Tuesday, August 7, 2007

AUSTRALIAN POLICE AND INDIAN KATTAS

कट्टे भी ना धर सको
आलोक पुराणिक
दिल्ली पुलिस के एक अफसर या (या आप किसी भी राज्य की पुलिस के अफसर को मान सकते हैं ) और आस्ट्रेलियन पुलिस अफसर की बातचीत का एक टेप अपने हाथ लग गया है, सो आपकी खिदमत में पेश है।
भारतीय पुलिस का अफसर एनकांउटर सिंह उर्फ एसिं-अबे आस्ट्रेलियन पुलिस तुम क्या किया करो। तुमसे एक बंदा ना कायदे से पकड़ा जाये। एक हनीफ पे इत्ती फजीहत करायी, पुलिस का नाम डुबो दिया।
आस्ट्रेलियन पुलिस का अफसर उर्फ आपु-जी प्राबलम था कि कोई सबूत नहीं था।

एसिं-ए लो, तुम चरस बरामदगी ना दिक्खा सकते। चार पुड़िया चरस की धरवा देते। फिर देखते कैसे निकड़ पाता हनीफ। हम तों यहां बोरी दिखा दें चरस की, जब जहां मन करे।
आपु-बट चरस तो हमारे मुल्क में बैन है।

एसिं-बिलकुल ही घोंचू है तू तो, अबे बैन तो हमारे यहां भी है। पर सारे बैन आइटम पुलिस पे ना मिलेंगे, तो कहां मिलेंगे। कुछ ना हो सकता था, तो उसे लड़की छेड़ने के आरोप में अंदर कर देते।
आपु-बट हाऊ, किसी गर्ल ने कंपलेंट नहीं की, तो तो छेड़ाखानी की रिपोर्ट कैसे लिखते।

एसिं-तुम तो विकट ही बेवकूफ हो। कंपलेट के बाद रिपोर्ट लिखते हो क्या, अजी तो हम रिपोर्ट तो पहले ही लिख लेते हैं, कंपलेंट तो बाद में किसी से करवा देते हैं। पुलिस के गवाह नहीं होते क्या आस्ट्रेलिया में। उन्ही से करवा देते।
आपु-ये पुलिस के गवाह क्या होते हैं जी।

एसिं-अरे, पुलिस के गवाह वो होते हैं, जो बताते हैं कि फलां दिन इत्ते बजे उत्ते मुजरिम झाड़ियों में वारदात की योजना बना रहे कि पुलिस थानाध्यक्ष ने उन्हे घेर लिया।


आपु-मतलब आपके यहां इंडिया में पुलिस मुजरिमों को वारदात की योजना से पहले ही पकड़ लेती है।

एसिं-विकट बेवकूफ हैं आप। ऐसा हमारी रिपोर्टों में लिखा जाता है। मुजरिम का मसला तो यह है कि जो हमारे हाथ आ जाये, वह खुद ब खुद मुजरिम होना कबूल कर लेता है। इसमें कोई प्राबलम नहीं है। कई बार तो ऐसा हो जाता है कि एक ही मर्डर की जिम्मेदारी लेने को पाँच-सात बंदे तैयार हो जाते हैं।
आपु-मतलब एक ही मर्डर की जिम्मेदारी पाँच-सात लोग ले लेते हैं। क्यों।

एसिं- हमारे पुलिस इत्ती पिटाई करती है, कि बंदा सोचता है कि अभी इनके हाथ से मरने से बेहतर है कि तीस साल बाद फांसी से मरो। हमारे यहां छोटा जेबकट पुलिस के हाथों पिटकर टें बोल जाता है, बड़े हत्यारे फांसी के प्रोसेस में बीस-तीस साल जी जाते हैं।
आपु-हम तो ये सब नहीं जानते।

एसिं-अरे कट्टा भी नहीं रखवा सकते थे क्या। मुजरिम के पास से कट्टा बरामद करवाकर हम दिखा देते हैं कि मुजरिम के पास खतरनाक हथियार थे।
आपु-ये कट्टा क्या होता है।

एसिं-अबे पुलिस वाला होकर कट्टा नहीं जानता, तू उल्लू का पठ्ठा है।
आपु शांत हो गया है।
लेटेस्ट खबर यह है कि आस्ट्रेलियन पुलिस के बंदे इंडिया आ रहे हैं, ट्रेनिंग के लिए।
आलोक पुराणिक मोबाइल-09810018799

4 comments:

Gyan Dutt Pandey said...

वैसे यह आपू ज्यादा स्मार्ट है. यह चरस-फरस, कट्टे-फट्टे के लिये उस बन्दे को आस्ट्रेलिया से यहां ठेलवा दिया है. अब अपना पुलीस वाला झेले. केस हाई प्रोफाइल बन गया है. सारे सेकुलर लेंस ले कर पीछे हैं. कट्टा प्लाण्ट करना सरल नहीं है. आप अंग्रेज की औलाद को एंवे समझ रहे हैं, उसने डीप थॉट वाली स्ट्रेटेजी से सज्जन को यहां भेज/ठेल दिया है!
वैसे ही जैसे बिगडैल लड़के को ननिहाल ठेल दिया जाता है.

अनूप शुक्ल said...

उनको इंस्पेक्टर मातादीन के पास ट्रेनिंग के लिये भेजा जाये।

Udan Tashtari said...

अनूप जी सही कहे हैं कि इन्सपेक्टर मातादीन चांद पर पढिये और आदेशानुसार उन्हें जिम्मेदारी सौंप दिजिये. बाकि सब्बे सध जायेगा इस कहानी का. बाकिया तो सबरा जबर जंग है.

Arun Arora said...

कहा आप लोग गुरुदेव को उलटी शिक्षा देने मे लगे है,हम उनको कंवेन्स कर रहे थे कि हम दो पुलिस वालो के साथ आस्ट्रेलिया चले जाते है.पुलिसिया गुणो के साथ लगे हाथो दो चार लेक्कचर पंगेबाजी पर भी ठेल आयेगे..बस आप जरा जाने के टिकटो का जुगाड करादो बाकी वापसी और रहने खाने खर्ची के लिये समीर भाई है ही वहा...:)