राम के बाबू
आलोक पुराणिक
मां हड़का रही हैं, रोज सुबह ब्रह्ममुहुर्त में उठकर ये क्या अगड़म-बगड़म पोस्ट करता है। कुछ राम के नाम का चिंतन किया कर।
मां की बात मानी है आज।
राम पर चिंतन किया है।
राम पर चिंतन करते हुए राम बाबू याद आ गये, ड्राइविंग लाइसेंस दफ्तर वाले। जिन्होने कई दिनों से मेरा लाइसेंस इसलिए लटका रखा है कि मैं थ्रू प्रापर चैनल क्यों नहीं आया। ड्राइविंग लाइसेंस दफ्तर में थ्रू प्रापर चैनल का मतलब होता है, अफसर टाइप एक दलाल के थ्रू एक दलाल टाइप के अफसर तक पहुंचना। सीधे अफसर तक पहुंच जाओ, तो चैनल डिस्टर्बैंस मान लिया जाता है। डिस्टर्बैंस की सजा यह है कि दफ्तर के राम बाबू मामला अटका देते हैं। सो मैं भी लाइन में अटका हुआ था। सो राम याद नहीं आ रहे थे, राम बाबू याद आ रहे थे।
राम के दरबार के कई फोटू देखे हैं। उसमें सीने को फाड़कर दिखाते हुए हनुमान देखे हैं, पीछे सन्नद्ध, कटिबद्ध मुद्रा में लक्ष्मणजी हैं। रामजी के साथ वाली सीट पर सीताजी हैं। स्वर्ग में ऊपर से पुष्प-वर्षा करते देवतागण हैं। पर रामजी के दरबार-दफ्तर में मैंने कोई बाबू नहीं देखा।
मैंने बाबा पोंगा शास्त्री उर्फ बापोंशा से यही निवेदन किया-सरजी राम के दरबार में एक भी बाबू नहीं, फिर ये राम बाबू का कंसेप्ट कहां से आया होगा।
यही तो पेंच है बेट्टा, अगर रामजी के दरबार, दफ्तर में बाबू हुए होते, तो कोई बवाल नहीं हुआ होता। सीता हरण का तो सवाल ही नहीं हुआ होता। लंका में युद्ध का धमाल न हुआ होता।
रामजी के यहां बाबुओं की उपस्थिति का इन प्रकरणों से क्या संबंध है, सो कहें-मैंने आग्रह किया।
देख, अगर रामजी के यहां बाबू लोग होते, तो तो राम गमन की फाइल को बाबू लोग ऐसे डील करते कि पहले फाइल पर सबसे दशरथ की टिप्पणी होती, फिर गुरु वशिष्ठ की विशेष टिप्पणी के लिए फाइल भेजी जाती। फिर गुरु वशिष्ठ के दफ्तर से बाबू स्पेशल रेफरेंस के लिए महर्षि जमदग्नि, महर्षि कर्णव, महर्षि पिप्पलाद, महर्षि याज्ञ्यवल्क्य, महर्षि गर्ग, महर्षि शांडिल्य, महर्षि दुर्वासा, के पास थ्रू प्रापर चैनल भिजवाते।
थ्रू प्रापर चैनल का मतलब कि राम के वन-गमन की फाइल गुरु वशिष्ठ के आफिस के सेक्रेट्री, स्पेशल सेक्रेट्री, डिप्टी सेक्रेट्री, जाइंट सेक्रेट्री, अंडर सेक्रेट्री, डाइरेक्टर, डिप्टी डाइरेक्टर, अंडर डाइरेक्टर, सेक्शन अफसर, बड़े बाबू और राम बाबूजी के पास से होते हुई इन सारे ऋषियों के दफ्तर में इन सारे अफसरों के पास पहुंचती।
ऋषियों के दफ्तर में इन अफसरों के थ्रू होते हुए फाइलें जब तक वापस रामजी के दरबार में पहुंच पातीं, तब तक पचास-साठ साल निकल गये होते। नो क्वश्चन आफ वन गमन-बाबा पोंगा शास्त्री बता रहे हैं।
पर सीताहरण तो रावण अयोध्या में आ कर सकता था-मैंने अपनी शंका व्यक्त की।
अच्छा तू बता, छह महीनों से ड्राइविंग लाइसेंस के दफ्तर में चक्कर काट रहा है, राम बाबू के रहते तू क्या एक पिद्दी से लाइसेंस का हरण कर पाया है-पोंगा शास्त्री पूछ रहे हैं।
नहीं।
तो बता राम बाबू के रहते अगर रावण अयोध्या में आता, राम दरबार में एंट्री भर के लिए राम बाबू रावण से पचास एप्लीकेशन फार्म भरवाते और परमीशन के लिए छह महीने तक इतने चक्कर लगवाते कि रावण राम बाबू के दफ्तर के बाहर खड़ा-खड़ा ही टें बोल जाता और तब राम को मारने का क्रेडिट राम के खाते में नहीं, राम बाबू के खाते में आता। राम के बाबुओं के ऐसे महत्व को देखकर ही ऋषि मर्णव ने भविष्यवाणी की थी कि कलियुग में राम बाबू नाम बहुत पापुलर होगा-पोंगा शास्त्री बता रहे हैं।
अब मुझे पक्के तौर पर राम के साथ-साथ राम बाबू का महत्व भी समझ में आ गया है।
आलोक पुराणिक मोबाइल-09810018799
Tuesday, July 17, 2007
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15 comments:
मैं थोड़ा सा हिस्ट्री-माइथॉलॉजी-जूलॉजी मिला दूं; राम बाबू में बाबू असल में बैबून या बन्दर का देशज शब्द है. इन सब ने राम की जो सहायता की वह सर्व विदित है. सो इन सब को कलियुग में मलाई चाटने का वरदान थ्रू प्रॉपर चैनल, पुराणों की फाइलों में सेंक्शन हुआ है.
अत: बेचारे बैबून या बाबू अगर जो कुछ कर रहे हैं वह कर्म फल सिद्धांत और पुनर्जन्म सिद्धांत के आधार पार समझाया जा सकता है.
आप शास्त्रों का अध्ययन कार एक शोधात्मक लेख लिखें. यह रोज वाला अगड़म-बगड़म लेख पर्याप्त नहीं है! :) :)
आपके लेख की तारीफ़ राम के बाबू के माध्यम से भेजवा रहा हूं। कृपया पावती भेंजे।
सारे नतीजे सही निकाले हैं.
ग्यानदत्त जी सोसियोलॉजी ,ऎंथ्रोपोलॉजी मिलाना भूल गये ! भई हम तो कहेंगे बाबू कल्चर असल में कलियुग में भगवान राम का अवतार ही है !इन बाबूओं के हीबल पर हमारा कलजुगी भारतवर्ष टिका है वरना का महाविलाश हो गया होता जी
देखिए, तारीफ़ पाने के लिए थ्रू प्रॉपर चैनल आना चाहिए आपको और वो भी चढ़ावे के साथ!
क्या बात है, कल रवीश हनुमान मय हो रहे थे और आज आप रामनामी हो गए...
राम के बाबू, सुकीरत की अम्मा
खेल रहे दोनों, धड़क छम्मा-छम्मा
समझ में आया? मुझे भी नहीं आया.
इक दिन एक राम बाबू हमसे आ टकराए,हमने पूछा -रख कर नाम राम का तुमने क्यों प्रजा के काम अटकाए। बोले- ये तो महिमा राम की,जिनकी कृपा से हम ये पद पाए, वरना हम भी आज खड़े होते लाइन में मुंह लटकाए।
अब राम के द्वारे कोई खाली हाथ थोड़े ही जाता है। सुदामा तक सत्तू ले गए थे।
हरि अनंत हरि कथा अनंता. लिखे जाओ. :)
माता जी की डांट सुनकर भी सुधरे नहीं. राम की जगह रामबाबू को याद करने लग गए. आंयं! क्या चाहते हैं. अब भौजाई को बताएँ आपकी करतूत कि आप असल में किसलिए रोज ट्रांसपोर्ट ऑफिस जाते हैं?
देखो ओ दिवानों तुम ये काम ना करो...
राम का नाम बदनाम ना करो...
राम को समझो कृष्ण को जानों...
समझे आलोक बाबू!
वैसे गुरु देव आप यहा गलत आक्षेप लगा रहे हो ,अब ये काम अफ़सर करते है,और सारा माल भी खुद ही खा जाते है,हमे तो बस लिख कर लाओ,और हस्ताक्षर कराकर भेज दो बोला जाता है अब..चाहो तो जांच करालो. हम तो बस नाम के है,अब तो अफ़सर सारे है बंदर ,माल है सारा उन के घर के अंदर.:)
Alok ji sakaari karya pranaali per aapki samajh sarahneey hai...aur aapki bhashaa toh mashaa allah ...aisa lagta hai mano kahin sadak kinaare pulia per bethe kisse sun rahe hon....aap ke saath is addebaazi ka ek apna hi mazaa hai...aapke kal ke lekh ka intezaar rahega, kal ki addebaazi ke liye....bahut bahut badhaai ..yeh lekh bhi bahut sunder hai
राम राम जी,आपने रामबाबू का चीर हरण कर अच्छा नहीं किया.आइये तो सही हमारे द्फ्तर अगली बार.देख लेंगे...
राम बाबू की जय...अब तो राम बाबू की आरती ही गाया करेंगे. :)
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