Friday, July 13, 2007

पतली गली की बाईक भावना के पक्ष में

पतली गली की बाईक भावना के पक्ष में

आलोक पुराणिक

गर्मी बढ़ रही ना-उन्होने कहा।

जी बढ़ रही है।

बाइक गर्मियों में बहुत अनकमफर्टेबल सी हो जाती है-उन्होने एक चाबी घुमाते हुए कहा।

अब मेरे कान खड़े हो गये।

मैंने कहा-बधाई नयी एल्टो कार के लिए

चकराकर उन्होने बताया कि अरे मैंने तो आपको बताया ही नहीं कि मैंने एल्टो ले ली है।

जी मुझे पता है -7979798790879098773 मामलों का अनुभव है कि जब कोई टू व्हीलर वाला अपने स्कूटर या बाइक को अनकमफर्टेबल बताये या कहे कि दिल्ली की सड़कों पर बाइक सेफ नहीं रही या यह कहे कि बच्चे बहुत जिद कर रहे थे कि अब तो कार ले ही लो, या कहे कि बाइक पर फेमिली के साथ जाने बहुत दिक्कत होती थी। तो समझ लेना चाहिए कि अगला एल्टो पर शिफ्ट हो गया है, पहले मारुति 800 पर शिफ्ट होते थे।

कार वाले दो तरह के होते हैं-एक वो जो कार से कार पर शिफ्ट होते हैं। जैसे एल्टो से जेन पर गये। जेन से क्वालिस पर चले गये। क्वालिस से मर्सीडीज पर चले गये, इस तरह की शिफ्टिंग कार समाज का आंतरिक मामला है। वैसे आपसी मारधाड़ कार समाज में भी यूं है कि यहां मर्सीडीज वाला मारुति 800 वाले को ऐसे देखता है जैसे न्यूयार्क वाला युगांडा वाले को देखता है, या जैसे दिल्ली में ग्रीन पार्क वाला मंगोलपुरी और त्रिलोक पुरी वाले को देखता है या मुंबई में नरीमन पाइंट वाला मीरा रोड वाले को देखता है।

यह कार समाज के आंतरिक मसले हैं, इससे मुझे शिकायत नहीं है।

कार पर शिफ्ट होने वाले दूसरे तरह के वो बंदे हैं, जो बाइक से एल्टो या कुछ मामलों में मारुति 800 पर शिफ्ट होते हैं। इनसे मुझे शिकायत है। कार पर जाना अच्छा है। पर बाइक को अनकमफर्टेबल और अनसेफ बताना अच्छा नहीं है। सच्ची बताओ, इस मुल्क में कमफर्ट में कौन है जी, जो सिर्फ बाइक को ही अनकमफर्टेबल बताओ। और इस मुल्क में सेफ कौन है, जो सिर्फ बाइक को ही अनसेफ बताओ।

दिल्ली में लू से मरे, गुजरात में पानी से मरे।

साहबजी, इस मुल्क में मामला सेफ और अनसेफ की चाइस का नहीं है।

मामला ये चाइस का है कि किस तरह से अनसेफ होना पसंद है। हैजे वाली अनसेफ्टी पसंद है या पीलिया वाली। गाजियाबाद में अपहरण की अनसेफ्टी पसंद है या मुंबई में किसी भाई की धमकी की अनसेफ्टी। चाइस यही है।

बताइए, सेफ कौन है। रेलगाड़ी में आईएएस महिला के साथ छेड़ाखानी हो ली।

चाइस इस अनसेफ्टी की है कि गुंडे द्वारा छेड़ाखानी हो या डीआईजी साहब द्वारा।

सेफ कोनहीं है, तो सिर्फ बाइक को ही अनसेफ क्यों बताओ जी।

वैसे बाइक को गौर से देखें, तो इसमें छिपा देश के विकास का हाल है। बाइक पैदल और कार के बीच का संक्रमण काल है।

बाइक उस मंझोले नेता की तरह से है, जिससे कईयों के कई काम निकलते हैं।

बाइक, फुटपाथ के ऊपर से, सड़क के किनारे कच्चे से, गढ्ढे में घुस कर फिर निकलने, दो कारों के बीच जरा से फासले से ऐसे, वैसे या कैसे भी निकल जाने की खालिस भारतीय जिजीविषा का प्रतीक है।

बाइक इस देश में पतली गलियों से निकालक है। हमारा देश पतली गली प्रधान है। जो कहीं भी पतली गली तलाश लेता है, वही आगे बढ़ जाता है।

बाइक उन कारोबारियों की शुरुआती सिचुएशन का प्रतीक है, जिन्होने नियमों के ट्रैफिक से तमाम पतली गलियां निकाली और आगे निकल गये।

बाइक भावना यह है कि हर बाइक वाला दूसरे बाइक वाले की इतनी चिंता करता है कि दिन में भी अगले की हैडलाइट जली हो, तो उसे हाथ के इशारे से बताता है कि भईया बुझा ले।

परस्पर एक-दूसरे की बत्ती बुझाने की उत्कट अभिलाषा को हमारे समाज की केंद्रीय भावना नहीं कहा जा सकता क्या।

सो कुल मिलाकर मसला यह है कि हे बाइक से कार के प्रयाणकर्ता कार पर जा, बार बार जा, पर जरा मुहब्बत से जा। बाइक को यूं अनकमफर्टत्व और अनसेफत्व के डंडे से पीटते हुए तो ना जा।

आलोक पुराणिक मोबाइल-09810018799

7 comments:

काकेश said...

आपका ये लेखन उच्च क्लास वालों का लेखन है..जो बाइक और कार वालों की ही बात करता है..हम जैसे आम आदमी जो साइकिल या पैदल ही चलते हैं ..उनके सेफत्व के बारे में कोई टिप्पणी नही करता ये.आशा है उस पर भी प्रकाश डालेगें.

Arun Arora said...

गुरुवर हम्ने पैदल चलना छॊड जब साईकल ली तो हमने कतई पैदल चलने की कोई बुराई नही की..अब अगले लेख मे हमारी महानता पर भी सुर्य के आलोक मे प्रकाश डाले..:)

Gyan Dutt Pandey said...

मूड> सीरियस.

टिप्पणी> नो नॉनसेंस.

पुराणिक उवाच >...साहबजी, इस मुल्क में मामला सेफ और अनसेफ की चाइस का नहीं है।

मामला ये चाइस का है कि किस तरह से अनसेफ होना पसंद है। हैजे वाली अनसेफ्टी पसंद है या पीलिया वाली। गाजियाबाद में अपहरण की अनसेफ्टी पसंद है या मुंबई में किसी भाई की धमकी की अनसेफ्टी। चाइस यही है।


सही है, यहां अनसेफ होना भी फैशन है. जो गरीब सही में अनसेफ है उसकी तो कोई सुनवाई नहीं!

Monika (Manya) said...

बाईक के माध्यम से काफ़ी सच बयान कर दिये आपने.. हर तबके का कुछ ना कुछ सत्य उजागर किया है.... 'अनसेफ़' पर आपने जो कहा उम्दा लगा ..

ePandit said...

आपके लेख से हम बहुत प्रभावित हो गए गुरुदेव, अगर इस जन्म में हम कार पर गए तो बाइक की कतई बुराई नहीं करेंगे। वैसे अभी तो बाइक भी नहीं इसलिए ऐसा कोई चांस भी नहीं। :)

subhash Bhadauria said...

हमारे कॉलेज के एक अध्यापक ने हमें एक दिन लताड़ते हुए कहा क्या ज़िन्दगी बाइक पर ही निकालोगे वे नयी कार लाये थे.पढ़ाने की जगह शेअर ले बेच से आयी दौलत पे इतरा रहे थे.हमने घर आकर कहा अब हम शेअर का धन्दा करेंगे.हमारी बिटिया बोल पढ़ी मम्मी घर बिकने बाला है बेटे ने कहा ग़ज़लों वाले शेर ही लिखो.
तुम्हारा काम नहीं. हम चुपचाप ग़ज़लें लिखने लगे.
रही सेफ अनसेफ की बात तो ज्ञानी दद्दा उर्दू का शेर याद आ रहा है-
घर से निकले थे हौसला कर के.
लौट आये ख़ुदा ख़ुदा कर के.
सो चाहे पैदल हो बायक हो कार हो या आपकी रेल गाड़ी ख़तरा तो हर जगह है पर उससे घर से निकलना थोड़े बंद कर देंगे.
आप रम्जों में हँसते हँसाते काफी गंभीर इशारे करते हैं.बकौले दुष्यन्त कुमार

सिर्फ शायर देखता है कहकहों की असलियत
हर किसी के पास तो ऐसी नज़र होती नहीं.

आप सेफ अनसेफ की बात कर रहे हैं जो बहुत गंभीर है.
ये चालू गाड़ी में चढ़ने वाले गिरेगें तब बात समझमें आयेगी.
डॉ.सुभाष भदौरिया अहमदाबाद.

Udan Tashtari said...

बहुत उमदा, मित्र. मजा आया पढ़कर.

बाइक पैदल और कार के बीच का संक्रमण काल है।

--क्या बात कही है. बहुत झंझोरता आलेख रहा यह. हर पंक्ति पर वाह!!