अर्निका, उत्पातठेलू, वितंडात्राप्तक, वैदिगोषांतकू, डल्कामारा..........
आलोक पुराणिक
लेखक की कई आफतों में से एक यह है कि उसके बारे में माना जाता है कि वह पढ़ता भी होगा।
लिखने वाले जानते हैं कि लिखने के लिए यह जरुरी नहीं है कि पढ़ा जाये बल्कि बहुत हिट किस्म के लेखक तो वही होते हैं, जो पढ़ने में टाइम वेस्ट नहीं करते।
अजी दूसरों की ही पढ़ने में रह जायेंगे, तो अपना कब लिखेंगे जी।
पर नहीं, लेखक को लोग पाठक भी मानते हैं और अपने बच्चों के नाम रखवाने चले आते हैं। नाम बताने में आफत नहीं, विष्णु प्रसाद से लेकर रामनारायण कुछ भी हो सकता है।
पर आफत तब होती है, जब मां-बाप कहते हैं कि कुछ नयी चाल का सा होना चाहिए।
ऐसा होना चाहिए जैसा कभी किसी का न हुआ हो। किसी बच्चे के नाम रखने की क्षमता के हिसाब से फैसले होने लगें, तो जी मैं कालिदास और शेक्सपियर से बड़ा राइटर हूं, अब तक करीब 6789 बच्चों के नाम रख चुका हूं।
पर अब दिक्कत होने लगी है, कहां से लायें यूनिक नाम।
पहले बहुत दिनों में मैंने बिजली विभाग से काम चलाया। नया नाम कोई पूछने आता-मैं कहता अगर लड़का हो, तो करंट रख दो और लड़की हो, तो विद्युत।
पहले लोग चौंकते थे कि करंट और विद्युत। कुछ औड सा नहीं लगेगा जी।
मैं समझाया करता था कि देखिये अब सारे टाप काम औड तरीके से होते हैं। पहले नेता सिंपल घोटाले करते थे, मकान में खा गये, पुल में खा गये। अब नेता चारा खाता हैं-कुछ औड सा लगता है क्या, नहीं ना। टाप क्लास बंदों के काम कुछ औड से होते हैं। सो आप करंट रखिये।
सो मेरे मुहल्ले में अब करीब पंद्रह करंट खेलते हैं।
और विद्युत नामक बालिकाओँ की संख्या भी करीब बीस है।
विद्युत नाम से शुरुआत में कुछ मांओं ने आपत्ति की, पर मैंने उन्हे समझाया कि देखिये पुरानी फिल्मों में हीरोईनों के नाम बिजली हुआ करता था। यह विद्युत उसी बिजली का सुधरा हुआ रुप है। एक ही परिवार में एक बालक हो, एक बालिका हो, तो क्या धांसू सैट बनता है-करंट और विद्युत।
मेरे मुहल्ले में करीब सात परिवार ऐसे हैं, जहां विद्युत और करंट दोनों हैं।
अलबत्ता बिजली फिर भी गायब रहती है।
लोग विद्युत और करंट से ऊबने लगे हैं।
बताइए, विद्युत और करंट चाहिए, पर नहीं चाहिए।
जब होम्योपैथी बहुत पापुलर नहीं थी, तब मैं नामों के लपेटे में होम्योपैथी में घुसा था। उस दौर की कई अर्निका नामक बालिकाएं अब तो कालेज भी जा रही हैं। एक बहुत उत्पाती बच्चे का नाम मैने डल्कामारा भी रखा था। कई बच्चे कैलकेरिया फास नाम से भी हैं।
पर अब होम्योपैथी सीरिज के नाम नहीं चल पाते।
अब नामकरण के लिए एकदम स्पांटेनियस बुद्धि का इस्तेमाल करता हूं। जो बन जाये।
एक बालक कल बहुत उत्पात मचा रहा था, मां की गोद में। मां कान्वेंट शिक्षिता, एकैदम-आई डोंट नो हिंदी, यू नो-टाइप। मां का आग्रह था कि कुछ डाइनामिक रखिये-मैंने कहा-उत्पातठेलू। वाऊ-कहकर मां ने ग्रहण किया।
इधर के मां-बाप नाम का यूनिक साउंड भर देखते हैं, मतलब-वतलब नहीं ना पूछते।
कल दो विकट उत्पात बच्चों के डाइनामिक नाम रखे हैं- विंतडात्राप्तक, वैदिगोषांतकू।
मतलब ना पूछिये जी।
मुझे भी नहीं मालूम, पर नाम नयी चाल के डाइनामिक से हैं ना।
आलोक पुराणिक मोबाइल-09810018799
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13 comments:
आलोक पुराण में नामनामा पढ़कर रोमांचित हूं..जो सीरिज़ नामों की जारी हुई है उसके मद्देनज़र लगता है वह दिन दूर नहीं जब..सरियामल,मोडेमलाल,खिड़्कीचंद,पेनड्राइव,हार्ड-डिस्क,ब्लूप्रिंट,ले-आऊट,कारपेट,पाइप,करंसी,एटीएम,बूफ़र,एग्रीगेटर,मोबाईल,सीडी (मेरे अपने श्वान का नाम तो है ही)बुकलेट,ब्रोशर आदि निर्जीव नाम भी सजीव होने लगें.आपने क्लू दे दी है ..मामला चल निकलेगा सर !
नाम बहुत अचछे है जी पर कुछ पिछ्डे हुये लग रहे है,जरा कार्डियोलोगर .कार्डियोलोजिका,जैसे ट्राय कर देखिये आप का नम रखाउ कस्टमर बढ जायेगा :)
कालिदास और शेक्सपियर से बड़ा राइटर हूं, इसमें क्या प्रश्न चिन्ह है. हम तो आपको यही माने बैठे हैं. खामखां प्रश्न उठाते हैं. अब बताओ, कुछ साल बाद पोता पोती होंगे, उनके क्या नाम रखें?? अभी से बता दो. जौन हिसाब से लिख रहे हो, हमें नहीं लगता उस समय टाईम दे पाओगे. :)
समीरलालजी को नाम् मत् बताइयेगा वर्ना अभी से किसी को बता देंगे यह् कहते हुये कि बताना नहीं पोते का नाम् है। टीवी वाले उनको तदन्तर् आपको घेर् लेंगे और् पूछने लगगें कि आपको कैसे पता पोता ही होगा।
आप तो शैक्सपियर से भी बड़े राइटर हैं जी वो तो कहता था .."नाम में क्या रखा है ?" और आप तो नाम ही रख दे रहे हैं. मान गये जी !!
भई वाह।
:)
करंटीयविद्युतात्मकट्रांसफार्मरीय टिप्पणी सूझी ही नहीं क्योंकि देर तक मैं हँसता रहा हँसता रहा हँसता रहा...
जनसेवा का ऐसा उद्रेक, समर्पण भावना.. ओह, मांएं आपका पड़ोस पाकर कैसे गिर-पड़ रही होंगी.. ताजुब्ब होता है आप अब तक खड़े हैं?.. हंस रहे हैं?.. भावना समर्थ को रहने दीजिए, मगर उद्रेक, समर्पण व जनसेवा नामों को भी एक ट्राई मारके देखिए.
ह्म्म, सही है।
मतलब जे कि अब नाम की अगली सीरिज़ कुछ ऐसी हो सकती है---आलोकत्मक, पुराणिकात्मक, अगड़मेश-बगड़मेश।
आपका गद्य मुझे बहुत आकर्षित करता
टिप्पणी नहीं कर पाता हूँ पर पढ़ता जरूर हूँ।
हे प्रभो मैं तो आप को काम रस का प्राध्यापक जनता था. यह आप अचानक हिंदी, नहीं-नहीं बल्कि संस्कृत की क्लास क्यों लेने लगे? किसी को नाम न मिले तो मेरी ओर भेज दीजिएगा. मैं सोच रहा हूँ नाम वाली एक कंसल्टेंसी खोलने को. भरोसा रखिए, हर नाम ३० परसेंट कमीशन आपका. बिल्कुल वैसे जैसे पैथलोजी वाले दे देते हैं डाक्टर को. बोलिए कैसा रहेगा?
कुछ सुझाव - चिट्ठाचंद, टिपियालू, पोस्टप्रकाश, फीडराम आदि।
इंग्लिश टाइप का चाहिए तो - मिस्टर ब्लॉगर, मिस कमेंट, ब्लॉगड़ा, ब्लॉगिया
शरारती बच्चों के नाम - स्पैमचंद, दंगेबाज, होहल्ला, स्प्लॉगप्रसाद, बेनामचंद, अनॉनिमस सिंह, ट्रॉल सिंह।
नोट: ऊपर हर नाम के लिए ३०% कमीशन हमारे पते पर भेज दिया जाए। आपके लिए विशेष छूट है वरना औरों से ५०% लेते हैं।
होम्योपैथिक नामकरण -भाई खूब ! क्या ढूँढ के लाये हैं । वैसे हम भी डल्कामारा को सि्र्फ़ दिल के मारों की ही दवा बताते हैं :) और KALI BI को काली बाबू जैसे लोगों के लिये ।
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