Monday, July 9, 2007

नालियों का ग्लोब

नालियों का ग्लोब
आलोक पुराणिक

मुंबई में तीन-चार बार की बरसात के बाद मामला वेनिस जैसा हो गया।
सुना है जी, वेनिस में नहरें शहर के अंदर होती हैं और एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए नावों का भी सहारा लिया जाता है।
साहब, वेनिस मुंबई के लेवल पर नहीं आ पाया, जी वहां अभी बड़ा दाऊद और छोटा राजन नहीं हैं।
पर मुंबई का मामला हर साल वेनिसात्मक हो लेता है। ग्लोबलाइजेशन और किसे कहते हैं जी।
मुंबई ना
लियों का ग्लोब हो रहा है।
मुंबई तेजी से, बहुत तेजी से ग्लोबल हो रहा है।
शेक्सपियर का नाटक-मर्चेंट आफ वेनिस-हमें इंडिया में तमाम कोर्सों में पढ़ना पड़ता है।
कुछेक सालों में वेनिस वाले स्मगलर आफ मुंबई पढ़ेंगे।
पर मेरी चिंता फिल्म इंडस्ट्री को लेकर है। अभी ही फिल्म वाले हीरोईन को ज्यादातर मौकों पर स्विमसूट सा पहनाये घुमाते हैं। जब सच्ची में सीन फुल वेनिस का सा हो लेगा, तब तो शवयात्रा के सीन तक में हीरोईन को फुल भीगा हुआ दिखायेंगे।
खैर जी,
आज सुबह मेरी झड़प हो गयी एक अमेरिकन से-वह कह रहा था, बेट्टा परमाणु बम बनाना जानते हो, मिसाइल बनाना जानते हो, पर एक-दो बारिश को झेलने वाली नालियां बनाना अभी नहीं सीख पाये हो।
नहीं सीख पाये हैं जी, इसमें क्या बात है। सारी चीजें एक साथ सीख जायेंगे क्या। अभी हम राकेट को अंतरिक्ष भेजना सीख गये हैं, वे ऊपर से नाली-वाली के फोटू भेजेंगे। मुझे लगता है कि कुछेक सालों में इनसेट बीस बी (या जौन से भी नंबर का हो), फोटू भेजेगा इंडिया की, उसमें एक बहुत बड़ी सी नाली दिखायी देगी।
नीचे वाले पूछेंगे-इंडिया कहां है।

उन्हे बताया जायेगा कि नाली के नीचे।

इंडिया वाले इत्ती प्रोग्रेस कर गये हैं कि नाली के अंदर रहना सीख गये हैं। साफ-सुथरी सचमुच की नालियां बनाने भर की प्रोग्रेस भी हो जायेगी, अगले दो-सौ तीन सौ सालों में।

सारी प्रोग्रेस एक साथ नहीं हो सकती।
नाली आपके एजेंडे में क्यों नहीं हैं-मैंने एक नेता से पूछा।
वह बोला-नाली कऊन कास्ट है भाई। हमने नहीं सुना। कित्ते वोट हैं।
नाली के वोट तो नहीं होते, पर हमारे वोट जरुर हर बार नाली में जा रहे हैं।
मुंबई की वेनिसात्मक सिचुएशन पर मैंने वहां के एक नेता से पूछा-सोल्यूशन क्यों नहीं निकालते कुछ इसका।
वो बोला-वेनिस जा रहा हूं एक प्रतिनिधिमंडल लेकर। शहर के अंदर नावें कैसे चलें, इस विषय पर जानकारियां लेकर आयेंगे। मुंबई नाव प्राधिकरण बना देंगे। दादर से ठाणे और ठाणे से वीटी नाव ही नाव ही चलेंगी। नाव का ठेका मेरे साले को मिलेगा। नाव प्राधिकरण के मेंबर मेरे चंपू होंगे।
इस देश का नेता प्रतिभाशाली है, जी। नाव के जरिये भी डुबाने का जुगाड़मेंट खोज लेता है।
पर अच्छी बात यह होगी कि कोलतार घोटाले, सड़क घोटाले, पुल घोटाले खत्म हो जायेंगे।

उनकी जगह नाव घोटाले, गोताखोरी की ड्रेस घोटाले, मोटरबोट घोटाले आ जायेंगे।
चलो जी , खुश हो जाओ। कम से कम घोटालों के लेवल पर तो कुछ नया होगा।
आलोक पुराणिक मोबाइल-09810018799

10 comments:

Gyan Dutt Pandey said...

....पर अच्छी बात यह होगी कि कोलतार घोटाले, सड़क घोटाले, पुल घोटाले खत्म हो जायेंगे।
उनकी जगह नाव घोटाले, गोताखोरी की ड्रेस घोटाले, मोटरबोट घोटाले आ जायेंगे।....

लेकिन आलोक पुराणिक व्यंग ही छांटते रहेंगे या कोई घोटाला कर कायदे के राजनेता या दाऊद ओऊद छाप बन पायेंगे? :)

काकेश said...

आपकी दिव्य दृष्टि अचूक और मारक है.आप इसी तरह से भविष्य को देखते रहें ताकि हमारा कल्याण हो.

Udan Tashtari said...

भाई, कोई एक ठेका में हमारा नाम भी चिपकवा देना भले ही चप्पू स्पलाईवाला के नाम से मिल जाये. :)

अनूप शुक्ल said...

बढि़या है। मजेदार!

सुनीता शानू said...

मुम्बई की व्यवस्था पर आपने जो लेख लिखा है सचमुच सराहनिय है हमारी सरकार ये घोटाले करने बन्द करेगी नही और एक दिन एसा ही आयेगा जब हम नालीयो में रहेंगे...ये भी ठीक कहा कि फ़िर नालीयों के घोटाले शुरू हो जायेंगे...


बहुत मज़ेदार लिखा है...:)



सुनीता(शानू)

अभय तिवारी said...

आप प‌श्चिम में वेनिस की त‌रफ न‌हीं पूर्व में ब‌ंग‌ल‌ादेश‌ की ओर देखिये.. ब‌ंग‌ल‌ादेश में पिछ‌ली स‌दियों से श‌ह‌र में न‌ावे च‌ल‌ती आ रही हैं..और कोलक‌ात‌ा को म‌त भूल ज‌ाइये.. दिल्ली क‌ा भी न‌म्ब‌र है.. गुज‌रात व‌ाले मुँह न‌ा ल‌ट‌क‌ायें.. इस ब‌ार से उन क‌ा भी बिस्मिल्ल‌ाह हो ग‌य‌ा है.. पूरा देश एक रस हो रह‌ा है.. पुराणिक जी आप मुम्ब‌ई ग‌ान छोड़ क‌र राष्ट्रग‌ान् कीजिये..

Arun Arora said...

हमे तो ठेका दिलवा दीजीयेगा,ग्ड्ढे खोदने का ,चाहे दिल्ली मे चाहे गुजरात मे या मुंबई मे,जब नाव फ़सेगी तो निकाल्ने के पैसे हम ले ही लेगे :)

Sanjeet Tripathi said...

जनहित में जारी सूचना-----
ऐसे लेखक को राजनीति में आने का कत्तई मौका ना दिया जाए।
अगर यह लेखक राजनीति में आ गया तो 100 भ्रष्टाचारी नेताओं पर अकेले भारी पड़ेगा और फ़िरसभी भ्रष्टाचारी नेता बेरोजगारी भत्ता मांगने लगेंगे।

सुजाता said...

शेक्सपियर का नाटक-मर्चेंट आफ वेनिस-हमें इंडिया में तमाम कोर्सों में पढ़ना पड़ता है।
कुछेक सालों में वेनिस वाले स्मगलर आफ मुंबई पढ़ेंगे।
****
सही फरमाया !बहुत बढिया लेख ।

ePandit said...

"शेक्सपियर का नाटक-मर्चेंट आफ वेनिस-हमें इंडिया में तमाम कोर्सों में पढ़ना पड़ता है।
कुछेक सालों में वेनिस वाले स्मगलर आफ मुंबई पढ़ेंगे।"


हा हा, सही है।

सर जी आप नेताओं के लिए इस नए क्षेत्र में घोटालों के स्कोप बारे कोई क्रैश कोर्स शुरु कीजिए, बहती गंगा में आप भी हाथ धो लीजिए।