संडे सूक्ति-ज्ञान से दूर रहें, और ज्ञानियों से भी
आलोक पुराणिक
जो लोग कहते हैं कि अज्ञान से संकट पैदा होते हैं, उन्हे ज्ञान के संकटों का अंदाज नहीं है।
साहब, अज्ञानी अपने लिए संकट पैदा करता है।
ज्ञानी सबके लिए संकट पैदा करता है और वैराइटी-वैराइटी के संकट पैदा करता है।
जब मैं पत्रकार था, तो मेरे साथ एक ज्ञानी होते थे डीजल के। विकट ज्ञान डीजल का , डीजल पर बढिया लिखते थे। पर जिंदगी डीजल से परे भी होती है। पर इसमें उनकी क्या गलती। यह जिंदगी की गलती है कि वह डीजल से परे क्यूं होती है।
एक बार उनके सहकर्मी को अपनी कन्या के रिश्ते के लिए किसी बालक से बातचीत करने के लिए जाना था, सो मौके की नजाकत के हिसाब से वह एक ज्ञानी पुरुष यानी डीजल ज्ञानी को अपने साथ ले गये। संभावित बालक सामने आया। बातचीत की शुरुआत में ही डीजल ज्ञानी ने लडके से पूछा-तुम्हारी कार डीजल से चलती है या पेट्रोल से।
सकपकायमान उत्तर आया-जी पेट्रोल से।
क्यों डीजल से क्यों नहीं चलाते। इत्ता अच्छा एवरेज देती है। तुम लगता है कि किफायतशारी से नहीं चलते-डीजल ज्ञानी से डांट दिया।
शुरु से बात डीजल ने ऐसी उखाडी कि जम ही नहीं पायी।
ज्ञान के बड़े संकट हैं साहब।
डीजल ज्ञान ने मरवा दिया। उसी दफतर में एक सहकर्मी की दुर्घटना हुई, मोटरसाइकिल से।
डीजल ज्ञानी ने पहला सवाल पूछा-मोटरसाइकिल डीजल से चलती थी या पेट्रोल से।
पब्लिक उनसे डरने लगी। मुझे लगता है कि यमराज भी डरने लगे होंगे उनसे, मुझे पक्का यकीन है कि जब यमराज आयेंगे उनके पास तो डीजल ज्ञानी एक ही सवाल पूछेंगे-महाराज बताओ अपने भैंसे में डालते क्या हो-पेट्रोल या डीजल।
मैं तो उनसे बहुत डर गया था। मैंने सबसे कह रखा है कि मेरी मौत की खबर उन्हे ना दी जाये। श्मशान में पहुंचकर आमादा हो जायेंगे कि स्वर्गीय को डीजल से ही फूंका जाये। मार-बवाल हो लेगा।
एक और ज्ञानी थे-पिल्लों के बहुत धांसू जानकार। पिल्ले को दो किलोमीटर दूर से देखकर बता दें कि इसकी मां ने इसके पिता के चयन में सिर्फ स्वदेशी भावना से काम किया है, या इसकी मां का इस मामले में ग्लोबल विजन है।
पिल्ला ज्ञानी पूरे ब्रह्मांड को दो भागों में बांटते थे-एक पिल्ला ब्रह्मांड और दूसरा गैर-पिल्ला ब्रह्मांड।
कभी गौर से देखें, तो पता लगता है कि बेवकूफियों की परम-चरम किसी एक्सपर्टत्व में ही प्रकट होता है।
खैर पिल्ला ज्ञानी के दफ्तर में सहकर्मी किसी एक्ट्रेस की तारीफ करते -वाऊ क्या ग्लोइंग स्किन दिखी है, उस फिल्म में।
पिल्ला-ज्ञानी फौरन बताते-क्या खाक, पामेरियन जब चार दिन का होता है, तब उसकी स्किन देखो। सब भूल जाओगे।
बिचारी एक्ट्रेस पामेरियन से पिट जाती।
पर एक बार पिल्ला ज्ञानी पिट लिये।
किसी शिशु की तारीफ में उन्होने कह दिया -अरे यह तो डाबरमैन के बच्चे से भी ज्यादा प्यारा लग रहा है।
शिशु का मां बहुत पिल्ला ज्ञानी तो नहीं थी, पर वह इतनी समझ उसे थी कि डाबरमैन कुत्ते की एक नस्ल है। पर नासमझी उसने यह दिखाया कि डाबरमैन से कंपेरीजन को तारीफ नहीं माना और पिल्ला -ज्ञानी को पीटने को आतुर हो उठी। लोगों ने पिल्ला ज्ञानी को बचाया।
साहब ज्ञान नहीं बचाता, मरवा देता है।
अब बुश को ही देखिये, उन्हे ज्ञान है कि दुनिया में इराक नाम का देश है और उस देश में तेल है। अगर इस ज्योग्राफी के मामले में वह अज्ञानी होते, तो इराक भी बच जाता और तेल भी। बुश का ज्ञान सबके लिए टेंशन है। वैसे बुश अपने आप में ही टेंशन हैं। ज्ञान के साथ मिलकर तो मामला डबल टेंशनात्मक हो लेता है।
एक और ज्ञानी टकराये, आगरा में हींग की मंडी में जूतों का थोक कारोबार था।
दिल्ली से मुंबई की यात्रा करीब सोलह घंटे का साथ। किसी यात्री ने कविता पर बात चला दी कि अब के कवियों की कविताएं ज्यादा नहीं चलतीं।
जूता-ज्ञानी कूद पडे-जी यही हाल नये जूतों के सोलों का है। कहां चलते हैं। छह महीने में घिस जाते हैं। ये कविताएं और सोल दोनों के बनाने वाले बदमाश हो गये हैं।
किसी ने कहा-पुराने कवियों की कविताएं बहुत लंबी चलती हैं। अब तक याद हैं। जूता ज्ञानी फौरन कूदे-जी हमारे जमाने के जूते के सोल भी बहुत चलते थे। तब के से कवि और तब के से सोल अब कहां जी। हाय बिछड़े सभी बारी-बारी।
ऐसा जूतेबाज समां बंधा उस रात कि मुझे लगा कि पृथ्वी की सारी कविताएं जूतों का सोल हैं। जूतों के सोल ही कविताएं हैं।
अब ये ज्ञान अगर अपने कवि मित्रों को दे दूं, तो वो मुझे मार डालेंगे।
सो, समझे ना ,ज्ञान मरवा डालता है साहब।
आलोक पुराणिक -09810018799
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8 comments:
बिल्कुल. स्मार्ट-निवेश के ज्ञानी आधुनिका से कहेंगे - आपकी वैल्यू बिल्कुल सेंसेक्स के कर्व की तरह है - कितनी ऊंचाइयां और गहराइयां हैं! और आधुनिका का पति (आधुनिक धुनकर) उन्हे धुन देगा. :)
बहुत है! :) अज्ञानी का आत्मविश्वास तगड़ा होता। ज्ञानी से कहीं ज्यादा!
ओह, सो ज्ञानात्मक!
सही है, वैसे भी हम अज्ञानी दुनिया में हैं तो ज्ञानियों की इज्जत है,वरना उन्हें कौन पूछता।
हा हा हा....आलोक जी आपके ब्लोग से नयी डिक्शनरी तैयार हो सकती है....सकपकायमान ,पिल्ला ब्रह्माड,एक्सपर्टत्व,टेंशनात्मक,जूतेबाज समां.....
वैसे बात बड़े पते की कही..ज्ञान सच में मरवा डालता है...आपके नन्दलाल को भी ले डूबा था
जैसे ही हमने पढा,हम्तो अपने आस पास पता लगाने निकल पडे ,सारे सर्वे के बाद अब हम बिल्कुल निश्चित है कि हमारे आस पास 15 मील तक चारो और किसी ज्ञानी का वास नही है..:)
क्या कहा आपने , ज्ञान मरवा डालता है!!
ह्म्म, ज्ञान दद्दा अब आप ज़रा छह फ़ीट दूर रहा कीजिए हमसे, मरने का कौनो शौक नही है न हमको।
मस्तम-मस्त लिखा है!
हम सोचता हूं एक ढिंढोरा पीटवा ही दिया जाए अब इक, जौन भी इ पुराणिक का भेजा हमका लाय के देगा ओका हम एक सांसदी दई देब!!
जूते वाले का ऎड्रस बढ़ाया जाये. हमारे यहाँ संदेशक को गोली मारने की प्रथा नहीं है. आखिर राजशाही पुरानी है.
वैसे एक ज्ञान आप दे दें, कि कितने साल पुराना होना चाहिये पुराना कवि कहलाने के लिये.
--बाकि तो हमेशा की तरह झक्कास और बेहतरीन. कवि और सोल वाला हिस्सा हमने पढ़ा ही नहीं. :)
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