Friday, July 27, 2007

कनफ्यूजनात्मक कलाईयां

कनफ्यूजनात्मक कलाईयां
आलोक पुराणिक
आज यह खाकसार गचागच शास्त्रीय मूड में है। कई घंटों का शास्त्रीय संगीत सुनकर आया है। शास्त्रीय मूड में कई शास्त्रीय सवाल उठ रहे हैं-कई घंटों तक तरह-तरह से कई गायिकाएं बताती रहीं, कलईयां मरोड़ गयो रे, बरजोरी कर न सैंया, मोहे पनघट पर नंदलाल छेड़ गयो रे, आदि-आदि।
माडर्न मन पूछ रहा है कि कलईयां मोड़ी जाने की वारदात को अगर गाकर , तरह-तरह के अंदाज में बताया जा रहा है, तो प्रश्न उठता है कि क्या नायिका या गायिका सच्ची में इस वारदात पर गुस्सा है या आनंदित है।
फिर प्रश्न यह है कि कलईयां मरोड़ने वाला अगर सैंया ही है, तो यूं इस कदर सैंया की हरकत को पब्लिक के सामने क्यों लाया जा रहा है।
और अगर कलाई मरोड़ने वाला अगर सैंया नहीं है, तो फिर यह तो पुलिस रिपोर्ट का विषय है। इसे गाकर क्यों बताया जा रहा है।
विकट कनफ्यूजनात्मक कलाईयां हैं।
जरा सोचिये, क्या सीन उभरता है, किसी सुंदरी की कलाई कोई गैर-सैंया मरोड़ गया है, और उसकी प्रतिक्रिया स्वरुप सुंदरी पुलिस थाने में जाकर गाकर बता रही है-कलईयां मरोड़ गयो रे। सुंदरी तान खींच रही है, फिर तान खींच रही है।

थानेदार कह रहा है, देवी जल्दी समेटो, एक घंटे से तुम मुद्दे पर नहीं आ रही हो। तुम बताओ कौन मरोड़ गया, उसकी वल्दियत बताओ, उसकी शिनाख्त बताओ। इलाका- ए -वारदात बताओ।
सुंदरी बस गाये जा रही है- कलईयां मरोड़ गयो रे।
हो न हो, प्राचीन काल में थानेदार बहूत रसिक टाइप के होते होंगे। फुल तसल्ली से कलाई मोड़ने की वारदात सुनते होंगे।
पर विचारणीय यह है कि कलाई मोड़ने के मसले गाने के नहीं, एक्शन के मसले हैं।
मोहे पनघट पर नंदलाल छेड़ गयो रे-सुनकर नंदलाल नामक मेरा छात्र घबरा गया, बोला गुरुजी आप गवाह हो-सुबह ट्यूशन पढ़ने जाता हूं, दोपहर में कालेज जाता हूं, शाम को कंप्यूटर कोर्स करता हूं। रात में जर्मन पढ़ने जाता हूं,मल्टीनेशनल में नौकरी करनी है। गुरुजी पनघट पर जाने का टाइम नहीं है। आप गवाह हो।
जी मैं गवाह हूं, इधर माडर्न नंदलालों को तमाम बवाल इस कदर लपेटे हैं कि पनघट तो छोड़ो, सामने ही कोई आ जाये, तो भी ना छेड़ें। नंदलाल बहूत बिजी हैं, सुंदरी क्यों बदनाम कर रही है उन्हे।
और - बरजोरी न कर सैंया-को जिस अंदाज में गायिका गा रही थीं, उससे नया कनफ्यूजन पैदा हो गया। अगर बरजोरी स्वीकार्य है, तो मामला खत्म। अगर नहीं, तो उठ और कांटेक्ट कर महिला आयोग से कि सैंया बरजोरी करता है। जिस देश की राष्ट्रपति महिला हो, सरकार चलाने वाली एक महिला हो, वहां सैंया बरजोरी करते रहें, सैंयाओं की तो ऐसी-तैसी।

एक शास्त्रीय संगीत के जानकार कह रहे हैं-तुम हमेशा उलटा ही सोचते हो। पर कसम शास्त्रीय चिंतन की, बताइए क्या एक भी बात उल्टी की है मैंने।
आलोक पुराणिक
मोबाइल-09810018799

12 comments:

Gyan Dutt Pandey said...

थानेदार को शरीफत्व का प्रमाणपत्र क्यों बांटा जा रहा है? आपको उनसे कुछ काम निकालना है, क्या? अन्यथा कोई सुन्दरी कलाई मरोड़ने की शिकायत थाने में करने जाये तो वहां धैर्य से रपट लिखी जायेगी या कलाई मरोड़ने के आगे के कृत्य किये जायेंगे?

अनुराग श्रीवास्तव said...

अरे नहीं भई, देखिये हुआ यूँ कि सैंया-संवरिया ने कलइयाँ कुछ ज्यादा ही कस कर मरोड़ दी थी (यह भाग च्यवनप्राश या केसरी जीवन ने प्रायोजित किया रहा होगा) इसके चलते नायिका/गायिका की कलाइयों में मोच आ गयी तो पीड़ा की मारी बेचारी 'ऊह..आह..आउच' करती हुयी दरोगा जी के पास रपट लिखा रही थी (ये भाग आयोडेक्स प्रायोजित रहा होगा) और बेचारी की "आह" की पीड़ा को नायिका/गायिका संगीत की आलाप से प्रदर्शित कर रही है.

कराह कराह कर बतायेगी तो टाइम तो लगेगा ही ना.

अनूप शुक्ल said...

अरे आप बेसिक बात ही नहीं बूझ पाते हैं आलोक जी। यह हमेशा से होता आया है कि जब तक अपने साथ हुये अपराध को पचास बार न गाओ तब तक कोई मानता ही नहीं कि आप अपराध के शिकार हुये हैं। और जब तक अपराध पर कुछ कार्रवाई होती है तब तक दुख हवा हो जाता है। कुछ जगहों में आज भी चार औरतों की गवाही एक मर्द के बराबर मानी जाती है। इसलिये चार बार गाना तो आफ़िशियली अलाउड होना चाहिये।

सुनीता शानू said...

मान गये उस्ताद इस मामले ने तो मुझे भी कनफ्यूजन में डाल दिया...घर की बात घर में ही रखनी चाहिये जनता को बताने कि जरूरत क्या है ये सैंया तो रोज ही कलाई मरोड़ेंगे परमिट है उनके पास भई थानेदार भी क्या कर लेगा वो कहते है ना कि मियाँ बीबी के झगडे़ में नही पड़ना चाहिये...हाँ मेरे ख्याल से गायिका की तो कैसेट फ़ँस जाती होगी,और नायिका एडवरटाईज़मेंट की कम्पनी में काम करती होगी...आपको सोचना चाहिये था आपने भी पब्लिसीटी कर ही दी..खैर...

सुनीता(शानू)

Arun Arora said...

ये कलैया मोडने का कार्य (ज्यादती )बहुत पुराना आपराधिक कृत्य् है जल्द् ही इस पर एक सेमीनार कर इसे सरकार और न्याय पालिका के ध्यान मे लाने ले लिये ज्ञान जी के तत्वाधान मे एक कार्य शाला इलाहाबाद मे आयोजित की जा रही है.सभी लोगो से अनुरोध है कि ज्ञान जी को अपने इलाहाबाद आगमन की सूचना मेल से दे दे ताकी वो आप सबका रिजर्वेशन (आने जाने का) करा कर सबको समय से टिकट उपलब्ध करा सके..भारी सख्या मे पहुअच्ने की कोशिश करे..:)

Sanjeet Tripathi said...

आपने उल्टी बात कब की है जो आज करेंगे, ये तो लोग है जिनकी आदत सी हो गई है ना हर सीधी बात को उल्टा देखने की!!

संजय बेंगाणी said...

ना जी, उल्लू की तरह उल्टा लटक कर पढ़े तो आपका लिखा सिधा सपाट लगे. :)

PICEANFIRE said...

KIS JAMANE KI BAAT KAR RAHE HAIN ALOKJI, AAJ KAL KE MODERNATMAK YUG MEIN WO PURANI KALAI PAKAD ROMANCE KAHA HOTA HAI, MATLAB KI YE TO ROMANCE MEIN HI NAHIN AATA HAI, MAMLA AAGE BADH GAYA HAI, BIPS KE LIPS AUR MIKKA KA CHUMMA BHUL GAYE KYA AAP. WAISE AAJ KAL SARA JAMANA LIVE KA HAI, KAL KISI CHANNEL PAR KOI KALAI PAKADNE JAISE NIMN STAR KI EVETEASING KI SHIKAYAT KERTI NAZAR AA JAYE TO HAIRAAN MAT HOYIYEGA.

Udan Tashtari said...

यह आपका शास्त्रीय गायन काफी पसंद आया. अच्छा तान खिंची गुरुजी नें.

यह तो समझो कि थानेदार आपसे ज्यादा भला आदमी निकला. पूरा सुना भी. रिपोर्ट भी लिखी और किसी को बताया भी नहीं. लोग खामखां बदनाम करते हैं.

@संजय भाई

यह उल्लू कब से उल्टा लटक कर पढ़ने लग गये?? चमगादड़ का तो सुने थे. :)

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

आप तो कह रहे हैं गोया थानेदार न हो व्यंग्यकार हो!

Tarun said...

ये भी हो सकता है नकली बोर्नविटा का कमाल हो जो सैंया सिर्फ नाजुक कलईया ही मोड़ पा रहा हो,

Anita kumar said...

सही कहा कहा आपने आलोक जी....मामला वाकई काफी कन्फुयिंग है...गायिका भी कन्फुयड है कि ये सब नन्दलाल को क्या हो गया...बार बार राग अलाप कर उन्हें याद दिला रही है कि कुछ भूल रहे हो मल्टीनेशनल के चक्कर में