Wednesday, June 27, 2007

सत्य बनाम समोसा

सत्य बनाम समोसा
आलोक पुराणिक
अभी कुछ देर पहले एक स्कूल में चीफ गेस्ट बनकर गया, तो एक भाषण दिया। फिर बेटी के स्कूल में एक फंक्शन में गया, तो किसी चीफ गेस्ट का भाषण सुना। फिर फिर शाम को एक लेखक के शोक समारोह में गया, तो भाषण सुना। फिर एक लेखक के सम्मान समारोह में गया, तो भाषण सुना।
अब कचुआ गया हूं। सम्मान से शोक तक सब जगह भाषण ही भाषण।
कभी-कभी मुझे लगता है कि मरने के बाद बंदा ऊपर जाता होगा,तो सबसे पहले यमराज भी भैंसे पर लादकर ले जाते समय एक भाषण दे देते होंगे। फिर चित्रगुप्त भी पाप-पुण्य की एकाउंटिंग करते हुए एकाध प्रवचन ठोंक देते होंगे। फिर नाना प्रकार के ऋषि –मुनि ब्रह्मचर्य के महत्व से लेकर झूठ बोलने के नुकसान तक के विषयों पर भाषण ठोंकते होंगे।
अब समझ में आ रहा है कि आदमी मरने से इतना क्यों डरता है। ऊपर तो सुना है कि भाषणों से डरकर दोबारा मरने का आप्शन भी नहीं होता।
अभी एक अमेरिकन ने भारी रिसर्च करके बताया है कि भाषणों के मामले में इंडिया जैसा देश कोई और नहीं है। जैसी परिस्थितियों में जितने भाषण भारत में दिये गये हैं, वैसे पूरे ब्रह्मांड में कहीं दिये गये हैं। उसने बताया है कि भगवान श्रीकृष्ण ने तो महाभारत के युद्ध के मौके पर भी एक कोना तलाशकर भाषण का जुगाड़ बैठा लिया। अर्जुन जरा सी आनाकानी कर रहा था, तो पूरे अठारह अध्याय का भाषण दिया, जिसे हम गीता के नाम से जानते हैं।
भाषण कला मध्यकाल में कुछ लुप्त टाइप हो गयी थी। वरना मेरा यकीन है कि इतनी मारकाट नहीं होती। उदाहरण के लिए महाराणा प्रताप और अकबर के बीच झगड़ा नहीं होता, अगर अकबर बिजी होता तरह-तरह के भाषणों में-जैसे सांप्रदायिक एकता में अकबर के धर्म -सुलहकुल के महत्व पर भाषण, जैसे फतेहपुर सीकरी की स्थापत्यकला में पश्चिम के योगदान पर भाषण, जैसे बीरबल के सेंस आफ ह्यूमर पर भाषण, जैसे फतेहपुर सीकरी के जल संकट में निजी क्षेत्र का योगदान। इतने विषय हैं साहब अकबर की पूरी जिंदगी कट जाती, भाषण खत्म नहीं होते। महाराणा प्रताप भी भाषण दे सकते थे-राजस्थान में राजपरिवारों के कलह का विकास पर असर, चेतक नामक घोड़े की केस स्टडी............।
जिंदगी भाषणों में निकल जाती, टेंशन कम होते।
वैसे भाषण दिये जाते हैं, दरअसल लिये नहीं जाते।
मेरा एक छात्र परम जुआरी और सिगरेटबाज है। उसके पापा रोज उसे इसके खिलाफ भाषण देते हैं। पांच सालों से मैं देख रहा हूं।
एक दिन मैंने दोनों से पूछा-ये क्या घपला है, पांच साल से रोज एक ही राग। तुम दोनों के बीच इस तरह से संबंध खराब नहीं होते।
छात्र ने बताया -गुरुजी संबंध खराब इसलिए नहीं होते कि हम दोनों एक-दूसरे के काम में दखल नहीं देते।
मैंने पूछा-वो कैसे।
उसने बताया-जी भाषण देना उनका काम है,वो देते हैं। ना लेना मेरा काम है, मैं नहीं लेता। दोनों अपना-अपना काम करते रहते हैं। पांच साल से कर रहे हैं।
इधर सर्वे करके मैंने पता किया है कि तमाम टीवी चैनलों पर चलने वाले तमाम तरह के प्रवचनों –भाषणों में कोई सौ टन सत्य, नैतिकता, प्रेम झरता है। इतना सत्य निकलकर जाता कहां है,किसी को नहीं पता। सप्लाई तो धुआंधार होती है, पर कोई लेता नहीं है।
सत्य की खोज-नामक एक विद्वान के भाषण में मैं गया। शुरु होने के दो मिनट के अंदर पहुंचा, तो देखा कि धुआंधार तालियां बज रही हैं। पता लगा कि तालियों की वजह यह थी कि जनता की मांग पर भाषण की वास्तविक सप्लाई से पहले ही, उसे दिया गया मान लिया। अब सफल तालीखेंचू भाषण वो होते हैं, जो दिये ही नहीं जाते। दिये गये भाषणों को यह सम्मान नहीं मिलता।
यह टेकनीक इधर चल निकली है। लिखित भाषण की सप्लाई हो जाती है, फिर उसे आटोमेटिक दिया हुआ मान लिया जाता है। इसके बाद चाय-पान की ठोस सप्लाई होती है, उसे आटोमेटिक दिया हुआ नहीं माना जाता।
मैंने सत्य की खोज वाले विद्वान से बात की,तो उसने बताया कि सत्य को न दो, तो भी लोग दिया हुआ मान लेते हैं, पर चाय-समोसे के मामले में वे ऐसी उदारता नहीं दिखाते।
समोसा सत्य से ज्यादा ठोस सत्य होता है।
मुझे लगता है कि कुछ दिनों बार भाषणों के आमंत्रण कार्ड इस तरह के छपेंगे-
---आप अलांजी के फलां विषय पर भाषण सुनने के लिए आमंत्रित हैं। विशेष आकर्षण-भाषण सिर्फ एक और मिठाइयां चार तरह की।
--आप फलांजी के अलां विषय पर भाषण सुनने के लिए आमंत्रित हैं। विशेष आकर्षण-भाषण सिर्फ दो मिनट होगा,बाकी का पढ़ा हुआ मान लिया जायेगा।
--आप सत्य प्रचारक मंडल के वार्षिक सम्मेलन पर सादर आमंत्रित हैं।
विशेष आकर्षण-मुख्य अतिथि मनमोहन सिंह जी भाषण बिलकुल नहीं देंगे।
चलूं, भाषण कला पर एक लेक्चर सुनने जाना है। टेंशन है कि सच्ची में सुनना पड़ेगा।
आलोक पुराणिक
मोबाइल-0-9810018799

7 comments:

काकेश said...

मान गये जी आपकी रिसर्च को और आपके भाषण देने की कला को.क्या जबरदस्त दिया है.हमें भी समोसे का इंतजार है.

Gaurav Pratap said...

कृष्ण तो और भी लम्बा भाषण पिलाने वाले थे, अर्जुन ने कहा, इनका भाषण सुनने से तो अच्छा है कि मै युद्ध ही करूँ. तो वो युद्ध के लिये तत्पर हो गया. वैसे ये माईकेरिआ बहुत ही तेज़ी से फ़ैलने वाली बीमारी है. कई देशों के वैज्ञानिक इसका टीका ढूँढने की कोशिश कर रहे हैं. [:-)]

सुनीता शानू said...

आलोक जी क्या समोसा बनाया है बहुत ही टेस्टी है...आप जो इतना सुन्दर भाषण दे रहे है हम भी ताली बजा रहे है...

शानू

Arun Arora said...

गुरुदेव भाषण तो इत..........ना लंबा झेल लिया,अब समोसो की प्राप्ती कहासे और कैसे होगी आप ये बताना भूल गये लगते है,तुरंत बताये कहा से मिलेगे,ये आपका नाम बताकर मिल जायेगे,या फ़िर आप कोई कूपन भेजने वाले है

Sanjeet Tripathi said...

लो कल्लो बात, अपन तो आए थे कि समोसे खाने को मिलेंगे पर सुबो-सुबो पिला दिया ना आपने भी भाषण ही………का करें ई ससुरी बीमारी है ही ऐसी!!

Gyan Dutt Pandey said...

हम मसाजवाद का इंतजार कर रहे हैं और आप कल के बचे आलू के समोसे और महाभारत काल के भाषण के मोह से ही नहीं निकल पा रहे हैं?

दकियानूसी बने रहे तो ब्रह्माण्ड का कल्याण कैसे होगा मित्र! यह विश्व आपके सुभाषित की प्रतीक्षा कर रहा है!

Udan Tashtari said...

भाषण तो सुना गये महाराज!! चाय समोसा कहाँ है?

अच्छा शोध किया है.