Friday, June 1, 2007

व्यक्तित्व-विकास सीरिज-रिश्वत कैसे लें-12 मिनट का क्रैश कोर्स

व्यक्तित्व-विकास सीरिज-रिश्वत कैसे लें-12 मिनट का क्रैश कोर्स
आलोक पुराणिक
जंबूद्वीपेभरतखंडे आदि आदि में छात्रों को रिश्वत लेने-देने के बारे में विस्तार से बताने के लिए पूर्णिमा आश्विन माघ सुदी द्वितीया आदि आदि को आचार्य आलोक पुराणिक ने रिश्वत प्रदीपिका नामक महाग्रंथ की रचना की ताकि छात्रों को इसके बारे में सही-सटीक जानकारी मिल सके और तदनुसार छात्रगण अपने अभीष्ट कार्य को संपादित करा सकें और जीवन-जगत में सफल हो सकें और सैटिंग-गैटिंग से बैकुंठ लोक में भी सीट पक्की कर सकें।
इस ग्रंथ के कतिपय महत्वपूर्ण अंश इस प्रकार हैं-

यथा प्रेयसी संकोच भवति, तथापि कमिटेड प्रेमी चालू रहंति
यथा प्रेरित रिश्वत देयक हर हाल में मामला जमंति
भावार्थ-लेखक कहना चाहता है कि जिस प्रकार प्रथम निवेदन में प्रेयसी संकोच दिखाती है, पर लगातार लगे रहने वाले सफलता हासिल करके ही मानते हैं। उसी तरह से रिश्वत देयक अगर अपने मिशन में लगे रहें,तो मामला आखिर में जम ही जाता है।

प्रथम प्रणये संशय च रिश्वत सप्लाई भय एकस्तो
सप्लाई टू बैंक अकाउंट, जो न दो डाइरेक्ट हस्तो
भावार्थ-ग्रंथकार कहना चाहता है कि प्रथम प्रणय निवेदन में जो भय होता है, वही नव-रिश्वतदेयकों के मन में रिश्वत देने के समय होता है। सामने वाली पार्टी निवेदन स्वीकार करेगी या नहीं, इस तरह का आशंका मन को घेरे रहती हैं। सामने वाली पार्टी का रियेक्शन क्या होगा, इस प्रकार का भय मन को घेर लेता है और नव-रिश्वतदेयक टेंशनिया जाता है। टेंशन में काम खराब हो जाता है।
इसलिए रिश्वतदेयक को सीधे कैश ट्रांजेक्शन करने के बजाय रिश्वत लेयक का बैंक अकाउंट पूछ लेना चाहिए। डाइरेक्ट हस्तो यानी सीधे हाथ में देने के बजाय बैंक अकाउंट हैं, जहां जमा कराया जा सकता है।

बिवेयर आफ कैमरा च टेपरिकार्डरम्
रिश्वत देयकश्च कपड़े भी बारम्
भावार्थ-ग्रंथकार चेतावनी देता है कि तरह-तरह के यंत्र बाजार में टहल रहे हैं। रिश्वत लेन-देन की फोटू खींची जा सकती है। डील की बातचीत को टेपरिकार्डर में बंद किया जा सकता है। अत रिश्वत लेयक को इस संबंध में अत्यधिक सावधानी बरतनी चाहिए। कोशिश करें कि रिश्वत देयक के पास किसी भी किस्म के औजार आदि न हों। अब तो रिपोर्टें है कि ऐसी डिजीटल बनियानें और पैंटें आ गयी हैं, जिनमें सामने वाले बंदे के सामने बैठकर ही सब कुछ रिकार्ड किया जा सकता है। अत रिश्वत लेयक को सावधानी बरतते हुए यह सुनिश्चित करना चाहिए कि रिश्वतदेयक के तमाम कपड़ों पर प्रतिबंध लगा दिया जाये।
दफ्तर में लेने की करना ना भूलम्
रेल स्टेशन, बस स्टेशन, डांस बार च स्विमिंग पूलम्
भावार्थ-दफ्तर में रिश्वत लेने की भूल जो करते हैं, उनका हश्र भाजपा के बंगारु लक्ष्मण जैसा होता है। अत रिश्वत लेयक को रेल स्टेशन, बस अड्डा और स्विमिंग पूल का सहारा लेना चाहिए।
रेल स्टेशन में रिश्वत लेयक को कुली बनकर जाना चाहिए और रिश्वत देयक का सूटकेस उठाकर चुपके से बाहर हो जाना चाहिए। किसी को शक नहीं होगा।
बस अड्डे पर रिश्वत लेयक को चाय गरम चाय गरम जैसे स्वरों का उच्चारण करते हुए रिश्वत देयक के पास जाना चाहिए, उसे चाय का कप थमाकर बदले में रिश्वत का लिफाफा ग्रहण कर लेना चाहिए।
स्विमिंग पूल में चूंकि कपड़े पहनने का स्कोप नहीं होता, तो इस स्थिति का सदुपयोग रिश्वत लेयक कर सकता है। इस स्थिति में कैमरेबाजी या टेप होने का भय नहीं रहता है। रिश्वत लेयक और देयक दोनों ही नीचे डुबकी मारकर नीचे जायें और पोलीथीन में पैकबंद लिफाफे का आदान-प्रदान करें।

वैलंटाइन डे, च फादर्स डे
सीखो यूज आफ एवरी डे
भावार्थ-ग्रंथकार कहना चाहता है,कतिपय दिवसों पर तरह-तरह के लेन-देन चलते हैं और उन्हे स्वीकृति मिली होती है।
रिश्वत देयक को वैलंटाइन डे वाले दिन जाकर टैडी बीयर रिश्वत लेयक को भेंट करना चाहिए। टैडी बीयर में रिश्वत भरी होगी, यह बताने की जरुरत नहीं है। जरुरत यह बात समझने की है कि वैलंटाइन डे का प्रयोग इस तरह के मसलों के एकदम उपयुक्त है।
रिश्वत लेयकों के अनुभवों से पता चलता है कि रिश्वत लेयक रिश्वत देने वाला का इंतजार उतनी ही विरह वेदना के साथ करता है, जैसा बहुत भारी प्रेमी अपनी प्रेमिका का करता है। वैसे रिश्वत प्रेम से ज्यादा ठोस होती है, जो रिश्वत प्रदायक को प्रेमी से ज्यादा सम्मान मिलना चाहिए।
रिश्वत यूं भी प्रेम से ज्यादा सार्थक होती है, प्रेमी और रिश्वत के अनुभवी लोग बताते हैं कि प्रेम तो धीमे-धीमे कम होता जाता है। पर रिश्वत में मिली रकम को अगर ठीक ढंग से निवेश कर दिया जाये, तो वह लगातार बढ़ती जाती है। फिर सबको यह बात समझ लेना चाहिए कि अगर बंदा बहुत रिश्वत ठीक-ठाक ढंग से लेने लगे, तो उस पर इतनी रकम हो जाती है कि कई लोग उससे प्रेम जताने लगते हैं। पर ऐसा प्रेम के बारे में नहीं कहा जा सकता है कि कोई बंदा अगर बहुत प्रेम करने लगे, तो उसको रिश्वत देने वालों की संख्या बढ़ जाती है।
तात्पर्य यह है कि रिश्वत से प्रेम हासिल किया जा सकता है, पर प्रेम से रिश्वत हासिल नहीं की जा सकती। इसलिए समझदार रिश्वत पर ध्यान लगाते हैं।
फादर्स डे पर जाकर रिश्वतलेयक रिश्वत देयक के पैर छूए, बदले में रिश्वत देयक उसे रिश्वत का लिफाफा दे।
वक्त पड़ने पर गधे को भी बाप बना लेना चाहिए –यह कहावत पुरानी है। गधे को बाप मानने का सवाल निरर्थक है, क्योंकि गधा रिश्वत नहीं देता। जो रिश्वत नहीं देता, वह गधा ही है। सो गधे को बाप बनाने में कुछ रिटर्न नहीं है। इसलिए रिश्वत देयक को ही बाप मानना चाहिए। और फादर्स डे का उपयोग इस संदर्भ में करना चाहिए।
आलोक पुराणिक मोबाइल-9810018799

7 comments:

Vikash said...

१२ मिनट में इतना ज्ञान।
आप तो गुरुदेव '१२ मिनट मे...' नाम से एक पुस्तक लिख डालें...तो हम जैसों का कल्यान हो जाये। और पुस्तक क्या...एक पूरी पुस्तक सीरीज लिख डालें।

क्या नए विषयों के लिए आग्रह किया जा सकता है? जैसे, "१२ मिनटों मे बनें अनन्य कवि", "१२ मिनटों मे कैसे करें प्रेम", "१२ मिनटों मे कैसे लिखें १२ मिनटों का ऐसा लेख"। :)

Arun Arora said...

आप अपना क्रेडिट कार्ड भी खरीददारी के लिये थमा सकते है
लेख प्रेरणादायक,कथा बांचना और सुंदर.मतलब आने वाले वक्त मे आप पंडितो का धंधे के लिये भी खतरा बनने वाले है

काकेश said...

बड़ी धांसू रिसर्च करी है जी..मजा आ गया.

" रिश्वत से प्रेम हासिल किया जा सकता है, पर प्रेम से रिश्वत हासिल नहीं की जा सकती। "
" जो रिश्वत नहीं देता, वह गधा ही है। "

गज्जब

Priyankar said...

हा-हा-हा . इस अनुसंधान और प्रकाशन की फ़ंडिंग कहां से है हुई प्रभो !

Udan Tashtari said...

हा हा!! बहुत ज्ञानवर्धक! स्विमिंग पूल वाला आईडिया ही सर्वश्रेष्ट दीख पड़ता है.


:) लिखते चलो.

अभिनव said...

ऐसे परम परोपकारी विचारों के लिए,
आचार्यश्री की वन्दना की जानी चाहिए।

azdak said...

मैं देने आया हूं.. कहां रख जाऊं?.. या आप कहें तो लेवक वाली भूमिका में भी जा सकता हूं.. बशर्ते आप दिखा दें कि औज़ार-सौजार वाला खतरा नहीं है.. वैसे ये विकास बाबू की पुस्‍तक वाला आइडिया कंसरडरसन में रखना भी लॉंग रन में देवक वाली भूमिका में उतर सकता है.. सोचिएगा.