Sunday, April 7, 2013

उफ्फ, 180 सेकंड्स का वेट



आलोक पुराणिक


18-19 साल का वह बालक मेरी बाइक के पीछे बैठा था, एक व्यस्त चौराहे पर उसने हाहाकारनुमा बयान दिया-हाय पूरे 180 सेकंड्स की रेड-लाइट है ये।


हाय, 180 सेकंड्स में व्यथित हो लिया ये नया बालक। हममें से तो कई बीस-पच्चीस सालों से लाइफ की किसी एक रेड-लाइट पर ही रुके हुए हैं, पर ये बात मैंने उससे कही नहीं, ऊंची हो जाती। 180 सेकंड्स में उसने फेसबुक पर स्टेटस अपडेट कर लिया-आन ए रेडलाइट, मिसिंग यू एवरीबडी। दो-तीन पोस्ट्स को लाइक कर लिया। इतना लंबा वेट, इतना काम तो बनता था।

नयी जेनरेशन के हिसाब से समय-बोध यूं बनता है-180 सेकंड्स यानी एक युग, 120 सेकंड्स यानी लांग-टर्म, 60 सेकंड्स यानी मीडियम टर्म, 30 सेकंड्स यानी नार्मल टाइम। एक सेकंड भी युग लग उठता है, जब बालक किसी वैबसाइट कोई खास टाइप की फिल्म डाऊनलोड कर रहा हो। और पांच घंटे भी पांच सेकंड जैसे लगते हैं अगर नया बालक यूएस एंबेसी में वीसा की लाइन मे लगा हो।

हम इंतजार करेंगे तेरा कयामत तक खुदा करे कि कयामत हो और तू आये, इस गीत का मतलब नया बालक समझ ले, तो बेहोश हो जाये। कयामत तक इंतजार, जी यहां तो  180 सेकंड्स में  मामला खल्लास हो जाता है।
मैंने नये बालक से कहा-अबे खूब होता है तुझसे इंतजार, देख सरकार महंगाई पर महंगाई बढ़ाये जाती है, इसके खिलाफ कोई आंदोलन ना करता तू। सरकार बदलने के लिए तू इंतजार करता रहता है पांच साल खत्म होने का। एक नेता ने कहा था कि जिंदा कौम पांच साल का इंतजार नहीं करतीं।

नये बालक ने कहा-हू केयर्स फार इंडियन गवर्नमेंट, पांच साल कि दस साल।
तो तू किस गवर्नमेंट को चेंज करने का इंतजार करता है-मैंने उससे पूछा।

वह बोला-मुझे क्या मतलब इंडियन गवर्नमेंट से, मुझे आस्ट्रेलिया, कनाडा या सिंगापुर में सैटल होना है। मैं तो वहां की गवर्नमेंट बदलने का इंतजार करता हूं कि कहीं वो इंडिया से वहां जाना मुश्किल ना कर दे।

हुजूर इंतजार सिर्फ एक ही भला, कनाडा सिंगापुर जाने का इंतजार।

गवर्नमेंट वो ही भली, जो बाहर आना-जाना आसान बनाये। हम इंतजार करेंगे तेरा कयामत तक, वीसा तेरा इंतजार।
नया प्रेम-बोध यही है।

मर्डर का सिक्सर



आलोक पुराणिक
पाकिस्तान में इमरान खान नेतागिरी मचाये हुए हैं। डेमोक्रेसी में मुल्क के हालात बुरे हों, और बंदे के नसीब अच्छे हों, तो बंदा प्रधानमंत्री तक बन जाता है। बन ही नहीं जाता है, बना ही रहता है। दो टर्म्स-तीन टर्म्स, जाने कित्ती टर्म्स। बुरा ना मानो, डेमोक्रेसी है।
पाक में इमरानजी के चुनाव लड़ने पर आपत्तियां खड़ी की जा रही हैं, इस आधार पर कि वह कभी जुआ खेला करते थे।
अपरिपक्व लोकतंत्र है पाकिस्तान। इंडियन डेमोक्रेसी परिपक्व है, लोकतंत्र में सबको प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए जुआरी, डकैतों, चोरों, कमीशनबाजों सबको।
टीवी चैनल में कार्यरत मेरा एक दोस्त कहता है कि क्रिकेटरों को पालिटिक्स में अधिक से अधिक आना चाहिए, ताकि अलग-अलग शो के लिए अलग-अलग एक्सपर्ट्स बुलाने के झंझट ना रहें। अब पाक में इमरानजी पालिटिक्स, इकोनोमी, माडलिंग, बम-धमाकों, भारत-पाक नीति, स्पोर्ट्स  सब पर बोलते हैं। कोई क्रिकेटर पांच बजे आ जाये टीवी न्यूज स्टूडियो में, हर शो में एक्सपर्ट कमेंट देकर रात बारह बजे फारिग हो।
मुझे दिख रहा है कि किसी इंडियन टीवी चैनल पर कोई क्रिकेटर छिद्दूजी हर विषय पर अपनी राय यूं रख रहे हैं-
सवाल- खराब ला एंड आर्डर का क्या करें।
छिद्दूजी-राजधानी में एक  दिन में मर्डर का सिक्सर लग गया है। नया रिकार्ड बन रहा है। डाकुओं ने चौका मार दिया है, चार डाके एक ही घंटे में। पूरे देश में धमाके सेंचुरी के करीब पहुंच रहे हैं।  हमें इंतजार करना चाहिए कि क्रिमिनल्स खुद ही इनिंग डिक्लेयर करें। क्रिकेट में हर समस्या का इलाज है।
सवाल-मंदी का क्या करें।
छिद्दूजी- मंदी है। मुझे पता है कि क्रिकेटरों को गोरा करने वाली क्रीम के इश्तिहार कम मिल रहे हैं। ग्लोबलाइजेशन से मंदी दूर होगी। आईपीएल जैसे टूर्नामेंट्स से मंदी दूर होगी। हमारे यहां विदेशों से डांसर आकर आईपीएल में डांस करते हैं, इंडियन डांसर चीन, अमेरिका में जाकर डांस से कमायें। हमारी विदेश नीति का फोकस इस पर होना चाहिए कि अमेरिका और चीन में आईपीएल शुरु हो, ताकि हमारे डांसर वहां डांस कर सकें। क्रिकेट में हर समस्या का इलाज है।
समस्याओं के सोल्यूशन ना मिलें, तो कम से कम हंसी तो मिले छिद्दूजी से।

Saturday, April 6, 2013

फ्लेक्सिबल फिटनेस है जी



आलोक पुराणिक
आईपीएल मैच में कुछ प्लेयर ऐसे सरसरायमान होकर दौड़ रहे हैं कि यकीन करना मुश्किल हो रहा है कि कुछ दिन पहले देश के लिए खेलने के वक्त ये अनफिट हो रखे थे।
आईपीएल के लिए फिट हैं, देश के लिए फिट नहीं हैं।

ऐसा तक हो लिया है कि बंदा आईपीएल तक के लिए फिट ना है, पर इश्तिहारों की माडलिंग के लिए एकदम फिट है टनाटन। खेंचे जाओ फोटू, दिये जाओ नोट। मैचों में जो कभी-कभार खेलता दिखता है प्लेयर, वह इश्तिहारों में 24 बाई 7 खेल मचाये हुए है।
फिटनेस अब फ्लेक्सिबल हो रही है।

एक ऐसे फ्लेक्सिबल फिट प्लेयर को डांटा मैंने, तो उसने मुझे उलट-डांटा-कुछ पता तो है ना आपको। तिहाड़ जेल में बंद हैं कई नेता, वहां कुछ काम करने को कहो उनसे,तो कहते हैं कि फिट नहीं हैं, पर मुख्यमंत्री-मंत्री बनने को एकदम फिटमफिट मानें खुद को।
मैंने प्लेयर को बताया-देखो मुख्यमंत्री और मंत्रीगिरी में कुछ खास करना नहीं होता है, उसके लिए तो मरणशैय्या पर भी फिट हैं। पर तिहाड़ जेल में बिस्कुट वगैरह बनाने के काम में तो मेहनत लगती है, इसलिए उसके लिए फिट ना हैं। नेता फ्लेक्सिबल फिटनेस दिखाये, तो समझ में आता है। पर तुम प्लेयर लोग इंडियन टीम के लिए अनफिट हो, आईपीएल के लिए फिट हो। यह बात समझ ना आती।

प्लेयर और नाराज हो गया, बोला-खबरदार जो आपने मुझे नेताओं से कंपेयर किया। सिर्फ फ्लेक्सिबल फिटनेस के आधार पर हमें नेताओं से कंपेयर ना किया जा सकता।
मैंने आगे कहा उससे-अरे फ्लेक्सिबल फिटनेस वाले नेता और प्लेयर एक और मामले में एक जैसे हैं, तुम भी तमाम आइटम बेचो, नेता भी मुल्क को बेचे डाल रहे हैं।
आईपीएल प्लेयर गोरे होने की क्रीम का इश्तिहार करते हुए बोला-ना हम तो जो भी बेचते हैं, उसके बारे में सब कुछ बता कर बेचते हैं। नेता तो बेचे ही जा रहे हैं,बता कुछ ना रहे। बताओ, एक भी सौदे के बारे में किसी नेता ने बताओ हो कुछ भी।

बात तो आईपीएल प्लेयर सही ही कह रहा है।

नेता लोग प्लीज, बोल-बता के बेचो, प्लेयरों की तरह। 

Wednesday, August 29, 2007

अब नये खोमचे www.alokpuranik.com पर

इस ब्लाग के पाठक अब www.alokpuranik.com पर जायें।
अब व्यंग्य की दुकान वहीं सजाने की तैयारी हो रही है।
मैथिलीजी (ब्लागवाणी वाले) और उनके पुत्र सीरिल ने इस खाकसार को वर्डप्रेस के कई गुर बताते हुए इस नये खोमचे को सैट किया है। तकनीकी बाधाएं कई तरह की थीं। कई तरह के बवाल और सवाल आये।
लगातार बार एक समस्या यह आ रही थी कि जो थीम सैट की जाती थी, वह अपने आप बदल जाती थी। जीतू भाई, काकेशजी ने सबने तरह-तरह की सलाह-मदद आफर की। पर पिराबलम साल्व नहीं हुई। वही होता रहा, जो थीम सैट करो, सुबह तक बदल जाती थी।
मैथिलीजी कई बार परेशान हुए। बोले-बीसियों वैबसाइट बना लीं, पर ऐसी बेगैरत, बेहया वैबसाइट नहीं देखी, जो कुत्ते की दुम तरह टेढ़ी की की टेढ़ी हो जाती है। मैंने बताया कि मेरी सोहबत का असर है। एक दिन शायद कुछ बहुत ठोंक-पीट हुई है, तो शायद यह अब ठीक काम करे।
अब ठीक काम करे, इसी उम्मीद पर खोमचा शिफ्ट हो रहा है।
मैथिलीजी और उनके पुत्र सिरिल को अभी फाइनल वाला धन्यवाद देना निरर्थक यूं है, कि अभी उनका पीछा छोड़ा नहीं है मैंने। दरअसल यह सब किया -धरा उन्ही का है। तरह-तरह के बवाल , सवाल उनके सामने रोज रख रहा हूं। और वे पूरे धैर्य से उनके जवाब तलाश रहे हैं।(मैथिलीजी के दफ्तर में परम धांसू पेस्ट्री और चाय के साथ तरह-तरह के बवाल-सवाल निपटाये जाते हैं, ब्लागर बंधु इसे नोट कर लें)
एक बात और, मैंने शनिवार और रविवार को मैंने नोट किया कि लोग शायद ज्यादा पढ़ने के मूड में नहीं रहते और खास तौर पर रविवार को तो बहुत कम लोग ब्लाग पढ़ने आते हैं। लोगों की इच्छा का सम्मान करते हुए नया खोमचा संडे को बंद टाइप रहेगा। मतलब संडे को पोस्ट अपडेट नहीं होगी। बाकी छह दिन मंडे टू सेटर्ड सुबह छह बजे तक अपना शटर खुल जायेगा, अगर टेकनीकल पेंच नहीं रहे तो। इस वैबसाइट में जो भी कुछ अच्छा लगे, उसके लिए धन्यवाद, क्रेडिट मैथिलीजी और उनके पुत्र सिरिल को प्रेषित कीजियेगा।
हां जो कुछ चिरकुटात्मक, अगड़म-बगड़म है, उस पर मेरा और सिर्फ मेरा कापीराइट मानकर मुझे बतायें।
सादर
प्लीज नये खोमचे पर रोज आयें।

Tuesday, August 28, 2007

भगीरथ जेल में

भगीरथ जेल में

(अब तक आपने पढ़ा। भगीरथ भारतवर्ष के जल संकट से द्रवित होकर जनता को परेशानी से निजात दिलाने के लिए गंगा द्वितीय को पृथ्वी पर लाने का उपक्रम करने लगे। इसके लिए वह हरिद्वार के पास मुनि की रेती पर साधनारत हुए तो नगरपालिका वालों ने, नेताओं ने और दूसरे तत्वों ने उन्हे परेशान किया। वह परेशान होकर ऊपर पहाड़ों पर जाने लगे, तो कई फोटोग्राफरों ने उनके सामने तरह-तरह के आइटमों के माडलिंग के प्रस्ताव रखे। फोटोग्राफरों ने उनसे कहा कि इस तरह की जनसेवा के पीछे उनका जरुर बड़ा खेल है और इस खेल के साथ वे चार पैसे एक्स्ट्रा भी कमा लें, तो हर्ज नहीं है।अब आगे पढ़िये समापन किस्त में।)

देखिये, ये क्या खेल-खेल लगा रखा है। क्यां यहां बिना खेल के कुछ नहीं होता क्या-भगीरथ बहुत गुस्से में बोले।

जी बगैर खेल के यहां कुछ नहीं होता। यहां गंगा इसलिए बहती है कि वह गंगा साबुन के लिए माडलिंग कर सके। गोआ में समुद्र इसलिए बहता है कि वह गोआ टूरिज्म के इश्तिहारों में काम आ सके। हिमालय के तमाम पहाड़ इसलिए सुंदर हैं कि उन्होने उत्तरांचल टूरिज्म, उत्तर प्रदेश टूरिज्म के इश्तिहारों में माडलिंग करनी है। आपकी चाल में फुरती इसलिए ही है कि वह किसी चाय वाले या च्यवनप्राश वाले के इश्तिहार में काम आ सके। आपके बाल अभी तक काले इसलिए हैं कि वे नवरत्न तेल के इश्तिहार के काम आ सकें। हे मुनि, डाल से चूके बंदर और माडलिंग के माल से चूके बंदों के पास सिवाय पछतावे के कुछ नहीं होता-एक समझदार से फोटोग्राफर ने उन्हे समझाया।

भगीरथ मुनि गु्स्से में और ऊंचे पहाड़ों की ओर चले गये।

कई बरसों तक साधना चली।

मां गंगा द्वितीय प्रसन्न हुईं और एक पहाड़ को फोड़कर भगीरथ के सामने प्रकट हुईं।

जिस पहाड़ को फोड़कर गंगा प्रकट हुई थीं, वहां का सीन बदल गया था। बहुत सुंदर नदी के रुप में बहने की तैयारी गंगा मां कर ही रही थीं कि वहां करीब के एक फार्महाऊस वाले के निगाह पूरे मामले पर पड़ गयी।

वह फार्महाऊस पानी बेचने वाली एक कंपनी का था।

गंगा द्वितीय जिस कंपनी के फार्महाऊस के पास से निकल रही हैं, उसी कंपनी का हक गंगा पर बनता है, ऐसा विचार करके उस कंपनी का बंदा भगीरथ के पास आया और बोला कि गंगा पर उसकी कंपनी की मोनोपोली होगी। वही कंपनी गंगा का पानी बेचेगी।

तब तक बाकी पानी कंपनियों को खबर हो चुकी थी।

बिसलेरी, खेंचलेरी, खालेरी, पालेरी, पचालेरी, फिनफिन, शिनशिन,छीनछीन समेत सारी अगड़म-बगड़म कंपनियों के बंदे मौके पर पहुंच लिये।

हर कंपनी वाला भगीरथ को समझा रहा था कि वह उसी की कंपनी को ज्वाइन कर ले। मुंहमांगी रकम दी जायेगी। गंगा द्वितीय उस कंपनी की संपत्ति हो जायेगी और भगीरथ को रायल्टी दे दी जायेगी।

पर भगीरथ नहीं माने। वह गंगा द्वितीय को जनता को समर्पित करना चाहते थे।

किसी कंपनी वाले की दाल नहीं गली।

पर..........।

सारी कंपनियों के बंदों ने आपस में खुसुर-पुसर की। खुसर-पुसर का दायरा बढ़ा, नगरपालिकाओं वाले आ गये। माहौल और खुसरपुसरित हुआ-भगीरथी की फ्यूचर पापुलरिटी की सोचकर आतंकित-परेशान नेता भी आ लिये। वाटर रिस्टोरेशन के लिए काम कर रहे एनजीओ के बंदे भी इस खुसर-पुसर में शामिल हुए।

फिर ...........भगीरथ गिरफ्तार कर लिये गये।

उन पर निम्नलिखित आरोप लगाये गये-

1- शासन की अनुमति लिये बगैर भगीरथ ने साधना की। इससे कानून व्यवस्था जितनी भी थी, उसे खतरा हो सकता था।

2- इस इलाके को पहले सूखा क्षेत्र माना गया था। अब यहां पानी आने से कैलकुलेशन गड़बड़ा गये। पहले इसे सूखा क्षेत्र मानते हुए यहां तर किस्म की ग्रांट-सब्सिडी की व्यवस्था की गयी थी योजना में। अब दरअसल पूरी योजना ही गड़बड़ा गयी। यह सिर्फ भगीरथ की वजह से हुआ। योजना प्रक्रिया को संकट में डालने का अपराध देशद्रोह के अपराध से कम नहीं है।

3- भगीरथ ने विदेशों से आ रही मदद, रकम में बाधा पैदा करके राष्ट्र को बहुमूल्य विदेशी मुद्रा से वंचित किया है। इस क्षेत्र के जल संकट को निपटाने के लिए फ्रांस के एनजीओ फाऊं-फाऊं फाउंडेशन और कनाडा के एनजीओ खाऊं-खाऊं ट्रस्ट ने लोकल एनजीओज (संयोगवश जिनकी संचालिकाएं स्थानीय ब्यूरोक्रेट्स की पत्नियां थीं) को कई अरब डालर देने का प्रस्ताव दिया था। अब जल आ गया, तो इन एनजीओज को संकट हो गया। फ्रांस और कनाडा के एनजीओज ने सहायता कैंसल कर दी। इस तरह से भगीरथ ने गंगा द्वितीय को बहाकर विदेशी मदद को अवरुद्ध कर दिया। भारत को विदेशी मुद्रा से वंचित करना देशद्रोह के अपराध से कम नहीं है।

4- पहाड़ को फोड़कर गंगा द्वितीय जिस तरह से प्रकट हुई हैं, उससे इस क्षेत्र का नक्शा बदल गया है, जो हरिद्वार नगर पालिका या किसी और नगर पालिका ने पास नहीं किया है।

5- शासन की सम्यक संस्तुति के बगैर जिस तरह से नदी निकली है, वह हो न हो, किसी दुश्मन की साजिश भी हो सकती है।

गिरफ्तार भगीरथ जेल में चले गये, उनको केस लड़ने के लिए कोई वकील नहीं मिला, क्योंकि सारे वकील पानी कंपनियों ने सैट कर लिये थे।

लेटेस्ट खबर यह है कि गंगा निकालना तो दूर अब भगीरथ खुद को जेल से निकालने का जुगाड़ नहीं खोज पा रहे हैं।

आलोक पुराणिक मोबाइल-09810018799

Monday, August 27, 2007

भगीरथजी मुनि की रेती पर उर्फ भगीरथ -गंगा नवकथा

भगीरथजी मुनि के रेती पर उर्फ भगीरथ गंगा नवकथा

आलोक पुराणिक

गंगा को जमीन पर लाने वाले अजर-अमर महर्षि भगीरथजी स्वर्ग में लंबी साधना के बाद जब चैतन्य हुए, तो उन्होने पाया कि भारतभूमि पर पब्लिक पानी की समस्या से त्रस्त है। समूचा भारत पानी के झंझट से ग्रस्त है। सो महर्षि ने दोबारा गंगा द्वितीय को लाने की सोची। महर्षि भारत भूमि पर पधारे और मुनि की रेती, हरिद्वार पर दोबारा साधनारत हो गये।

मुनि की रेती पर एक मुनि को भगीरथ को साधना करते देख पब्लिक में जिज्ञासा भाव जाग्रत हुआ।

छुटभैये नेता बोले कि गुरु हो न हो, जमीन पक्की कर रहा है। ये अगला चुनाव यहीं से लड़ेगा। यहां से एक और कैंडीडेट और बढ़ेगा। बवाल होगा, पुराने नेताओं की नेतागिरी पर सवाल होगा।

पुलिस वालों की भगीरथ साधना कुछ यूं लगी-हो न हो, यह कोई चालू महंत है। जरुर साधना के लपेटे में मुनि की रेती को लपेटने का इच्छुक संत है। तपस्या की आड़ में कब्जा करना चाहता है।

खबरिया टीवी चैनलों को लगा है कि सिर्फ मुनि हैं, तो अभी फोटोजेनिक खबरें नहीं बनेंगी। फोटोजेनिक खबरें तब बनेंगी, जब मुनि की तपस्या तुड़वाने के लिए कोई फोटोजेनिक अप्सरा आयेगी। टीआरपी साधना में नहीं, अप्सराओं में निहित होती है। टीवी पर खबर को फोटूजेनिक होना मांगता।

नगरपालिका वालों ने एक दिन जाकर कहा-मुनिवर साधना करने की परमीशन ली है आपने क्या।

भगीरथ ने कहा-साधना के लिए परमीशन कैसी।

नगरपालिका वालों ने कहा-महाराज परमीशन का यही हिसाब-किताब है। आप जो कुछ करेंगे, उसके लिए परमीशन की जरुरत होगी। थोड़े दिनों में आप पापुलर हो जायेंगे, एमपी, एमएलए वगैरह बन जायेंगे, तो फिर आप परमीशन देने वालों की कैटेगरी में आयेंगे।

भगीरथ ने कहा-मैं साधना तो जनसेवा के लिए कर रहा हूं। सांसद मंत्री थोड़े ही होना है मुझे।

जी सब शुरु में यही कहते हैं। आप भी यही कहते जाइए। पर जो हमारा हिसाब बनता है, सो हमें सरकाइये-नगरपालिका के बंदों ने साफ किया।

देखिये मैं साधु-संत आदमी हूं, मेरे पास कहां कुछ है-भगीरथ ने कहा।

महाराज अब सबसे ज्यादा जमीन और संपत्ति साधुओं के पास ही है। न आश्रम, न जमीन, न कार, न नृत्य की अठखेलियां, ना चेलियां-आप सच्ची के साधु हैं या फोकटी के गृहस्थ। हे मुनिवर, आजकल साधुओं के पास ही टाप टनाटन आइटम होते हैं। दुःख, चिंता ,विपन्नता तो अब गृहस्थों के खाते के आइटम हैं-नगरपालिका वालों ने समझाया।

भगीरथ यह सुनकर गुस्सा हो गये और हरिद्वार-ऋषिकेश से और ऊपर के पहाड़ों पर चल दिये।

भगीरथ को बहुत गति से पहाड़ों की तरफ भागता हुआ सा देख कतिपय फोटोग्राफर भगीरथ के पास आकर बोले देखिये, हम आपको जूते, च्यवनप्राश, अचार कोल्ड ड्रिंक, चाय, काफी, जूते, चप्पल जैसे किसी प्राडक्ट की माडलिंग के लिए ले सकते हैं।

पर माडलिंग क्या होती है वत्स-भगीरथ ने पूछा।

हा, हा, हा, हा हर समझदार और बड़ा आदमी इंडिया में माडलिंग के बारे में जानता है। आप नहीं जानते, तो इसका मतलब यह हुआ कि या तो आप समझदार आदमी नहीं हैं, या बडे़ आदमी नहीं हैं। एक बहुत बड़े सुपर स्टार को लगभग बुढ़ापे के आसपास पता चला कि उसकी धांसू परफारमेंस का राज नवरत्न तेल में छिपा है। एक बहुत बड़े प्लेयर को समझ में आया कि उसकी बैटिंग की वजह किसी कोल्ड ड्रिंक में घुली हुई है। आप की तेज चाल का राज हम किसी जूते या अचार को बना सकते हैं, बोलिये डील करें-फोटोग्राफरों ने कहा।

देखिये मैं जनसेवा के लिए साधना करने जा रहा हूं-भगीरथ ने गुस्से में कहा।

गुरु आपका खेल बड़ा लगता है। बड़े खेल करने वाले सारी यह भाषा बोलते हैं। चलिये थोड़ी बड़ी रकम दिलवा देंगे-एक फोटोग्राफर ने कुछ खुसफुसायमान होकर कहा।

(जारी कल भी)

आलोक पुराणिक मोबाइल-09810018799

Sunday, August 26, 2007

ज्यादा पैसे लेकर भी

ज्यादा पैसे लेकर भी

आलोक पुराणिक

से क्या कहें को-इनसिडेंट या को-एक्सीडेंट, जिस दिन शरद पवारजी वाले क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड ने सीनियर टीम से लेकर जूनियर क्रिकेट अगड़म -बगड़म-हर किस्म के क्रिकेट के क्रिकेटरों के लिए रकम बढ़ाने की घोषणा की, उसी दिन इंडिया डे मैच हार गयी।

अपना मानना है कि इंडिया की टीम ऐसे नहीं हारी, उसने अपने ऊपर लगे आरोप का जवाब दिया है। इंडिया की टीम पर आरोप लगता रहता है कि उसके खिलाडी सिर्फ माडलिंग, इश्तिहार पैसे के लिए खेलते हैं। जैसे पवार साहब ने पैसे बढाये, टीम ने हारकर दिखा दिया, लो हम पैसे के लिए भी नहीं खेलते। ज्यादा पैसे लेकर भी हम हार सकते हैं।

वैसे मुझे लगता है कि कपिल देव वाली क्रिकेट लीग का भविष्य एकदम चकाचक है। अगर उसके खिलाडियों को ज्यादा पैसा मिलता है, तो उनके मजे हैं ही। और अगर उसके खिलाडियों को पवार साहब के खिलाडियों से कम पैसा मिलता है, तो कपिल के खिलाडी कह सकते हैं कि हम बेहतर हैं, क्योंकि हम सस्ते में हारते हैं। सो विदेशों में हारने का पहला हक उनकी टीम का बनता है।

मुझे लगता है कि कुछ समय बाद, चार-छह क्रिकेट लीग टाइप संस्थाएं हो जायेंगी, बडी बमचक रहेगी। हर क्रिकेट संस्था वाला अपनी टीम की मार्केटिंग करेगी-रस्ते का माल सस्ते में, हम से हरवाईये, एकदम सस्ते में काम चलाईये। एक मैच हारने की फीस में दो मैच हारेंगे, एक पे एक फ्री।

दिल्ली में आजापुर सब्जी मंडी के साथ ही क्रिकेट मंडी सी हो लेगी। सुबह-सुबह खिलाडी बैट-बाल लिये आ जायेंगे। क्रिकेट के सारे आढ़तिये अपने मतलब के खिलाड़ियों को बटोर लेंगे।
इधर सीन बहुत मजेदार सा हो लिया
है।

जो मजा पहले पालिटिक्स की जूतम-लात में आता था, अब क्रिकेट की बातों में आता है।

शरद पवार कह रहे हैं कि जो खिलाडी कपिल देव की क्रिकेट लीग को ज्वाइन करेंगे, वे देश के लिए नहीं खेलेंगे। जैसे जो खिलाडी पवार साहब के पास हैं,, वे देश के लिए ही खेलते हैं या पूछें कि क्या वे हमेशा खेलते भी हैं।

खैर, पब्लिक को मालूम है, पवार साहब को नहीं, कि इंडियन क्रिकेटर आम तौर पर च्यवनप्राश, कोल्ड ड्रिंक वगैरह के लिए खेलते हैं।

सबसे ज्यादा आफत विज्ञापन बनाने वालों की होगी। पता लगा कि कोई कोल्ड ड्रिंक वाला पवारजी वाले प्लेयर को पिलाता रह गया और सेंचुरी ठोंक दी कपिलदेव वाले प्लेयर ने।

एक विज्ञापन कंपनी वाला बता रहा था जी हमने तो तैयारी यूं की है कि विज्ञापन में खिलाडियों के सिर दिखायेंगे ही नहीं। बस दौड़ते़ -भागते धड़ दिखायेंगे, फिर जिस टीम की परफारमेंस ठीक रहेगी, उसे ही अपनी टीम बता लेंगे। धड़ों पे सिर बाद में ठोंक देंगे। वैसे भी इंडियन क्रिकेट में सिर ज्यादा हो गये हैं। नेताओं के सिर, धंधेबाजों के सिर। सिर कम हों, एक्शन ज्यादा हो, तो बात बने।

मैंने कहा-इश्तिहार में खिलाडियों के सिर्फ धड़ दिखाओगे। क्रिकेट के नाम पर पब्लिक को बेवकूफ बनाओगे।

वह बुरा सा मान गया-बोला-जी और बेवकूफ बना रहे हैं, आप उन्हे नहीं कहते। सिर्फ हमें कहते हो।

बात में दम है जी। जब सभी बना रहे हैं,तो सिर्फ इश्तिहार वालों से ही क्यों कहा जाये।

आलोक पुराणिक मोबाइल-09810018799