दिल की कॉल नहीं, कॉल सेंटर
आलोक पुराणिक
रास्ते कई हैं। रास्ते दिखाने वाले उनसे ज्यादा हैं।
जी मैं आध्यात्मिक रास्तों की बात नहीं कर रहा हूं। वहां तो भभ्भड़ मचा हुआ है। मार ट्रेफिक जाम हो रखा है। एक बाबा प्रवचन करते हैं-परमात्मा की विरह अग्नि में मैं तप रहा हूं, ऐसा वह चार एयरकंडीशनरों वाले कमरे में बैठकर बोलते हैं। भईया ऐसे चार एयरकंडीशनरों का जुगाडमेंट हो ले,तो हम भी तपते रहें विरह अग्नि में। बाहर पैंतालीस सेंटीग्रेड के टेंपरेचर में रास्ते में निकलो, तो सिर्फ एक ही डर होता है कि भईया हम न तप लें। बाबाजी को यह गर्मी नहीं व्यापती, इसलिए विरह अग्नि अफोर्ड कर सकते हैं। घरवाले कहते हैं कि प्याज जेब में धर लो, लू-लपट से बच जाओगे। पर सस्ता प्याज कहां मिलता है, इसका रास्ता भी कोई बाबा नहीं बताता। सारे के सारे परमात्मा में उलझे हुए हैं।
टीवी पर एक और बाबा कह रहे हैं, आत्मा में परमात्मा है। दूसरे कह रहे हैं कि परमात्मा ही दरअसल आत्मा है। दोनों बाबाओं के चेहरे पर तर माल की आभा है। दोनों को आत्माओं की बेहतरी के रास्ते पता हैं, शरीर को सुरक्षित रखने की चिंताओं से बहूत आगे जा चुके बंदों का यही होता है। अपनी चिंता अभी शरीर को सुरक्षित रखने की है, सो रास्ता पूछते हैं उस दुकान का, जहां सरकार सस्ती दालें बिकवाने की घोषणा करती है।
घोषणाएं सबको मालूम हैं। पर ऐसी दुकानों का रास्ता किसी को नहीं मालूम।अपन सस्ती दाल की दुकान का रास्ता देख रहे हैं।
बाबाजी आत्मा-परमात्मा के रास्ते दिखा रहे हैं। रास्ते दिखाने का प्रवचन जिसने स्पांसर किया है, उस खब्बूमल कट्टोमल फर्म के मालिकान को जानता हूं, आटे की जमाखोरी में इनके बाप बंद हुए थे इमरजेंसी के दौर में। बहुत रकम पीट ली थी। बंदा एक बार चकाचक इंतजाम कर ले, फिर आत्मा-परमात्मा पर पवचन क्या, परमात्मा को ही स्पांसर कर सकता है। स्पांसर क्या, खुद को ही डिक्लेयर कर सकता है।
सो साहब अभी हम तो बहूत बेसिक किस्म के रास्ते पूछते हैं जैसे अग्रवाल स्वीट हाऊस या अमर सर्कस का रास्ता। यार की गली का रास्ता पूछने के लिए जिस किस किस्म का कलेजा चाहिए, वह हरेक के पास नहीं होता। फिर अब यार के पास फुरसत नहीं है।
अधिकांश यार पढाई पूरी करने से पहले की काल सेंटर में भरती हो रहे हैं। दिल की कॉल सुनने का टाइम नहीं है। टाइम है तो नोट छापने में लगाया जाये। इसलिए अब यार की गली के रास्तों का जिक्र लेखकों की रचनाओं में नहीं होता।
जिक्र तो रास्ते बताने वालों का हो रहा था।
रास्ते तरह-तरह की स्टाइलों में बताये जाते हैं। हमारे छोटे शहर में रास्ते अलग तरह से बताये जाते थे। वहां का स्टाइल यह है, किसी सडक पर पूछिये-गुप्ताजी हैं। एक बंदा टेढे एंगल से आपकी ओर देखता हुआ पूछता है, वही गुप्ताजी, जो अभी रिश्वत के आऱोप में पकड़ लिये गये हैं।
अब पूछने वाला सकपकाता है-जी पता नहीं , वह तो टेलीफोन के दफ्तर में काम करते हैं।
टेलीफोन दफ्तर वाले गुप्ताजी की तो लड़की भाग गई है। उन्ही के यहां जा रहे हैं आप-टेढे एंगल वाला चालू रहता है।
पूछने वाला फिर सकपकाऊ स्टाइल में बोलता है-जी मुझे नहीं पता, आप बताइए कि गुप्ताजी का घर कहां हैं।
जी घर तो पता नहीं, पर हमने सुना है कि गुप्ताजी की लडकी भाग गयी है।
लडकी भागी-विमर्श खत्म करने को अगला तैयार ही नहीं होता था।
एक पान वाले को मैं जानता हूं, जो रास्ता बताने को तब तैयार होता था, जब उससे पान खरीद लिया जाये। वह पान में हशीश डाला करता था। एक बार जो उसका पान खाता था, फिर बार-बार उसका पान खाने आता था। पान वाला एक रास्ता दिखाने के लिए दूसरे रास्ते पर चला देता था। वैसे क्या यही काम नेतागण भी नहीं करते क्या। किस रास्ते पर चलाने की बात होती है, और कहां ले जाकर छोड देते हैं।
पर उससे क्या, जो परेशान होते हैं, वो दोबारा पूछने नहीं आते, वो कहीं और चले जाते हैं।
रास्ते बताने वालों को फिर नये पूछने वाले मिल जाते हैं।
शुरु में बताया नहीं था कि रास्ते भी बहुत हैं, रास्ते बताने वाले भी बहुत हैं, और पूछने वाले तो बहूत हैं ही।
आलोक पुराणिक
मोबाइल-09810018799
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6 comments:
भाइजी आज आपने भी सतगुरु कलयुगी पर रोशनी डाली है,और हमने भी बस हमने जरा पेंसिल टार्च से डाली है और आपने हजारो वाट के सूर्य की....
ज्रा यहा भी देखे..http://www.hindiblogs.com/masti/2007/07/blog-post_03.html
हा हा!!! क्या खूब देखते हो...कैर समीर गुणवाणी सुनो:
आत्मा में परमात्मा है।
जब सीख लो तो बताना...तब आगे बात करते हैं...हा हा!!! माईन्यूट आबजर्वेशन है. बधाई जागरुकता के लिये.
मेरी ताजा पॉलिसी - उड़न तश्तरी जी के कमेण्ट को डिट्टो करो. तदानुसार :
हा हा!!! क्या खूब देखते हो...कैर समीर गुणवाणी सुनो:
आत्मा में परमात्मा है।
जब सीख लो तो बताना...तब आगे बात करते हैं...हा हा!!! माईन्यूट आबजर्वेशन है. बधाई जागरुकता के लिये.
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कैसी पॉलिसी है! :)
ये दाल-चावल की चिंता तो हम जैसे तुच्छ प्राणियों की लौकिक इच्छाओं का चक्रव्यूह है........... आप ही हमें इनसे मुक्त करें गुरुदेव.....
सही!!
bhai man gaye
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