Monday, August 13, 2007

गायब गोल्डन चिड़िया

गायब गोल्डन चिड़िया
आलोक पुराणिक
नौजवानों से डीलिंग करना आसान नहीं है, जित्ते जवाब गुरु लोगों के पास हैं, वे सारे के सारे आउटडेटेड हो चुके हैं, सवाल एकदम अप टू डेट हैं।
अभी 15 अगस्त के आसपास कई पुरानी कैसेटों को स्टोर से निकालने का टाइम आ जाता है। पूरे साल में सिर्फ दो मौकों -15 अगस्त और 26 जनवरी को ही देशभक्ति के गाने उछलते हैं, बाकी साल तो ये कांटा लगा, और शकीरा के बोझ तले दब लेते हैं।
देशभक्ति का गाना आ रहा था-जहां डाल -डाल पर सोने की चिड़िया करती हैं बसेरा।
मेरे स्टूडेंट ने पूछा-सर यह किस लैंग्वेज का गाना है। शायद अरेबिक या फ्रेंच है, तब ही समझ में नहीं आ रहा है।
मैंने बताया कि हिंदी का।
ओ तो हिंदी पहले ऐसी बोली जाती थी। हमारे स्कूल में हमें ऐसी नहीं सिखायी। डाल माने क्या-स्टूडेंट ने पूछा।
डाल माने ब्रांच। गीतकार कहना चाह रहा है कि हर ब्रांच पर सोने की चिड़िया यानी गोल्डन बर्ड बसेरा यानी होम बनाती थी इंडिया में-मैंने बच्चे को समझाने की कोशिश की।
बाई दि वे ये ब्रांच तो अब बैंक की ब्रांच होती हैं, तो क्या तब गोल्डन बर्ड नाम का बैंक बहुत फेमस था-बच्चे ने आगे पूछा।
नहीं बेटा, समझने की कोशिश करो ना, ब्रांच ट्री की होती हैं, ट्री यानी पेड़-मैं समझाने की कोशिश कर रहा हूं।
पर पेड़ तो हमने सिर्फ किताबों में देखे हैं, छोटे छोटे से। हमारे आसपास तो सिर्फ शापिंग माल, मल्टीप्लेक्स हैं। गोल्डन बर्ड के लिए पेड़ कहां से आते थे। बाइ दि वे, सिर्फ बर्ड ही गोल्डन होती थी या बिच्छू, स्नेक भी गोल्डन होते थे। क्या उस जमाने में मंकी और डंकी भी गोल्डन होते थे–स्टूडेंट आगे पूछ रहा है।
सिर्फ बर्ड गोल्डन होती थी, तुम कैसी बात कर रहे हो, बिच्छू और डंकी गोल्डन कैसे हो जायेंगे-मैं बच्चे को समझा रहा हूं।
क्यों जब बर्ड गोल्डन हो सकती है तो डंकी और बिच्छू गोल्डन क्यों नहीं हो सकते। जहां हर सरकारी दफ्तर पर है बिच्छू का बसेरा, वो भारत देश है मेरा-गाना तो यह भी हो सकता है।
बेटा हम चिड़िया की बात कर रहे हैं, तुम बिच्छू तक क्यों पहुंच रहे हो। बी पाजिटिव, तुम्हे बिच्छू दिखायी पड़ रहे हैं, चिड़िया दिखायी क्यों नहीं पड़ रही है-मैंने पूछने की कोशिश की।
सर जी हमें तो कुछ ना दिखायी पड़ रहा, ना पेड़ दिखायी पड़ रहा, ना डाल दिखायी पड़ रही और ना वो गोल्डन बर्ड दिखायी पड़ रही है। आप लगता है कि भंग-ऊंग लगा कर आये हो, जो आपको सब दिखायी सा पड़ रहा है-छात्र ने बहुत सम्मान के साथ कुछ भी देखने से इनकार कर दिया है।
अब आप ही बताइए कि गायब गोल्डन चिड़िया के बारे में उसे कैसे समझाया जाये।
आलोक पुराणिक
मोबाइल-09810018799

10 comments:

ePandit said...

हे हे आज हम फुरसतिया चाचू और ज्ञानदद्दा से पहले टिपियाने पहुँच गए।

बाकी आपके बच्चों का तो कहना ही क्या, देश का भविष्य सुरक्षित हाथों में है, हम सुकून से मर स‌कते हैं। :)

Sanjeet Tripathi said...

आज का आलम ज़ारी रहा तो आपकी यह पोस्ट सच मे कुछेक दशकों बाद चरितार्थ होती नज़र आएगी पर हम आपके इन विचारों को चरितार्थ नही न होने देंगे, हे हे!!

फ़ुरसतिया जी और ज्ञान दद्दा किधर हो, नींद नई खुली का आज!!

Yunus Khan said...

सर जी गोल्‍डन चिडिया के बारे में वो नहीं समझेंगे आप उन्‍हें ‘बिग एप्‍पल’ के बारे में समझाइये जल्‍दी समझ जाएंगे ।

Udan Tashtari said...

आप अब कान खोल कर सुनें-आप गलत स्कूल में फँस गये हैं. तुरंत नौकरी छोडें और नया अड्डा तलाशॆं इसमें गाँव की महक हो. तन्खाह कम होगी मगर शुकुन ज्यादा. बताना जरा.

Gyan Dutt Pandey said...
This comment has been removed by the author.
बसंत आर्य said...

बात अच्छी है पर मुझे नहीं लगता आज के टी.वी. के जमाने में आदमी इतनी हिन्दी नहीं समझता. पिछले दिनो फरहान अख्तर की विदेशी बीवी के बारे में सुना कि उसके बच्चों ने टी वी से हिन्दी सीखी और अपनी माँ को भी सिखा दिया.

Gyan Dutt Pandey said...

समीरजी बिल्कुल सही हैं ( वैसे भी गलत कह कर महत्वपूर्ण टिप्पणीकार को कौन नाराज करेगा!). पण्डित पुराणिक के शिष्य ज्यादा चण्ट हैं या ज्यादा घोंचू. पुराणिक अपने सुकून की देखें! :)
और आज हमारे घर बिजली नहीं थी तो श्रीश तथा संजीत ज्यादा उछल रहे हैं!
फुरसतिया कहां हैं? अपनी टिप्पणी चिठ्ठाचर्चा में ही करने लगे शायद. हमारे ब्लॉग पर भी नहीं दिख रहे!

Arun Arora said...

@ ज्ञान दादा आज कृपया इनवर्टर को चार्ज कर टिपियाने के लिये बचाये रखा करे..खामखा १० बजे टिपिया कर भी उछल रेहे है सारे..:)
गुरुदेव आप जरा दो चार दिन को क्लास मेरे हवाले करो..ये बच्चे फ़िर आपसे पंगा लेना भूल जायेगे..
इन्हे मेरे जैसा गुरु चाहिये लगता है ,बिना मतलब रोज गुरु की हर बात मे पंगा लेते रहते है..:)

Arun Arora said...

@ ज्ञान दादा आज कृपया इनवर्टर को चार्ज कर टिपियाने के लिये बचाये रखा करे..खामखा १० बजे टिपिया कर भी उछल रेहे है सारे..:)
गुरुदेव आप जरा दो चार दिन को क्लास मेरे हवाले करो..ये बच्चे फ़िर आपसे पंगा लेना भूल जायेगे..
इन्हे मेरे जैसा गुरु चाहिये लगता है ,बिना मतलब रोज गुरु की हर बात मे पंगा लेते रहते है..:)

Shiv said...

इसे कहते है, ‘देशभक्ति का अर्थशास्त्र’...सारी समस्या इसी के चलते हुई...साल भर जिन कैसेट्स को कोई नही पूछता, इस मौसम मे न सिर्फ बाहर आ जाते है, बल्कि बजने भी लगते है...