सैमसंग रोटी, एलजी दाल
आलोक पुराणिक
इंडिया का बंगला देश
छुन्नू ढाबे के यहां मुन्नू रिक्शावाला शिकायत कर रहा है –पांच सालों में रोटी के भाव तीन गुने हो गये हैं- पचास पैसे से डेढ़ रुपये। हाफ प्लेट दाल की पांच से बढ़कर दस की हो गयी। सब तरफ महंगाई है।
नहीं, पांच साल पहले जो लैपटाप एक लाख का आता था, अब पचास हजार का मिल रहा है। पांच साल पहले जो मोबाइल दस हजार रुपये का आता था, अब पांच हजार का आ रहा है। भारी सस्ताई चल रही है-मैं मुन्नू रिक्शेवाले को आंकड़े बता रहा हूं।
पांच साल पहले भी सारी कमाई दाल-रोटी में खर्च हो जाती थी, अब भी सारी रकम दाल-रोटी में ही लग जाती है-मुन्नू आगे शिकायत कर रहा है।
देखो, तुम्हारी हैसियत है खरीदने की, तो तुम बिना दिक्कत के रोटी खरीद लेते हो, बढ़े हुए भावों पर भी। जो लोग लैपटाप और मोबाइल खरीदना चाहते हैं, उनकी हैसियत नहीं है, सो उनकी मदद के लिए लैपटापों, और मोबाइलों के भाव गिराना जरुरी है-मैं मुन्नू को समझाने की कोशिश कर रहा हूं।
पर इत्ते आइटम खरीदना जरुरी क्यों है-मुन्नू पूछ रहा है।
देखो, ना खरीदो तो तमाम बैंक वाले बुरा मान जाते हैं। इत्ते क्रेडिट कार्ड दे रहे हैं, इतने लोन दे रहे हैं, फिर भी खरीदते क्यों नहीं हो। इनके रोजगार का सवाल है। इसलिए कर्ज लेकर लैपटाप खरीदना पड़ता है-मैंने आगे समझाने की कोशिश की।
क्या ये बैंक बाप के इलाज के लिए कर्ज दे देंगे। गांव से लाकर इलाज करा लूंगा-मुन्नू ने पूछा।
नहीं छोटी कार से बड़ी कार पर जाने के लिए मिल जायेगा, पांच बैडरुम से दस बैडरुम पर जाने के लिए मिल जायेगा। पर बीमार बाप के पास जाने के लिए नहीं मिलेगा-मैंने समझाने की कोशिश की।
ऐसा क्यूं होता है-मुन्नू पूछ रहा है।
इस सवाब का जवाब दे पाऊं, इत्ता अर्थशास्त्र नहीं आता।
मनमोहन सिंहजी को आता है, पर वह फिलहाल कारों की सेल में आयी मंदी पर चिंतित हैं।
मुन्नू को मैं समझा रहा हूं-बेटा तेरे हिस्से में ही हैं सारे क्लेश, क्योंकि तू है इंडिया में बंगला देश।
इंडिया का अमेरिका
वैरी बैड, अब मोबाइल, लैपटाप में कुछ नहीं रहा। अब तो क्लर्क, चपरासी टाइप लोग भी मोबाइल लेकर घूम रहे हैं-मिस्टर गुप्ता मोबाइल के स्टेटस-डाऊनीकरण से नाराज हैं।
वैरी बैड अब मोबाइल, लैपटाप के कारोबार में कुछ रहा नहीं। बहुत कंपटीशन हो लिया है। मैकडोनाल्ड का काम बढ़िया है। आलू टिक्की को बेचकर अरबों खड़े कर रहे हैं-सैमसंग, एलजी कंपनी के अफसर झींक रहे हैं।
एक काम हो सकता है कि सैमसंग रोटी बाजार में उतार दी जाये और एलजी दाल भी। एक रोटी 1,000 रुपये की बेचेंगे। शाहरुख का इश्तिहार होगा-सैमसंग रोटी खाते हुए, प्रीति जिंटा एलजी दाल खा रही होंगी। दो रोटियों पर एक रोटी फ्री-यह स्कीम आफर कर देंगे-कंपनियों के अफसर रोटी-विमर्श कर रहे हैं।
मुझे कुछ इश्तिहार इस तरह के दिखायी दे रहे हैं-
मेरे भाई, दाल-रोटी में भारी सस्ताई, दो रोटी, एक कटोरी दाल यानी चार हजार का माल सिर्फ दो हजार में सेल, छूट, लूट, महाछूट।
पर इतना भी सब अफोर्ड ना कर पाये तो।
नो प्राबलम, सिटी बैंक की तरफ से हम रोटी लोन स्कीम शुरु कर देंगे, सिर्फ सोलह परसेंट इंटरेस्ट। ग्रुप रोटी लोन पर पंद्रह परसेंट का डिस्काउंट वाला इंटरेस्ट रेट लग जायेगा।
मन कर रहा है, मुन्नू रिक्शेवाले को बता आऊं कि भईये रोटी-दाल के मामले में भी सस्ताई, डिस्काउंट की खबरें आने ही वाली हैं।
नहीं क्या।
आलोक पुराणिक मोबाइल-09810018799
Saturday, June 23, 2007
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8 comments:
ठीक जा रहे है तभी तो मनमोहन जी कॊ रोटी,दाल की चिन्ता होगी.
अच्छी खबर होगी ये रोटी और दाल क्रेडिट कार्ड से उपलब्ध
हा हा...भाई कहाँ तक सोच उठाते हो..कहीं पेंच न लड़ जाये किसी से उँचे आकाश मे. बहुत खूब..मान गये.
देखिये, बुरा न मानें पुराणिक जी, आप हमारे ब्लॉग पर बहुत बढ़िया टिपेरते हैं. पर अगर आप साम्यवादी थे तो पहले साफ-साफ बताना चाहिये था. काहे को आपको हम भाव देते :)
ये आजके साम्यवादी फाइव स्टार मे खाते हुये दाल-रोटी का दर्शन देते हैं. अगर आप वह नहीं हैं तो स्टाम्प पेपर पर लिख कर दें कि आप हमारी तरह दाल-रोटी वाले हैं और आपकी भविष्य की चिंता सन 2020 में इसी स्तर पर दाल रोटी उपलब्ध रह सके - इसी की है.
पुन: ऊपर जरा सीरियस टाइप हो गया. मैं अंत में ":)" वाली चिप्पी लगाना भूल गया! :)
शानधार, शान भी है और धार भी.
अर्थ,समाज,साहित्य का ऎसा घालमेल -और वह भी व्यंग्य की शैली में... य़े क्या लिखते रहते हैं जी आप ..? अब हमें कहना पड जाएगा न कि जाएगा मान गए ...
जबरदस्त!!
शुरुआती 2-3 पैराग्राफ़ ने तो दिल जीत लिया!!
बहुत सही!!
बस अब तो बिरला सनलाइफ़ की तरफ़ से मम्मी और रिलायंस की ओर से फ़्रेश डैडी का इन्तज़ार है
आलोक भाई.
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