पोरस का नैकलेस
आलोक पुराणिक
अपना मानना है कि हेयर और स्टाइल दो अलग-अलग मामले हैं। हेयर ऊपर वाला देता है या नहीं भी देता है, पर स्टाइल बंदा खुद बनाता है।
ऐसे कई हैं, जिनके पास हेयर नहीं हैं, पर स्टाइल है। हम सिर्फ पुराने विलेन शेट्टी की बात नहीं कर रहे हैं।
ऐसे भी कई हैं, जिनके पास सिर्फ हेयर हैं,पर स्टाइल नहीं है। अब नटवर सिंह के अच्छे-खासे हेयर हैं, पर बहुत नान-स्टाइलिश अंदाज में विदा हुए।
ऐसे बहुत कम बंदे हैं, जिनके पास बहुत जोरदार हेयर हैं, और बहुत जोरदार स्टाइल है। हम सिर्फ मनमोहन सिंहजी की बात नहीं कर रहे हैं। बैट्समैन धोनी की बात भी कर रहे हैं।
पर सारी की सारी स्टाइल को हेयर तक लिमिटेड नहीं मानना चाहिए। सोचने की बात यह है कि शरीर में और भी बहुत कुछ है हेयर के अलावा। अब जैसे अगर देवानंद साहब को याद करें, जो परमानेंट हिलायमान मुद्रा में रहते थे, तो उनकी कमर स्टाइल थी।
पर यहां बात हेयर स्टाइल की हो रही है। एक बहुत प्यारी सी बच्ची के हेयर देखकर मैंने उसे कहा-बेबी सो क्यूट।
उसने पलटकर जवाब दिया-आई एम नाट बेबी।
हेयर स्टाइल से कनफ्यूजन हो जाता है। अच्छे-खासे बाबा बेबी लगने लग जाते हैं।
इधर कई बाबा लोग लंबे हेयर के साथ, कान में ईयररिंग, नैकलेस, हाथों में चूड़ी-कड़े टाइप भी पहनते हैं। एक और एक्सपर्ट ने खुलासा किया कि जितनी ज्वैलरी भप्पी लहरी अब पहनते हैं, उतनी तो उत्सव फिल्म में रेखा ने भी नहीं पहनी थी।
मैंने एक नौजवान से पूछा-यार ये ईयररिंग चूड़ियों का नया फैशन क्या है।
उसने कहा-आप बहुत इग्नोरेंट टाइप के बंदे हैं। यह फैशन बहुत पुराना है। आप सारे भगवानों के पुराने फोटू देखिये। सबने कानों में ईयरिंग पहने हुए हैं। सबने नैकलेस पहना हुआ है। ये मामला बहुत पुराना है।
मैने गौर से पुराने फोटू देखे, तो पता लगा कि नौजवान सही कह रहा था। सारे पुराने फोटुओं में भगवान लोग फुल मेकअप में हैं। न सिर्फ ज्वैलरी में बल्कि लिपस्टिक आदि से भी सुसज्जित हैं। सबके लंबे बाल हैं।
जरा गौर से देखिये, किसी भी भगवान को बगैर ज्वैलरी, लिपस्टिक के नहीं पायेंगे।
भगवान लोगों तो छोड़िये, पुराने राजाओं के फोटू बिना नैकलेस और इयरिंग के नहीं हैं।
अभी एक म्यूजियम में सिकंदर और पोरस की फोटू देखी। समझ में आ गया पोरस क्यों हारा था। सिकंदर के सिर पर तो एक हैलमेट टाइप का आइटम था, भाई का जब मन करे, तब लगा सकता था। पोरस के कानों में ईयरिंग थे, नैकलेस था। लंबे से बाल थे। मैं कल्पना कर सकता हूं सिकंदर फुरती से लड़ने के लिए आ गया होगा। पोरस को ईयरिंग जमाने में, नैकलेस का एंगल जमाने में ही टाइम लग गया होगा। तब तक सिकंदर ने धर दबोचा होगा। फिर मैंने और रिसर्च की तो पता लगा कि युद्ध के टाइम रावण भी नैकलेस, ईयरिंग से सुसज्जित था। रामजी तो जंगल की वेशभूषा में बहुत कमफर्टेबल थे। रावण को भी नैकलेस, ईयरिंग जमाने में बहुत टाइम लग गया होगा, तब तक तो रामजी ने मामला आरपार कर दिया होगा।
रावण और पोरस का हश्र देखकर मैं डर गया हूं, नैकलेस और ईयरिंग से लड़ने-भिड़ने वालों को दूर रहना चाहिए। भगवानों को ये सब शोभा देते है। उनका क्या है, सिर्फ हाथ ऊपर उठाकर पोज देना है, कुछ करना नहीं है। सो कोई प्राबलम नहीं है। जिन्हे कुछ करना है, वो ये सब अफोर्ड नहीं कर सकते।
मैंने अपनी शादी के टाइम अपने ससुर साहब के सामने ये ओरिजनल विचार व्यक्त किये थे कि अपनी बेटी को सोना देने के बजाय बेहतर है कि आप इतनी कीमत के रिलायंस के शेयर दे दो, ज्यादा ठीक रहेगा। वो बोले, बात तो ठीक है, पर दिक्कत यह है कि रिलायंस के शेयर कहीं दिखाये तो नहीं जा सकते। सोना तो चार फंक्शनों में दिखाया जायेगा।
अब उन्हे समझाता हूं -सोना दिखते-दिखते भी दोगुना नहीं हुआ, रिलायंस बिना दिखे चार गुना रिटर्न दे गया।
ज्वैलरी को लेकर हुई नासमझी ने सिर्फ पोरस को ही नहीं मारा, मुझे भी मारा है।
आलोक पुराणिक मोबाइल-981018799
Thursday, June 28, 2007
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8 comments:
Jordaar
जिसके पास नैकलेस होता है - अगर आपकी रिसर्च (इत्ती रिसर्च क्यूं करते हैं आप!) सही मान ली जाये तो देर सबेर नेक-लेस हो जायेगा. यानी 6 इंच छोटा. अब युद्ध क्षेत्र में नैकलेस को स्टाइल से जमायेगा तबतक तो कोई रामनाम सत्त कर देगा!
स्टाइलबाजी तो पुराणिक लेखन में ही सोहती है. दिनोदिन ज्यादा ही चमके जा रही है.
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फिर मैंने और रिसर्च की तो पता लगा कि युद्ध के टाइम रावण भी नैकलेस, ईयरिंग से सुसज्जित था। रामजी तो जंगल की वेशभूषा में बहुत कमफर्टेबल थे।"
आपकी पारखी नजर का जवाब नहीं, बहुत खूब। :)
गजब रिसर्च कर रहे हो भाई, हद हो गई. बहुत खूब!! अब हम क्या कहें. :)
:)
धांसू रिसर्च है जी ..लगे रहिये "ये स्टाइल का मामला है" ..
दिल तेरा घबराये, और मन नही लग पाये...
आजा प्यारे एस चिट्ठे पर ,काहे घबराये काहे घबराये...:)
हा हा हा...
आलोक जी बुरा मत मानियेगा...मान भी गये तो कोई बात नही मान लिजिये...क्या करे जब मन नही लगे और हँसने की सुझे तो दो ही चिट्ठे नजर आते है एक आलोक पुराणिक..और दुसरा अपना वो.....चिरपरिचित...अब जब मुलकात होई तो चिरपरिचीत ही हुआ ना...पंगेबाज़...:)
शानू
alok ji aapka ye lekh padh kar kai mahilaen aapke khilaf morha khol sakti aapko pata hai. waise aapne likha zabardast hai.
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