अनारकली ही क्यों भर के चली
आलोक पुराणिक
आपके आसपास हो रही होंगी, बहुत सी बेतुकी बातें। पर आप नहीं पकड़ पायेंगे, कोई तुक का आदमी ऐसी बातें पकड़ ही नहीं सकता। उन्हे पकड़ने के लिए बेतुका या व्यंग्यकार होना जरुरी है। इस खाकसार के पास दोनों ही क्वालिफिकेशन्स हैं।
कल देखा, पांच ट्रकों के पीछे लिखा था-अनारकली, भर के चली। तीन और ट्रकों पर लिखा था-रामकली, भर के चली।
अब देखिये, अनारकली और रामकली को भर के चली की तुक ने मरवा दिया।
कितनी बेतुकी बात है कि रामकली ही क्यों भर के चली, कोई शीला या सुषमा क्यों नहीं।
अरे भई अनारकली का कसूर है कि जो फुलमफुल लद कर चलेगी, ऐसा कोई जिम्मा सुशीला या सुनीता नामक ट्रक पर क्यों नहीं डाला गया है।
चली की तुक के लपेटे में अनारकली और रामकली ही आ पाती हैं।
अरे ट्रक का नाम राकेश भी हो सकता है, रमेश भी क्या बुरा है।
पर नहीं राकेश का भर के चली के साथ तुक नहीं बैठता।
और सोचने की बात यह है कि अगर अनारकली बना ही दिया, तो थोड़ा तमीज से पेश आओ। कुछ वजन कम लादो। पर नहीं, वहां साफ घोषणा है कि भर के चली। फुलमफुल भर के ही चलना होगा अनारकली को। अनारकली को जरा भी राहत नहीं है।
ट्रक अनारकली हो लिया, बात कितनी बेतुकी है, पर कितनी तुक से कही जा रही है। है ना।
शाहजादा सलीम अब का हाल देख लें, तो आत्महत्या कर लें, उनकी अनारकली को कैसे-कैसे भर करके ले जाया जा रहा है।
या जरा एक सीन पर सोचिये कि शाहजादा अबके से सीन में बादशाह अकबर से कहें, डैडी आज आपको अनारकली से मिलवाता हूं। अकबर मिलने आयें, तो सामने सात सौ टन का ट्रक खड़ा हो, जिस पर लिखा हो अनारकली।
अकबर को ना कहने की जरुरत ही नहीं पड़ेगी।
अकबर कहते-जा बेटा, कूद इस ट्रक के आगे। अनारकली तुझे अभी ही निपटा देगी।
अब सोचिये कैसी-कैसी इमेज बनती हैं, जिन्होने मुगले आजम देखी है या नहीं भी देखी है, तो अनारकली के नाम से मधुबाला याद आती है और सामने मिलता है 400 टन का ट्रक- अनारकली।
सौंदर्यबोध का ऐसा ट्रकीकरण। भला हो, मधुबालाजी यह सीन देखने के लिए आप मौजूद नहीं हैं।
ट्रक और अनारकली, हाय कैसी-कैसी बेतुकी बातें इतनी तुक मिलाकर कही जा रही हैं, कि समझना मुश्किल है।
मैंने एक ट्रक वाले से विस्तार से इस संबंध में रामकली और तुक पर विमर्श करना चाहा। मैंने कहा कि देख भाई ट्रक का नाम वज्रप्रसाद भी हो सकता है। अरे भीम भी रखा जा सकता है।
ट्रक वाला बोला, आप बात नहीं समझ रहे हैं वज्रप्रसाद और भीम से भर के चली का तुक नहीं बनता। भर के चली-हमारा फोकस वाक्य है। फुलमफुल भर के नहीं चलाया,तो क्या कमाया। हमें कमाई देखनी है, और तुक भी देखनी है। आप बेतुकी बातें कर रहे हैं।
अब आप बताइए कि बेतुकी बात कौन कर रहा है।
पर ऐसा नहीं है कि बेतुकी बातों के लिए तुकों का सहारा लेना अनिवार्य है। बंदा होशियारी से काम ले, तो बेतुकी बातें तुकों के बगैर भी कही जा सकती है।
वह एक इश्तिहार हुआ करता था पेन का-लिखते-लिखते लव हो जाये।
मैंने लिखते-लिखते लव हो जाये पर सोचा और सोचा कि भई ये लिख क्या रहा था। क्या ये महबूबा की गली में जाकर उसके लिए एक्जाम में जरुरी सारे विषयों के नोट्स लिख रहा था। नोट्स देने के उपरांत लव हो जाता है, कुछ इस टाइप का संदेश इससे मिलता है। बहुत कष्टसाध्य संदेश है, अपने नोट्स लिखने में ही प्रेमीजनों को दिक्कत होती है, औरों के लिए क्या लिखेंगे।
फिर मैंने इस संदेश पर दूसरी तरह से विचार किया कि लिखते-लिखते लव हो जाने का मतलब है लिखा पहले, लव बाद में हुआ। ये तो बहूत डेंजरस सीन है। बिना कन्फर्म किये लवलैटर लिखना और फिर उम्मीद करना कि जवाब में लव आयेगा, यह तो ठुकाई-पिटाई की इंतजाम है। इस संदेश के फलस्वरुप कई प्रेम-प्रशिक्षुओं ठुंके होंगे। लैटर चला गया, बदले में लव नहीं, कन्या के पहलवान भाई आये।
पहले लव कन्फर्म हो जाये, तो ही लव लैटर तक जाना चाहिए। पर नहीं, जोर-शोर से कहा गया कि लिखते-लिखते लव हो जाये।
एक पैन वाले से मैंने लेखन और लव पर विमर्श करना चाहा, उसने भी वही बात कही-आप बहुत बेतुकी बातें करते हैं।
अब आप ही बताइए बेतुकी बातें कौन कर रहा है।
आलोक पुराणिक एफ-1 बी-39 रामप्रस्थ गाजियाबाद-201011
मोबाइल-9810018799
Sunday, June 24, 2007
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2 comments:
ट्रक वाला सही है जी भरकर अनारकली/रामकली ही चल सकती है, भीम/वज्रप्रसाद नहीं, आप बेतुकी बातें कर रहे हैं। :)
क्या न देखें मोटिव. सारा खेल मोटिव का है - या आपका मामला ही मोटिव का है. अब ये अनारकली की पोस्ट डबल चिपकाई - डबल टिप्पणी के मोटिव से न!
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औत टीटीई बनने का तो इंतजार ही करें. हमारा प्रोमोशन ड्यू ही नहीं है!
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