Tuesday, August 28, 2007

भगीरथ जेल में

भगीरथ जेल में

(अब तक आपने पढ़ा। भगीरथ भारतवर्ष के जल संकट से द्रवित होकर जनता को परेशानी से निजात दिलाने के लिए गंगा द्वितीय को पृथ्वी पर लाने का उपक्रम करने लगे। इसके लिए वह हरिद्वार के पास मुनि की रेती पर साधनारत हुए तो नगरपालिका वालों ने, नेताओं ने और दूसरे तत्वों ने उन्हे परेशान किया। वह परेशान होकर ऊपर पहाड़ों पर जाने लगे, तो कई फोटोग्राफरों ने उनके सामने तरह-तरह के आइटमों के माडलिंग के प्रस्ताव रखे। फोटोग्राफरों ने उनसे कहा कि इस तरह की जनसेवा के पीछे उनका जरुर बड़ा खेल है और इस खेल के साथ वे चार पैसे एक्स्ट्रा भी कमा लें, तो हर्ज नहीं है।अब आगे पढ़िये समापन किस्त में।)

देखिये, ये क्या खेल-खेल लगा रखा है। क्यां यहां बिना खेल के कुछ नहीं होता क्या-भगीरथ बहुत गुस्से में बोले।

जी बगैर खेल के यहां कुछ नहीं होता। यहां गंगा इसलिए बहती है कि वह गंगा साबुन के लिए माडलिंग कर सके। गोआ में समुद्र इसलिए बहता है कि वह गोआ टूरिज्म के इश्तिहारों में काम आ सके। हिमालय के तमाम पहाड़ इसलिए सुंदर हैं कि उन्होने उत्तरांचल टूरिज्म, उत्तर प्रदेश टूरिज्म के इश्तिहारों में माडलिंग करनी है। आपकी चाल में फुरती इसलिए ही है कि वह किसी चाय वाले या च्यवनप्राश वाले के इश्तिहार में काम आ सके। आपके बाल अभी तक काले इसलिए हैं कि वे नवरत्न तेल के इश्तिहार के काम आ सकें। हे मुनि, डाल से चूके बंदर और माडलिंग के माल से चूके बंदों के पास सिवाय पछतावे के कुछ नहीं होता-एक समझदार से फोटोग्राफर ने उन्हे समझाया।

भगीरथ मुनि गु्स्से में और ऊंचे पहाड़ों की ओर चले गये।

कई बरसों तक साधना चली।

मां गंगा द्वितीय प्रसन्न हुईं और एक पहाड़ को फोड़कर भगीरथ के सामने प्रकट हुईं।

जिस पहाड़ को फोड़कर गंगा प्रकट हुई थीं, वहां का सीन बदल गया था। बहुत सुंदर नदी के रुप में बहने की तैयारी गंगा मां कर ही रही थीं कि वहां करीब के एक फार्महाऊस वाले के निगाह पूरे मामले पर पड़ गयी।

वह फार्महाऊस पानी बेचने वाली एक कंपनी का था।

गंगा द्वितीय जिस कंपनी के फार्महाऊस के पास से निकल रही हैं, उसी कंपनी का हक गंगा पर बनता है, ऐसा विचार करके उस कंपनी का बंदा भगीरथ के पास आया और बोला कि गंगा पर उसकी कंपनी की मोनोपोली होगी। वही कंपनी गंगा का पानी बेचेगी।

तब तक बाकी पानी कंपनियों को खबर हो चुकी थी।

बिसलेरी, खेंचलेरी, खालेरी, पालेरी, पचालेरी, फिनफिन, शिनशिन,छीनछीन समेत सारी अगड़म-बगड़म कंपनियों के बंदे मौके पर पहुंच लिये।

हर कंपनी वाला भगीरथ को समझा रहा था कि वह उसी की कंपनी को ज्वाइन कर ले। मुंहमांगी रकम दी जायेगी। गंगा द्वितीय उस कंपनी की संपत्ति हो जायेगी और भगीरथ को रायल्टी दे दी जायेगी।

पर भगीरथ नहीं माने। वह गंगा द्वितीय को जनता को समर्पित करना चाहते थे।

किसी कंपनी वाले की दाल नहीं गली।

पर..........।

सारी कंपनियों के बंदों ने आपस में खुसुर-पुसर की। खुसर-पुसर का दायरा बढ़ा, नगरपालिकाओं वाले आ गये। माहौल और खुसरपुसरित हुआ-भगीरथी की फ्यूचर पापुलरिटी की सोचकर आतंकित-परेशान नेता भी आ लिये। वाटर रिस्टोरेशन के लिए काम कर रहे एनजीओ के बंदे भी इस खुसर-पुसर में शामिल हुए।

फिर ...........भगीरथ गिरफ्तार कर लिये गये।

उन पर निम्नलिखित आरोप लगाये गये-

1- शासन की अनुमति लिये बगैर भगीरथ ने साधना की। इससे कानून व्यवस्था जितनी भी थी, उसे खतरा हो सकता था।

2- इस इलाके को पहले सूखा क्षेत्र माना गया था। अब यहां पानी आने से कैलकुलेशन गड़बड़ा गये। पहले इसे सूखा क्षेत्र मानते हुए यहां तर किस्म की ग्रांट-सब्सिडी की व्यवस्था की गयी थी योजना में। अब दरअसल पूरी योजना ही गड़बड़ा गयी। यह सिर्फ भगीरथ की वजह से हुआ। योजना प्रक्रिया को संकट में डालने का अपराध देशद्रोह के अपराध से कम नहीं है।

3- भगीरथ ने विदेशों से आ रही मदद, रकम में बाधा पैदा करके राष्ट्र को बहुमूल्य विदेशी मुद्रा से वंचित किया है। इस क्षेत्र के जल संकट को निपटाने के लिए फ्रांस के एनजीओ फाऊं-फाऊं फाउंडेशन और कनाडा के एनजीओ खाऊं-खाऊं ट्रस्ट ने लोकल एनजीओज (संयोगवश जिनकी संचालिकाएं स्थानीय ब्यूरोक्रेट्स की पत्नियां थीं) को कई अरब डालर देने का प्रस्ताव दिया था। अब जल आ गया, तो इन एनजीओज को संकट हो गया। फ्रांस और कनाडा के एनजीओज ने सहायता कैंसल कर दी। इस तरह से भगीरथ ने गंगा द्वितीय को बहाकर विदेशी मदद को अवरुद्ध कर दिया। भारत को विदेशी मुद्रा से वंचित करना देशद्रोह के अपराध से कम नहीं है।

4- पहाड़ को फोड़कर गंगा द्वितीय जिस तरह से प्रकट हुई हैं, उससे इस क्षेत्र का नक्शा बदल गया है, जो हरिद्वार नगर पालिका या किसी और नगर पालिका ने पास नहीं किया है।

5- शासन की सम्यक संस्तुति के बगैर जिस तरह से नदी निकली है, वह हो न हो, किसी दुश्मन की साजिश भी हो सकती है।

गिरफ्तार भगीरथ जेल में चले गये, उनको केस लड़ने के लिए कोई वकील नहीं मिला, क्योंकि सारे वकील पानी कंपनियों ने सैट कर लिये थे।

लेटेस्ट खबर यह है कि गंगा निकालना तो दूर अब भगीरथ खुद को जेल से निकालने का जुगाड़ नहीं खोज पा रहे हैं।

आलोक पुराणिक मोबाइल-09810018799

8 comments:

Gyan Dutt Pandey said...

मेधा पटकर, अरुन्धती राय, तीस्ता शीतलवाद और शबाना आजमी जैसे पुण्यात्मा अब प्रकट होते हैं भगीरथ के पक्ष में. विश्वनाथ प्रताप सिंह जो कल जमीन अधिग्रहण के खिलाफ आन्दोलन करने वाले थे अब भगीरथ मुक्ति मोर्चा के अध्यक्ष बन गये हैं और बोट क्लब पर अनशन पर बैठने वाले हैं. सुन्दरलाल बहुगुणा भी ... फिर आरएसएस और भाजपा देश के पौराणिक गौरव के नाम पर अगले चुनाव की तैयारी में...
भागीरथ अगले चुनाव के प्रमुख मुद्दा होंगे और ज्यादा दिन तक जेल में रहे तो भाजपा की सरकार बनना तय!

Udan Tashtari said...

तीन दिन के अवकाश (विवाह की वर्षगांठ के उपलक्ष्य में) एवं कम्प्यूटर पर वायरस के अटैक के कारण टिप्पणी नहीं कर पाने का क्षमापार्थी हूँ. मगर आपको पढ़ रहा हूँ. अच्छा लग रहा है.

Rajeev (राजीव) said...

भगीरथ जी के कन्धे पर बन्दूक रख कर, खूब फायरिंग की है, पूंजीवादी कम्पनियों पर तथा शासन और प्रशासनिक ढाँचे पर भी।

Arun Arora said...

हम जरा उस क्षेत्र के हवाई सर्वे पर गये हुये थे..मामला हल हो गया है,भगीरथ अब किसी से नही कहेगे की यह काम उनका है.. सारा काम हमारी कंपनी ने सरकारी और विदेशी मदद से किया गया था..उन्हे मानसिक असपताल मे भेज दिया गया है,,अब वो जल्द ही स्वासथ्य लाभ कर हमेशा के लिये वही बस जायेगे.. आप आगे से इस तरह की समस्याये देश की प्रगती मे ना खडी करे..वरना हमे आपके बारे मे भी चिंता करनी पडेगी जी...:)

अनूप शुक्ल said...

आलोकजी आप चिंता न करो भगीरथजी की।मानवा अधिकारवादी अपने काम से लगने वाले होंगे।

Sanjeet Tripathi said...

सई लिखा है जी!!

SHASHI BHUSHAN said...

Bhagirath Jail me bahut achcha laga. thanks
Hindi me kaise likhu please bataeaga.

अनिल कुमार वर्मा said...

देश में जल संकट दिनों दिन गहराता जा रहा है। इस समस्या पर चर्चाएं तो होती हैं लेकिन उससे निपटने के लिए सार्थक प्रयास नहीं होते। भागीरथ के रूप में आपने उस प्रयास का मार्ग सुझाया लेकिन साथ ही ये भी दिखा दिया कि उस प्रयास के मार्ग में किस तरह की बाधाएं पहले से ही खड़ी हैं। कुल मिलाकर अगर जल संकट से निपटने के लिए कोई पहल करना भी चाहे तो नहीं कर सकता। आपने जिस खूबी के साथ नौकरशाही और पूंजीवादी कंपनियों पर प्रहार किया है वो वास्तव में सराहनीय है। आलोक जी आपको पढ़ना एक सुखद अनुभव है। हमें आगे भी इसी तरह के व्यंगात्मक लेखों का इंतजार रहेगा।