हे प्रेम के गब्बरसिंह, हे च्यवनप्राश के मिसयूज-कर्ता
आलोक पुराणिक
निम्नलिखित खत अमिताभ बच्चनजी को उनके एक भूतपूर्व प्रशंसक ने लिखा है, पेश है-
ग्रांडफादरणीय अमिताभजी
ये अच्छी बात नहीं है।
निशब्द में आपने अठारह वर्षीय बालिका के साथ जो किया, उसे देखकर मैं चुप रहा। मैंने सोचा कि चलो जाने दो। बुढापे की बहक और लडकाई की लहक एक जैसी होती है। पर अब ये क्या हो रहा है, चीनी कम में आप चौंतीस वर्षीया के साथ अगडम-बगडम कर रहे हैं। सोलह साल का प्रमोशन आपने कर लिया है, अठारह साल से चौंतीस साल पर आ गये। सोलह साल का डिफरेंस आपने बढा लिया है, पर हे ग्रांडफादरणीय अमिताभजी क्या यह सेंस की बात है। आप यूं सोलह-सोलह साल के डिफरेंस पर नया कांड करते रहे, तो हमें उम्मीद है कि अगला कांड आप किसी पचास वर्षीया के साथ करेंगे, फिर छियासठ वर्षीया के साथ, फिर बयासी वर्षीया फिर ........।
हे ग्रांडफादरणीय इतनी चौतरफा मार करेंगे, बाकियों के लिए कुछ बचेगा या नहीं।
सुंदरियों का सीन पहले ही बहुत खराब है। नौजवानों के लिए गहरा संकट हो रखा है। निशब्द के रिलीज होने के बाद मेरे मुहल्ले के तमाम बुजुर्ग वह वाला च्यवनप्राश खाने लगे हैं, जो आप खाते हैं। अब आप बताइए हम नौजवान क्या करें। पडोस के दादाजी मुझे डांट रहे थे कि तुम्हे ए- 28 वाली कन्या पर इस तरह से निगाह नहीं डालनी चाहिए। अब मुझे समझ में आया कि वह ऐसा क्यों कर रहे थे, हम निगाह न डालें, तो क्या, वे तो आपसे प्रेरणा लेने लगे हैं। अब आपने चौंतीस वर्षीयाओं के मामले में भी राह खोल दी है। हालांकि आफ दूसरे शोलाई जोडीदार धर्मेंद्र ने लाइफ इन मेट्रो फिल्म में बुढापे में जौहर दिखाये हैं, पर उन्होने उम्र का थोडा ख्याल रखा है। नौजवानों के हक पर किसी भी तरह का डाका नहीं मारा है। जिस उम्र की आदरणीया के साथ उन्होने मामला जमाया है, वह हमारे लिए भी आदरणीया ही हैं। इसलिए धर्मेंद्रजी की हरकत पर नौजवान समुदाय में कोई रोष नहीं है।
पर आप ऐसा कुछ ध्यान नहीं रख रहे हैं। धर्मेंद्रजी ही मैन थे, पर आप तो शी-मैन हो रहे हैं। हर उम्र की शी के साथ आप दिखायी पड़ रहे है। अगर आपका यही रवैया रहा, तो हमें कुछ ठोस कदम उठाने पडेंगे। अगले अखिल भारतीय छात्र संगम के अधिवेशन में हम नौजवान इस मसले पर विचार करेंगे। हमें आरक्षण तक पर विचार करना पड सकता है। हम संसद से डिमांड करेंगे कि प्रेम के क्षेत्र में कुछ सैट आरक्षण नौजवानों के लिए होना ही चाहिए। वरना तो अमिताभजी मार मचा देंगे।
बहुत खराब हालत हो गयी है। आप हमारे सपनों में भी रात में आने लगे हैं। सपने में भी आप आते हैं, सपनों में सुंदर कन्याएं चीख कर आह्वान करती प्रतीत होती हैं, जल्दी मामला जमा लो, नहीं तो अमिताभ बच्चन आ जायेंगे। हे भूतपूर्व आदरणीय व्यक्तित्व, प्रेम के मामले में आप नौजवानों के लिए गब्बरसिंह हो लिये हैं, जिसकी चीख नौजवानों को सुनायी देती है-यहां से पचास-पचास कोस दूर इलाके में जब कोई अठारह वर्षीय कन्या या चौंतीस वर्षीया घर वालों की परमीशन के बगैर कहीं जाना चाहती है, तो घर वाले डराते हैं- मत जा, नहीं तो अमिताभ बच्चन आ जायेगा। प्रेम के मामले में आप ऐसे खेतिहर हो लिये हैं, जो हमेशा सबकी खेती पर कब्जा करने के लपेटे में रहता है। हमें उम्मीद है कि कोई कोर्ट आपको जल्दी बतायेगा कि आप यहां भी नाहक खेतीबाज बने हुए हैं।
अमिताभजी आप क्या थे, क्या आपकी परंपरा थी, कुछ याद है आपको। आपको त्रिशूल फिल्म में अपना रोल याद है। इस फिल्म में राखीजी आपसे कुछ मामला जमाना चाहती थीं, पर आपने कुछ उस टाइप का गाना गाया था-किताबों में छपते हैं चाहत के किस्से, हकीकत की दुनिया में चाहत नहीं है।............उस फुलमफुल जवानी के दौर में आप ऐसे गीत गाते थे और अब। अब तो आपका ओपन चौबीस घंटे का आफर है, अठारह वर्षीया के लिए, चौंतीस वर्षीया के लिए, आजा मेरी गाड़ी में बैठ जा।
तब आप च्यवनप्राश नहीं खाते थे। ये आपने अभी ही शुरु किया है। अगर आपने यही सब चालू रखा, तो हमें च्यवनप्राश के खिलाफ ही आंदोलन छेडना पडेगा। या फिर सरकार से डिमांड करनी पडेगी कि साठ वर्ष से ऊपर के बंदे को च्यवनप्राश तब ही दिया जाये, जब वह लिखित अंडरटेकिंग दे कि इसका इस्तेमाल वह वैसे नहीं करेगा, जैसे अमिताभजी ने किया है।
आपका
भूतपूर्व प्रशंसक
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9 comments:
अपनी-अपनी किस्मत की बात है पुराणिक जी. फोटू तो आपका भी खराब नहीं. फिर भी, जब लड़की नहीं पटती तो अमिताभ को दोष देकर क्यों अपनी कुण्ठा व्यक्त कर रहे हैं?
मैं अभी भी आपको (रिजर्वेशन की बजाय) सलाह देता हूं कि लड़की-वड़की की बातें छोड़ कर गान्धी/निराला/पंत बनने की जुगत भिड़ायें. महात्मा गान्धी के साथ तो फिर भी लड़कियां रहती थीं - सफेद साड़ी में. बाकी निराला/पंत छाप लिखेंगे तो भी चांस है कोई कविता-प्रेमी बाला घास डाल दे. व्यंग के फेरे में रहे तो और कोई और कुछ समझ कर घास भले डाल दे - लड़की नहीं डालने वाली.
और जो लिखते हैं, खुल्ला लिखें. अमिताभ के भूतपूर्व फैन का छ्द्म नाम क्यों प्रयोग करते हैं.
पुन: रिजर्वेशन के बारे में सबके सामने क्यों लिखते हैं? हमें शराफत से नौकरी करने दीजिये :)
देखिये जी हम आज सुबह से ज्ञानसागर में गोते खा रहे हैं...इसलिये ये थोडा ज्ञान आपको और आपके भूतपूर्व फैन को भी पिला ही दें.
कोई भी सुपरमैन नहीं होता और ना ही च्ववनप्राश खाके हो सकता है इसलिए फोकस बहुत जरुरी है सिर्फ लाइन मारने से कुछ नहीं होता, अगर फोकस और अनुशासन का सहारा नहीं है तो .अमिताभ या ऐसे लोग नियोजन करके नहीं बनते. बिग बी को शायद ही पता हो, कि वह बिग बी बन जायेंगे और ऎसे लाइन मारा करेंगे. उन्हे लगा कि यह करना चाहिए, सो उन्होने किया. इस प्रक्रिया में वह जो हुए, वह हम सबके सामने है. आदमी करना चुनता है, होना उसका रिजल्ट होता है. किसी जैसा होने को लक्ष्य बनाकर, वैसा ही बन पाना मुझे नहीं लगता कि किसी के बस की बात है, इसलिये आप भी बस करते जाइये क्या पता बन जायें कभी बिग बी.
ऊपर वाला ज्ञान आपसे ही साभार .
आलोक भैय्या
आपके रचना के बारे मे कुछ कहना बेवकूफी है.....
जिस अखबार में आप आते हो वहां सबसे पहली नज़र आप पर जाती है.....
लेकिन यहां कुछ अच्छा नही लगा...
अरे अपने "चचा" को तो छोड देते....
ठीक है कि "घोडा घास से दोस्ती करेगा तो खाएगा क्या"फिर भी उनकी गरिमा क ही खयाल किया होता.........
खैर हमे क्या, हम तो आपके भी दीवाने है और "चचा" के भी.....सो आगे आप जाने और चचा जाने.....
वैसे मज़ा आ गया
आप दिन मे 10-15 रचनाएं क्यों नही लिखते..
साठ वर्ष से ऊपर के बंदे को च्यवनप्राश तब ही दिया जाये, जब वह लिखित अंडरटेकिंग दे कि इसका इस्तेमाल वह वैसे नहीं करेगा, जैसे अमिताभजी ने किया है।
--हा हा!! यह सही है. यूं तो पूरा लेख ही सटीक है.
अरे मैँ कहता हूँ आप बड़े बी पर मुकदमा कीजिए, हम आपके साथ हैं। अगर ऐसे ही चलता रहा तो अपना तो पता साफ हो जाएगा। जल्द ही हमारी मांगें नहीं मानी गई तो हम च्यवनप्राश के खिलाफ आंदोलन छेड़ेगे।
वैसे वो च्यवनप्राश कौन सा खाते हैं, सोना-चांदी क्या? हमें भी एडवांस में ये शुरु कर देना चाहिए।
हाहा , बहुत बढ़िया । बहुत अच्छा लिखा है ।
घुघूती बासूती
आलोक भाई,
आप बुजुर्गोँ के ऊपर क्योँ ज्यादती कर रहे हैँ?
पचासा, साठा, और उनसे भी ऊपर वाले आजकल चचा को देख कर फूल रहे है. कहते है कि बिग बी ने हमेँ रास्ता दिखाया है.
और एक आप हैँ कि बुजुर्ग पीढी पर ही दाना पानी ले कर चढ लिये.
अरे उनके भी दिन वापस आये हैँ. मजे लेने दीजिये ना.
बाली रहा रिजर्वेशन का सवाल, तो भैया आप भी कर लो एक आन्दोलन.
जनता तो विचारी है ही पिसने खातिर.
अरविन्द चतुर्वेदी, भारतीयम्
ही ही .. सच मे मजा आया :D
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