Friday, June 8, 2007

आलोक पुराणिक को श्रद्धांजलि

आलोक पुराणिक को श्रद्धांजलि
आलोक पुराणिक
एक खुशफहमी है(खुशफहमी को गलतफहमी का पर्याय भी माना जा सकता है) कि अगर ये खाकसार टें बोल गया, तो एकाध अखबार में शुभ समाचार-सूचना कालम के तहत यह खबर लग जायेगी कि आलोक पुराणिक नहीं रहे, अगर उस दिन उस वक्त न्यूज डेस्क पर अपने मित्र लोग नहीं हुए तो।
लेखकों के बहुत मित्र अखबारों में काम करते हैं, इसलिए लेखक की खबर आना बहुत मुश्किल होता है।
पर साहब मैं ऐसा जुगाड़ कर रहा हूं कि अपन को तो अखबार-मीडिया में चकाचक श्रद्धांजलि मिल ही जायेगी।
इधर मैंने बहुत चिंतन के बाद अपने लिये एक वसीयत तैयार की है, जो मैं तमाम लेखकों को मुफ्त में उपलब्ध करवा रहा हूं। इस वसीयत के बाद गारंटी है कि हर लेखक के टें बोलने की खबर हर अखबार में आयेगी। हर लेखक की चकाचक श्रद्धांजलि का जुगाड़मेंट मैं कर रहा हूं, संपूर्ण लेखक समुदाय को यही मेरी श्रद्धांजलि है।
समस्त ब्लागर साथी आलोक पुराणिक की आदर्श वसीयत को गौर से पढ़ें और इससे मिलती-जुलती बनवा लें।
आलोक पुराणिक को जो शमशान में ठेल कर आयेंगे,उनके लिए निर्देश होंगे कि इस वसीयत को तब पढ़ा जाये, जब सारे पत्रकार, लेखक, उपन्यासकार, कवि और मित्र आ चुकें।
आलोक पुराणिक की आदर्श वसीयत
मैं पूरे होशोहवास में यह वसीयत करवा रहा हूं(शुरु ही झूठ से करने के लिए माफ करें, किसी भी आदमी को अगर पूरा होशोहवास हो, तो वह लेखक क्यों बनेगा, छोले भटूरे बेचने से लेकर शेयर ब्रोकरी के धंधे ज्यादा नहीं, बहूत ज्यादा चकाचक हैं)
मैंने यानी आलोक पुराणिक ने पूरा जीवन लेखन को समर्पित किया। अपने लेखन से ज्यादा दूसरों के लेखन को समर्पित किया। इन लेखक-लेखिकाओं–(जिनसे आपको पंगा लेना है, उनके नाम यहां डाल दें) के हाल के व्यंग्य संग्रह की रचनाएं मूलत मेरी लिखी हुईं थीं। ये उन्होने मुझसे पांच सौ रुपये देकर लिखवायी थीं, जो बाद में उन्होने मुझसे उधार मांग लिये थे। मैं मरते वक्त उनके लिए यह रकम बतौर मित्रता की गिफ्ट छोड़ता हूं। लेखन तो यूं भी सामूहिक क्रिया है, आदमी तमाम जगह से लेता है। वो कोई बात नहीं है। पर मैं सिर्फ यह इंगित करना चाहता हूं कि हर लेखक को इस तरह से एक दूसरे का सहयोग करना चाहिए। यह रचनात्मक लेनदेन चलते रहना चाहिए। मैं नये लेखकों से आह्वान करता हूं कि वे इसे आगे भी चलाते रहें।
(इस बयान के बाद पांच सौ रुपये देयक लेखक कुछ खंडन टाइप करते हुए दिखेंगे, उनके विरोधी खेमे के लेखक एक कोने में खड़े होकर चर्चा शुरु कर देंगे। तमाम अखबारों के साहित्य संवाददाता दोनों का पक्ष का जानने के लिए सवाल पूछना शुरु कर देंगे। )
हां, एक संतोष मुझे मरने के टाइम है कि मेरे परम मित्र लेखक ने ख ने जो जिम्मेदारी मुझ पर सौंपी थी, उसका मैंने भरपूर पालन किया है। ख ने मुझे कसम दी थी कि उनकी लखनऊ वाली गर्लफ्रेंड के बारे में किसी को न बताऊं। मैंने नहीं बताया यहां तक कि क को भी नहीं बताया, जिससे उधार लेकर मैं समय –समय पर उनकी गर्लफ्रेंड को देता रहता था। क से मैंने करीब दो लाख रुपया उधार लिया है, जिसे चुकाने की नैतिक जिम्मेदारी ख की है। (इस बयान के बाद ख के आचरण पर खुसुर-पुसुर शुरु हो जायेगी। क अपनी उधारी का तगादा ख से करेगा। क और ख में बहस शुरु हो जायेगी। थोड़ी देर में होने वाली ख की सामूहिक पिटाई में उसकी बीबी की योगदान भी होगा।)
(अब हडबोंगात्मक माहौल में थोड़ी तेजी टाइप आने लगेगी)
मुझे मरते वक्त खासा संतोष है कि मैंने अपने मित्रों की भरपूर सहायता की। ऐसी-वैसी विकट परिस्थितियों में मैंने हमेशा मित्रता का दायित्व निभाया है। एक बार च जब तुगलक रोड थाने में कोकीन पीने के आरोप में बंद थे, तब मैंने थानेदार को पचास हजार रुपये देकर उन्हे छुड़वाया था। इस बात की जानकारी सिर्फ थानेदार, च और मुझे है। थानेदार नहीं रहे, मैं भी नहीं रहा, तो च का नैतिक दायित्व बनता है कि वह इस रकम को मेरे बच्चों को वापस कर दें।
(कोई पुलिसवाला तब तक च से पूछताछ करना शुरु कर देगा बता कहां से लेता है कोकीन साहिल से कि अबदुल्ला से)
(यहां पर माहौल में मच रही बमचक का लेवल पर्याप्त धांसू हो जायेगा)
मैं अपनी पत्नी को अब यह बताना चाहता हूं कि मैं उसके प्रति हमेशा प्रतिबद्ध रहा। मल्लिका सहरावत ने एक बार मुझे विवाह का प्रस्ताव दिया था, पर मैंने स्वीकार नहीं किया। मैं तमाम टीवी चैनलों और अखबारों से निवेदन करता हूं कि वे मल्लिका सहरावत से इस बारे में पूछताछ न करें। खंडन करने के सिवाय उसके पास कोई चारा नहीं होगा। ऐसी बातें सबके सामने आयें, अच्छा नहीं लगता। वह परेशान होगी। अपनी मौत के बाद मैं किसी को परेशान नहीं करना चाहता। मल्लिकाजी को तो बिल्कुल नहीं, जिन्हे एक बार मना करके मैं पहले ही काफी परेशान कर चुका हूं।
(तब तक टीवी चैनल का कोई पत्रकार मल्लिका सहरावत को फोन मिला चुका होगा, मल्लिका मेरे बारे में सुनकर पूछेंगी-हू इज आलोक पुराणिक-इस पर टीवी चैनलों को एक धांसू खबर मिल सकती है। वे दिन भर मल्लिका की फोटू दिखाते हुए बता सकते हैं-मल्लिका अपने पुराने फ्रेंड को पहचानने से भी इनकार करती हैं। इस स्टोरी में अपार विजुअल संभावनाएं हैं। तमाम नौजवानों में एसएमएस सर्वेक्षण करवाये जा सकते हैं-इस तरह से पुराने फ्रेडों को भुलाना ठीक है क्या। कोई मोबाइल कंपनी इस सर्वेक्षण को स्पांसर कर सकती है। इस पर पूरे दो दिनों तक चकाचक खबरबाजी हो सकती है। मैं अभी से मल्लिका आधारित टीवी कार्यक्रमों के शीर्षक सुझा कर जा रहा हूं-मल्लिका मान जाओ, फ्रेंडशिप की मर्डर की मल्लिका, हुए मर के जो हम रुसवा, ओ जाने वाले हो सके-तो लौट ना आना, )
हालांकि मैं तो जा रहा हूं, पर मैं चाहता हूं कि यह दुनिया मेरे जाने के बाद और बेहतर हो (वैसे मेरे जाने से निश्चय ही यह बेहतर होगी)। मैं कहना चाहता हूं कि मेरे पड़ोसी गुप्ताजी दूसरे पड़ोसी शर्मा के बारे में वैसे विचार न रखें, जैसे वह रखते हैं, वे वैसे ही सकारात्मक विचार रखें, जैसे वे मिसेज शर्मा के बारे में रखते हैं।
(इसके बाद मिस्टर गुप्ता और मिस्टर शर्मा में बहस शुरु हो जायेगी, जो थोड़ी देर बाद लड़ाई झगड़े में बदल जायेगी। इसका फायदा यह होगा कि जो मुहल्ले वाले मेरी शवयात्रा में न जाने का प्लान बने रहे होंगे, वो भी इस सारी इंटरेस्टिंग बमचक को देखने के लिए मेरे घर के पास जमा हो जायेंगे। तब मेरे अंतिम संस्कार प्रबंधक मीडिया को बता पायेंगे कि देखा, लेखक के प्रति अंतिम सम्मान व्यक्त करने वालों का तांता लगा रहा)
इसके बाद मेरी शवयात्रा का इंतजाम करने वालों को ताकीद रहेगी कि शवयात्रा शुरु करने से पहले कुछ ऐसे बम फोड़े जायें, जिनमें सिर्फ धुआं और आवाज हो, पूरे मुहल्ले में फुल हड़बोंग हो जायेगी। पुलिस आ जायेगी। टीवी रिपोर्टर आ जायेंगे-तमाम टीवी चैनलों और अखबारों में इस तरह की खबरें दिखायी पड़ेंगी-
लेखक की शवयात्रा पर आतंकवादियों का हमला
लेखक की शवयात्रा में लेखकों में झगड़ा
लेखकों ने लेखकों को धुना
भारी मारधाड़, आतंकवादी हमले के बीच लेखक की अंतिम यात्रा संपन्न
ये कोई खबर एक कालम से कम नहीं होगी।
लेखक बंधुओं इस वसीयत की फोटूकापी कराके आप भी रख ही लो।
इससे बेहतर श्रद्धांजलि और क्या हो सकती है जी।
आलोक पुराणिक
मोबाइल-9810018799














11 comments:

Sanjeet Tripathi said...

प्रभु, आप महान हो, सच मे धन्य हो!!!

Avinash Das said...

तमाम वैचारिक विचलनों के बावजूद आलोक पुराणिक एक अच्‍छे आदमी थे। मैं ये तो नहीं कह सकता कि वे मेरे बहुत अच्‍छे मित्र थे, लेकिन कभी-कभार फोन पर हुई बातचीत में वे जिस तरह से ठहाके लगाया करते थे, मित्रता का भरपूर आभास वो देता था। व्‍यंग्‍य लिखते थे, ये तो आप सब जानते हैं- लेकिन उनका व्‍यंग्‍य हंसाता भी था, ये कुछ लोग ही जानते हैं। समाजवादियों और संघियों से मिला कर रखते थे- पता नहीं कौन कहां काम आ जाए- या ये देखकर भी किसकी सरकार आने-जाने वाली है- लेखनी में थोड़ी-बहुत हेर-फेर कर देते थे। जीवन के अंतिम दिनों में वे मोदी समर्थित बेंगाणी बंधुओं के साथ हो लिये थे, लेकिन हमसे उनकी आत्‍मीयता फिर भी थी। यही वजह है कि मोहल्‍ला उन पर विशेषांक आयोजित करने जा रहे है। विशेषांक में ज़रूरी नहीं कि उनके बारे में अच्‍छा-अच्‍छा लिखने की ही शर्त है- आप उनके कच्‍चे-चिट्ठे भी बांच सकते हैं। अंत में एक बार फिर उनके लिए प्रार्थना। हालांकि ये प्रार्थना किससे करें, समझ में नहीं आता। हम पहले ही घोषित कर चुके हैं कि हिंदू धर्म के देवी-देवता शराब और शबाब में फुल मस्‍ती में डूबे रहते हैं- लेकिन चलिए इतना तो उनसे आग्रह कर ही सकते हैं कि हमारे आलोक पुराणिक जी को भी को थोड़ी अपनी संगत दे देंगे- तो बेचारे इहलोक की कसर परलोक में पूरी कर सकेंगे। आधा सेकंड के मौन के साथ, आप सबको धन्‍यवाद, कि श्रद्धांजलि की इस सुनहरी महफिल में आपने शिरकत की। लेकिन जाने से पहले समोसा और गुलाब जामुन का इंतज़ाम है। कुछ दिलचस्‍प लोगों के लिए दाहिनी तरफ कोने में ठर्रा भी रखा हुआ है। बिंदास ईश्‍वर हमारे आलोक पुराणिक की शांत आत्‍मा को अशांति प्रदान करें। बस इतना ही।

azdak said...

क्‍या श्रद्धांजलि अभी से लिखी जानी है.. आपके वसीयत की तरह डिस्‍ट्रीब्‍यूट किये जाने के लिए.. या आपके मरने तक इंतज़ार करना है.. यार, आप ये बड़ा कन्‍फ्यूज़न करते रहते हैं.. कुछ पैसे-वैसे हमको मिलेंगे या नहीं?.. ऐसी श्रद्धांजलियों में पहुंचकर सचमुच बड़ी शर्म महसूस होती है.. अभी दूसरे बड़े सारे टेंसन हैं.. मरना थोड़े समय टाले रहिये, दोस्‍त.

मैथिली गुप्त said...

श्री पुराणिक जी अपनी लिखी और भविष्य में लिखी जाने वाली रचनाओं के गठ्ठर हमारे पास छोड़ गये हैं सो आप ये भरोसा करें कि उनके लेख हम कैफेहिन्दी और उनके ब्लाग पर बदस्तूर पोस्ट करते रहेंगे.

अब रचनायें हमारे पास है तो रायल्टी के हकदार भी हम हैं. अत: आप सभी पर पुराणिक जी का जितना भी निकलता हो सो हमें पहुंचा दें.

पुराणिक जी ने जिन अ, ब, स, च, आधि नाम लिखे हैं, उन सभी के असली नाम हमारे पास वाले लेख में लिखे हैं. अत: आप यदि उधार चुकता करने के दायित्व से बचना चाहेंगे तो हमारे पास नाम प्रगट करने के अलावा कोई चारा नहीं बचेगा. (ये वाली लाइन अविनश जी और प्रमोद भाई के लिये है.).

जो टेलिविजन वालों को मल्लिका सहरावत कांड के बारे में पुराणिक जी की ओर से हमारी बाईट भी चाहिये तो हम तैयार हैं.

Gyan Dutt Pandey said...

भला आदमी था. घर छोड़ कर कहीं गया नहीं - सीधे ऊपर गया. कभी कोई ट्रेन यात्रा नहीं की और धमकी देने के बावजूद कभी रिजर्वेशन नहीं मांगा!
भगवान ऐसे नेक इंसान को पुन: जिन्दा कर दें जिससे घोस्ट राइटिंग कराने वालों का काम चलता रहे.

Pramendra Pratap Singh said...

हम भी दो मिनट का मौन रख लिये है। :)

ePandit said...

भगवान आलोक पुराणिक जी की आत्मा को अशांति दे । उम्मीद है वे स्वर्ग (?) से अपना लेखन और ब्लॉगिंग चालू रखेंगे।

मुफलिसी के दिनों में आलोक जी ने मुझसे पचास हजार रुपए उधार लिए थे। आलोक जी के घरवालों से गुजारिश है कि वह रुपए मुझे लौटा दें ताकि उनकी आत्मा ऋणी होने के अपराध बोध में भटकती न रहे।

Ashish Shrivastava said...

धन्य हो प्रभू !

Arun Arora said...

गुरुजी श्रद्धांजली सभा की पूरी जिम्मेदारी मुझे लिख कर दे गये है शाम को वापस आ जायेगे जरा
कुछ लोगो से दिया उधार वापस लेने गये है ध्यान दे
कही आप लोग बोखलाहट मे जल्दी बाजी कर अपना नुकसान ना कराले
जब ऐसा होगा तो वो खुद आप लोगो को ई:मेल से समाचार भेज देगे
जय महाराज आलोकानंद की

Udan Tashtari said...

अब बंदा ही नहीं रहा तो किसकी तारीफ करुँ इसके लिये...चलो एक टिप्पणी का झमेला कम हुआ, रोज रोज का!! आराम देने के लिये आभार.

Kishor said...

Guru, ye to who baat hon gayi, hum to dubenge sanam, sari duniya ko bhi le dubenge ...

Ab to writers se door hi rahna padega... :))