सोहनी- महीवाल की नयी प्रेमकथा उर्फ यूं डूबा महीवाल
आलोक पुराणिक
एक समय की बात है सोहनी नामक एक कन्या दिल्ली शहर में रहती थी। महीवाल नामक युवक भी दिल्ली में रहता था। दोनों प्रात एक ही बस में सवार होकर काल सेंटर पर नौकरी करने जाते थे। टाइम काटने की गरज से दोनों में कुछ बातचीत होती थी, जिसे स्वाभाविक तौर पर महीवाल प्यार समझने लगा। उत्तर भारत में ऐसा आम तौर पर चलन था कि अगर कन्या किसी बालक को देख भी ले, या नहीं भी देखे, तो भी बालक समझने लगता था कि कन्या लाइन मार रही है। इस तरह की रोचक गलतफहमियों और काम-चलाऊ सेलरी के सहारे महीवाल दिन काटने लगा। रात काटने में समस्या तो यूं नहीं होती थी कि रात भर जागकर पानी भरना होता था। नल कब आयेंगे, इस विषय पर विचार करते –करते महीवाल की रात कट जाती थी।
खैर कहानी आगे बढ़ाते हैं।
सोहनी के पापा ने एक दिन सोहनी से कहा-बेटा तेरा समय निकला जा रहा है। सारे कायदे की इंडियन कन्याएं एक के बाद एक नान रेजीडेंट इंडियन हुई जा रही हैं, किसी न किसी एनआरआई से शादी करके। तू क्यों समय व्यर्थ गवां रही है। अमेरिकन वीसा के लिए एप्लाई कर दे, कोई फंस जायेगा, तो तू निकल जाना। सोहनी अमेरिकन एंबेसी गयी वीसा लगवाने के लिए, तो महीवाल भी उसके सिर पर छाता तानता हुआ गया, सोहनी को कहीं धूप न लग जाये।
सोहनी के पापा ने यह दृश्य देखकर पूछा कि ये छाता-तानक कौन है।
इस पर सोहनी ने बताया कि यह बैकअप प्लान है। अगर कोई अमेरिकन एनआरआई फंस गया, तो ठीक, वरना दूसरे विकल्प के तौर पर इसे भी रख लेते हैं।
सोनी के पिता विकट कंत्री आदमी थे, सो उन्होने हामी भर दी।
इसके बाद महीवाल ने सोहनी की तरह-तरह से सेवाएं कीं।
सोहनी घर से लंच लाती थी, लंच को और मजेदार बनाने के लिए महीवाल उसके लिए दफ्तर से तीन किलोमीटर दूर स्थित पप्पे के पनीर वाले छोले लाता था, एक किलोमीटर की लाइन में लगकर।
सोहनी कहती थी कि महीवाल से कि बास को खुश करने आजादपुर सब्जीमंडी से सस्ते आम ले कर आओ। महीवाल आम की पेटियां लाता था। उसका क्रेडिट सोहनी के खाते में दर्ज हो जाता था। सोहनी महीवाल से कहकर महंगी साड़ियां मंगवाती थी और उन्हे अपने भाई की फैक्ट्री की साड़ियां बताकर बास-पत्नी को गिफ्ट कर देती थी। इसका का क्रेडिट भी, जाहिर है, सोहनी के खाते में दर्ज होता रहता था। इस तरह से सोहनी से बास खुश होते रहे और सोहनी को इसका परिणाम यह मिला कि वह बार-बार विदेश यात्राओं पर जाने लगी।
ऐसी ही एक अमेरिकन यात्रा के दौरान सोहनी की सैटिंग एक एनआरआई से हो गयी।
सब कुछ सोहनी के हिसाब से चल रहा था, पर एक दिन सोहनी चिंता में डूब गयी।
दफ्तर में महीवाल उसकी इतनी सेवा कर रहा है, सबको पता था। महीवाल के एकाध मित्र टीवी चैनलों में भी थे। सोहनी को टेंशन हुआ कि कहीं महीवाल स्कैंडल खड़ा न कर दे, क्योंकि टीआरपी बढ़ाने के लिए टीवी चैनल वाले इस तरह के कार्यक्रम बना सकते थे-तू बेवफा,-मैं हूं खफा, मैं जान दे दूंगा, इश्क की रिस्क, मुहब्बत में महीवाल की मौत। स्कैंडल की आकांक्षा से सोहनी घबरा गयी।
सोहनी के बाप को पूरे मसले की जानकारी मिली, जैसा कि पाठकों, को पहले की बताया जा चुका है कि सोहनी के पापा विकट कंत्री टाइप आदमी थे।
सुबह, महीवाल को सोहनी के पापा ने बुलाया और पूछा-तुम सोहनी को प्यार करते हो।
महीवाल ने कहा-जी सर, बिलकुल।
सोहनी के पापा ने पूछा-कितना।
महीवाल ने घिसे हुए प्रेमी की तरह पिटा हुआ जवाब दिया-उसके लिए आसमान से तारे तोड़ कर ला सकता हूं।
नहीं बेटे, हमें तारे नहीं चाहिए। हमारे घरों के नलों में पानी नहीं आ रहा ह। कारपोरेशन से ट्रक आता है, उससे पानी खींच कर लाना पड़ता है। तुम अगर हमारे परिवार के लिए तीन दिनों तक उस ट्रक से पानी लाकर दिखा दोगे, तो मैं मान जाऊंगा कि तुम सोहनी को प्यार करते हो-सोहनी के पापा बोले।
महीवाल ने जोश में कहा-ओ यस।
अगले दिन महीवाल पानी लेने के कारपोरेशन के ट्रक आगे खड़ा हो गया, पांच घंटे लाइन में लगे रहने के बावजूद उसने देखा कि उसका नंबर अब भी बहुत दूर है। अचानक भगदड़ मच गयी और लोग पानी के लिए लूट मचाने लगे। महीवाल महीन तबीयत का नौजवान, सिर्फ खड़ा देखता रह गया, पानी लुट लिया।
आंखों में पानी भरकर महीवाल सोहनी के पिता से बोला-जी आज तो मैं पानी नहीं ला पाया।
देखो मुझे आंखों में नहीं, बाल्टी में पानी चाहिए-सोहनी के पापा बोले।
महीवाल अगले दिन फिर ट्रक से पानी लेने गया।
आज पानी पर ब्लैक हो रही थी।
चार बाल्टी पानी के एक हजार रुपये लग रहे थे।
महीवाल ने अपने सारे कपड़े,घड़ी बेचने का सौदा भी कर लिया, तो भी उसके पास एक हजार नहीं हुए।
महीवाल आज भी खाली हाथ लौटा।
सोहनी के बाप ने फोन करके पूछा-बेटा पानी का इंतजाम हो गया।
जवाब में महीवाल चुप रहा।
तीसरे दिन महीवाल शहर छोड़कर चला गया, इस शर्म में कि पानी का इंतजाम भी वह नहीं कर पा रहा है, तो आगे जाकर फैमिली चलाने के लिए और इंतजाम कैसे होंगे।
इस तरह से महीवाल पानी और शर्म में डूबकर मर लिया।
उधर सोहनी ने फुल धूमधाम से अमेरिकन एनआरआई से शादी कर ली और वह सुखपूर्वक रहने लगी। इस कहानी से हमें तीन शिक्षाएं मिलती हैं।
अगर आप महीवाल टाइप हैं, तो समझ लीजिये, पानी और शर्म के इक्वेशन में पानी का होना जरुरी है, शर्म न हो, तो भी चलेगा।
अगर आप सोहनी टाइप हैं, तो आपको बैक-अप प्लान रखने का महत्व समझ में आ गया होगा।
और अगर सोहनी के पापा टाइप हैं, तो क्या ही कहने। महीवाल को टहलाने की तरकीब आपको मिल ही गयी।
आलोक पुराणिक -
मोबाइल-09810018799
Friday, June 15, 2007
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5 comments:
बड़ी हृदयविदारक कथा है, मित्र.. क्या महिवालों का- मतलब मेरे जैसे समर्पित प्रेमियों का- इससे अलग और कुछ हो नहीं सकता?.. आई हेट सोहनी.. इच एंड एवरी सोहनी ऑव द वर्ल्ड.. हेट देम ऑल.
गुरुजी आपको तो जन क्ल्याण मंत्रालय मे होना चहिये था ,पहाड जैसी समस्याये और राई जैसे हल
या आप राजी होतो मै एक कंसलटेन्सी खोल लेता हू
बड़ी ही मार्मिक घटना है :( आपको विकट कंत्रियों से निपटने का रास्ता भी बताना चाहिए।
akhir Sohni hi itni chatur aur practical hamesha kyun hoti hai? Aap mahiwal ko smart bnanae ke tips likhen
वाह वाह बहुत दिनों बाद आपकी टिपिकल किस्म की मजेदार कथा पड़ने को मिली। आनंद आ गया।
बेचारा महिवाल!
सर जी कुछ टिप्स महीवाल जैसों के लिए भी लिखें!
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