Sunday, June 3, 2007
संडे सूक्तियां-सूर्य फिलिप्स बल्ब के लिए माडलिंग करे है
संडे सूक्तियां-सूरज फिलिप्स बल्ब के लिए माडलिंग
करता है
आलोक पुराणिक
संडे यानी रविवार जिस रवि के नाम पर है, वह कभी छुट्टी नहीं लेता। जरुर यह एकता कपूर के किसी सीरियल का एक्टर है। कभी छुट्टी नहीं।
एक बच्चे ने मुझसे पूछा-अंकल ये सूरज आसमान में रोज मुफ्त में ऐसी ही क्यों निकल आता है।
बड़ा विकट सवाल था, मैंने बहुत सोच-समझकर जवाब दिया है, बेटा सूरज रोज मुफ्त में बस ऐसे ही निकल आता है।
बच्चा बोला ना-मुफ्त में ऐसे ही कुछ नहीं होता। मुफ्त में अमिताभ बच्चन डाबर का च्यनवप्राश नहीं खाते। मुफ्त में कपिल देव लिबर्टी के शूज नहीं पहनते। सूरज पूरब से पश्चिम और पश्चिम से पूरब की चक्करबाजी में फोकट में नहीं मरे है। सूरज जरुर फिलिप्स कंपनी के बल्ब के लिए माडलिंग करे है।
बच्चे इधर बहूत सिखा रहे हैं। यह निबंध कक्षा आठ के उस बच्चे की कापी से लिया गया है, जिसने ग्रीष्मकालीन क्रियेटिव राइटिंग कंपटीशन में टाप किया है-
गर्मी में जैसा कि सब जानते हैं कि गर्मी पड़ती है। सूरज गर्मी में भी निकलता है और सर्दी में भी। यानी सूरज पर गर्मी –सर्दी का कोई असर नहीं पड़ता। सूरज रोज अपने घर से निकलता है और आ जाता है। इससे पता चलता है कि मिसेज सूरज से सूरज की पटती नहीं है और उसे घऱ पर रहना अच्छा नहीं लगता। घर से बाहर रहकर जो लोग अति ही कर्मठ दिखायी देते हैं, दरअसल उनकी अपनी बीबियों से नहीं पटती है। पति को कर्मठ बनाने में कलहप्रिय पत्नियों का भारी योगदान रहता है। सूरज की कर्मठता से हमें यह समझ लेना चाहिए।
गर्मी का एक भारी फायदा उधार लेने वालों को होता है। गर्मी से बचने के लिए सिर, मुंह पर साफा-गमछा आदि बांधने के चलने को सामान्य माना जाता है। अच्छा-भला सा आदमी डाकू लगने लगता है, इसका फायदा यह होता है कि उधार देने वाली की गली से मजे से गुजर जाओ, उधार देयक पकड़ ही नहीं पाता। बल्कि तरकीब यूं है कि बंदे को मार्च में उधार ले लेना चाहिए, फिर मजे से अप्रैल से लेकर सितंबर तक गर्मी की आड़ में साफेबाजी और साफे की आड़ में उधारबाजी की जा सकती है। साफे की आड़ में उचक्केगिरी से लेकर छेड़ाखानी कुछ भी की जा सकती है। और तो और नेतागिरी तक की जा सकती है। जिसे करके बंदा आम तौर पर मुंह दिखाने काबिल नहीं होता। पर साफे में नेतागिरी करके बंदा सेफ रहता है, क्योंकि साफे के लपेटे में उसने मुंह कभी दिखाया ही नहीं था।
गर्मी नौजवान छेड़कों के लिए खासी हेल्पफुल साबित होती है, यह बात सर्दी के बारे में नहीं कही जा सकती। सर्दियों में कोहरा वगैरह के चक्कर में छेड़कों को दिक्कत आती है। एक बार तो कोहरे के लपेटे में एक छेड़क ने अपने बड़े भाई को ही छेड़ दिया था, जिसके बाल पोनी टेल टाइप वैसे हैं, जैसे चीनी कम पिक्चर में अमिताभ बच्चन के हैं। बहुत पिटाई हुई। ऐसी किसी किस्म की पिटाई की आशंका गर्मी में नहीं होती। खूब तसल्ली से, पहचान कनफर्म करके छेड़क अपने काम को अंजाम दे सकते हैं।
इस तरह से हम कह सकते हैं कि छेड़कों, उधार लेने वालों, उचक्कों और नेताओँ के लिए गर्मी बहुत रोचक, चकाचक साबित होती है। अगर आप इनमें से कुछ भी नहीं हैं, तो ये आपकी प्राबलम है, गर्मी की नहीं।
वैसे गरमी से निपटने के कुछ उपाय इस खाकसार ने ये निकाले हैं-
1- किसी एयरकंडीशंड मल्टीप्लेक्स-शापिंग कांपलेक्स में जाइए। ठंडक लीजिये। पर असल ठंडक यह नहीं है। इत्ते-इत्ते टाइप के इत्ते महंगे आइटम आपको ललचायेंगे कि आपकी जेब धीमे-धीमे खाली होती जायेगी। जेब एकदम खाली हो जायेगी, फिर जेब ठंडी देखकर आपको पसीने छूटेंगे। इससे स्पेशल ठंडक आयेगी।
2- ससुराल के लोगों की किसी वजह से या बेवजह ही बुराईयां शुरु कर दीजिये। पत्नी गुस्सा हो जायेगी, बेहद गरम हो जायेगी। माहौल एकदम गरम हो उठेगा। चार-पांच घंटे चाऊं-चांऊ चलेगी। फिर दोनों पक्ष थक-हार कर शांत हो जायेंगे। तापमान में गिरावट सी महसूस होगी। 45 डिग्री का तापमान बहुत सुकूनदेह मालूम होता है, अगर आप पचपन डिग्री से वापस लौटे हों तो।
3- कल्पना करें कि आप अमर सिंह हैं। अरे वही, छोटे भाई फेम वाले। और आप टीवी पर सुन रहे हैं बहन मायावती कह रही हैं कि इस डील की इन्क्वायरी, उस बदमाशी में दी गयी उस ढील की इनक्वायरी। ऐसे भी इन्क्वायरी, वैसे भी इनक्वायरी। मिल तो लें, इनक्वायरी ही इनक्वायरी। पसीने आने शुरु हो जायेंगे। ओ जी गजब के कूल हो जायेंगे।
4- कल्पना करें कि आपने कुछ बिल क्लिंटनी हरकत कर दी है, अरे वही मोनिका लेंवेस्की वाली। जी नहीं,कल्पना के इसी स्टेप पर रुक ना जायें। स्टेप नंबर टू यह है कि आप सोचें कि आपकी बीबी ने आपको पकड लिया है और ............। कल्पना के स्टेप नंबर टू पर पसीने छूटने लगेंगे। एकैदम मामला ठंडक का सा हो लेगा।
5- कल्पना करें कि आप वीरेंद्र सहवाग हैं और कोई भी आपसे अपनी सूटिंग, शर्टिंग, दूध, च्यवनप्राश बिकवाने को तैयार नहीं है। अजी ऐसे पसीने छूटेंगे कि एकैदम मामला ठंडमठंड हो लेगा।
अगर इन उपायों में से कोई भी उपाय काम न दे, तो समझ लीजिये कि आप इंटेलीजेंट इंसान नहीं हैं। इंटेलीजेंट इंसान तो दूर, इंसान भी नहीं हैं। सो खुद भैंस मानकर सीधे किसी पोखर, तालाब में एंट्री ले जाइए। भैंसों को कभी गरमी नहीं सताती।
आलोक पुराणिक
मोबाइल-09810018799
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6 comments:
साफेबाज़ी तो कारगर है ही. परंतु मानवधारी जीव को साफे के अन्दर भी सफाचट रहने का प्रयास करते रहना चाहिये. यानी अन्दर ही अन्दर भी चिकना. कई कई बार सिर मुंडाना चाहिये. क्योंकि सिर मुंडवाते ही ओले ओले हो जाती है और ओले खूब ठंडक पहुंचाते हैँ.
अरविन्द चतुर्वेदी
भारतीयम्
पुराणिक जी, मजा आ गया. वैसे आपके व्यंग्य केवल गुदगुदाते नहीं बल्कि चुभते हैं और कुछ सोचने के लिए मजबूर करते हैं। यही आपकी कामयाबी है।
काहे आलोक जी सब के लिये पंगा खडा करने मे लगे हो अगर कही सूरज ने पढ लिया और उसका मार्केट ज्ञानोदय हो गया तो गये न सब ११ के भाव मे.कल से बिल आने शुरु हो जायेगे,प्रति व्यक्ती रोशनी अलग अलग देने लगेगा.जो बिल न दे वो चांद की रोशनी से काम चलाये.आपको तो आपके लेख की वजह से छूट मिल जायेगी. हम कहा जायेगे
"इससे पता चलता है कि मिसेज सूरज से सूरज की पटती नहीं है और उसे घऱ पर रहना अच्छा नहीं लगता।"
और ऐसी सत्य बाते मत लिखा करे ,आपका लेख पढ कर हमे ५ बजे तक घर मे रिपोर्टिग के आदेश मिल गये है
तुर्रा ये की मुह्ल्ले वालो को दिखाना है की हमारी अच्छी पटती है
ये है आगे का लेख:
6. कल्पना करें कि आप पुरान-उरान लिखने वाले धमकाऊ लेखक हैं. कट्टा लेकर लिखते हैं. बहुत बारूद है जिगर में भी/बीडी में भी (नहीं पीते तो कल्पना कर लें)/कट्टे की गोली में भी. आपका कट्टा छीन कर ट्रेन रिजर्वेशन मांगने पर आप पर ही तान देता हूं - बस आगे पसीना - ठण्डा-ठण्डा कूल-कूल.
कल्पना करें आपने गजब का लिखा है, मगर कोई पढ़ने नहीं आया, कोई टिप्पयाने नहीं आया.
पसीना आने लगेगा. ठंडा ठंडा कूल कूल.
कल्पनाशीलता की उड़ान देखकर ही उड़न तश्तरी ठंडा गई-एकदम कूल!!!
-आपका लेख, और इस पर पधारी टिप्पणियां-सब मजेदार है.
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