Saturday, July 28, 2007

REGISTRY BY BABAR

बाबर की रजिस्ट्री
आलोक पुराणिक
कई साल इस खाकसार ने इस विषय पर चिंतन में गुजारे हैं कि आखिर क्यों, लगातार, बार-बार इस देश पर विदेशियों का कब्जा हो गया। सिकंदर, बाबर, से लेकर अंगरेज, फ्रांसीसी सब आ गये और जम गये। पता है, इन सबका कब्जा क्यूं हो गया, इसलिए कि उस जमाने में जमीन रजिस्ट्री के दफ्तर नहीं थे, जैसे आज होते हैं।
एक दिव्य सीन उभरता है। फतेहपुरसीकरी के पास खानवा के मैदान में बाबर लड़ाई जीतकर मिसेज बाबर को बता रहे हैं-अपना कब्जा हो गया है।
जैसा कि हर समझदार मिसेज पूछती है,मिसेज बाबर भी कहतीं- देखो पक्की रजिस्ट्री करवा लो, वरना हुमायूं वगैरह बाद में भटकेंगे।
बाबर सुबह ही लंच बांधकर निकल लिये हैं तहसील के दफ्तर में, रजिस्ट्री कराने।
स्टांपपेपर ले लो, दस्तावेज लेखक से मिल लो-पहले कागजात तैयार कराने पड़ेंगे। एक रजिस्ट्रीधारक बाबर को सलाह दे रहा है।
अजी मैं क्यों मिलूं, दस्तावेज लेखक से,मैं तो खुद ही लेखक हूं, इतनी कविताएं मैंने लिख मारी हैं। मैं तो खुद बाबरनामा लिख रहा हूं, अपनी रजिस्ट्री के दस्तावेज भी खुद लिख लूंगा-बाबर कहते।
जी रजिस्ट्री के दस्तावेज के मामले टेकनीकल आइटम होते हैं, सो पढ़े-लिखों के बस के नहीं हैं-एक दस्तावेज लेखक समझाता।
सही बात है टेकनीकल मामले पढ़े-लिखे लोगों के बस के नहीं होते।

मैं भी एक बार रजिस्ट्री कराने गया था स्टांप खर्च, दस्तावेज लेखक का खर्च, और सारे अगड़म-बगड़म खर्च मिलाकर खर्च आ रहा था 92,000, पर मुझसे मांगे गये 97,000। मैंने अपने पढ़े-लिखेपन का सबूत देते हुए सब टोटल करके बताया कि पांच हजार रुपये एक्सट्रा काहे बात के।
आसपास सब हंस पड़े-एक ने कहा, पढ़े-लिखे से हैं, इसलिए समझते नहीं हैं।
ऊपर की खर्च और ऊपर की कमाई पर सवाल उठाने का मतलब है जी अगला पढ़ा लिखा सा है, और टोटल वैसे ही करता है, जैसे गणित की किताबों में समझाया जाता है। बाबर भी अपने गणित –ज्ञान का परिचय देते, सब हंसते।
खैर, जैसे-तैसे बाबरजी को समझाया जाता, बाबर मान जाते। और स्टांप पेपर तैयार वगैरह हो जाते।
फिर लाइन लगती। बाबर सन्नद्ध, सावधान मुद्रा में खड़े रहते।
बाबर का नाम पुकारा जाता, और कहा जाता कि कागजों पर अंगूठा ठोंको।
बाबर बुरा मान जाते कहते मैं इतना पढ़ा-लिखा हूं और मुझे अंगूठाटेक बना रहे हैं।
बताया जाता है कोई भी पढ़ाई-लिखाई अंगूठे के महत्व को कम नहीं कर सकती। अंगूठे के बगैर पक्का काम नहीं होता। बाबर महान विद्वान अंगूठा टेक हो जाते।
तीन चार स्तर के बाबू लोगों के सोहबत में गुजरकर दस्तावेज जब तक फाइनल स्टेज में पहुंचते, शाम नहीं रात हो जाती। फिर बताया जाता कि सब -रजिस्ट्रार साहब उठ गये हैं, कल-परसों या फिर कभी आयेंगे।
बाबर का दिल बैठ जाता, फिर खुद भी बैठ जाते।

रजिस्ट्रीविहीन घर लौटते, तो मिसेज बाबर ताना मारतीं-क्योंजी पूरी लड़ाई तो तुमने आधे दिन में जीत ली थी, अब पूरा दिन लग गया, फिर भी रजिस्ट्री नहीं हुई। बड़े तीसमार खां बनते हो।
बाबर मारे शर्म के डिक्लेयर करते, बेगम चलो इंडिया के रजिस्ट्री दफ्तर बहुत बदमाश हैं, हम राणा सांगा से जीत सकते हैं, पर रजिस्ट्री वालों से नहीं।
बाबर उसी रात इंडिया छोड़ देते।
हाय रजिस्ट्री दफ्तर तुम पहले क्यूं ना हुए।
आलोक पुराणिक
मोबाइल-09810018799

6 comments:

Gyan Dutt Pandey said...

ये छोटी ही भूल लगती है. रेट के हिसाब से टोटल कम से कम 1,22,000.- होना चाहिये था. आपने ऊपर के शुल्क के मैनुअल का अध्ययन करने या कैल्कुलेशन में मिस्टेक कर दी है. बाकी पोस्ट ठीक है. हो सके तो भूल सुधार लें. :)

अनूप शुक्ल said...

सही है।

Udan Tashtari said...

काश, रजिस्ट्री दफ्तर होते उस समय. आज ये बाबरी लफड़ा तो न मचता. कागज दिखा कर काम चल जाता.

बहुत सही दिया है महाराज. ज्ञानदत्त जी पढ़े लिखे हैं तो अब हम क्या कहें. :)

36solutions said...

आलोक भाई अच्छा समय दिया हमको सब लोगन को बताने का कि भाई 36गढ मे कौनो बाबर को रजिस्ट्री करवानी हो तो हम कमपढ अरे सर अनपढ नही कमपढ से ही खंसलटेंसी लेना क्या ! वाह अलोक भाई !

Arun Arora said...

ज्ञान जी ने आज वाला हिसाब लगा लिया है .उपर से लेकर नीचे तक सब के रेट बढ् चुके है ज..:)

Sanjeet Tripathi said...

सटीक!!