैं कि आप जो कुछ भी बोलेंगी झूठ बोलेंगी।
सवाल इस बात का नहीं है कि आप झूठ बोल रही हैं। मुद्दा यह है कि आप बिजी हैं। बड़े लोग बिजी होते हैं। ब्रिटेन की महारानी के बच्चों को भी उनसे मिलने की परमीशन लेनी पड़ती है।
यहां ध्यान रखिये कि अगर आप ऐसा कहती हैं कि टाइम नहीं है, तो ऐसा कहने का हक आपको बनता है।
पर अगर कोई और ऐसा कहे, तो आप फौरन कह दें कि देखा कितनी बनती है वो, मिलने का टाइम तक नहीं है।


आलोक पुराणिक एफ-1 बी-39
रामप्रस्थ गाजियाबाद -201011
मोबाइल -9810018799