शमशान में मोबाइल
आलोक पुराणिक
और सर कैसे हैं, क्या हाल हैं। क्या जोरदार लेख है आपका। तुलसीदास, जयशंकर प्रसाद और भारतेंदु हरिश्चचंद्र के बाद पहली बार किसी ने इस विषय को इस तरह से उठाया है। वैसे लेख में कहीं-कहीं शेक्सपियर और बर्नार्ड शा की भी झलक मारती है।
उनको मोबाइल पर काल करके मैं चमचागिरी का भरपूर निवेश करने की कोशिश कर रहा था।
निवेश का रिटर्न मुझे यह चाहिए था कि उनकी मैगजीन में मुझे अपने खेमे के एक लेखक का इंटरव्यू छपवाना था।
देखिये मैं फिलहाल शमशान में हूं, किसी परिचित का क्रिया कर्म हो रहा है-उधर से ठंडा सा जवाब आया।
शमशान में मोबाइल, सो बंद अपनी फाइल।
शमशान ने मेरा खेल खराब कर दिया।
अब चमचागिरी को शमशान से उठाकर फिर कायदे से जमाने में बहुत वक्त लग जायेगा।
खैर शमशान वाले हादसे एक तरकीब हाथ लग गयी। जिसे मोबाइल पर बात न करनी हो, उससे कह दो-मैं फिलहार शमशान में हूं। सो जी , मैंने इस तरकीब का जमकर इस्तेमाल किया। थोड़े ही दिनों में यह हाल हो लिया कि उधर से मोबाइल पर काल करने वाला पूछे-आप शमशान में तो नहीं हैं।
फिर खंडन करना पडा की अपन ने शमशान में कोई दुकान नहीं खोली है।
ये मोबाइल बहुत मारक यंत्र है जी। जैसे आप इधर से कहें , बधाई, गुरु बहुत स्मार्ट कन्या के साथ दिख रहे थे माल रोड पर।
तो उधर से नाराज स्वर उभर सकता है-अबे स्मार्ट के बच्चे, मैं फिलहाल अस्पताल में हूं। उसी कन्या के भाईयों ने मुझे जमकर धुना है। पुराने टाइप के टेलीफोनों में यह खतरा नहीं था।
पुराने टाइप के फोनों में हद से हद यह होता था कि बंदा अपने घर पर ना मिले। या दफ्तर में न मिले। अब मोबाइल पर बंदा मिल तो जाता है, पर किस हाल में मिलेगा, इसका कुछ अता-पता नहीं होता।
बड़े –बुजुर्गों ने ने जब कहा होगा कि कोई बात समय और स्थान देखकर कहनी चाहिए, तब उनके दिमाग में मोबाइल ना रहा होगा। मोबाइल पर समय तो हम तय कर सकते हैं। जैसे आपके साथी का प्रमोशन हुआ हो, तो उसे प्रमोशन की खबर मिलते ही बधाई दे दीजिये। वह खुश होकर ले लेगा। कुछ समय बाद अगर उसे पता लग जाये कि उसके साथी का भी प्रमोशन हो गया है तो वह बधाई देने वालों पर हिंसक हमले भी कर सकता है। प्रमोशन तब ही तक प्रमोशन लगता है, जब तक कि साथी को ना मिले।
समय का ध्यान रखते हुए खट से बधाई दे दीजिये। पर स्थान का मामला पेचीदा है।
हमें क्या मालूम की मोबाइल काल रिसीवक कहां है, तमाम मोबाइलों में कुछ सिस्टम ऐसा होना चाहिए कि खट से पता लग जाना चाहिए कि काल रिसीवक कहां है। जैसे अगर यह पता लग जाये कि बास अपनी गर्ल फ्रेंड के साथ लोदी गार्डन में है, तो इस हिसाब से रणनीति तय कर ली जाये। बास अच्छे मूड में हो, तो अपने प्रतिद्वंद्वी की बुराई की जा सकती है। यह बताया जा सकता है कि कि सर बहुत दिन हुए, कुछ टूर का जुगाड़मेंट नहीं ना हुआ। सर इंक्रीमेंट का महीना एकैदम करीब आ रहा है,क्या इस साल भी वही पिछले साल वाला।
इस तरह की बातें तब बिलकुल नहीं हो सकतीं, जब बास को उसकी बीबी डांट रही हो, इस बात के लिए कि इस उम्र में भी गर्लफ्रेंड की सूझती है, शर्म नहीं आती।
मोबाइल से एक बात इधऱ और सीखी है। अगर नियमित झूठ बोलना हो, तो साऊंडप्रूफ मोबाइल होना चाहिए, जिसमें अपनी आवाज के अलावा कोई और आवाज न आये। एक बार मैं घर से निकला काम की कहकर औरकभी खुशी, कभी गम देखने चला गया। वहां मोबाइल पर पत्नी का काल आया, तो उसने हड़काया-ये कौन गा रहा है-ना जुदा होंगे हम, कभी खुशी कभी गम।
मोबाइल ने मरवा दिया। धर-पकड़ हो ली।
चलूं एक साऊंडप्रूफ मोबाइल खरीद लाऊं, आज फिर चुपके से एक फिल्म मारनी है।
आलोक पुराणिक मोबाइल-09810018799
आलोक पुराणिक
और सर कैसे हैं, क्या हाल हैं। क्या जोरदार लेख है आपका। तुलसीदास, जयशंकर प्रसाद और भारतेंदु हरिश्चचंद्र के बाद पहली बार किसी ने इस विषय को इस तरह से उठाया है। वैसे लेख में कहीं-कहीं शेक्सपियर और बर्नार्ड शा की भी झलक मारती है।
उनको मोबाइल पर काल करके मैं चमचागिरी का भरपूर निवेश करने की कोशिश कर रहा था।
निवेश का रिटर्न मुझे यह चाहिए था कि उनकी मैगजीन में मुझे अपने खेमे के एक लेखक का इंटरव्यू छपवाना था।
देखिये मैं फिलहाल शमशान में हूं, किसी परिचित का क्रिया कर्म हो रहा है-उधर से ठंडा सा जवाब आया।
शमशान में मोबाइल, सो बंद अपनी फाइल।
शमशान ने मेरा खेल खराब कर दिया।
अब चमचागिरी को शमशान से उठाकर फिर कायदे से जमाने में बहुत वक्त लग जायेगा।
खैर शमशान वाले हादसे एक तरकीब हाथ लग गयी। जिसे मोबाइल पर बात न करनी हो, उससे कह दो-मैं फिलहार शमशान में हूं। सो जी , मैंने इस तरकीब का जमकर इस्तेमाल किया। थोड़े ही दिनों में यह हाल हो लिया कि उधर से मोबाइल पर काल करने वाला पूछे-आप शमशान में तो नहीं हैं।
फिर खंडन करना पडा की अपन ने शमशान में कोई दुकान नहीं खोली है।
ये मोबाइल बहुत मारक यंत्र है जी। जैसे आप इधर से कहें , बधाई, गुरु बहुत स्मार्ट कन्या के साथ दिख रहे थे माल रोड पर।
तो उधर से नाराज स्वर उभर सकता है-अबे स्मार्ट के बच्चे, मैं फिलहाल अस्पताल में हूं। उसी कन्या के भाईयों ने मुझे जमकर धुना है। पुराने टाइप के टेलीफोनों में यह खतरा नहीं था।
पुराने टाइप के फोनों में हद से हद यह होता था कि बंदा अपने घर पर ना मिले। या दफ्तर में न मिले। अब मोबाइल पर बंदा मिल तो जाता है, पर किस हाल में मिलेगा, इसका कुछ अता-पता नहीं होता।
बड़े –बुजुर्गों ने ने जब कहा होगा कि कोई बात समय और स्थान देखकर कहनी चाहिए, तब उनके दिमाग में मोबाइल ना रहा होगा। मोबाइल पर समय तो हम तय कर सकते हैं। जैसे आपके साथी का प्रमोशन हुआ हो, तो उसे प्रमोशन की खबर मिलते ही बधाई दे दीजिये। वह खुश होकर ले लेगा। कुछ समय बाद अगर उसे पता लग जाये कि उसके साथी का भी प्रमोशन हो गया है तो वह बधाई देने वालों पर हिंसक हमले भी कर सकता है। प्रमोशन तब ही तक प्रमोशन लगता है, जब तक कि साथी को ना मिले।
समय का ध्यान रखते हुए खट से बधाई दे दीजिये। पर स्थान का मामला पेचीदा है।
हमें क्या मालूम की मोबाइल काल रिसीवक कहां है, तमाम मोबाइलों में कुछ सिस्टम ऐसा होना चाहिए कि खट से पता लग जाना चाहिए कि काल रिसीवक कहां है। जैसे अगर यह पता लग जाये कि बास अपनी गर्ल फ्रेंड के साथ लोदी गार्डन में है, तो इस हिसाब से रणनीति तय कर ली जाये। बास अच्छे मूड में हो, तो अपने प्रतिद्वंद्वी की बुराई की जा सकती है। यह बताया जा सकता है कि कि सर बहुत दिन हुए, कुछ टूर का जुगाड़मेंट नहीं ना हुआ। सर इंक्रीमेंट का महीना एकैदम करीब आ रहा है,क्या इस साल भी वही पिछले साल वाला।
इस तरह की बातें तब बिलकुल नहीं हो सकतीं, जब बास को उसकी बीबी डांट रही हो, इस बात के लिए कि इस उम्र में भी गर्लफ्रेंड की सूझती है, शर्म नहीं आती।
मोबाइल से एक बात इधऱ और सीखी है। अगर नियमित झूठ बोलना हो, तो साऊंडप्रूफ मोबाइल होना चाहिए, जिसमें अपनी आवाज के अलावा कोई और आवाज न आये। एक बार मैं घर से निकला काम की कहकर औरकभी खुशी, कभी गम देखने चला गया। वहां मोबाइल पर पत्नी का काल आया, तो उसने हड़काया-ये कौन गा रहा है-ना जुदा होंगे हम, कभी खुशी कभी गम।
मोबाइल ने मरवा दिया। धर-पकड़ हो ली।
चलूं एक साऊंडप्रूफ मोबाइल खरीद लाऊं, आज फिर चुपके से एक फिल्म मारनी है।
आलोक पुराणिक मोबाइल-09810018799
8 comments:
मोबाइल वाला मजा इण्टरनेट के साथ भी है. आलोक पूछते हैं - ई-मेल कर - आज आपकी टिप्पणी नहीं थी. आप कहते हैं - बुखार में पड़ा हूं, 112डिग्री, वाइरल है या किचन गुनिया! :)
हे भगवान . मतलब गुरुदेव, पिछले दिनो कोई भूलोकवासी, स्वर्ग या नरक वासी नही हुआ.. आपके मोब. पर मिले ६०/७० संदेशो (कि हम शमशान घाट पर है) के बाद हम तो खुश हो रहे थे की भारत से तेजी से व्यंग्य लेखको की जनसंख्या कम हो रही है.अब आने वाला वक्त हमारे लिये अच्छा होगा लोग मजबूरी मे ही सही हमे पढेगे..अखबारो के संपादक लाईन लगाकर हमे एडवांस देकर जायेगे..हमारा तो सपना और दिल दोनो टूट गये है ..
आलोक भाई फ़िक्र न करें अब वो दिन जल्द ही आने वाला है जब यह पता लगाया जा सकेगा की मोबाईल दुनिया के किस कौने में है...वैसे यह आईडिया अच्छा है शमशान में हूँ ...:
सुनीता(शानू)
क्या भाई साहब, यह पोस्ट तो शमशान से नहीं लिखे हो न, तो हमारी बधाई ले लो ऐसी मारक पोस्ट के लिये. क्या पता फिर बधाई देने आयें तो शमशान में मिलो. जबरदस्त!!!
मजे की बात ये कि शमशान भी ‘मोबईल’ हो जाता है...जहां इच्छा हो वहीं एक शमशान तैयार हो जाता है...
अलोक जी,बहुत बढिया सुझाया है ,अब हम भी शमशान का बहाना मारेगे।:(
बहुत सही लिखा है गुरू, ये दिल्ली के चैनल और अखबार के घोचू भी यही करते हैं , हालांकि जब बनिया उन्हें लात मार के निकाल देता है तो फिर कब्र से बाहर निकल जाते हैं।
बढि़या है।
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