आलोक

पुरानी कहावतों के नये मतलब हो गये हैं जी। बच्चों से बात करो तो पता चलता है। क्लास में मैंने पूछा-बच्चों बताओ थोथा चना, बाजे घना का क्या मतलब है।
एक बच्चे ने बताया-सर, इसका मतलब है कि घना बजाना हो, या फुलमफुल चारों तरफ अपना जलवा कायम करना हो, थोथा होना जरुरी है। वरना मामला घना नहीं होगा।
पर बेटा, घना होने के लिए थोथा होना क्यों जरुरी है-मैंने आगे पूछा।
देखिये, तमाम टीवी चैनलों के एक्सपर्टों को देखो। एक झटके में सिक्योरिटी एक्सपर्ट से लेकर राखी सावंत एक्सपर्ट हो जाते हैं। दोनों के मामले में एक से बयान जारी कर देते हैं-हमें स्थिति पर नजर रखनी चाहिए। अब सिक्योरिटी को राखी सावंत की तरह से ट्रीट करना हो, तो एक्सपर्ट का थोथा होना जरुरी है। थोथे न हों, इतनी सारी एक्सपर्टाईज कैसे दिखायें-बच्चे ने बताया।
भारी चना, कोई पूछे ना-यह नयी कहावत हो सकती है।
चना भारी होगा, तो बजेगा कैसा। बजेगा नहीं, तो बिकेगा कैसे।
एक और कहावत पर चर्चा हुई-चोरी और सीनाजोरी।
इसका भावार्थ एक होनहार ने यूं किया-सीनाजोरी करनी हो, तो चोरी करके ही करनी चाहिए। बल्कि सीनाजोरी का हक चोरों को ही हासिल है। यानी किसी घोटाले में करोड़ों का जुगाडमेंट करने के बाद नैतिकता पर प्रवचन करना चाहिए, जो आपत्ति करे, उस पर मानहानि का मुकदमा कर देना चाहिए। ऐसे केस में मान बचाने वाले वकील महंगे आते हैं।
बगैर चोरी के जो सीनाजोरी करता है, उसके लिए आफत है।
पर चोरी के बाद सीनजोरी की जरुरत क्या है।
फिर चोरी के बाद क्या किया जाये-मैने पूछा।
चोरी के बाद और चोरी और फिर नेतागिरी-छात्र ने बताया।
सो साहब नया मुहावरा कुछ यूं बना-चोरी और नेतागिरी।
एक तो करेला, उस पर नीम चढ़ा-इस कहावत पर चिंतन शुरु किया।
करेला क्या होता है-बच्चे ने पूछा।
बेटा करेला यानी एक किस्म की वेजिटेबल-मैंने बताया।
सर, वैरी बैड, वेजिटेबल के एक्जांपल से पढ़ायेंगे। हर हम सब अरबपतियों के बच्चे नहीं हैं। सर वेजिटेबल हम कैसे अफोर्ड कर सकते हैं। आप कुछ रीयल टाइप के एक्सांपल्स के साथ पढ़ाईए ना-बच्चे आपत्ति कर रहे हैं।
बेटे, बात समझने की कोशिश करो। समझने के लिए समझो कि वेजिटेबल के साथ हम रोटी खाते हैं-मैंने समझाने की कोशिश की।
जी रोटी क्या होती है। आप अंगरेजी के शब्द क्यों यूज करते हैं। हिंदी में समझाइए ना। -बच्चे ने आपत्ति की।
समझो रोटी यानी ब्रेड यानी जो आटे से बनती है। आटा यानी जो गेहूं से बनता है-मैंने आगे समझाया। ओह यानी आटा वही जिसके भाव एक साल में सेनसेक्स से ज्यादा उछल गये हैं। देखिये सर आप हिंदी की क्लास में शेयरबाजी की बातें समझा रहे हैं। गलत बात है-बच्चा आपत्ति कर रहे हैं।
करेला छोड़ो, अब समझो नीम चढ़ा। नीम समझते हो ना, नीम यानी ट्री-मैंने आगे समझाने की कोशिश की।
पर ट्री होते ही
कहां हैं, हमने अपने घर के आसपास ट्री देखे ही नहीं हैं। फिल्मों में दिखते हैं कभी-कभी। सर आप प्रेक्टीकल एक्जांपल्स के साथ समझाइए ना। जैसे हमने नेता देखे हैं, नेताओँ के जरिये इस कहावत को समझाइए ना-बच्चा फिर कह रहा है। ओ के एक कहावत यूं हो सकती है-एक तो तस्कर, उस पर एमपी बना। हम सिर्फ भाजपा सांसद बाबू भाई कटारा की बात नहीं कर रहे हैं।
यस, यह एकदम समझ में आ गयी। ऐसे ही समझाया कीजिये-बच्चों की समझ में आ गयी है।
करेला क्या होता है-बच्चे ने पूछा।
बेटा करेला यानी एक किस्म की वेजिटेबल-मैंने बताया।
सर, वैरी बैड, वेजिटेबल के एक्जांपल से पढ़ायेंगे। हर हम सब अरबपतियों के बच्चे नहीं हैं। सर वेजिटेबल हम कैसे अफोर्ड कर सकते हैं। आप कुछ रीयल टाइप के एक्सांपल्स के साथ पढ़ाईए ना-बच्चे आपत्ति कर रहे हैं।
बेटे, बात समझने की कोशिश करो। समझने के लिए समझो कि वेजिटेबल के साथ हम रोटी खाते हैं-मैंने समझाने की कोशिश की।
जी रोटी क्या होती है। आप अंगरेजी के शब्द क्यों यूज करते हैं। हिंदी में समझाइए ना। -बच्चे ने आपत्ति की।
समझो रोटी यानी ब्रेड यानी जो आटे से बनती है। आटा यानी जो गेहूं से बनता है-मैंने आगे समझाया। ओह यानी आटा वही जिसके भाव एक साल में सेनसेक्स से ज्यादा उछल गये हैं। देखिये सर आप हिंदी की क्लास में शेयरबाजी की बातें समझा रहे हैं। गलत बात है-बच्चा आपत्ति कर रहे हैं।
करेला छोड़ो, अब समझो नीम चढ़ा। नीम समझते हो ना, नीम यानी ट्री-मैंने आगे समझाने की कोशिश की।
पर ट्री होते ही

यस, यह एकदम समझ में आ गयी। ऐसे ही समझाया कीजिये-बच्चों की समझ में आ गयी है।
एक और कहावत पर चर्चा निकली-कहीं गधा भी घोड़ा बन सकता है क्या।
बताओ, इसका मतलब क्या-मैंने पूछा।
जी पहले बताइए कि फायदा क्या बनने में है-गधा य़ा घोड़ा-एक बच्चा पूछ रहा है।
बेटा बात फायदे नुकसान की नहीं है। कहावत समझो ना-मैंने समझाने की कोशिश की।
नहीं, पहला सवाल यही है कि फायदा क्या बनने में है। सारे सवाल इस सवाल के बाद ही शुरु होते हैं-बच्चा अड़ गया है।
नहीं बेटा, फायदा की बात नहीं है। गधों का रोल अलग है, घोड़ों का काम अलग है। दोनों को कनफ्यूजन न करो-मैंने समझाने की कोशिश की।
नहीं सर यह बताइए कि अगर चुनाव हों, तो वोट किनके ज्यादा होंगे, गधों के या घोडों के-बच्चे ने पूछा।
मैंने गुणा-भाग करके बताया-गधों के।
तो फायदा गधा बनने में है। फिर कहावत को उलटा करो-घोड़ा भी कहीं गधा बन सकता है क्या।
सहमत होने के अलावा कोई और रास्ता है क्या।
आलोक पुराणिक मोबाइल-9810018799
बेटा बात फायदे नुकसान की नहीं है। कहावत समझो ना-मैंने समझाने की कोशिश की।
नहीं, पहला सवाल यही है कि फायदा क्या बनने में है। सारे सवाल इस सवाल के बाद ही शुरु होते हैं-बच्चा अड़ गया है।
नहीं बेटा, फायदा की बात नहीं है। गधों का रोल अलग है, घोड़ों का काम अलग है। दोनों को कनफ्यूजन न करो-मैंने समझाने की कोशिश की।
नहीं सर यह बताइए कि अगर चुनाव हों, तो वोट किनके ज्यादा होंगे, गधों के या घोडों के-बच्चे ने पूछा।

तो फायदा गधा बनने में है। फिर कहावत को उलटा करो-घोड़ा भी कहीं गधा बन सकता है क्या।
सहमत होने के अलावा कोई और रास्ता है क्या।
आलोक पुराणिक मोबाइल-9810018799
4 comments:
सही है चने आवाज भी कर रहे है करेला भी नीम पर चढा है,चोरी और सीना जोरी भी समझ मे आया,पर गधे घोडे वाली समझ मे नही आई,कहे की ना ससंद चल रही है विधान सभाये
आलोक जी आप यदि एसे बच्चो को पढ़ायेंगे तो मुझे लगता है मिनिस्टर्स जल्दी ही खतरे में पड़ जाये्गें...अच्छा व्यग्यं है...बच्चों ने सारी कहावते उल्टी कर दी और सुन कर तो लगा की वही सच्ची हैं.. :)
सुनीता(शानू)
बच्चोम का भविष्य बहुत उज्जवल दिख रहा है और आपका सा मास्टर तो जिसको भी मिल जाये उसकी तो समझो जिन्दगी बन गई.. :)
माशाअल्लाह क्या इंटेलीजेंट छात्र पाए हैं आपने, सुकून होता है कि देश का भविष्य इनके हाथों में सुरक्षित है।
वैसे आप कॉमर्स की बजाय हिन्दी कब से पढ़ाने लगे? :)
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