Friday, July 6, 2007

गर्मी में रैकेटबाजी

र्मी में रैकेटबाजी
आलोक पुराणिक
यह निबंध उस छात्र का है, जिसने निबंध प्रतियोगिता में टाप किया है। निबंध का विषय था-बैडमिंटन।

बैडमिंटन, जैसा कि
सब जानते हैं कि टेनिस अथवा बिलियर्ड्स नहीं होता। बिलियर्ड्स, जैसा कि पुराने लोग जानते हैं कि तमाम फिल्मों में दिखाया जाता था और तमाम स्मगलरगण इसे खेलते थे। और टेनिस जैसा कि सब जानते हैं कि हिंदी फिल्मों में दिखाया ही नहीं जाता। क्योंकि स्मगलर टेनिस में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाते। टेनिस में स्मगलरों की दिलचस्पी क्यों नहीं हुई, यह बात गहन शोध का विषय है। पर बात तो बैडमिंटन की हो रही थी। तो कर लेते हैं ना बैडमिंटन पर। हिंदी में कोई भी असल बात कम से कम पांच सौ शब्दों के बाद आती है, मैं तो एकाध पैराग्राफ के बाद ही आ लिया जी। बैडमिंटन की हमारे सांस्कृतिक, सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक जीवन में महती भूमिका है। गर्मी की छुट्टियों में लड़के सुबह-सुबह पार्क में बैडमिंटन रैकट लेकर आते हैं।
कतिपय सौभाग्यशाली और प्रयत्नशाली तो कुछ
सुंदर कन्याओं के साथ बैडमिंटन खेलने का जुगाड़ भी कर लेते हैं।
जो नौजवान सुंदरियों के साथ बैडमिंटन खेलने का जुगाड़ नहीं जमा पाते, वे सुंदरियों अथवा उनके साथ खेलते नौजवानों या बैडमिंटन अथवा तीनों की आलोचना शुरु कर देते हैं।
ऐसी आलोचनाओं में एक यह भी होती है-अंग्रेज चले गये, बैडमिंटन छोड़ गये।
हालांकि ऐसे कथन का ना बैडमिंटन पर कुछ असर पड़ता है, न ही अंग्रेजों पर। और सुंदरियों पर तो कतई ही नहीं पड़ता।
कहना अनावश्यक है कि सुंदरी सैटिंग की ऐसी जोरदार संभावनाएं भारतीय खेलों में नहीं हैं। हां, मनमोहन देसाई के करतब इस नियम के अपवाद हैं। उन्होने नसीब नामक फिल्म में एक गर्ल्स कालेज और बायज कालेज की टीमों के बीच कबड्डी का टूर्नामेंट करवाया गया था। दुर्भाग्य से स्वदेशी को सम्यक प्रोत्साहन न दिये जाने की नीति के चलते इस तरह के कबड्डी टूर्नामेंट पापुलर नहीं हुए।
और नौजवानों को फिर बैडमिंटन की शरण में जाना पडा।
यहां यह स्पष्ट कर देना समीचीन होगा कि बैडमिंटन की आगे संभावनाएं कौन कितनी बना लेगा, यह प्रश्न अलग है। बैडमिंटनोत्तर स्थितियों में बैडमिंटन की कोई भूमिका नहीं होती। सब कुछ बैडमिंटन ही कर लेगा, तो भईया तू क्या करेगा। बैडमिंटन सिर्फ माध्यम है। हां बैडमिंटन माध्यम है, बास को सैट करने का। चालू बंदे बास के साथ बैडमिंटन खेलते हैं और एक के बाद एक गेम हारते चले जाते हैं। बास खुश हो जाता है। इसको कहते हैं-सैटिंग –ए-बैडमिंटन –हारने वाला पार हो जाये।
शटलकाक की बहुत जोरदार भूमिका है, इस खेल में, ठीक वैसी ही, जैसी जोरदार भूमिका पब्लिक की बतायी जाती है, लोकतंत्र में। पब्लिक के बगैर लोकतंत्र का काम नहीं चलता, शटलकाक के बगैर बैडमिंटन का काम नहीं चलता। वैसे विद्वानों का मानना है कि शटलकाक और पब्लिक में बहुत समानता होती है।
समानता यह है कि लोकतंत्र या बैडमिंटन में जीते चाहे जो, पिटाई पब्लिक या शटलकाक की ही होती है।
बैडमिंटन डबल्स में भी खेला जाता है और सिंगल में भी। डबल्स में खेलने का फायदा यह होता है कि हारने के बाद एक साइड के दोनों खिलाड़ी हार के लिए एक –दूसरे के जिम्मेदार ठहरा सकते हैं।
गठबंधन पालिटिक्स में भी यही बैडमिंटनी गुर अपनाया जा सकता है। बल्कि अपनाया जाता है।
बैडमिंटन में जोरदार खेल के लिए जोरदार रैकेट होना चाहिए। वैसे तो किसी भी फील्ड में जोरदार खेल दिखाने के लिए जोरदार रैकेट होना चाहिए। बैडमिंटन के जरिये किसी ठीक-ठिकाने के बास को सैट कर लिया जाये, तो फिर रैकेट चलाना काफी आसान हो जाता है।
इस तरह से हम कह सकते हैं कि बैडमिंटन में रैकेट की भूमिका होती है, साथ ही रैकेट में भी बैडमिंटन की भूमिका होती है।
आलोक पुराणिक मोबाइल-09810018799

9 comments:

Udan Tashtari said...

क्या बेहतरीन कम्पेयर किया है भाई बैडमिन्टन और लोकतंत्र को.

टूटी शेटककॉक की तरह टूटा हुआ आदमी भी गोल गोल घूमता है और किसी काम का नहीं रह जाता. तोडने वाला कोई और नहीं, यही रैकेट और राजनितिज्ञ!!!

मजा आ गया पढ़कर आपकी सुबह सुबह-हालांकि यहाँ शाम है. :)

काकेश said...

बहुत अच्छे.. आप भी रैकेट बाजी में शामिल हो गये.

सुजाता said...

जे किस "रेकेट" की बात कर रिये हो हुजूरेवाला । वैसे इस छात्र का सामान्न गियान गुड है जी कित्ते न्म्बर दिये ?जे देखो लोकतन्त्र तक पहुचा दिया इसने बिसय को । इसे कहते है बिसय बिस्तार ।भेरी गुड !

Gyan Dutt Pandey said...

खेल कबड्डी

बदल ले पाला
पकड़ ले रैकेट

कर घोटाला

---------

गड़बड़झाला
मस्त मसाला!

Sanjay Tiwari said...

तूने गिरायी है, तू ही निकाल
तूने फंसाया है, तू ही संभाल
जय हो.

Arun Arora said...

हम तो अब एम्पायर बनने के लिये एकैदम तैयार है.
है जगह...?

Sanjeet Tripathi said...

वा वा , बढ़िया है, रैकेट के बाद अगली बार "रिंग"?

सुनीता शानू said...

अबही टिप्पीयाई रहे है अरूण भैया कहीं आप भी पंगेबाज की तरह नाराज ना हो जाओ...आज समीर भाई के चिट्ठे से प्रेरित है भाई बिन पढ़े ही टिप्पीया रहे है...:)कहो तो उन्ही की तरह हम भी थौड़ा इहां कट-पेस्ट भी करी दें...कौनो जान नही पा सकत की हम बिन पढे ही कमैंट देई रहे है...:) स्माईली भी दे दिये है...

सुनीता(शानू)

सुनीता शानू said...

का करे फ़िर आना ही पड़ा हम तो अरूण भया के जाने का गम बर्दाश्त नही कर पाये है गलती से आपको अरूण भैया लिख बैठे है आप मान लो भाई कि वहाँ आलोक भैया लिखा है...भूल-सुधार लेनी-देनी...:)

सुनीता(शानू)