आलोक पुराणिक
राह से गुजर रहा था, कुछ अलग टाइप के संवाद सुनायी पड़े-
तुम्हारी ऐसी-तैसी, हमसे पंगा लेते हो। गिरा देंगे। वैसे जी आपकी कृपा है। कृपा बनी रहे, हम कहां जायेंगे जी।
देखोजी फूटना हो, तो फूट लो। जहां मूड हो वहां निकल लो। तुम्हारे लिए बैठे नहीं रहेंगे। गरज पड़े तो बैठो, वरना तुम्हारी ऐसी-तैसी। वैसे आप प्लीज हमारी बात समझ क्यों नहीं रहे हैं।
मैं समझ गया जरुर लेफ्ट फ्रंट के बंदों और कांग्रेस के बंदों में संवाद चल रहा होगा।
मैं राइट था,
सीपीएम का एक खास दफ्तर दिल्ली में जहां है, वहां से थोड़ा सा पीछे एक गोल डाकखाने का सर्किल आता है, और थोड़ा आगे निकल कर भी एक गोल सर्किल आता है।
गोल सर्किल सीपीएम के आगे भी है, और पीछे भी है। वैसे खुद लेफ्ट की बातें अब गोल सर्किल हो गयी हैं। जहां से निकलती हैं, वहीं पहुंच लेती हैं।
लेफ्ट फ्रंट के एक सीनियर बंदे से मैंने न्यूक्लियर डील पर बात की।
जी आप न्यूक्लियर डील के विरोध में हैं। डील इस सरकार ने किया है, तो क्या इसके भी विरोध में हैं-मैंने पूछा।
नहीं वैसे तो हम विरोध में हैं, पर मतलब इसका मतलब यह ना लगाया जाये कि हम विरोध में हैं। पर इसका मतलब यह भी नहीं है कि हम विरोध में नहीं हैं, मतलब..........लेफ्ट फ्रंट का बंदा मतलब खुद समझने में बिजी हो गया।
देखिये मैं आपको मतलब समझाता हूं-आप न्यूक्लियर डील का
देखिये, इस मसले
तो मतलब साफ बताइए कि आप कहां हैं, सरकार के साथ हैं या विपक्ष के साथ हैं या क्या-मैंने पूछा।
जी मैं सोचकर बताता हूं।
लेफ्ट फ्रंट के नेताजी सोच रहे हैं। सोचते ही जा रहे हैं।
बात घूम-फिर कर गोल चौराहे पर आ गयी है।
आलोक पुराणिक
मोबाइल-9810018799
12 comments:
गोलमाल है भाई सब गोलमाल है। आपका लेख भी उसी मे शामिल है। :)
गोल चौराहे पर खड़े हम भी सोच रहे हैं कि क्या टिप्पणी करें...सहमत हों या असहमत लेफ्ट फ्रंट टाईप. :)
बोल बाबा(?) बोल, दुनिया है गोल…
सही पकड़ा है गुरु!!
सब वृत्त में चकरघिन्नी खा रहा है. उधर भाजपा वाले हैं - वे भी कह रहे हैं - सरकार चलती रहे और गोलमाल करती रहे. समझ में नहीं आ रहा.
एक जने हैं - जो कह रहे हैं कि अमुक जगह होते तो प्रधान मंत्री को गोली मार दी जाती. प्रधान मंत्री कह रहे हैं कि उनकी मृत्यु के लिये यज्ञ किया गया है. क्या होगा जी? :)
उस न्यूक्लियर डील में क्या है, वह कोई विद्वान समझा नहीं रहा. सब गोल-गोल बोले जा रहे हैं.
सच है - शायद हममें सटायर की समझ नहीं है! :)
आलोक भैया पूरा का पूरा भारतीय समाज गोल चौराहे पर खड़ा है, अपनी तयशुदा विचारधारा तो होती नहीं । जिधर दिखा ज्या,दा वज़न, वहीं घूमा लिये चरण । गूगल अर्थ की तरह जूम आउट करके देखो भैया गोल चौराहे पर एक अरब लोग खड़े दिखेंगे, चींटियों की तरह ।
किसी की बात सुनना गुनाह है ,और उसे सार्वजनिक करना भी गुनाह है,आप इस गुनाह की बार बार पुनरावृत्ती ना करे ,से रोकने के लिये हमे लगता है संसद मे हमे बिल लाना ही पडेगा..
चौराहे को ‘गोल’ करने की संस्कृति भी पश्चिम से ही आई है...सोचिये, अगर केवल चौराहा होता तो कम से कम रास्ते साफ-आफ दिखाई तो देते...अब इसमे सीपीएम वालों का क्या दोष...घूम रहे हैं बेचारे...पता नहीं चल रहा कि कहां जायें.
अरुण जी संसद में ‘बिल’ लाना चाहते हैं...भैया संसद क्या है?..’बिल’ ही तो है..छिपे रहते हैं हमारे नेता उस ‘बिल’ में
वाह, बहुत ही गोल गोल बातें । लगता है गोलगप्पे खाकर की गईं हैं ।
घुघूती बासूती
हाँ भैया हमे भी कुछ गोलमाल नजर आ रहा है...
आप भी लगता है चौराहे से रोज मसाला तैयार करते है हमारे लिये ...बहुत सुन्दर...
दर-असल चौराहे पर आकर चार गलीया मिलती है और चारो गलीयों के सभी नामचीं भी मिलते ही है...तो.....गोलमाल तो होना थी था...:)
सुनीता(शानू)
वैसे गोलमाल और अगड़म-बगड़म में कुछ रिलेशन है क्या, अगर हाँ तो देखिए शायद आपको लैफ्ट फ्रंट में अच्छी जगह मिल जाए।
गुरु जी बिलकुल सही सीन मारा है , पहले हम दोराहे पर थे ,और अब गोलचक्कर पर आ गये है . हर ५ साल बाद वही कहानी धोहराते है
Post a Comment