पर्दा, मुगल,सीबीआई, अकबर, घोटाले और मर्द
आलोक पुराणिक
माननीया प्रतिभा पाटिलजी ने पर्दे को लेकर कहा है कि यह मुगलों से लड़ने के लिए शुरु किया गया था। आज हुई पत्रकारिता कोर्स की प्रवेश परीक्षा में पर्दे पर ही ललित निबंध लिखने के लिए कहा गया है। निम्नलिखित निबंध उस छात्र का है, जिसने ललित निबंध में सबसे ज्यादा नंबर हासिल किये हैं।
पर्दे का बहुत महत्व है, राजनीति में।
जैसे वाममोर्चा वाले असल में किसके सपोर्टर हैं और किसके विरोधी हैं, इस पर बरसों से पर्दा पड़ा हुआ है। कितने परसेंट सपोर्टर हैं और कितने परसेंट विरोधी हैं, इस पर भी पर्दा पड़ा हुआ है। वे कांग्रेस के सपोर्टर हैं और खुद अपने विरोधी हैं, ऐसा एक मत है। वे कांग्रेस के पचास परसेंट सपोर्टर हैं और पिचहत्तर परसेंट विरोधी हैं, ऐसा दूसरा मत है। वैसा यही बात भाजपा के बारे में कही जा सकती है। भाजपा वाले खुद के विरोधी हैं या कांग्रेस के विरोधी, यह भी पर्दे की बात है। रामविलास पासवान सच्ची में किसके सपोर्टर हैं किसके विरोधी हैं, यह बात तो हमेशा पर्दे में रही है। सो पर्दे का मामला इत्ती जल्दी सुलझने वाला नहीं है।
डिबेट दरअसल यह नहीं होनी चाहिए कि पर्दा कब शुरु हुआ था मुगलों के टाइम में, या पहले या उससे भी पहले। सवाल यह है कि पर्दा खत्म क्यों नहीं होगा।
समझने की बात यह है कि पर्दा प्रथा खत्म नहीं हुई है। तेलगी घोटालों को हालांकि किसी सुंदरी की संज्ञा नहीं दी जा सकती, पर इस पर पर्दा पड़ा हुआ है।
बोफोर्स घोटाला किसी सुंदरी का नाम नहीं है, पर इस पर भी पर्दा पडा हुआ है।
कतिपय नेतागण कहते हैं कि हया-शर्म का तकाजा यही है कि इस सब पर पर्दा पडा रहे।
सूचना के अधिकार के तहत इस पर्दे को खत्म करने की कोशिश कुछ लोग करते हैं। ये बेहया लोग हैं। बेहया सिर्फ फिल्म इंडस्ट्री में ही नहीं पाये जाते, और भी जगह पाये जाते हैं।
पर्दे के बारे में यूं तो कई फिल्मों में बताया गया है। पर बहुत विस्तार से अमर, अकबर, एंथोनी नामक फिल्म के एक गीत में बताया गया है कि पर्दा है पर्दा, पर्दे के पीछे पर्दानशीं है, पर्दानशीं को बेपर्दा न कर दूं, तो अकबर मेरा नाम नहीं।
घपलों के पर्दानशीं को बेपर्दा करने का काम सीबीआई का है।
पर सीबीआई अमर, अकबर, एंथोनी के गीत के फंडे पर काम करती है।
फिल्म के गीत में जिस परदानशीं को बेपरदा करने की धमकी अकबर उर्फ ऋषि कपूर दे रहे होते हैं, उसी के साथ सैटिंग-गैटिंग भी कर रहे होते हैं।
सीबीआई के बारे में यही कहा जा सकता है कि जिन परदानशीनों को बेपरदा करने में जुटी होती प्रतीत होती है।उनमें से आज तक बेपरदा कोई ना हुआ।
सो पर्दानशीनों मौज करो, जब तक धमकाने वाले सीबीआई वाले टाइप हैं, बेपर्दा होने का कोई डेंजर नहीं है।
पर जी हम बात तो हम पर्दे की कर रहे थे।
पर्दे का राजनीतिक महत्व तो हम स्थापित कर चुके हैं, अब हम इसके सांस्कृतिक और आर्थिक महत्व पर बात करते हैं। अब तक करीब 7865 फिल्मों में दिखाया गया है कि हीरो बतौर तस्कर या तस्कर बतौर हीरो जब किसी खास मौके पर खास जगह से फरार होना चाहता है, तो वह बुरके-परदे का सहारा लेकर निकल लेता है। पुलिस कुछ नहीं कर पाती है (पुलिस वैसे भी कुछ नहीं कर पाती, पर यह विषय अलग है)। तो इस तरह से हम देखते हैं कि पर्दे का तस्करी में योगदान होता है और तस्करी का अर्थव्यवस्था का योगदान होता है।
तस्करी न होती, तो कई चीजें न होतीं। लाइफ की रंगीनियां न होतीं। ब्लैक इनकम और ब्लू फिल्में ना होतीं। ब्लैक इनकम नहीं होती, एक लाख के डिजाइनर कुर्ते कौन खरीदता। ये नहीं बिकते तो ना जाने कितने शो-रुम ठप्प हो जाते। ब्लैक इनकम न होती, तो धांसू-धमाल पार्टियां कैसे होतीं। पेज थ्री पार्टियां न होतीं, तो अख़बार वाले क्या छापते। अख़बार वाले पेज थ्री पार्टी ना छापते, तो पब्लिक कितनी बोर होती। पब्लिक बोर होकर नेताओँ की पिटाई भी कर सकती है। नेताओँ की पिटाई से देश में अराजकता फैलने का डेंजर है।
यानी देश को अराजकता के खतरे से बचाने के लिए जरुरी है कि पर्दे को कायम रखा जाये।
सीबीआई की अक्ल पर पड़े पर्दे को कायम रखा जाये। नेताओं के शठबंधन पर पड़े पर्दे को कायम रखा जाये।
वैसे पर्दे पर हमारे बुजुर्ग अकबर इलाहाबादी यह कह गये हैं-
बेपरदा नजर आयीं जो चंद बीबियां
अकबर जमीं में गैरते कौमी से गड़ गया
पूछा जो मैंने आपका पर्दा वो क्या हुआ
कहने लगीं, कि अक्ल पे मर्दों की पड़ गया।
अब बताइए मर्द होने से सीबीआई वाले और नेता इनकार कर सकते हैं क्या।
ALOK PURANIK
Friday, June 22, 2007
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4 comments:
आज कई बाते पता लगी,
कि आपने ७/८ हजार फ़िल्मे देख डाली,
कि सी बी आई ,नेताओ को परदा प्रथा पसंद है
पर आप जो इन सबको बेपरदा कर रहे,गलत है :)
हम तो बस यही कहेगे जय प्रदा...परदा
धांसू!!
इतनी बढ़िया पोस्ट और ये संजीत त्रिपाठी केवल "धांसू!!" लिख कर चलते बनते हैं. अरे कुछ तो अगड़म-बगड़म लिखते 40-50 अक्षर का. पर्दा इन्हे ही पहना दिया जाये.
वैसे वैधानिक चेतावनी के साथ कि हम सीरियस हैं - प्रतिभा जी ने कहा तो सही है. नारी की पूजा हो तो समाज आगे बढ़े. नारी को पर्दे में ड़ाल दो तो समाज घोंचू बन जाता है.
ख़ूब परदा है कि चिलमन से लगे बैठे हैं
साफ छुपते भी नही, सामने आते भी नही .
पुराणिक जी की कलम से परदा पुराण पर गिरा परदा हटाया गया तो साफ नज़र आया कि परदे का कितना योगदान है और कहां कहां है( या कहां कहां नहीं है.)
मै तो इतना जानता हूं कि कभी कभी परदा हटाया जाना भी जरूरी है.जरा सोचिये कि अगर परदा बना रहता तो हमैं मल्लिका सहरावत नज़र आ पाती ?
बिपाशा अगर पर्दे मेँ ही रह जाती तो ज़ुल्म नही होता ( क़िसपे, ये अल्ग बात है)
कोई कंफ्युजन ना रहे, इसलिये मेरा सुझाव है भैया कि 50-50 पर चलते है. थोडा पर्दा कर लिया जाये. थोडा छोड दिया जाय.ताकि देखने वाले देख लें,और जिन्हे छुपाना है वो छुपा लें
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