Saturday, July 21, 2007

शेरनी पर कूड़ा

शेरनी पर कूड़ा
आलोक पुराणिक
दूर से देखने पर तो वह ट्रक लग रहा था। और था भी।
थोड़ी कम दूरी से देखा तो उस पर लिखा था-विधायक की शेरनी-।
शेरनी पर बहुत कूड़ा लदा हुआ था।
शेरनी नगर निगम के ठेके पर चल रही थी । विधायकजी पहले जेबकट थे, फिर लघुस्तरीय चक्कूबाज हुए। कालांतर में प्रगति करते हुए विधायक हुए। विधायक होकर ट्रांसपोर्ट का काम खोला, जिसके तहत कई शेरनियां चल रही थीं। इनमें कई तो नगर निगम का कूड़ा ढो रही थीं। कुछ शेरनियां यमुना से रेत चुरा कर रेत के ठेकेदारों की मदद कर रही थीं। चार शेरनियां उन मुहल्लों में पानी की सप्लाई लेकर जाती थीं, जिन मुहल्लों में पानी की सप्लाई को विधायक के बंदे ग़डबड करा देते थे। इस तरह से विधायक की शेरनियां पानी बेचने के कारोबार में भी संलग्न थीं। हां, विधायकजी के दारु के ठेकों पर दारु पहुंचाने के काम भी इन्ही शेरनियों से लिया जा रहा था।
लोग शेरों की दशा पर चिंतित हो रहे हैं। शेरनियों का क्या हाल है, इस पर सोचने की फुरसत किसी के पास नहीं है।
वाइल्ड लाइफ वाले इस और कुछ ध्यान दें ना, शेरनियों के नाम पर ना जाने क्या-क्या हो रहा है।
अभी देखा एक बहुत जबरजंग जब्बर टाइप का ट्रक, जिसने कल स्कूली बच्चों से भरी वैन को मार गिराया था। बच्चों का नसीब, बच गये।
ट्रक पर लिखा था-मालिक का पैसा, ड्राइवर का पसीना
रोड पर चलती है, बन के हसीना।
जिसे हसीना बताया जा रहा था, उस पर लगभग हत्या की जिम्मेदारी थी।
अरे हसीनाओं, मिलकर प्रोटेस्ट करो कि तुम्हारा नाम कहां-कहां लिया जा रहा है।
जबरजंग ट्रक हसीना हुआ जा रहा है, कोई रोकने वाला नहीं है।
ट्रकों में ऐसा-ऐसा कुछ हो रहा है, कि राष्ट्र का ध्यान उस ओर जाना चाहिए।
एक और बहुत कातिल टाइप का ट्रक देखा, उस पर लिखा हुआ था-आई तुझा आशीर्वाद (मां तेरा आशीर्वाद)। ट्रक धडधडाता हुआ दौड़ रहा था, सडक के किनारे एक खोमचे को उसने लगभग उड़ा ही दिया था। ये अगर किसी मां का आशीर्वाद है, यह सोचकर मन घबराता है। भारतवर्ष की सारी मांओं को एक परिवहन मंत्रालय से मांग करनी चाहिए कि ट्रकों पर यह लिखना बंद हो-मां तेरा आशीर्वाद।
मांओं कुछ करो। अपने आशीर्वाद का ऐसा ट्रकीकरण न होने दो।
जरा यह भी सोचिये, अगर किसी मां का आशीर्वाद यह ट्रक है, तो उस मां के शाप क्या होंगे-शायद वे हवाई जहाज, जो इराक पर बम बरसाते हैं। नहीं क्या।
आलोक पुराणिक
मोबाइल-09810018799

8 comments:

अनूप शुक्ल said...

बढि़या है। कल् पढ़ा था अमर उजाला में आज् फोटो सहित् झेला दिया। :)

Arun Arora said...

सही कहा है जी दुसरी डोज भेजिये..:)

काकेश said...

हमने तो नहीं पढ़ा था जी.अच्छा है कूड़े का कबाड़ा ..

Sanjeet Tripathi said...

हा हा, सही है !!

Gyan Dutt Pandey said...

विधायकजी शेरनी न पालेंगें तो क्या हम आप से चिरकुट रखेंगे.
आप कब तक केवल लिखते रहेंगे. अगले चुनाव में किस्मत अजमा क्यो नहीं लेते :)

परमजीत सिहँ बाली said...

आलोक जी, बहुत बढिया व्यग्य लिख मारा है। पढ कर मजा आ गया।

Divine India said...

काफी दिनों से पढ़ता आ रहा था आपकी लेखनी को,व्यंग्यात्मक :) मगर टिप्पणी पहली बार कर रहा हूँ… बहुत सही लिखा है मैंने तो पहली बार यह पढ़ा है… व्यंग्य तो आपकी अनोखी होती है…साथ सटीक भी…।

Udan Tashtari said...

सटीक रही विधायक जी की शेरनी-थोड़ी देर से पढ़ा फिर भी आनन्द उतना ही आया. :)