संडे सूक्ति-राष्ट्र के कऊए, बहुराष्ट्रीय तोंद आलोक पुराणिक
बच्चों के सवाल ऐसे टेढ़े हो रहे हैं कि सारा ज्ञान ढेंचू लगता है।
मैं कल बच्चों को बता रहा था कि उन विदुषी नेत्री को पूरा राष्ट्र सम्मान से राष्ट्रीय कोकिला के नाम से पुकारता था।
एक बच्चे ने पूछा-सर अगर राष्ट्रीय कोकिला हो सकती हैं, तो फिर राष्ट्रीय कऊए भी हुए होंगे। राष्ट्रीय गिद्ध भी हुए होंगे। राष्ट्रीय सफेद हाथी भी हुए होंगे। राष्ट्रीय सियार भी होंगे। राष्ट्रीय उल्लू भी होंगे।
बच्चे की बात में दम है।
फुल चिड़ियाघर की संभावनाएं तलाशी जानी चाहिए।
अभी इस बवाल से जूझ रहा था कि दूसरा सवाल खड़ा हो गया।
मैं समझा रहा था कि स्वतंत्रता संग्राम में आदरणीय वल्लभ भाई पटेल महात्मा गांधी के दायें हाथ जैसे थे।
दूसरे बच्चे ने पूछा-जी जब नेता दायां हाथ हो सकता है, तो कोई नेता कुछ और भी हुआ होगा। पुराने नेता हाथ हो सकते थे, तो नये नेता तोंद भी हो सकते हैं। जैसे हम कह सकते हैं, कि अलां नेता फलां नेता की तोंद हैं। मतलब कि अलां नेता फलां नेता के बिहाफ पर खाते हैं। वैसे इस हिसाब से तो यूं भी हो सकता है कि फलां नेता अलां नेता की जेब हैं। यानी वो कमा के लाते हैं, और इनकी जेब में डाल देते हैं, फिर ये प्रापर्टी, शेयर, तस्करी में यथोचित लगाते हैं।
वैसे देखा जाये, तो लगभग सारे नेता या तो देश की तोंद हैं या देश की जेब हैं।
बल्कि यह भी कहा जा सकता है कि वो वाले नेता तो राष्ट्रीय तोंद हैं, और वो वाले नेता बहुर्राष्ट्रीय तोंद हैं। मतलब राष्ट्रीय वाले तो सिर्फ लोकल डील में खाते हैं और इंटरनेशनल सौदे वगैरह के कट-कमीशन बहुराष्ट्रीय तोंद के खाते में जाते हैं।
वो वाले नेता इन वाले नेता के मुंह हैं, यानी उनके बिहाफ पर बकवास ये करते हैं।
या वो वाले इन नेता की लात हैं। यानी उनके बिहाफ पर ये गुटबाजी करते हैं, विरोधियों को लात जमाते हैं। लात, मुंह, तोंद, इनके अलावा नेता और क्या हो सकते हैं।
जी कुछ राष्ट्रीय कऊए हो सकते हैं। कोकिला होना तो बंद हो गया है। कऊओं की है- परमानेंट काऊं-काऊं, धारावाहिक चुनाव दर चुनाव। इलाका दर इलाका।
सियार भी हो सकते हैं। हुआं, हुआं, कुछ ना हुआ। पूरे पांच साल की भाषणबाजी हुआं-हुआं के सिवाय क्या है। अपने सेलरी-भत्ते बढ़वाने हों, तो सारे एक ही सुर में हुआं-हुआं। वैसे एक दूसरे पर हुआं-हुआं। कई नेताओँ को देखो, तो तरस सा आता है, हाय कैसा फील कर रहे होंगे, पहले इस पार्टी पर हुआं करते थे, अब इस पार्टी की तरफ से हुआं कर रहे हैं।
पर सियार इतने सेंसिटिव होकर सोचने लगें, तो वो सियार कहां रह जायेंगे। और अगर सियार नहीं रह जायेंगे, तो पालिटिक्स में क्या करेंगे। फिर तो आम आदमी हो जायेंगे और सब आम आदमी हो गये, तो समस्या पैदा हो जायेगी।
सियार के मुंह और तोंद में शिकार किसका जायेगा।
आलोक पुराणिक
मोबाइल -09810018799
6 comments:
बहुत सेंस्टिव हो गये भाई!
वाह! वाह! हम तो पहले ही कहने जा रहे थे कि पुराणिक जी हमारे दायें हांथ हैं और हम उनके बायें हांथ. मतलब कि अगर पुराणिक इंक ब्लॉगिंग करें तो हमारे बांये हाथ का लिखा दिखेगा; जिसे हम भी नहीं बांच पायेंगे; पुराणिकजी या पाठक तो बांचने से रहे!
और हमारे ब्लॉग पर पाठकों की लाइन लग जायेगी. स्टैटकाउण्टर कहीं टूट ही न जाय पाठकों के ट्रैफिक से! :)
हमारी ऊपर की टिप्पणी में तकनीकी मिस्टेक हो गयी है.सही मजा लेने के लिये "हम उनके बायें हांथ" के स्थान पर "हमारा बांया हाथ उनका दांया हांथ" पढ़ें.
बहुत सही, धांसू और उस पर से ज्ञान जी की टीप. वाह वाह.
हम तो गुरुजी की जेब बनने के इच्छुक है,ज्ञान जी की भी ,लौटती डाक से फ़ोरन सूचना दे ..प्रार्थना स्वीकार की गई..:)
ह्म्म, मस्त!!
जितना अच्छा पुराणिक जी उवाचते हैं उतना ही अच्छा ज्ञानदद्दा का प्रतिउवाच रहता है यहां आजकल!!
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