Monday, May 14, 2007

लोकतंत्र कथाएं

लोकतंत्र कथाएं
आलोक पुराणिक
ऐसी सीडी बनाम बनाम वैसी सीडी
लोकतंत्र की प्रेक्टीकल क्लास समझाने के लिए मैं छात्रों को नेताओं के मुहल्ले में ले गया। चर्चा क्रमश सीडी, कबूतरबाजी, सिवान, बाहुबली, शहाबुद्दीन, कटारा आदि पर हो रही थी। बच्चों ने जो देखा-
तेरी सीडी में ऐसी बातें छि।
तेरी सीडी में वैसी बातें थू।
तेरे वाले कबूतर बाज हाय।
तेरे वाले तो मर्डर करते हैं।
अबे मेरे वाले तो कनाडा ले जाते हैं इंडियन लोगों को, कनाडा की ऐसी-तैसी करते हैं। तेरे तो इंडिया की ऐसी-तैसी करते हैं।
हम ग्लोबल हैं, सिर्फ देश की ऐसी-तैसी क्यों करें, जब पूरा विश्व हमारे सामने है।
जूता लात, जूता लात।
बच्चों ने जो समझा- लोकतंत्र चुनने का विकल्प देता है।कबूतरबाज का विकल्प हत्यारा होता है। ऐसी सीडी वाले का विकल्प वैसी सीडी वाला होता है।
कथा नं टू-वैराइटी
इस बार बच्चों को पाकिस्तान ले जाया गया। वही चाऊं चाऊं वहां भी। अफसर दूसरे से कह रहे थे तूने खाया, अबे मैंने इतना नही खाय़ा। मैंने अकेले थोड़े ही खाया। तूने वहां खाया था, तब मैं कुछ बोला। अब क्यों बोल रहा है। भौं, भौं। पब्लिक वहां भी यही पूछ रही थी-क्यों, क्यों।
बच्चों देखो मुशर्रफ वहां जमे हुए हैं कई साल से।
पर सर, हालात तो वहां के भी वैसे ही हैं। तो हमारे यहां की डेमोक्रेसी में भी यही होता है और वहां डेमोक्रेसी नहीं है, फिर वही यही होता है, फर्क क्या है।
नहीं, नहीं, वहां सिर्फ मुशर्रफ ही मुशर्ऱफ होते हैं। यहां एक तरफ कटारा जी होते हैं, तो दूसरी तरफ शहाबुद्दीन होते हैं। डेमोक्रेसी में वैराइटी होती है। पाकिस्तान में वैराइटी नहीं है।
ओ के गुरुजी मुझे समझ में आ गया है डेमोक्रेसी और तानाशाही का फर्क। तानाशाही में एक लुच्चा बहुत सालों तक चलता है। डेमोक्रेसी में पब्लिक को यह चाइस होती है कि पांच साल में वह एक लुच्चे को बदलकर दूसरी वैराइटी का लुच्चा ले आये।
बच्चों को पालिटिक्स समझ में आ गयी है।

5 comments:

ePandit said...

हम्म हमें भी समझ आ गया है। अखबार में हम आपको सिर्फ एक जगह झेलते थे। ब्लॉग पर आपको दो दो जगह झेलना होता है। :)

संक्षिप्त किंतु मजेदार।

Udan Tashtari said...

आ गई समझ में, गुरुवर. जब आप जैसा गुरु समझायेगा तो काहे नहीं समझ में आयेगी पालिटिक्स. :)

dhurvirodhi said...

अगड़म, बगड़म बम्बे बौ
अस्सी नब्बे पूरे सौ.

चलिये पूरे सौ नम्बर दिये

परमजीत सिहँ बाली said...

समझ तो आ गई।लेकिन मतदाता क्या करें।जिस को भी छोटा चोर समझ कर चुनता है वही बड़ा चोर होकर कुर्सी छोड़ता है।वैसे हम भी समझ गए, डेमोक्रेसी और तानाशाही का फर्क।अच्छा लिखा है।

Arun Arora said...

भाई मै जरा यहा डेमोक्रेसी पर रोशनी डालना चाहता हू ताकी आप लोगो का इस बारे मे भ्रम दूर कर सकू
दर असल ब्रज भाषा के बोलो का बिगडा हुआ रूप है असली बोल है "देय मोहे कुर्सी" जो बिगड कर "दे~मो~कुर्सी" होते होते "देमोक्रेसी "और अब "डेमोक्रेसी" हो गया है और "तानशाही" से तो आप वाकिफ़ होगे ही "तान~शाही" यानी "शाही तान" जिस पर सभी को नाचना पडता है आप ज्याद दूर पाक क्यो जाते है इस तान का मजा आप राहुल जी की तान पर नाचते काग्रेस कार्यकारिणी के सद्स्यो को देख कर भी ले सकते है लुच्चे वाली बात पसंद आई,अब इस पर भी एक कहानी है पर वो फ़िर कभी टिपियाउगा