Wednesday, August 8, 2007

FAILED WITH 98.88 PERCENT

98.88 परसेंट पर फेल

आलोक पुराणिक

कभी सोचता हूं कि सही टाइम पर धरती पर आ गये, और बहुत पहले ही स्कूल की शिक्षा से पार हो गये, इज्जत बच गयी। तीस-बत्तीस साल पहले स्कूली इम्तहानों में सत्तर परसेंट आते थे, तो पूरे मुहल्ले में कालर ऊपर करके चलते थे।

अभी मेरी बेटी के 98.88 परसेंट आये हैं, पांचवी क्लास के मंथली टेस्ट मेंघर में ऐसा माहौल है जैसे फेल हो गयी है। उसकी मम्मी डांट रही है-फर्स्ट से लेकर टेन तक कोई पोजीशन नहीं आयी। शेम शेम।

98.88 परसेंट पर शेम। हाय री स्कूली शिक्षा निराला तेरा गेम।

बेटी परेशान नहीं है, उसकी मां परेशान है। सहेलियों को जवाब देना होता है जी, मिसेज राजवंशी के चुन्नू की सेकंड पोजीशन है। और वह स्वाति की मां बतायेगी कि हमेशा की तरह स्वाति तो फर्स्ट पोजीशन पर ही है जी। हाय रे हाय-98.88 परसेंट सिर्फ, तुझे शर्म नहीं आयी।

बेटी मुझसे पूछ रही है-पापा कितने आते थे आपके।

मारे शर्म के मैं सच नहीं बोलता।

मैं बहुत डर गया हूं। अभी पांचवी क्लास का सिलेबस देख रहा हूं।

मैथ की प्रोजेक्ट फाइल बनेगी। उसमें हरबेरियम की पत्तियां काट कर चिपकानी

क्या पूछा-हरबेरियम का मतलब क्या होता है। मुझे भी नहीं पता।

मुझे लगता है कि भविष्य में लड़के वाले जब लड़की वाले से रिश्ते की बात करने जायेंगे, तो पहली से पांचवीं तक की सारी किताबें लेकर जायेंगे। और लड़का संभावित पत्नी से पूछेगा-हरबेरियम का मैथ प्रोजेक्ट करवा पाओगी बच्चों को कि नहीं।

क्या अंडों के छिलकों से खरगोश बनाना नहीं आता, अरे तीसरी क्लास का क्राफ्टवर्क है यह।

क्या माचिस से कुत्ता बनाना नहीं आता, चौथी क्लास का क्राफ्टवर्क है यह तो।

मम्मी नहीं, इस लड़के से शादी करके बहुत परेशानी होगी, इसे तो ग्लेज्ड पेपर पर भुट्टे के दाने से बिल्ली बनाना नहीं आता, इतना तो आना ही चाहिए ना, बच्चे के पांचवी क्लास के सिलेबस में होगा ना।

खैरजी बिटिया को मैथ के प्रोजेक्ट में वैरी गुड मिला है। बिटिया को नहीं, उसकी मां और पापा को मिला है। पूरी रात जागकर बनाया था।

हम पति -पत्नी एक दूसरे को बधाई दे रहे हैं।

मेरा स्कूल वालों से अनुरोध है कि होमवर्क के लिए एक वर्कशाप मम्मी-पापा के लिए लगा लें। बहुत शर्म आती है, जब बच्ची पूछती है कि आपको राजस्थानी स्टाइल की पगड़ी बनानी आती है कि नहीं,हाथी को पहना कर ले जानी है। पापा पहले मम्मी को किसी राजस्थानी मित्र के ले जाते हैं, मम्मी खुद राजस्थानी पगड़ी बांधना सीखती हैं। हाथी को पहनानी है।

मम्मी कल ग्लेज्ड पेपर पर अरहर की दाल से अफ्रीका का ब्राउन चीता बनाकर ले जाना है। क्राफ्ट क्लास का एसाइनमेंट है-बिटिया ने स्कूल से आकर घोषित कर दिया है।

बिटिया सो चुकी है। रात के एक बजे मैं तलाश पाया हूं कि अफ्रीका का ब्राउन चीता कैसा होता है। पत्नी अरहर की दाल बीन चुकी है।

अब चलूं, ग्लेज्ड पेपर पर काम शुरु करना है।

आलोक पुराणिक- मोबाइल-09810018799

13 comments:

शब्द-सृष्टि said...

सच लिखा आलोक भाई आपने...जीवन इम्तेहान ले रहा है माता-पिता का.और बेहतरीन परसेंट लाने की होड़ में बच्चा इंसान बनने से महरूम रह हो गया है.अभिभावक सारा तामझाम जुटा देने के बावजूद असुरक्षा से भरा है ..कल क्या होगा.ये भी तय है कि जो आदर आपने मैने अपने बुज़ुर्गों को दिया वह हमें नहीं मिलने वाला जबकि साधनों के जुगाड़ में हम सब हर पल खट रहे हैं ..हमें अतीत की ओर लौटना होगा आलोक भाई.मेरा मानना है कि इस पैकेज परिदृष्य ने सारा बंटाढार किया है...मध्यम वर्ग इन बीते पाँच सालों में जितना विचलित दिखाई दिया है वैसा पहले कभी नहीं ..वह रातों रात अपने मोहल्ले में रहने वाले अग्रवाल साहब जैसा धनाढ्य हो जाना चाहता है और इसके लिये ही वह सारी उम्मीदें अपने बच्चे से कर रहा है..ये परसेंट अपेक्षा क्लास में अव्वल आने के लिये नहीं...सोसायटी में अव्वल आने के लिये है ..चाहे उसके लिये बच्चे का मासूम बचपन ही क्यों न रौंदना पड़े.

अनूप शुक्ल said...

बड़ा बवाल है भाई!

Udan Tashtari said...

चलो, ग्लेजड पेपर वाला प्रोजेक्ट खत्म करके टिप्पणी पढ़ लेना. अफ्रीका के चीते की तस्वीर न मिले तो हमारी लगा देना. मिलती जुलती है. कई लगा चुके हैं लोग प्रोजेक्ट में, पास कहलाये. तब तक आप और भौजी दोनो हमारी बधाई भी टिका लो बिटिया को मैथ के प्रोजेक्ट में वैरी गुड जो मिला है। बिटिया को भी शाबाश कह देना. ऐसे ही आप और आपकी पत्नी जी तरक्की करते रहें यही कामना है बच्ची तो आगे निकल ही जायेगी. सब आप पर ही तो है.

Arun Arora said...

सही कहा आलोक जी,बच्चो को इन स्कूल और हमारी दौड ने बचपन को कही पीछे छोडने पर मजबूर कर दिया है..

mamta said...

आजकल बच्चे के साथ-साथ माँ-बाप का भी इम्तहान होता है।

Gyan Dutt Pandey said...

आप पढ़ाई-लिखाई की बजाय अगड़म-बगड़म लिखेंगे तो 98.88% से कम होकर 98.87% नम्बर हो जायेंगे बिटिया के. बहुत निराशाजनक होगा वह.
बाप-धर्म का पालन कीजिये. अगड़म-बगड़म आउट सोर्स कर दीजिये (ढ़ेरों घोस्ट राइटर मिलेंगे) और NCERT की किताबों का चाटन प्रारम्भ कर भविष्य सिक्योर करें. :)

Hirendra Jha said...

ye andaaze bayan nirala hai....accha laga

Sanjeet Tripathi said...

बहुत सही प्रभु, हमारी शिक्षा व्यवस्था बस बस्ते का बोझ बढ़ाते जा रही, अंको का मान बढ़ाते जा रही पर क्या हम बच्चों को सही मायने मे शिक्षित कर पा रहे हैं। सरकारें चाहती है कि सब साक्षर हो जाएं पर क्या साक्षर होना ही शिक्षित हो जाने का पर्याय है!!

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

बधाई क्या खाक दीं जाए. आपको इतना भी नहीं पता कि हर्बेरियम प्रोजेक्ट मैथ में नहीं बोटनी में होता है जी. अपके जमाने में चाहे जो भी रहा हो पर बच्चों को पढाना हो तो सर्वग्य होना पड़ेगा. ऊपर यह भी सुनाना पड़ेगा कि जीं आजकल तो पैरेंट्स की कोई तैयारी ही नहीं होती.

Pramendra Pratap Singh said...

इतना अच्‍छा आप सोच कैसे लेते है ?

बढि़यॉं लिखते है।

ePandit said...

अगर आज ये कंडीशन है तो जब तक हमारे बच्चे होंगे क्या होगा? हम अपने नंबर कैस‌े बताएँगे जी।

वैसे स‌चमुच बोत माड़ा टाइम आ गया है। स्कूल में बच्चों को देखता हूँ तो तरस आता है। बेचारों को मशीन बनाकर रख दिया है। उनका बचपन छिन गया है उनसे।

azdak said...

किसने कहा था शादी करने को? कर ही ली तो किसने कहा था अपने घर बच्‍चा पैदा करने को? मूंग-मसूर की दाल समझी थी?

vikram said...

namaskaar prabhu. bhai hame tp kabhi 65% se jada nahi aaye. haan 10th class me 99 number aaye the maths me. uske baad se latak hi raha hun.

unse kahe ki 98.88% bhi bahut achcha hai aur position laa kar kya hoga? position to mantri-santri ka hota hai.
dhanyawaad.