Sunday, June 17, 2007

आलोक पुराणिक की संडे सूक्ति-उधार प्रेम का फेविकोल है

आलोक पुराणिक की संडे सूक्ति-उधार प्रेम का फेविकोल है
आलोक पुराणिक
जी आपने तमाम जगह लिखा देखा होगा-उधार प्रेम की कैंची है।
पर अपना मानना है कि इस बयान में झोल है, दरअसल उधार प्रेम का फेविकोल है।
जरा सोचिये, उधार प्रेम की कैंची क्यों है, अजी उधार न हुआ, हेयर ड्रेसर का औजार हो लिया। यह गलत बात है।
उधार लेना एक कला है और कैंची का कला से कोई संबंध नहीं है। कैंची सबकी हजामत बनाती है, पर उधार हमेशा सबकी हजामत नहीं बनाता। लेने वाले के लिए तो उधार बिलकुल हजामतकारी सिद्ध नहीं होता।
पर असल मामला यह है कि प्रेम को उधार के साथ जोड़ने की क्या तुक है।
प्रेम प्रेम है, उधार उधार है।
हां, यह कतिपय मामलों यह संभव है कि कुछ प्रेमी उधारी में पड़ जायें।
विशुद्ध प्रेम के अलावा कुछ न करने वाले भी उधारी में डूब सकते हैं।
कुछ उधारी में तब डूबते है, जब वे पति होने के बाद पत्नी की स्विटजरलैंड में हनीमून, चार बैडरुम के फ्लैट, धांसू कार की मांग को पूरा करते हैं। पर इस उधारी की जिम्मेदारी प्रेम पर नहीं डाली जा सकत। शादी के पहले अगर ये सब हो, तो जरुर इस सबका जिम्मेदार प्रेम को ठहराया जा सकता है। पर शादी के बाद भी प्रेम बचा रहे, तो इसे अपवाद ही माना जायेगा, नियम नहीं।
तो मामला यह है कि किसी ऐतिहासिक उधारी की उधारी की जिम्मेदारी प्रेम पर कभी नहीं रही।
गालिब बहुत बड़े उधारबाज थे, पर उनकी उधारी प्रेम के लिए नहीं थी, दारु के लिए थी।
वैसे देखने वाली बात यह है कि प्रेम और उधार का अगर कोई उलटा-सीधा संबंध होता, तो जरुर विद्वानों की निगाहों में आ गया होता। प्रेम पर पांच सौ कुंतल लेखन हुआ है, पर किसी ने इसके साथ उधार का जिक्र नहीं किया। क्यों नहीं किया जी। कबीर ने लिखा-ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होई। कबीर यह भी लिख सकते थे –हर हाल में उधार ले आये, सो ही पंडित होय। इससे साबित होता है कि कबीर प्रेम की महिमा से तो वाकिफ थे, पर उधार की महिमा के जानकार नहीं थे।
वैसे, जानकारों का कहना यह है कि प्रेम वाले को उधार की तमीज न हो, पर उधार वाले को प्रेम की तमीज जरुर होती है। किस वक्त किससे प्रेम करना है, इसका ज्ञान उधार लेने वाले को जरुर होता है।
वैसे कतिपय जानकारों का यह भी मानना है कि अगर उधार का लेन-देन मानव जाति में न होता, तो बहुत आफत हो जाती। कई धांसू फिल्में नहीं बन पातीं। मदर इंडिया कैसे बनती। न मदर इंडिया में साहूकार सुक्खी लाला होते, न सुक्खी लाला से नर्गिस-राजकुमार उधार लेते।न मामला आगे गड़बड़ होता, न राजकुमार की फैमिली बिगड़ती।
मदर इंडिया देखकर जो शिक्षा मिलती है, वह यह है कि उधारी से घर कोई घर भले तबाह हो जाये, पर फिल्म जरुर क्लासिक बन जाती है।
खैर साहब, मैं तो आपसे यह कह रहा था कि यह मुहावरा गलत है कि उधार प्रेम की कैंची है।
दरअसल मामला उलटा है। एक बार जिन्होने मुझे उधार दिया था, उनका प्रेम मेरे प्रति बहुत बढ़ गया था। मैं दफ्तर वालों की हड़ताल में शामिल हुआ तो समझाने आये। प्रेमपूर्वक समझाया-बेटा इधर-उधर की बातों में नहीं पड़ते। सीधे –सीधे चलते हैं। अभी तो तुम्हे जिंदगी में बहुत कुछ करके दिखाना है। अरे अभी तो तुम्हे मेरा उधार चुकाना है। सो मान जाओ, हड़ताल के चक्कर में ना पड़ो। इत्ते प्रेम से समझाया उन्होने ने कि मुझे लगा कि जिनसे भी प्रेम हासिल करना है, उन सबसे पहले उधार ले लेना चाहिए।
जिन्होने मुझे उधार दिया है, वो मेरी नौकरी-धंधे की चिंता बराबर करते रहते हैं।
करनी पड़ती है।
सिटी बैंक वाला आल दि बेस्ट बोलता है। बैंक आफ अमेरिका वाला बराबर हैपी न्यू ईयर, हैप्पी दीवाली बोलता है। होशियार हैं, समझते हैं कि अगर मेरी हैप्पी दीवाली होगी, तो ही उनके मोटरसाइकिल लोन और मकान लोन की किस्त चुक पायेगी। अगर मैंने उधार चुकता कर दिया, तो बताइए, ये मेरे हैप्पी होने की दुआ करेंगे। नहीं।
यानी उधार से प्रेम पक्का होता है।
प्रिय पाठक-पाठिकाओं, आपने मुझे बहुत प्रेम दिया है। मैं इस प्रेम को पक्का करना चाहता हूं।
आप बात को समझ रहे हैं ना। सो न्यूनतम एक -एक हजार तो भिजवा ही दीजिये।
समझ गये ना वही बात, जो शुरु में समझायी थी-प्रेम उधार की कैंची है-इस बयान में कुछ झोल है। सच तो यह है कि उधार प्रेम का फेविकोल है।
थोड़ा सा फेविकोल भिजवाईये ना।
आलोक पुराणिक मोबाइल-0981001879

5 comments:

Arun Arora said...

भाइ साहेब अभी तो आपने हमारा पहले वाला ही उधार चुकाना है ,जो आपने लेखन के लिये मिले पैसे मिलने पर वापस करने का वादा किया था,
इसीलिये तो हम आपके लेखन को लगातार प्रोत्साहित करते रहते है,क्या ये प्रेम कम है जो हम और बढाले

Sanjeet Tripathi said...

प्रभु, आपने हमारी आज तक की उधारी न लौटाई चलिए ठीक है पर ये क्या है कि आप हमें उधार देने से इनकार कर रहे हैं।
जे ठीक बात नईं।
शुक्रिया एक बढ़िया रचना पढ़वाने के लिए।

ePandit said...

"प्रिय पाठक-पाठिकाओं, आपने मुझे बहुत प्रेम दिया है। मैं इस प्रेम को पक्का करना चाहता हूं।

आप बात को समझ रहे हैं ना। सो न्यूनतम एक -एक हजार तो भिजवा ही दीजिये।"


आपका हम से परिचय तब हुआ जब आप ब्लॉग लिखने लगे, लेकिन हम तो आपसे तब से पसंद करते हैं जब आप जागरण में लिखते थे। इसलिए आपसे हमारा पुराना प्रेम है, इसलिए शुरुआत आप करें, पांच सौ भी भिजवा देंगे तो भी चलेगा। :)

Gyan Dutt Pandey said...

क्या पुराणिक जी, पैसा होता तो आपका ब्लॉग पढ़ रहे होते? वारेन बफेट पढ़ कर शेयरखान डाट कॉम पर डटे होते!
वैसे वो आपके फिनांस एडवाइज़ वाले ब्लॉग का क्या बना?
पैसे नही हैं, फेवीकोल की छोटी डिब्बी भिजवादें? चलेगा?

Udan Tashtari said...

कुछ ज्यादा फेविकोल मिल जाये तो यहाँ खिसका देना. :)