संडे सूक्ति-सब्र का फल सिर्फ सेब
आलोक पुराणिक
(सेब एसोसियेशन द्वारा स्पासंर्ड एक रिसर्च परियोजना में एक मैंने यह निष्कर्ष निकाला था कि आदम और हव्वा पर स्वर्ग में सेब खाने की मनाही नहीं थी। हां, किसी भी किस्म की प्री-सेब और पोस्ट –सेब गतिविधियों की बंदिश जरुर थी। सेब एसोसियेशन का तर्क है कि सेब पर बंदिश कैसे हो सकती है, बच्चों तक को समझाया जाता है कि एन एपल ए डे, कीप्स डाक्टर अवे। सो साहब सेब को बदनाम ना किया जाये कि परमात्मा ने सेब खाने पर बंदिश लगा रखी। बंदिशें और थीं। और वे मानी भी गयीं बहुत समय तक, आदम और हव्वा ने पता नहीं कितने बरस सिर्फ परमात्मा के प्रवचन और सेब पर निकाल दिये और संयमपूर्वक रहे। आगे पढ़िये... )
संयम के परिणाम कितने घातक हो सकते थे, यह सोचकर घबरा उठता हूं।
यह सोचकर ही घबराहट होती है कि कि अगर आदम और हव्वा उस दिन संयम कर जाते, तो क्या वे स्वर्ग से ठेले जाते, नहीं। तो क्या आदम आदमियों की दुनिया बना पाता, नहीं। क्या आज हम सब यह झमाझम दुनिया देख पाते, नहीं। आदम हव्वा अगर संयम कर जाते, तो निश्चय ही वो स्वर्ग में ही रह रहे होते। पर क्या करते स्वर्ग में रहकर। अब तक जितनी डिटेल्स मिलती हैं, उनके अनुसार यही कहा जा सकता है कि वे स्वर्ग में संयम करते हुए कुछ और सेब खा रहे होते। बार बार लगातार।
तब कहावत शायद यह होती –सब्र का फल सेब।
सब्र से सेब मिलता है, तो सेब से क्या मिलता, और अधिक सब्र करने की शक्ति। कितनी बोरिंग होती वह वो लाइफ। सुबह-सुबह उठते आदम-हव्वा सब्र करते, फिर सेब खाते। दोपहर में फिर सब्र करते, फिर सेब खाते। शाम को फिर सब्र, फिर सेब। रात को......। कुल उपलब्धि ये होती कि आदम और हव्वा ने पूरी जिंदगी में पाँच-सात सौ टन सब्र किया और एक हजार टन सेब खाये।
सो बोरिंग।
हे भगवान इतनी सेबमयी और सब्रमयी जिंदगी किसी को नसीब न हो। हमें गर्व है कि आदम –हव्वा अकलमंद साबित हुए । संयम वगैरह के चक्कर में नहीं पड़े, सेब से आगे की उपलब्धियां हासिल कीं। वैसे संयम वगैरह के मामले बहुत घपले वाले हैं।
घपला यूं कि संयम के जो परिणाम बताये जाते हैं, वो वस्तुत वे ही परिणाम होते हैं, जो संयम न करने वालों को वैसे ही हासिल हो जाते हैं।
एक बार मैंने एक नौजवान को समझाने की कोशिश की – बेटा संयम, कन्याओं के पीछे नहीं भागना चाहिए। संयम से चरित्र को बचाये रखना चाहिए।
वो बोला-फिर क्या गुरुवर।
मैंने कहा कि बेटा इस तरह से संयमशील जीवन बिताने वाले सीधे स्वर्ग जाते हैं।
नौजवान ने फिर आगे पूछा-फिर गुरुजी।
मैंने आगे बताया-स्वर्ग में अप्सराएं, परम सुंदरियां हैं। सोमरस है। आनंद ही आनंद है दीर्घकाल तक।
नौजवान बोला-गुरुजी समझ गया कि संयम का रिजल्ट यह होता है कि बंदा बाद में चाहे तो इत्मीनान से दीर्घकाल तक चरित्रहीन और संयमहीन हो सकता है।
उस नौजवान से बातचीत के बाद में मैने संयम और चरित्र की बात करना छोड़ दिया है।
संयम के मामले बहुत घपले वाले हैं। वैसे कुछ लोगों को देखकर लगता है कि काश इनके मां-बाप ने संयम किया होता। पर मेरे सोचने से क्या होता है। सोचने को तो मैं यह भी सोचता हूं कि कितना अच्छा होता अगर मैं आचार्य वात्स्यानन के टाइम में पैदा हुआ होता। विद्वान बताते हैं कि उस दौर में किसी सुंदरी को घूरना सिलेबस में शामिल था। तरह-तरह की डिटेल्स के लिए शोधरत आचार्य के छात्रों को यह छूट थी कि वे किसी सुंदरी को घूर सकते थे। यहां वहां कहीं भी किसी भी एंगल से तांक-झांक कर सकते थे। पकड़े जाने पर कह सकते थे कि देख लो आई-कार्ड रिसर्च स्कालर, आचार्यजी वात्स्यानन की किताब के लिए केस स्टडी तैयार कर रहे हैं, देख लो आई-कार्ड और ये तांक-झांक का अथारिटी लैटर।
अहा हा कैसा शोध प्रोत्साहक माहौल रहा होता।
सारे प्रदेशों की सुंदरियों के लक्षणों, विशेषताओं पर अध्ययन करने के लिए रिसर्च स्कालर सुंदरियों से विधिवत सहयोग मांग सकते थे। किसी भी सुंदरी से अनुरोध कर सकते थे, हे सुंदरी संपूर्ण अध्ययन करने दे, कहीं रोक मत, कहीं टोक मत। विस्तार से लिखना है। ज्ञान में योगदान के मामले में तू अनुदार हुई, तो आगे की पीढ़ियां तुझे कोसेंगी।
अब वो बात नहीं है। सुंदरियों में वो उदारताएं नहीं रहीं। शिक्षा के प्रति वैसा भाव नहीं रहा। रिसर्च स्कालरों के साथ सहयोग करने में वैसी तत्परता सुंदरियों में नहीं रही। इसलिए जब कोई कहता है कि शिक्षा का स्तर गिर रहा है, तो मैं खट से सहमत हो जाता हूं।
मैं फुल सीरियसता के साथ सोचता हूं कि मैं रीतिकाल के इत्ते बाद क्यों हुआ।
रीतिकाल में होता, तो रोज किसी राजा के खर्च पर पाँच –दस सुंदरियों का विश्लेषण करके कवित्त गढ़ता।
क्या धांसू दिन कटता होगा कवि का और सुंदरी का भी।
कविता के प्रति ऐसा भाव सुंदरियों में नहीं रहा। किसी कवि को, किसी रचनाकार को (व्यंग्यकार समेत) इस तरह से टाइम देने का चलन भी अब सुंदरियों में नहीं रहा। इसलिए जब कोई कहता है कि अब समाज में साहित्य के प्रति अनुराग भाव नहीं रहा, मैं खट से सहमत हो जाता हूं।
वैसे मेरे सहमत होने ना होने से होता भी क्या है। सुंदरियां बहुत संयमी होने लगी हैं।
वैसे अब की आम सुंदरी को देखता हूं-तो ईमान से सारे भाव एक तरफ, पैर छूकर उसे सम्मानित करने की इच्छा जगती है – आम सुंदरी सुबह पाँच उठकर घर भर के लिए खाना बनाये, पैक करे, बच्चों को स्कूल भेजे, फिर लुच्चों, टुच्चों के साथ बस में टंगकर दफ्तर पहुंचे। वहां कुंठितों को झेले, फिर घर आकर बच्चों के होमवर्क में अपना दिमाग ठेले, अगली सुबह के कामों की लिस्ट बनाकर अगले दिन के तनावों को पहले ही ले ले।
हे आचार्य वात्स्यानन इन सुंदरियों की परेशानियां देखते, तो काम सूत्र भूल जाते, सुंदरियों के इतने कामों को आसान करने के सूत्र लिखते।
हे आदरणीय प्रणम्य सुंदरी, मुझे पता है काम सूत्र भूलकर तुझे तरह-तरह के कामों के सूत्र की तलाश में ही भिड़े रहना होगा। क्योंकि तेरे कामों में हेल्प के लिए रीतिकालीन लुच्चे नहीं आयेंगे।
आलोक पुराणिक मोबाइल-09810018799
आलोक पुराणिक
(सेब एसोसियेशन द्वारा स्पासंर्ड एक रिसर्च परियोजना में एक मैंने यह निष्कर्ष निकाला था कि आदम और हव्वा पर स्वर्ग में सेब खाने की मनाही नहीं थी। हां, किसी भी किस्म की प्री-सेब और पोस्ट –सेब गतिविधियों की बंदिश जरुर थी। सेब एसोसियेशन का तर्क है कि सेब पर बंदिश कैसे हो सकती है, बच्चों तक को समझाया जाता है कि एन एपल ए डे, कीप्स डाक्टर अवे। सो साहब सेब को बदनाम ना किया जाये कि परमात्मा ने सेब खाने पर बंदिश लगा रखी। बंदिशें और थीं। और वे मानी भी गयीं बहुत समय तक, आदम और हव्वा ने पता नहीं कितने बरस सिर्फ परमात्मा के प्रवचन और सेब पर निकाल दिये और संयमपूर्वक रहे। आगे पढ़िये... )
संयम के परिणाम कितने घातक हो सकते थे, यह सोचकर घबरा उठता हूं।
यह सोचकर ही घबराहट होती है कि कि अगर आदम और हव्वा उस दिन संयम कर जाते, तो क्या वे स्वर्ग से ठेले जाते, नहीं। तो क्या आदम आदमियों की दुनिया बना पाता, नहीं। क्या आज हम सब यह झमाझम दुनिया देख पाते, नहीं। आदम हव्वा अगर संयम कर जाते, तो निश्चय ही वो स्वर्ग में ही रह रहे होते। पर क्या करते स्वर्ग में रहकर। अब तक जितनी डिटेल्स मिलती हैं, उनके अनुसार यही कहा जा सकता है कि वे स्वर्ग में संयम करते हुए कुछ और सेब खा रहे होते। बार बार लगातार।
तब कहावत शायद यह होती –सब्र का फल सेब।
सब्र से सेब मिलता है, तो सेब से क्या मिलता, और अधिक सब्र करने की शक्ति। कितनी बोरिंग होती वह वो लाइफ। सुबह-सुबह उठते आदम-हव्वा सब्र करते, फिर सेब खाते। दोपहर में फिर सब्र करते, फिर सेब खाते। शाम को फिर सब्र, फिर सेब। रात को......। कुल उपलब्धि ये होती कि आदम और हव्वा ने पूरी जिंदगी में पाँच-सात सौ टन सब्र किया और एक हजार टन सेब खाये।
सो बोरिंग।
हे भगवान इतनी सेबमयी और सब्रमयी जिंदगी किसी को नसीब न हो। हमें गर्व है कि आदम –हव्वा अकलमंद साबित हुए । संयम वगैरह के चक्कर में नहीं पड़े, सेब से आगे की उपलब्धियां हासिल कीं। वैसे संयम वगैरह के मामले बहुत घपले वाले हैं।
घपला यूं कि संयम के जो परिणाम बताये जाते हैं, वो वस्तुत वे ही परिणाम होते हैं, जो संयम न करने वालों को वैसे ही हासिल हो जाते हैं।
एक बार मैंने एक नौजवान को समझाने की कोशिश की – बेटा संयम, कन्याओं के पीछे नहीं भागना चाहिए। संयम से चरित्र को बचाये रखना चाहिए।
वो बोला-फिर क्या गुरुवर।
मैंने कहा कि बेटा इस तरह से संयमशील जीवन बिताने वाले सीधे स्वर्ग जाते हैं।
नौजवान ने फिर आगे पूछा-फिर गुरुजी।
मैंने आगे बताया-स्वर्ग में अप्सराएं, परम सुंदरियां हैं। सोमरस है। आनंद ही आनंद है दीर्घकाल तक।
नौजवान बोला-गुरुजी समझ गया कि संयम का रिजल्ट यह होता है कि बंदा बाद में चाहे तो इत्मीनान से दीर्घकाल तक चरित्रहीन और संयमहीन हो सकता है।
उस नौजवान से बातचीत के बाद में मैने संयम और चरित्र की बात करना छोड़ दिया है।
संयम के मामले बहुत घपले वाले हैं। वैसे कुछ लोगों को देखकर लगता है कि काश इनके मां-बाप ने संयम किया होता। पर मेरे सोचने से क्या होता है। सोचने को तो मैं यह भी सोचता हूं कि कितना अच्छा होता अगर मैं आचार्य वात्स्यानन के टाइम में पैदा हुआ होता। विद्वान बताते हैं कि उस दौर में किसी सुंदरी को घूरना सिलेबस में शामिल था। तरह-तरह की डिटेल्स के लिए शोधरत आचार्य के छात्रों को यह छूट थी कि वे किसी सुंदरी को घूर सकते थे। यहां वहां कहीं भी किसी भी एंगल से तांक-झांक कर सकते थे। पकड़े जाने पर कह सकते थे कि देख लो आई-कार्ड रिसर्च स्कालर, आचार्यजी वात्स्यानन की किताब के लिए केस स्टडी तैयार कर रहे हैं, देख लो आई-कार्ड और ये तांक-झांक का अथारिटी लैटर।
अहा हा कैसा शोध प्रोत्साहक माहौल रहा होता।
सारे प्रदेशों की सुंदरियों के लक्षणों, विशेषताओं पर अध्ययन करने के लिए रिसर्च स्कालर सुंदरियों से विधिवत सहयोग मांग सकते थे। किसी भी सुंदरी से अनुरोध कर सकते थे, हे सुंदरी संपूर्ण अध्ययन करने दे, कहीं रोक मत, कहीं टोक मत। विस्तार से लिखना है। ज्ञान में योगदान के मामले में तू अनुदार हुई, तो आगे की पीढ़ियां तुझे कोसेंगी।
अब वो बात नहीं है। सुंदरियों में वो उदारताएं नहीं रहीं। शिक्षा के प्रति वैसा भाव नहीं रहा। रिसर्च स्कालरों के साथ सहयोग करने में वैसी तत्परता सुंदरियों में नहीं रही। इसलिए जब कोई कहता है कि शिक्षा का स्तर गिर रहा है, तो मैं खट से सहमत हो जाता हूं।
मैं फुल सीरियसता के साथ सोचता हूं कि मैं रीतिकाल के इत्ते बाद क्यों हुआ।
रीतिकाल में होता, तो रोज किसी राजा के खर्च पर पाँच –दस सुंदरियों का विश्लेषण करके कवित्त गढ़ता।
क्या धांसू दिन कटता होगा कवि का और सुंदरी का भी।
कविता के प्रति ऐसा भाव सुंदरियों में नहीं रहा। किसी कवि को, किसी रचनाकार को (व्यंग्यकार समेत) इस तरह से टाइम देने का चलन भी अब सुंदरियों में नहीं रहा। इसलिए जब कोई कहता है कि अब समाज में साहित्य के प्रति अनुराग भाव नहीं रहा, मैं खट से सहमत हो जाता हूं।
वैसे मेरे सहमत होने ना होने से होता भी क्या है। सुंदरियां बहुत संयमी होने लगी हैं।
वैसे अब की आम सुंदरी को देखता हूं-तो ईमान से सारे भाव एक तरफ, पैर छूकर उसे सम्मानित करने की इच्छा जगती है – आम सुंदरी सुबह पाँच उठकर घर भर के लिए खाना बनाये, पैक करे, बच्चों को स्कूल भेजे, फिर लुच्चों, टुच्चों के साथ बस में टंगकर दफ्तर पहुंचे। वहां कुंठितों को झेले, फिर घर आकर बच्चों के होमवर्क में अपना दिमाग ठेले, अगली सुबह के कामों की लिस्ट बनाकर अगले दिन के तनावों को पहले ही ले ले।
हे आचार्य वात्स्यानन इन सुंदरियों की परेशानियां देखते, तो काम सूत्र भूल जाते, सुंदरियों के इतने कामों को आसान करने के सूत्र लिखते।
हे आदरणीय प्रणम्य सुंदरी, मुझे पता है काम सूत्र भूलकर तुझे तरह-तरह के कामों के सूत्र की तलाश में ही भिड़े रहना होगा। क्योंकि तेरे कामों में हेल्प के लिए रीतिकालीन लुच्चे नहीं आयेंगे।
आलोक पुराणिक मोबाइल-09810018799
12 comments:
बड़े काम के सूत्र बतलाये जी आपने. तबियत मस्त हुई.
अगर अब ये रिसर्च करना चाहे तो कहा,काह इस प्रकार की सुविधाये उपलब्ध है कृपया ज्ञान दान दे..:)
असंयम की क्रांति हो रही है. आप खुद ही कह रहे थे कि नया आनेवाला एग्रीगेटर तक फिल्मी हीरोइन के पोस्टर बांटेगा. जहां देखो, मदमाता असंयम नजर आ रहा है - और आप संयम पर शोध कर कलम घिस रहे हैं.
खुले में जायें - बजाय लेख लिखने के. चालीस की उम्र इतनी ज्यादा नहीं कि असंयम न किया जाये और संयम पर लेख लिख समय बरबाद किया जाये.
असंयम में सफल भव!
बहुत मस्त लेख लिखा है\
गुरूजी बिल्कुल नये जमाने के गुरूघंटाल हो । तभी तो असयंम को शार्टकट बता डाला । बढिया है ।
आम सुंदरी सुबह पाँच उठकर घर भर के लिए खाना बनाये, पैक करे, बच्चों को स्कूल भेजे, फिर लुच्चों, टुच्चों के साथ बस में टंगकर दफ्तर पहुंचे। वहां कुंठितों को झेले, फिर घर आकर बच्चों के होमवर्क में अपना दिमाग ठेले, अगली सुबह के कामों की लिस्ट बनाकर अगले दिन के तनावों को पहले ही ले ले।
*****
बहुत सही लिखा है ।व्यन्ग्य करत्वे करते कहां पहुंच गये !पर आम सुन्दरी की काम -कुन्डली सही पहचानी ।वो कहते है न .....हां ......साधुवाद!!
पांडेयजीकी सलाह् पर अमल करके लौटती पोस्ट् से पुष्टि की सूचना दें।
गुरु उ सब तो ठीके हे, पन जे रिसर्च वाली जगह और उहां पहुंचने का जुगाड़ ज़रा हमको ई-मेल करेंगे का, बाकी अपन आपका ख्याल रख लेंगे चिंता ना करिएगा!
अब वो बात नहीं है। सुंदरियों में वो उदारताएं नहीं रहीं। शिक्षा के प्रति वैसा भाव नहीं रहा। रिसर्च स्कालरों के साथ सहयोग करने में वैसी तत्परता सुंदरियों में नहीं रही।
--अति मार्मिक.आँख भर आई.
ज्ञानदत्त जी की बात ने उत्साह बढ़ाया वरना तो आँसू टपक ही जाते. हमें भी ४० बसंत पार किये गिनती (जो उंगलियों पर गिने जा सकें):) के बसंत ही बीते है. सेब खाते खाते पाण्डे जी को बहुत साधुवाद .
--बहुत बेहतरीन हमेशा की तरह.
पहली तो बात यह कि व्यंग्यकारों को सुंदरियों ने कभी टाइम नहीं दिया. रही बात अपकी स्वर्ग और संयम वाली स्थापना की, तो इस संदर्भ में दो शेर अर्ज हैं. एक ग़ालिब का और दूसरा दाग का. तो पहला है :
मुझको मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिन
दिल को खुश रखने का ग़ालिब ख़्याल अच्छा है.
और दूसरा
जिसमें लाखों बरस की हूरें हों
ऎसी जन्नत को क्या करे कोई?
अच्छा है आपने संयम की सलाह देनी छोड़ दी. वर्ना सोचिए वहाँ पहुंच कर कितना असंयम पूर्ण माहौल हो जाता!
हे गुरुदेव आप नए जमाने के कामसूत्र की रचना आरंभ करें। आपके साथ रिसर्च स्कॉलर का काम हम करेंगे, बस हमें आई कार्ड तथा अथॉरिटी लैटर वगैरा दे दीजिएगा।
वाह हम कहां थे कल ! यहां तो सोमरस नहीं नहीं,...सेबरस की वर्षा होइ रही है....कुछ रिसर्च विसर्च जैसा भी कानों में पड रहा है !! वैसे आम सुंदरी की जीवन कथा पर आपके रिसर्च परिणाम बहुत सही है !
Post a Comment