बांके सिपहिये- लोकल बनाम अमेरिकन
आलोक पुराणिक
कल ही एक थोड़ी पुरानी फिल्म देखी-ओंकारा, इस फिल्म में बिपाशा बसु एक गीत में नाच रही थीं और तमाम बांके सिपहिया उनके साथ धुत्त होकर डांस कर रहे थे। सीन रात का ही था। अभी कुछ दिन पहले जो फिल्म देखी थी, उसमें भी नृत्यांगना कुछ इसी टाइप की शिकायत गाकर कर रही थी कि बांके सिपहिया ने रात भर परेशान किया।
वैसे सोचने की बात यह है कि कमाल का स्टेमिना है बांके सिपहिया का, दिन में पब्लिक को परेशान करता है और फिर रात में डांसर को परेशान करता है।
और बांके सिपहिया का ऐसा सांस्कृतिक योगदान सिर्फ समकालीन संदर्भ से ही नहीं जुड़ा हुआ है। बांके सिपहिया के सांस्कृतिक योगदान के ऐतिहासिक संदर्भ भी हैं।
पुरानी फिल्मों के कई गाने हैं, जो बताते हैं, किस तरह से बांके सिपहिया ने जाने क्या-क्या लूट लिया। ऐसा कोई गीत प्रकाश में नहीं आया, जिसमें किसी मास्टर की, किसी डाक्टर की शिकायत की गयी हो कि हाय उसने परेशान कर दिया। हालांकि परेशान ये भी करते होंगे। पर इंडिया की पब्लिक माइंड नहीं करती। मास्टर ट्यूशन की जबरदस्ती करके परेशान करता है। डाक्टर फर्जी टाइप की दवाएं ठेलकर परेशान करता है, पर पब्लिक झेल जाती है। गीत गाकर शिकायत नहीं करती। पर बांके सिपाही के प्रति पब्लिक यह उदारता नहीं दिखाती, पता नहीं क्यों, यह शोध का विषय है। अभी खबर आयी है कि कुछ बांके सिपहियाओं ने एक बंदे को इसलिए फंसा दिया कि वह सिपहियाओं की लूटपाट की शिकायत कर रहा था।
सवाल उठता है कि बांका सिपाही कुछ और भी करता है या नहीं, लूटने के अलावा।
नहीं और भी बहुत कुछ करता है, बहुतों को फंसाने का इंतजाम करता है।
बांके सिपाही दूसरे देशों में भी हैं, लूटते वो भी हैं, पर उनके लेवल अलग हैं।
मुशर्रफ भी बांके सिपहिया ही हैं, पूरे देश को ही जेब में डाल लिया।
अमेरिका के बांके सिपहिया भी लूटते हैं, पर अपने देश में नहीं। दूर-दूर तक जाते हैं लूटने, इराक, अफगानिस्तान ,पर अपने देश में नहीं लूटते। लूटने का यह फंडा सही है। दूर जाकर लूटो, तो किसी को आबजेक्शन नहीं होता।
पर इंडिया का बांका सिपहिया क्या करे, बाहर कहां जाये लूटने। जहां-जहां जा सकता है, वहां पहले ही अमेरिका के बैठे हैं।
गौर से देखें, तो साफ होता है कि इंडिया का बांका सिपाही तो जो मिल जाये उसे लूटने में लग जाता है। अमेरिका के बांके इस मामले में सलेक्टिव हैं। जहां पेट्रोल हैं , तेल हैं, वहीं उनकी निगाह जाती है।
अमेरिकी सौंदर्यबोध तेल से आगे नहीं जाता।
कुछ दिनों में अमेरिकन फिल्मों में हीरोईनें गायब हो जायेंगी, हीरोईन की जगह पेट्रोल के कुएं दिखाये जायेंगे।
इतिहास में पढ़ाया जायेगा कि बहुत पहले भी हेलन के लिए लड़ाई हुई थी और 2006-07 के आसपास भी हेलन के लिए मारधाड़ हुई थी।
हां, 2006-07 में हेलन एक आयल-फील्ड का नाम था।
अगर कहीं पेट्रोल नहीं है, तो अमेरिकन बांका बुरी निगाह नहीं डालता, बुरी क्या अच्छी भी नहीं डालता। वैसे उसके पास अच्छी नजर है भी या नहीं, यह भी शोध का विषय है।
अगर अमेरिकन बांकों को इंडिया में तमाम ड्यूटियों में लगा दिया जाये, तो कई प्राबलम साल्व हो सकती हैं। एक तो यह कि वो वसूली सिर्फ पेट्रोल पंपों से करेंगे।
इसके अलावा, तमाम डांसर सुंदरियां फिर ये शिकायत नहीं करेंगी कि अमेरिकन बांका सिपहिया परेशान करता है।
आप ही बताइए, अमेरिकन सिपहिया क्यों परेशान करेगा, अगर सुंदरी का नाम पेट्रोल नहीं है तो।
आलोक पुराणिक मोबाइल-09810018799
8 comments:
भईया अंग्रेजी में सिपाही का नाम ही COP है - कॉन्स्टेबल ऑन पैट्रोल। अब पेट्रोल में उसका इंटरैस्ट तो होगा ही। :)
जो गजब आबजर्वेशन आपने दिया है कि क्या कहें:
जहां-जहां जा सकता है, वहां पहले ही अमेरिका के बैठे हैं।
और उस पर से श्रीश का COP डिस्क्रिपश्न ---आहा!! आप तो दोनों ही छा गये. दोनों को ही बधाई --आपको ज्यादा क्यूँकि लफडे की शुरुवात आपने की. :)
बहुत खूब लिखा।
मस्त :)
ज्ञान जी मस्त और हम त्रस्त क्योंकि पहले पता चल जाता तो हम भी सिपाही बनने की अर्जी लगा देते.अब क्या करें..कुछ सुझायें....
हे भगवान इस अमेरिका को तो तेल के अलावा कुछ दिखता ही नही है,क्या होगा इसका...?जरा आप ही बुश साहब से बात कर इस अमेरिका को भारतीय पुलिस से उच्च कोटी की ट्रेनिंग दिलवाये,यहा तो D.I.G. भी मौके बे मौके सुंदरिया छेड लेते है.बहुत सारे और भी काम है जो उनहे सीखने है
पेट्रोल प्रेमी अमेरिका का यूं मजाक ना उड़ाइए साहब। आखिर दुनिया पर दादागिरी जमानी है तो लूट-खसोट तो करनी ही पड़ेगी। गनीमत है कि इस ग्लोबल गुंडे ने अभी हफ्ता वसूली शुरू नहीं की है...
सर जी यह मत बोलिए कि हफ्ता वसूली शुरू नहीं की ... IMF & world बैंक हफ्ता वसूलने के लिए ही छोड़ रखे हैं... वैसे 'कार्टून्स आपने बनाए हैं या कहीँ से लिए हैं। btw काफी अच्छा था ।
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