Thursday, July 5, 2007

भरे पेट की आत्मा

भरे पेट की आत्मा
आलोक पुराणिक
भारी भीड़ थी ट्रेन में। जाना जरुरी थी। रिजर्वेशन नहीं था। टीटीई को दो सौ रुपये दिये, एक बर्थ मिल गयी। बर्थ पर सोने जा ही रहा था कि आत्मा जग गयी।
आत्मा ने जगकर धिक्कारा-अबे नराधम, तू देश को चौपट करता है। रिश्वत का लेन-देन करता है।
रिश्वत का लेन-देन नहीं, सिर्फ देन ही देन, लेखक चिरकुट कहां से रिश्वत लेता है री आत्मा-मैंने आत्मा को करेक्ट करने की कोशिश की।
नहीं गलत बात है-आत्मा ने फिर धिक्कारा।
देख आत्मा, तेरा निवास इस शरीर के अंदर है। यह शरीर सुरक्षित रहा, तब ही तू सुरक्षित रहेगी। तुझे सुरक्षित यात्रा कराने के लिए मैंने जो कुछ किया, तेरी भलाई के लिए किया-मैंने आत्मा को समझाने की कोशिश की।
आत्मा खिचर-खिचर करती रही।
शरीर सो गया।
मैंने देखा है कि आत्मा बहुत चालू हो गयी है।
जब दो सौ रुपये रिश्वत के दे रहा था, तब नहीं जागी।
जब फुल-फ्लैज्ड आराम का जुगाड़मेंट हो लिया, तब खटके से जग गयी।
पर ऐसा सिर्फ मेरे साथ नहीं है। एक मेरे मित्र हैं, पुराने क्रांतिकारी टाइप। अब अश्लील फिल्मों के लिए स्क्रिप्ट लिखते हैं। पांच लाख एक महीने में पीटते हैं। कभी-कभार चिकन-स्काच ज्यादा हो जाती है, तो एक झटके में आत्मा जग जाती है-क्या कर रहे हैं हम लोग। हमें देश बदलना था। देश की सेवा करनी थी।
मैं समझाता हूं-अब भी देश की सेवा कर रहे हो। स्वदेशी उद्योग की सेवा कर रहे हो। अश्लील फिल्में इंडिया में बना रहे हो, वरना भाई लोग इंपोर्ट करके देखते। यह देश की सेवा है।
पर नहीं, आत्मा जाग उठती है। पर पेट भरा होने के बाद ही, बहूत काइयां हो ली है आत्मा।
आत्मा से एक बार मैंने पूछा-क्यों री, तू पेट भर जाने के बाद ही क्यों जागती है।
क्योंकि पहले पेट मुझे टेकओवर कर लेता है। पेट का काम खत्म होने के बाद ही मुझे मौका मिलता है-आत्मा ने बताया।
बात सही है। पेट आत्मा को टेकओवर कर लेता है। पेट का मामला ठोस है, मजबूत है, पक्का है कि है और दिखता है। आत्मा को लेकर यह सब नहीं कहा जा सकता। सो पेट धर दबोचता है आत्मा को।
पेट के इंतजाम चकाचक हो जायें, फिर आत्मा का नंबर आता है।
एक हैं मोटे पेट वाले, स्मगलिंग से कमाये करोड़ों।
फिर आत्मा जग गयी, चार मंदिर बनवा दिये। और महीने में एक जागरण करवाते हैं।
भरे पेट की आत्मा जग जाये, तो फिर जागरण के हल्ले में मुहल्ले में बहुतों को जगाती है।
पर कई हैं, जिनकी कभी नहीं जगती या जगती भी है, तो बहूत चालूपने के साथ।
एक नेता हैं, पिछले पांच साल में बीस बार पार्टियां बदली हैं, हर बार आत्मा की आवाज पर। मैंने उनसे कहा-आपके अंदर पांच बार आत्माएं जगी हैं। अब तो पांच वैरायटी की आत्माएं हो गयी होंगी अंदर। बीजेपी से लेकर कांग्रेस की आवाज वाली आत्मा।
नेताजी हंसने लगे, जैसे प्रेतात्मा ठहाके लगा रही हो।
आत्मा सच में होती है या नहीं-एक बच्चा मुझसे पूछ रहा है।
आत्मा या आत्मा की आवाज होती है या नहीं, यह तो पता नहीं, प्रेतात्मा की आवाज जरुर होती है। यह पक्के तौर पर पता लग गया है, नेताजी को देखकर –मैंने बच्चे को फाइनली समझा दिया है।
आलोक पुराणिक मोबाइल-09810018799

6 comments:

Arun Arora said...

ये आप क्या अगडम बगडम लिख रहे है,अभी मै सो रही हू जागते ही आपकी खबर ली जायेगी.
आत्मा

Udan Tashtari said...

अगला जागरण अगस्त ३ तारीख को है, कृप्या पधारे... :)

--कोई ऐरिया तो रिजर्व रहने दो भाई..कि हर जगह खोद डालोगे.. :) गलत आदमी के हाथ कुदाल लग गई दिखे है...देखना जरा, ज्ञानदत्त भाई..बस अब आपका आसरा है, यह बंदा तो समझो हाथ से निकल गया. हा हा!!!!

सुजाता said...

सही कहते है -आत्मा बडी चालू हो गयी है । वैसे प्रेतात्मा कहना ही सही है । क्योंकि धनोल्टी गये थे तब ही हमने आत्मा को खाई मे धकिया दिया था । घर लौटे तो द्वार पर खीसे निपोरती मिली ।कि बच्चू मै आत्मा हूं कब तक पीछा छुडाओगे !

neeraj tripathi said...

barhiya lekh hai....
Sahi kaha aapne .... aatma bahut kam der ke liye jaagti hai , wo bhi pet bhara hone ke baad :-)

Gyan Dutt Pandey said...

इस लेख से केवल यही प्रमाणित होता है कि आप यात्रा पर जाने से पहले 3-4 जून का खाना एक साथ चांप कर निकलते हैं. अन्यथा आत्मा जग कैसे गयी?

वैसे जो आदमी इतना कस के खा सकता हो और फिर यात्रा की सोच सकता हो - उसकी बात का क्या भरोसा. पेट गुड़-गुड़ कर रहा हो और उसे आत्मा मान कर पोस्ट लिख बैठे?! :)

ब्लॉग का फॉण्ट मस्त लग रहा है.

Sanjeet Tripathi said...

अरे!! अभी भी बची हुई है का कई जगहों पर इ आत्मा नाम की चीज, हमका तो आज ही मालूम चला !!

मस्त लिखा है आपने, तखल्लुस "मस्ताना" काहे नही रख लेते आप, हे हे