Sunday, May 20, 2007

आलोक पुराणिक की संडे सूक्तियां-संडे सदविचार

संडे सूक्तियां-संडे सदविचार

कैसे होगा तू बता, तेरा-मेरा मेल
तेरे अपने खेल हैं, मेरे अपने खेल

हिंदी ब्लागरों की एक-दूसरे को झेलने की क्षमताओं और झेलेबिलिटी को समर्पित –

मैंने ठेले व्यंग्य दस, तू दस गजलें ठेल
मैंने झेला है तुझे, अब तू मुझको झेल

आलस
आलस को लेकर शर्मिंदा न हों, अगर ऊपर वाले ने आपको इंसान बनाया है, तो वह आपसे इसकी उम्मीद करता है। गधे कभी आलस करते हैं, नहीं। बंदर कभी आलस करते हैं, नहीं। तो समझिये कि जो बंदे आलस नहीं करते, वो क्या हैं।


कुछ और नये धंधे –भूतो ही भविष्यति
आलोक पुराणिक
आने वाले टाइम में इन धंधों की भारी डिमांड रहेगी-
यंत्र एक्सप्लेनर
अभी मेरे जैसों को आई पोड और मोबाइल की शक्ल-सूरत में फर्क नहीं समझ में आता। आई पोड के जरिये एक बंदे को दिल्ली से न्यूयार्क कैसे फैक्स किया जा सकता है, यह बताने वालों के सख्त जरुरत है। जल्दी ही एक यंत्र आने वाला है- लाई पोड,इसके जरिये बंदा तरह-तरह के झूठ बोलने में सक्षम हो जायेगा। झूठ के कितने फोल्डर कितनी तरह की फाइलों में रखे जा सकते हैं, यह कोई लाई पोड एक्सप्लेनर बता सकता है।
भूत कैचर उर्फ भूतो ही भविष्यति
सारे टीवी चैनल या तो भूत के सहारे चल रहे हैं या नागिनों के सहारे। नागिनों की धरपकड़ तो थोड़ी आसान ही है। असली खेल भूतों का है। भूतो में ही भविष्यति यानी चकाचक भविष्य छिपा है। स्मार्ट बंदे अगर कुछ तंत्र-वंत्र की नालेज ले लें, तो फिर वो अपमार्केट भूतों को कैच कर सकते हैं। पेज थ्री टाइप भूतों को कैच करने वाले के तो क्या ही कहने। किसी माडल के भूत से अगर किसी किसी माडलनी की भूतनी के अफेयर के किस्से पर जो कार्यक्रम बना पाये, उसके लिए हर टेलीविजन चैनल के दरवाजे खुले हैं। टीवी चैनलों में नौकरी का रास्ता अब भुतहा हवेलियों से जाता है, पर प्लीज माइंड, अपमार्केट भूत चाहिए।
सीरियल ट्रेकर
सुबह से शाम तक इतने सीरियल आते हैं, जिनमें यह ट्रेक रखना मुश्किल हो जाता है कि इस की जो पांचवीं गर्लफ्रेंड है, वह उसकी दूसरी गर्लफ्रेंड थी या पहली।
उसमें उनका रोल वैसा वाला है, पर इसमें ऐसा वाला है। इसमें तो फलां उस पर लाइन मार रहा है, पर उस सीरियल में उसे बाप की निगाह से देख रहा है।
बहुत टेंशन है साहब स्टोरी समझ नहीं आती।
हर घंटे पर कोई ऐसा बंदा तमाम सीरियलों की लेटेस्ट किस्से, घिस्से आकर बता जाये, तो मामला कम झेलू हो जायेगा।
खैर, मैं तो भूत कैचर या लाई पोड एक्सप्लेनर बनूंगा।

आलोक पुराणिक एफ-1 बी-39 रामप्रस्थ गाजियाबाद-201011

9 comments:

संजय बेंगाणी said...

नए धन्धो के आइडीयाज कमाल के है. :)

परमजीत सिहँ बाली said...

आलोक पुराणिक आइडिया सम्राट जी,आप के व्यंग्य भी सत्यबॊध कराने मे पूर्ण समर्थ है।

मैंने ठेले व्यंग्य दस, तू दस गजलें ठेल
मैंने झेला है तुझे, अब तू मुझको झेल

Sanjeet Tripathi said...

"हिंदी ब्लागरों की एक-दूसरे को झेलने की क्षमताओं और झेलेबिलिटी को समर्पित –

मैंने ठेले व्यंग्य दस, तू दस गजलें ठेल
मैंने झेला है तुझे, अब तू मुझको झेल"

मजा आ गया आलोक जी!
साधुवाद

vishesh said...

सदविचार...

Udan Tashtari said...

हिंदी ब्लागरों की एक-दूसरे को झेलने की क्षमताओं और झेलेबिलिटी को समर्पित –

मैंने ठेले व्यंग्य दस, तू दस गजलें ठेल
मैंने झेला है तुझे, अब तू मुझको झेल"


---हा हा, यह भी खूब रही. :)

राज भाटिय़ा said...

आलोक जी आप ठेलते रेहीए ऎसी अच्छी अच्छी रचनाए ,हम झेले गे आप को दिल से, ध्न्यबाद

सुनीता शानू said...

आलोक भाई आपने भी क्या खूब कही...
आलस को लेकर शर्मिंदा न हों, अगर ऊपर वाले ने आपको इंसान बनाया है, तो वह आपसे इसकी उम्मीद करता है। गधे कभी आलस करते हैं, नहीं। बंदर कभी आलस करते हैं, नहीं। तो समझिये कि जो बंदे आलस नहीं करते, वो क्या हैं।
तो क्या हम आलस छोड़ दें तो बंदर और गधे हो जायेंगे...आप तो लगता है पूरा आलसी बना कर ही दम लोगे...नये आईडियाज बहुत दिलचस्प है...

:)

सुनीता चोटिया(शानू)

Laxmi said...

बहुत सुन्दर। चित्र भी बढ़िया हैं। मज़ा आगया।

योगेश समदर्शी said...

बहुत अच्छा लगा आलोक जी