Monday, August 20, 2007

ईयर-फोन का सामाजिक और राजनीतिक योगदान

ईयर फोन का सामाजिक और राजनीतिक योगदान

आलोक पुराणिक

आविष्कार इसे ही कहते हैं साहब।

ईयर फोन का आविष्कार जिसने किया हो, किया हो। पर ईयर फोन के सामाजिक राजनीतिक योगदान पर शोध इस खाकसार ने की है।

एक कार्डलैस ईयर फोन में लगाये हुए मैं एमपी थ्री प्लेयर सुन रहा था।

ईयर फोन और एमपी थ्री प्लेयर इधर नेताओं के ईमान के माफिक हो चले हैं, हर नया एडीशन पुराने के मुकाबले सिकुड़ा हुआ मिलता है।

बल्कि अब तो लेवल गायब होने के लेवल पर आ लिया है, सो साहब, कार्डलैस ईयर फोन और एमपी थ्री प्लेयर गायब से थे, दिख ही नहीं रहे थे।

पत्नी सामने आयी -कुछ कहा।

मुझे ईयर फोन में वही गीत सुनायी दिया -तू जहां जहां चलेगा, मेरा साया- साथ होगा।

पत्नी ने बाद में बताया कि उसने असल में कहा था-जाने किस बुरी घड़ी में तुमसे शादी हुई थी। हे भगवान, अगले जन्म में इस चिरकुट को अगर पृथ्वी पर भेजो, तो मुझे मंगल ग्रह का प्राणी बनाना, ताकि शादी की कोई आशंका ना बने।

पत्नी ने बाद में तारीफ करते हुए कहा-तुमने मेरी बात का बुरा नहीं माना।

मैंने बताया कि मुझे तुम्हारा यह संदेश सुनायी दे रहा था-तू जहां -जहां चलेगा, मेरा साया साथ-साथ होगा।

कार्ड लैस ईयर फोन बहुत करतब कर सकता है जी।

उधर से भले ही यह मैसेज ब्राडकास्ट हो रहा है कि हम छोड़ चले हैं महफिल को, याद आये कभी तो मत रोना।

पर ईयर फोन यह संदेश सुना सकता है-आ जा मेरी गाड़ी में बैठ जाता।

सासों और बहुओं के संबंध एक झटके से सुधरने के ट्रेक पर आ जायेंगे।

एक कार्डलैस ईयर फोन सास के कान में, एक बहू के कान में।

सास इस सुकून के साथ धुआंधार सुना सकती है कि देखो बहू तो अब पलट कर जवाब ही नहीं देती।

बहू फुल कांफीडेंस के साथ कह सकती है-सुनाये जाओ, किसने सुननी है।

मुझे एक और सीन दिखायी पड़ रहा है।

संसद में सब परस्पर एक दूसरे के कान में हल्ला ठोंकने के ईयर फोन खौंस कर अपने ही कान में हल्ला मचा रहे हैं।

वामपंथी सांसदों के ईयर फोन से ये गीत आ रहा है-तू मेरा दुश्मन, दुश्मन मैं तेरा,...

कांग्रेसी ईयर फोनों से यह गीत झर रहा है-चैन से हमको कभी इक पल जीने ना दिया......

भाजपाई ईयर फोनों से यह संदेश निकल सकता है-हम को भी गम ने मारा, तुमको भी गम ने मारा, हम सबको गम ने मारा।

बसपा के ईयरफोन-चल चल मेरे हाथी- पर झूम रहे हैं।

संसद झूम बराबर झूम हो रही है।

क्या कहा जी, फिर संसद में काम क्या होगा।

जी जैसे अभी बहुत होता है।

अजी जो हल्ला अभी है, वह बहुत असंगठित टाइप का है। फिर कुछ क्रियेटिव टाइप का हल्ला होगा।

कभी कुछ राष्ट्रीय एकता टाइप कुछ दिखाना हो, तो सारे ईयर फोनों में एक ही गीत बजाया जा सकता है-मिले ईयर फोन मेरा-तुम्हारा तो, सुर बने हमारा।

कुछ इंटरनेशनल सीन देखिये।
जरा सोचिये
, बुश कुछ कहें, तो सारे ईयरफोन ठोंक ले।

फोकटी में रियेक्शन देने में भी टाइम क्यों जाया करना।

कहे, जाओ बुश जो कहना है। तुम्हारे कहने से होता क्या है।

सोचिये, बुश अपना बयान धकेल रहे हैं।

इधर से ईयर फोन से शकीरा अपना सुपर हिट गाना सुना रही हैं--हिप्स डोंट लाई।

शकीरा का संदेश नये संदर्भों में समझा जा सकता है-हिप्स डोंट लाई। बट बुश लाईस।

सच के मामले में ज्यादा पाक- साफ किसे माना जाये।

क्या ही धांसू च फांसू सीन उभरेगा। मुशर्रफ पाकिस्तान में डेमोक्रेसी और बेनजीर भुट्टो के संदर्भ में पब्लिक को कुछ भाषण ठेल रहे हैं।

सबको ईयर फोन पर सिर्फ यही सुनायी दे रहा है-तुम अगर मुझसे ना निभाओ, तो कोई बात नहीं। तुम किसी गैर से निबाहोगी, तो मुश्किल होगी।

साहब सच्ची का एक किस्सा और सुनिये। इधर स्वतंत्रता दिवस के सिलसिले में आयोजित एक समारोह में मैं तमाम नेताओं के भाषण सुनने एक प्रोग्राम में चला गया।

जाने क्या-क्या अगड़म-बगड़म नेता लोग बोलते रहे, पर मुझे ईयर फोन में सिर्फ यही सुनायी दिया-हम लूटने आये हैं, हम लूटकर जायेंगे।

आलोक पुराणिक

मोबाइल-9810018799

8 comments:

ePandit said...

आपकी बातें सुनकर हमें भी एक आइडिया आया है। कभी कवि सम्मेलन में मजबूरन जाना पड़े तो भी ईयरफोन बहुत काम आ सकता है।

काश ईयरफोन की तरह आईफोन भी होता जिससे कि हम ब्लॉगजगत में कवियों से बच सकते।

Gyan Dutt Pandey said...

ये श्रीश वाला आई फोन मेरे पास है, उसे ही पहन कर यह पोस्ट पढ़ी है. यह पोस्ट तो हमारी प्रशंसा में लिखी दी है न! पर भैया थोड़ी ज्यादा ही बड़ाई कर दी है- हम उतने काबिल नहीं हैं. श्रीश ज्यादा शरीफ इंसान हैं, उनपर लिखा होता तो ज्यादा अच्छा होता!

अनूप शुक्ल said...

ईयर फोन और एमपी थ्री प्लेयर इधर नेताओं के ईमान के माफिक हो चले हैं, हर नया एडीशन पुराने के मुकाबले सिकुड़ा हुआ मिलता है।
शानदार! अद्भुत!

Yunus Khan said...

बहुत बरस पहले शहरयार ने लिखा था--
सीने में जलन आंखों में तूफान सा क्‍यों है
इस शहर में हर शख्‍स परेशान सा क्‍यों है ।
अब लिखना होगा

कान में ईयरफोन आंखों में घमासान सा क्‍यों है
इस शहर में हर शख्‍स हलाकान सा क्‍यों है ।
अपने आप से बतियाता है हाथ भी हिलाता है
पगलाया सा लगता है, अकेले मुस्‍कुराता है
चकरघिन्‍नी से फिरते इस शख्‍स के लिए,
कान की ये ढक्‍कन वरदान सा क्‍यों है

Yunus Khan said...

कृपया अंतिम पंक्ति सुधार लें, कान का ये ढक्‍कन वरदान सा क्‍यों है

Sanjeet Tripathi said...

मजा आ गया। शानदार!!

Udan Tashtari said...

हा हा, मजा आ गया-शायर युनुस के गीत की रिकार्डिंग का इन्तजाम किया जाये फिर इसी ढक्कन को लगाकर सुनेंगे. :)

ghughutibasuti said...

हे हे बहुत बढ़िया लिखा है आपने । यह तरीका अपने हॉस्टेल के जमाने में एकान्त की तलाश में मेरी बिटिया भी अपनाती थी । हम सोचते थे कि उसे संगीत बहुत पसन्द था । बाद में पता चला कि संगीत नहीं एकांत पसन्द था ।
घुघूती बासूती