Sunday, August 19, 2007

संडे सूक्तियां-कुछ अच्छी बेकार बातें

संडे सूक्तियां-कुछ अच्छी बेकार बातें
आलोक पुराणिक
स्वतंत्रता दिवस के समारोह बीत गये। आजादी के पहले संघर्ष की वर्षगांठ के 150 सालों के समारोह भी अब अंतिम से दौर में हैं।
बहुत अच्छी बातें बरसीं। कित्ते टन बरसीं, पता नहीं।
ये लेक्चर वो लेक्चर, एक सतत अमेरिका-गामी प्रोफेसर ने न्यूयार्क से सिंगापुर के रास्ते में दिल्ली में रुक कर बताया कि देश को और आगे ले जाना है। विदेशी ताकतें हमारे खिलाफ षडयंत्र कर रही हैं। उनके खिलाफ संघर्ष करना है।
मैंने कहा जी, पहले तय कर कर लो कि क्या करना है, देश को आगे ले जाना है या पहले विदेशी ताकतों के खिलाफ संघर्ष करना है। मैं कुछ ढीला टाइप बंदा हूं, एक साथ दोनों कामों में लगा दिया, तो कुछ भी नहीं करुंगा। वैसे आप जो ये अमेरिका जाते रहते हैं, वहीं विदेशी ताकतों से संघर्ष कर लीजिये।
प्रोफेसर के चंपू नाराज हो गये। बोले - अमेरिका जाते हैं, हमारे प्रोफेसर तो संघर्ष करने नहीं जाते, रिसर्च करने जाते हैं। और अगर अमेरिकियों को ही विदेशी ताकत मानकर संघर्ष कर लिया, तो फिर जायेंगे कहां।
तो मैंने कहा-अमेरिका से संघर्ष करने में अड़चन हो, तो ब्रिटेन से कर लो।
उन्होने बताया कि वहां प्रोफेसर की बिटिया को जाना है, पढ़ाई के लिए। वीसा लटका हुआ है, अगर वहां संघर्ष कर लिया, तो आफत हो जायेगी।
अब हर विदेशी ताकत, जो भारत के खिलाफ कुछ कर सकती है, वहां प्रोफेसरों को जाना है, अफसरों को जाना है, नेताओं को जाना है। उनके बेटों, बेटियों को जाना है। संघर्ष बताइये कैसे हो।
मैंने कहा-महाराज, फिर तो जांबिया, फिजी, तंजानिया से संघर्ष कर लो, यहां तो आम तौर पर किसी प्रोफेसर, अफसर, नेता को नहीं जाना।
एक अफसर बोला-कैसी बात कर रहे हैं, सब हंसेगे कि हम किनसे संघर्ष कर रहे हैं।
मैंने उसे समझाया कि आप जो भी कहते हैं, उस पर लोग हंसते इसीलिए हैं कि अब रोया कितना जा सकता है।
अफसर बुरा मान गया।
मैंने एक क्लेरिफिकेशन और मांगा तमाम विद्वानों से कि चलो देश को आगे बढ़ाना है, सो बात तो ठीक। पर किधर की तरफ बढ़ाना है। अभी तो हम ही नहीं बढ़ पाते हैं ट्रेफिक जाम में, एक किलोमीटर में कई घंटे निकल जाते हैं। पूरा देश ही अगर आगे बढ़ने पर उतारु हो गया, तो क्या होगा, तो ट्रेफिक का क्या होगा जी।
कई तोंदयुक्त विद्वानों ने बताया कि किसी के बढ़ाने से नहीं होता, देश अपने आप ही बढ़ रहा है।
ऐसे बढ़ता हुआ देश मुझे तोंद जैसा लगता है, जिसे कोई बढ़ाये या नहीं, अपने ही आप बढ़ लेती है।
पर ऐसे बढ़ना तो डेंजरस होता है-मैं विद्वानों को बताने की कोशिश कर रहा हूं।
देखिये आप बेकार की बातें कर रहे हैं। सिर्फ बढ़ाने पर फोकस रहिये, जिधर बढ़ना है, अपने आप बढ़ लेगा-विद्वान मुझे डांट रहे हैं।
पर पता नहीं क्यों मैं देश की जगह कई सारी तोंदें देख रहा हूं।
पर यह विद्वानों की नहीं, मेरी व्यक्तिगत समस्या है।
आलोक पुराणिक
मोबाइल-9810018799

8 comments:

Arun Arora said...

बिलकुल ठीक जी देश अपने आप ही आगे जा रहा है.अगर आप भी आगे बढना चाहते हो,तो किसी भी नेता के साथ चिपक जाये कुछ खर्चा पानी जेब से निकाल कर आगे बढाये..अगर आप के भाग्य से आपको सही नेता फ़स गया तो आप भी आगे बढ जायेगे.नही तो नेता आपके दिये माल को लेकर आगे बढ जायेगा...:)

Udan Tashtari said...

ऐसे बढ़ता हुआ देश मुझे तोंद जैसा लगता है, जिसे कोई बढ़ाये या नहीं, अपने ही आप बढ़ लेती है।
पर ऐसे बढ़ना तो डेंजरस होता है-मैं विद्वानों को बताने की कोशिश कर रहा हूं।


--यह व्यक्तिगत आक्षेप हम नहीं ले सकते---आप इसे वापस लें..तभी बात बन पायेगी अब तो. :) हमें हमारी तस्वीर दिखी इस में, तब क्या करें? आप ही बता दें. आप तो सुक्तिधार हैं. :)

अनूप शुक्ल said...

बढ़िया है जी। प्रोफ़ेसर साहब समझदार हैं। इतवार की शुरुआत झगड़े से नहीं करना चाहते होंगे।

Gyan Dutt Pandey said...

"मैंने कहा जी, पहले तय कर कर लो कि क्या करना है, देश को आगे ले जाना है या पहले विदेशी ताकतों के खिलाफ संघर्ष करना है।" :)

आप व्यंग के बीच में विशुद्ध सीरियस बात कह जाते हैं - इससे आपकी अगड़म बगड़म छवि को नुक्सान हो सकता है. यह बिल्कुल सही है. देश चिर्कुट राजनीति और विकास की ललक के बीच फंसा है और हम उसमें सिवाय लिखने के या अपना काम ठीक से करने के, और कुछ योगदान नहीं दे पाते.

Neeraj Rohilla said...

पढने में अच्छा लगा बस इतना ही कहेंगे । आगे कुछ बोला तो चक्कर में पड जायेंगे कि हम किस तरफ़ हैं और देश को कहाँ ले जा रहे हैं :-)

ePandit said...

"कई तोंदयुक्त विद्वानों ने बताया कि किसी के बढ़ाने से नहीं होता, देश अपने आप ही बढ़ रहा है।"

और हम सब देश को बढ़ाने में योगदान दे रहे हैं, जल्द ही महाशक्ति चीन को पीछे छोड़ देंगे।

Sanjeet Tripathi said...

ह्म्म, रोजाना आपके इस अगड़म बगड़म व्याख्यान मे एक दो लाईन ऐसी निकल ही आती है जो सोचने पे मजबूर कर देती है , अब आज देखिए ना ज्ञान जी ने पकड़ी वो बात , कितना सटीक है वह!!

ज्ञान दद्दा से सहमत!!

ghughutibasuti said...

अरे ये किस ने कह दिया कि देश आगे बढ़ रहा है या हम उसे आगे बढ़ा सकते हैं ? देश तो १ सै.मी. या १ इंच प्रति वर्ष की रफ्तार से पीछे हट रहा है । वैग्यानिक तो हिसाब भी लगा बैठे हैं कि कितने करोड़ वर्षों में भारत गायब हो जाएगा ।
घुघूती बासूती