Sunday, July 15, 2007

संडे सूक्तियां-कास्ट इफेक्टिव और स्मार्ट झूठ ऐसे बोलें

संडे सूक्तियां- कास्ट इफेक्टिव और स्मार्ट झूठ ऐसे बोलें

आलोक पुराणिक

व्यक्तित्व विकास व्याख्यानमाला सीरिज के तहत इस लेखक द्वारा दिया गया यह व्याख्यान बहुतै हिट रहा है। इस व्याख्यान की मांग विभिन्न वर्गों द्वारा की जा रही है। पाठकों के हितार्थ इसके चुनिंदा संपादित अंश पेश हैं-

कतिपय प्राचीन कहावतों में सत्य और झूठ के बारे में अनर्गल बातें कही गयी हैं। जिनसे कई बार भोली-भाली जनता परेशान हो जाती है। कहावत है कि झूठ के पांव नहीं होते। इस कहावत का भावार्थ बिलकुल गलतरीके से किया जाता है। इस कहावत का आशय यह है कि झूठ को पांवों को यानी पैदल चलने की जरुरत नहीं पड़ती। झूठ के निपुण प्रेक्टिशनर हमेशा कार, हैलीकाप्टर पर चलते हैं। सत्य वालों की पैदल चलना पड़ता है।

प्राचीन ग्रंथों के गहन अध्ययनों से ही सच और झूठ के संबंध में असली बातों का पता लग सकता है। राम और कृष्ण में से पूर्णावतार किसे माना जा सकता है। श्रीकृष्ण को। क्यों उनके बचपन का रिकार्ड देखकर यह ज्ञात किया जा सकता है-वे सरे आम खुले आम धड़ाके से झूठ बोलते थे। मक्खन उड़ाने के बाद मुंह पर लगे उसके अंशों के संबंध में बयान देते थे-ग्वाल बाल सब बैर पड़े हैं, बरबस मुंह लपटायो। इस अदा पर उन्हे और मक्खन दिया जाता था। यानी झूठ बोलने पर उन्हे आधिकारिक रिटर्न दिया जाता था। माखनचोर कोई अपमानजनक नाम नहीं है। बड़े-बड़े भक्तों, ज्ञानियों में यह नाम सम्मान लिया जाता है। इससे साफ होता है कि अगर बंदा कायदे से झूठ बोले तो चोरी जैसी विधा को पर्याप्त सम्मान मिल जाता है

राम को पूर्णावतार का दर्जा इसलिए मिल पाया कि झूठ बोलने में उन्होने वैसा हुनर नहीं दिखाया जैसा श्रीकृष्ण के पास था। झूठ और फरेब पर शोध करने वालों ने बताया है कि अगर राम की जगह श्रीकृष्ण की पत्नी को रावण उड़ाकर ले जाता, तो श्रीकृष्ण पुल बांधकर फौज को उस पार सत्य की लड़ाई लड़ने कदापि नहीं जाते। वो भुवनमोहिनी का रुप धारण करते, नाचते हुए रावण को रिझाकर अपने पीछे ले आते। जैसे ही मौका पाते, रावण का सर कलम कर देते। सेना निर्माण, पुलादि की लागत का बवाल भी निपट जाता। इससे यह भी साफ होता है कि सत्य के रास्ते पर चलने के लिए बहुत टीम-टाम चाहिए होते हैं। पर झूठ तो कास्ट इफेक्टिव तरीके से अपने परिणाम दे देता है।

इसलिए हमें पूर्णावतार के रास्ते पर चलना चाहिए।

हां, झूठ बोलने की कुछ माडर्न तकनीकों से खुद को समय-समय पर परिचित कराते रहना चाहिए। जैसे लेखकों को साहित्य में झूठ की नयी प्रवृत्तियों से खुद को अप टू डेट रखना चाहिए। जैसे लेखकों को साहत्य में झूठ की प्रवृत्तियों से खुद को अप टू डेट रखना चाहिए। साहित्यकारों को इस तरह के झूठ कदापि नहीं बोलने चाहिए कि उनकी फलां पुस्तक का अनुवाद अंग्रेजी में हुआ है। यह तो पकड़ में आ जाता है। यूं बोलना चाहिए –फिरांस्का के महत्वपूर्ण रचनाकार झोमारा कारावाऊ ने उनकी कृतियों का अनुवाद अपनी भाषा में किया है-ताऊकूंचा वैंटीला नाम से।

साहित्यकार कभी नहीं पूछेंगे कि यह किस देश की भाषा है।

वो पूछेंगे तो इत्ता कि गुरु सैटिंग कैसे की।

सैटिंग न बताना आपका साहित्यसिद्धाधिकार है।

से नये-नये देश और नये-नये रचनाकार आप अपनी सुविधा से ईजाद कर सकते हैं।

जैसा कि एक विदेशी विद्वान ने कहा कि झूठ हमेशा आंकड़ों के साथ बोलना चाहिए। अगर यह बताया जाये कि हाथी उड़ रहे हैं, तो लोग नहीं मानेंगे। इसे ऐसे कहा जाना चाहिए कि पृथ्वी के उस हिस्से पर, जहां रेखांश 78 डिग्री है और अक्षांश 89 डिग्री है, वहां 24 सितंबर को सुबह पांच बजकर छह मिनट पर सात हाथी उड़ते देखे गये(कंडीशंस अप्लाई)। हर झूठ के साथ कंडीशंस अप्लाई वाला क्लाज जरुर फिट करना चाहिए। हर झूठ(विज्ञापनों समेत) के साथ इसे अटैच किया जाता है।

कतिपय विद्वानों का मानना है कि दशमलव का आविष्कार ही इसलिए किया गया था कि झूठ बोलने में सुभीता रहे। आंकड़ों में दशमलव लगाकर पेश किया जाये, तो विश्वसनीयता में भारी इजाफा हो जाता है। इस बात का उदाहरण बाटा शू कंपनी द्वारा बतायी जाने वाली कीमतें हैं। क्या वे कीमतें 95 रुपये नहीं बता सकते, नहीं वे बताते हैं 94 रुपये 95 पैसे। फुटपाथ पर जूते बेचने वाला जब बताता है -90 रुपये, तो पब्लिक झिकझिक करती है। पर बाटा के यहां झिकझिक नहीं करती, दशमलव का झूठ बोलने में इस्तेमाल करने से झूठ को कई सारे चांद लग जाते हैं।

उम्र के मामले में अपने बयानों को विश्वसनीय बनाने के लिए सुंदरियों को बताना चाहिए कि मेरी उम्र 20 साल 2 माह और सोलह दिन है। झूठ में महीनों और दिनों के स्पेसिफिकेशसे विश्वनीयता बढ़ जाती है।

अब चलूं मंगल ग्रह पर झूठ पर व्याख्यान देने जाना है। मंगल प्लस टीवी चैनल पर 87.098 हर्ट्ज फ्रिक्वेंसी में इसका सीधा प्रसारण होगा।

इस चैनल को आपका टीवी कैच करता है या नहीं।

आलोक पुराणिक मोबाइल-09810018799

10 comments:

शैलेश भारतवासी said...

आपने मेरी मुश्किल आसान कर दी। अब इन टिप्सों की मदद से और सुंदर झूठ बोल सकूँगा।

शैलेश भारतवासी said...
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Arun Arora said...

दादा आपकी ये पोस्ट तो लीक हो गई थी,थी कल और चार पाच लोगो ने तो इसका प्रयोग भी कर डाला,...:)

Gyan Dutt Pandey said...

अरे ये क्या लीक करेंगे? ये तो सरासर समुरांको के प्रसिद्ध सटायरिस्ट ओनूरा बोन्दोरांकों के लेख से टीपा हुआ है. मैं लिंक भी देता हूं:
www.onooraa.sat.org/samuraanko
लिंक काम न करे तो अपना नेट कनेक्शन चेक करे! :)

ePandit said...

यह लेख पहले पढ़ा हुआ लग रहा है। हाँ याद आया ग्यांझाप्याऊ भाषा में 'ताऊकूंचा वैंटीला' नाम से फिरांस्का के महत्वपूर्ण रचनाकार झोमारा कारावाऊ ने लिखा था। आपको उनका लेख टीपते शर्म न आई। शेम, शेम!

परमजीत सिहँ बाली said...

अलोक जी, नयी जानकारी व शिक्षा देने के लिए धन्यवाद।

sanjay patel said...
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sanjay patel said...

नये दौर में मनुष्यता के'सरवाइवल'लिये आपका ये आख्यान मील का पत्थर साबित होगा.सच अब वैसे ही अप्रासंगिक हो चला है जैसे परिवारों से बडे़-बूढे़ और उनकी भली सीख..लगता है नये रीटेल कल्चर में अब नामचीन मैनेजंमेट गुरू झूठ पर सच्चे टाइटल्स रचेंगे जो शर्तिया बेस्ट सैलर्स साबित होंगे..आपका ये लेख सच्चा मंगलाचरण है झूठ की प्रतिष्ठा का आलोक भाई.

Sanjeet Tripathi said...

बहुत सही!!

सुजाता said...

इस व्याख्यान माला के अगले भाग की प्रतीक्षा मे----मन्गल ग्रह से --
झमारा झेरीतोनावा !!