आलोक पुराणिक
आज सारे मुद्दे एक तरफ फेंकिये, सिर्फ और सिर्फ देश की तरफ देखिये।
भाई साहब, दूर से पास अंधेरे और उजाले का फ्यूजन ही फ्यूजन है, फ्यूजन क्या विकट कनफ्यूजन है।
वैसे, देश क्या है, सोचो तो देश एक बड़ा सा, विकट सा, विराट सा मोबाइल दिखायी पड़ता है, बातें ही बातें। इधर से बातें, उधर से बातें। तरह –तरह की रिंगटोन्स, बातों के झर-झर झरने बह रहे हैं, संसद से, विधानसभाओं से। बात वालों ने बहुत कमाया है, साठ सालों में। हम सिर्फ टेलीकाम कंपनियों की बात नहीं कर रहे हैं। मारे बातों के बुरे हाल हैं, न जाने कितने मिस्ड काल हैं।
इधर से देखो, तो देश किसी ब्यूटी क्रीम का माडल लगता है, झक्कास चिकनत्व से भरपूर, एकदम निश्चिंत। सिर्फ त्वचा की बात करता हुआ। संदेश देता हुआ कि अगर सिर्फ अपने चिकनत्व की चिंता में लग ले बंदा ,तो फुलमफुल निश्चिंतता पैदा हो जाती है। हम सिर्फ सुंदरियों, माडलों की बात नहीं कर रहे हैं, हम नेताओं की बात भी कर रहे हैं।
एक तरफ से देखो, तो देश एक बहुत बड़ा टीवी चैनल लगता है, जहां सिर्फ सेक्स और सेनसेक्स है। अब देश इससे बाहर भी होता है, तो ये देश का प्राबलम है। टीवी चैनल का नहीं।
देश एक तरफ से देखो, तो न्यूयार्क सा लगता है।
देश को दूसरी तरफ से देखो, तो युगांडा लगता है।
इधर से देखें तो देश पक्के तौर पर फिक्स लगता है। युगांडा और न्यूयार्क का रिमिक्स-न्यूगांडा लगता है।
एक तरफ से देखो, तो देश लैपटाप लगता है, विंडोज विस्टा, लेटेस्ट माडल वाला।
दूसरी तरफ से देखो, तो देश विंडोज 98 तो छोड़ो अभी विंडोज 47 भी नहीं दिखता। विंडोज 47 क्या विंडोज 1857 भी नहीं दिखता। एक तरफ से देखो तो देश डार्कनेस वर्जन 2007 लगता है।

वैसे विंडोज क्या, देश एक तरफ से बहुत बड़ा दरवाजा लगता है। मारे जाओ टक्कर, अगर आप एनआरआई नहीं हैं, आप किसी मंत्री के भाई नहीं हैं। किसी मंत्री के घरवाले नहीं, किसी अफसर के साले नहीं हैं।
देश एक तरफ से दरवाजा क्या चोर दरवाजा लगता है, जिससे सारे बाइज्जत बरी प्रयाण कर जाते हैं।
देश एक तरफ से कमाल लगता है, जी एयरकंडीशंड शापिंग माल लगता है।
हां कभी देश निढाल भी लगता है, ठेले के सब्जी वाले का हाल भी लगता है।
फिर देश -हू केयर्स -लगता है, फिर प्रभुओं की चीयर्स लगता है।
वैसे कभी अटका खिर्र-खिर्र गीयर लगता है।
यूं देश कभी आधा-कभी पूरा लगता है, देश जैसे दिल्ली विधानसभा के कैंटीन ठेकेदार का छोला भटूरा लगता है। वैसे देश कभी कैंटीन लगता है, जहां विराट महाभोज चल रहा है, पर सिर्फ विधायकों के लिए, सांसदों का, अफसरों का, तस्करों का, हथियार डीलरों का।
पर दूसरी तरफ से देखो, तो देश वेटर लगता है कि सिर्फ वेट किये जा रहा है। नंबर नहीं आ रहा है।
वैसे तो देश एक विकट प्रपंच लगता है, एक विकट बूफे लंच लगता है, जो खींच लें, वो खा जायें। और जो न खा पायें, वो कहां जायें। ये हम क्यों बतायें, यह देखने के लिए चालू चैनल के प्रोग्राम –नये टूरिस्ट एट्रेक्शन -पर जायें।
खैर, आज सारे अड़गम-बड़गम को भुलायें, स्वतंत्रता दिवस की बधाई और शुभकामनाएं।
आलोक पुराणिक मोबाइल-09810018799
6 comments:
स्वतंत्रता दिवस की बधाई और शुभकामनाएं।
--वैसे मुझे देश एक गीत लगता है जी!! जिसका जैसा मन चाहे वैसा गाये या बजाये-चाहे तो हिमेश जैसा ही गाये या रीमिक्स बनाये. सब चलेगा. :)
स्वतंत्रता दिवस की बधाई
अमर रहे न्यूगाण्डा - या बने बेहतर भारतवर्ष!
आपके लिखे कुछ शब्दों की मात्राओं में हेर-फेर करना चाहता हूँ. इजाजत है न?
मुझे तो ये पुराणिक झकास लगता है - ज्यादा तो नहीं लग गया मक्खन
" हम सिर्फ सुंदरियों, माडलों की बात नहीं कर रहे हैं, हम नेताओं की बात भी कर रहे हैं।"
अरे क्या यार!! एक दिन तो नेताओं को साईड हटा के सिर्फ़ सुंदरियों और मॉडलों की बात कर लो ना!!
ह्म्म, तो बहुत कु्छ लगता है पर जो भी लगता है सही ही लगता है!!
स्वतंत्रता दिवस की बधाई व शुभकामनाएं
बहुत खूब! तारीफ़ व बधाई लेट से। हम पाठक हैं, जब मन करेगा तब करेंगे। :)
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