Thursday, June 7, 2007

साड़ी संहिता-वैधानिक चेतावनी-इसे महिलाएं न पढ़ें

साड़ी संहिता-वैधानिक चेतावनी-इसे महिलाएं न पढ़ें
आलोक पुराणिक
ऐसी कल्पना उभरती है कि जब परमात्मा ने पूरी सृष्टि बना ली होगी, तमाम रंग बना लिये होंगे, तो तब मिसेज परमात्मा को बुलाकर वे रंग दिखाये होंगे। परमात्मा ने मिसेज परमात्मा से कहा होगा बताओ इन रंगों का क्या करें। मिसेज परमात्मा ने निश्चित तौर पर कहा होगा-इतने सारे रंगों की साड़ियां होनी चाहिए। सिर्फ इतने ही रंगों की क्यों, इन रंगों को मिक्स कर दिया जाये, फिर जितने किस्म के शेड बनें, उन सबकी साड़ियां होनी चाहिए। या उतने शेड के सलवार सूट होने चाहिए।
परमात्मा को रंगों का उद्देश्य समझ में आ गया होगा।
एक और कल्पना उभरती है सम्राट अकबर गुजरात फतह करके लौटे हैं। फतेहपुरसीकरी में जोधाबाई स्वागत करते हुए पूछ रही हैं सूरत की स्पेशल प्रिंट की साड़ियां लाये या नहीं।
अकबर घबरा रहे हैं, बड़े-बड़े सूरमा निपटा दिये। पर ये स्पेशल प्रिंट की साड़ियां नहीं निपट पायीं।
बड़े-बड़े युद्धवीर इस मोर्चे पर धराशायी हुए हैं।
साड़ी कितना संवेदनशील विषय है, यह हर विवाहित जानता है।
साड़ी दरअसल लेख का नहीं, किताब का विषय है। इस खाकसार ने कोशिश की कि पुराने विद्वानों द्वारा इस मसले पर व्यक्त की राय को समझे। पर यह जानकर बहुत निराशा हुई कि बहुत बड़े विद्वान भी साड़ी के मसले पर साइलेंट हैं। यानी इस विषय को सिर्फ तजुरबे से ही समझा जा सकता है।
हर विवाहित बंदे को जीवन में एक बार सूरत जरुर जाना चाहिए। वहां एक साड़ी बाजार है। साड़ियां ही साड़ियां, तरह-तरह की साड़ियां। यहां आकर संयम, धैर्य के ऐसे पाठ पढ़े जा सकते हैं, जो कहीं और उपलब्ध नहीं हैं।
कुछ सीन इस प्रकार हैं-साड़ी की दुकान में आदरणीया घुसी हैं।
कुछ सिल्क में काले रंग की दिखाइए।
जी बिलकुल, देखिये। ये काले रंग की हैं, बहुत सारी।
नहीं कुछ स्पेशल टाइप का काला दिखाइए।
देखिये ये वाली साऊथ इंडियन काली है, वो वाली अफ्रीकन काली है। देखिये स्पेशल आज ही आयी हैं।
नहीं ये वाली वैसी वाली काली नहीं हैं, जैसी मुझे चाहिए।
आपको कैसी चाहिए।
देखिये मुझे स्पेशल काली चाहिए। वो वो देखिये, वो वाला कलर हां, वो निकालिये।
देखिये वो काली साड़ी नहीं है, वो गंदा कपड़ा है, दुकान की सफाई इससे करते हैं। यह सूती है।
ठीक इसी शेड की आप मुझे सिल्क में नहीं दिखा सकते।
दुकानदार का मुंह गिरे सेनसेक्स की तरह हो गया है।
दुकानदार के सारे सेल्समैन फिर चौकस हो गये हैं, मुस्कुराते हुए, अगली आदरणीया से निपटने के लिए।
मैंने पूछा-भाई निराश नहीं होते, इस तरह के वाकयों से। दिन भर यही सब कैसे झेलते हो।
दुकानदार एकदम फिलोस्फिकल हो जाता है-साड़ीप्रस्तुताधिकारस्ते, मा उनकी पसंद कदाचना। यानी हमारा अधिकार सिर्फ साड़ी प्रस्तुत करने भर का है, वह उन्हे पसंद आयेगी या नही, इस पर हमारा अधिकार नहीं है।
गुस्सैल, बहुत अधीर टाइप के बंदों को एक हफ्ते के लिए साड़ी बेचने की ट्रेनिंग देनी चाहिए। अकल एकदम ठिकाने आ जायेगी, जब कुछ इस टाइप के सीन से पाला पड़ेगा।
आदरणीया दुकान में घुसी हैं और एक साथ सब तरफ निगाह डाली है और कहा कि वो वाला शेड, इस डिजाइन में, उस फिनिश में, इस कपड़े में और उस प्राइज में चाहिए।
भारतीय विदेश सेवा के अफसर जब पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर पर बातचीत करने जाते हैं, तो उन्हे भी तमाम तरह की शर्तों का सामना करना पड़ता है।
आदरणीया कह रही हैं-डिजाइन तो ठीक है, पर कलर वो वाला चाहिए।
ये लीजिये वो वाला कलर इस डिजाइन में।
पर देखिये वो वाला स्टफ नहीं है।
नहीं वो ही वाला स्टफ है।
लग नहीं रहा है।
अब कोई क्या करे।
मुश्किल बातचीत को कैसे आगे बढ़ायें, इस विषय पर प्रशिक्षण के भारतीय विदेश सेवा के नये पुराने कूटनीतिकों को साड़ी बिक्री केंद्रों में भेजा जाना चाहिए।
पुराने टाइप के पतियों के लिए तो यह सीन भी परिचित सा होगा-
अच्छा बताओ, कैसी लग रही है यह।
बहुत अच्छी, ग्रेट।
और ये वाली।
बहुत अच्छी, बहुत ही अच्छी।
पर जो साड़ी वह लेती हैं, वह कोई तीसरी या चौथी होती है।
जब तुम्हे अपने ही मन की लेनी होती है, तब तुम मुझसे पूछती क्यों हो-पति शिकायत करता है।
कन्फर्म करने के लिए कि तुम्हारी चाइस घटिया है। मुझे वो साडियां घटिया लग रही थीं, तुम्हारी राय से तुम्हारा घटियापन जाहिर हो गया।
खैर चलूं, सूरत जा रहा हूं, साड़ी की दुकानों पर बैठकर धैर्य और संयम हासिल करुंगा।
आलोक पुराणिक
मोबाइल-9810018799

14 comments:

Sanjeet Tripathi said...

धन्य हो आप!!
पन बोले तो येसा लिख के मुझे जैसे कुवांरो को डराया मत करो ना।

मजा आ गया!

सुनीता शानू said...

क्या आलोक भाई इतनी ढेर सारी साड़ीयाँ दिखा रहे हैं और ये उम्मीद भी करते है कि महिलाएँ ना पढ़े...:)

Arun Arora said...

चलो यानी कल भाभी जी को साडी प्राप्त हुई और हमे आज ज्ञान,भगवान से प्रार्थना है रोज आपको ऐसे ऐसे अनुभव कराये और आप हमे लाभांवित करे\सानू जी ये लेख आपके लिये नही था.अब भाइसाहब की जेब पर भारी पडेगा इसमे आलोक जी कतई जुम्मेदार नही है

संजय बेंगाणी said...

साड़ी दरअसल लेख का नहीं, किताब का विषय है।

ब्रह्मवाक्य लिखा है.

सुनीता शानू said...

वाह अरूण भैया ये तो वो बात हुई की सामने मिठाई की दुकान दिखा रहे है और कहते है आज उपवास रखना है..कैसे सम्भव है भला...साड़ीयों की बहार लगा रखी है और हमी से कहते है कि मत देखना..क्या अब पुरूष भी साड़ी पहनना शुरू करेंगे?

36solutions said...

अरूण भाई जिसे पढाना था उसे तो मत पढाओ कह दिया आपने इब का करें जब से दिल्‍ली ब्‍लागर मीट के फोटू हमर लुगाई देखे हैं तब से सुनीता जी के झकास साडी के पीछे पड गैहैं । आपके लेख को पढा के कुछ जेब को भारी रहने देने का विचार था, खैर सूरत से कुछ और परोसियेगा ।

ghughutibasuti said...

आपका लेख मैंने नहीं पढ़ा । टिप्पणी लिख रही हूँ क्योंकि इसकी मनाही आपने नहीं की थी ।
घुघूती बासूती

डा.अरविन्द चतुर्वेदी Dr.Arvind Chaturvedi said...

आलोक जी,
आप अपनी पोस्ट के शीर्षक में तो 'साड़ी'शब्द का इस्तेमाल करते हो और फिर 'वार्निंग' भी चस्पां कर देते हो कि ..फलां फलां प्राणी इसे नही पढ़े ?
बहुत ना इंसाफी है ये ?
इसकी सजा मिलेगी .बरोबर मिलेगी.
और सजा यह कि पुरुष तो टिपियांगे ही साथ ही महिलायॉ की टिप्पणी भी झेलनी पडेगी.
( डिस्क्लैमर: यह टिप्पणी बिना किसी महिला से पूछे की गयी है.)

अरविन्द चतुर्वेदी
भारतीयम्

ePandit said...

हेहे हमें तो अभी इस सब की कोई चिंता नहीं। बाकी भगवान से प्रार्थना है कि जब तक हमारी शादी हो साड़ी नाम की चीज का फैशन ही खत्म हो जाए। :)

Sagar Chand Nahar said...

सही कहते हैं आलोक जी मैं तो पन्द्रह बरस सुरत रहने के बाद अपनी श्रीमतीजी को वह रिंग रोड़ कका वह मार्केट दिखाने की गलती कर बैठा..... फलस्वरूप
अभी हैदराबाद में रहना पड़ रहा है। :(

संजय - पंकज बैंगानी भी भाग आये।

मसिजीवी said...

आप वाकई एक सामर्थ्‍यवान लेखक हैं जो साड़ी विषय को एक किताब में समेट लेने का दावा ठोंक रहे हैं।

अंकुर गुप्ता said...

नमस्कार आलोक जी. आपको मैं बहुत दिनो से ढूंढ़ रहा था. आपके व्यंग्य मैने पत्रिकाओं में पढे़ हैं. मैं आपसे संपर्क करना चाह्ता हू. मेरा ई मेल पता है
ankur_gupta555@yahoo.com
एक ईमेल भेजें ताकि आपका मेल पता मुझे मालूम हो जाये. और मैं आपसे संपर्क कर सकूं

Atul Sharma said...

साधु! साधु! आपने तो ज्ञानचक्षु खोल दिए। आपके अनुभवों से जरूर लाभ उठाया जाएगा।

Udan Tashtari said...

हा हा..एक दम से ज्ञानी टाईप कुछ महसूस कर रहा हूँ. :)