आलोक पुराणिक
वो कहते हैं ना कि ज्ञान मिलना आसान है, पर उसे आत्मसात करना करना मुश्किल है।
ज्ञान मिलता तो शब्दों से है, पर आत्मसातीकरण के लिए तजुरबों की पिटाई जरुरी होती है।
एक छोटा सा बर्थ सर्टिफिकेट एक सरकारी दफतर
 से लेना था-दफतर में घुसते ही सामने एक बोर्ड पर लिखा दिखा- पुन: पधारें।
से लेना था-दफतर में घुसते ही सामने एक बोर्ड पर लिखा दिखा- पुन: पधारें।मैंने बाबू से पूछा-यह क्या है।
उसने बताया कि संस्कृत में लिखी चीजें वह समझता नहीं हैं। वैसे यह सब विनम्रता सप्ताह में टांगा गया था।
पर यह तो हिंदी सी ही लग रही है-मैंने अज्ञानवश कहा।
नहीं हिंदी तो वह है-प्लीज विजिट अगेन-बाबू ने क्लेरिफिकेशन दिया।
सर्टिफिकेट कंप्यूटर से निकलेगा और कंप्यूटर खराब है-बाबू ने आगे बताया।
पर कंप्यूटर ठीक कब होगा-मैंने आगे पूछा।
जब कंप्यूटर ठीक करने वाला आयेगा। कंप्यूटर ठीक करने का ठेका कमिश्नर साहब के साले के पास है, इसलिए वह कब आयेगा, यह कहा नहीं जा सकता-बाबू ने साफ किया।
पर कंप्यूटर ठीक होने और कमिश्नर के साले के ठेके का क्या संबंध है-मैंने आगे पूछा।
बाबू हंसने लगा।
मैं लगभग रोता हुआ बाहर आ लिया।
पीछे बोर्ड था- पुनर् पधारें।
अब जाकर मुझे हलका सा समझ में आया कि पुन: पधारें का मतलब क्या होता है।
सरकारी दफतरों में कंप्यूटर आने का प्रावधान है, पर उनके साथ बास लोगों के साले ना आयें, ऐसा कोई प्रावधान नहीं है।
खैर ,बडा डेंजर जुमला है साहब- पुन: पधारें।
इसका मतलब है कि बेट्टा एक बार में तेरा काम ना होने का। दूसरी बार तो आना पडेगा। फिर हो सकता है- पुन: पधारें।
वो पहले ही बता छोडते हैं, सूचना का अधिकार और क्या होता है जी।
वैसे सूचना के अधिकार का मामला और चकाचक हो जाये, अगर हर सरकारी दफतर में यह भी साफ कर
 दिया जाये कि तीन बार पधारें, एक बार काम कराने की अर्जी के लिए, दूसरी बार बाबू की टालमटोल के लिए, तीसरी बार पतली गली का रास्ता पता करने के लिए, और उसमें से निकलने के लिए, जेब से यथायोग्य निकालने के लिए। कतिपय दफतरों में तीन के बजाय चार बार बुलाया जा सकता है। पर साफ पता हो, तो बंदा तैयारी करके आये। अभी तो बंदा निहत्था सा सरकारी दफतर में घुसता है, वहां पता चलता है कि उसका एनकाउंटर किये जाने की फुल तैयारी है।
दिया जाये कि तीन बार पधारें, एक बार काम कराने की अर्जी के लिए, दूसरी बार बाबू की टालमटोल के लिए, तीसरी बार पतली गली का रास्ता पता करने के लिए, और उसमें से निकलने के लिए, जेब से यथायोग्य निकालने के लिए। कतिपय दफतरों में तीन के बजाय चार बार बुलाया जा सकता है। पर साफ पता हो, तो बंदा तैयारी करके आये। अभी तो बंदा निहत्था सा सरकारी दफतर में घुसता है, वहां पता चलता है कि उसका एनकाउंटर किये जाने की फुल तैयारी है।पर एक सरकारी दफ्तर है, जहां नहीं लिखा है- पुन: पधारें।
राष्ट्रपति भवन पर अगर यह लिखा होता- पुन: पधारें, तो कलाम साहब के लिए मामला सीधा होता।
बताइए, आपको नहीं लगता कि काश राष्ट्रपति भवन में भी लिखा होता- पुन: पधारें ।
आलोक पुराणिक मोबाइल-09810018799
 
 
 
9 comments:
हमारी तो वाकई आपके यहाँ पुनः पधार पधार के ऐसी तैसी अगेन हुई जा रही है बड़े भाई. जरा तो बक्शो...कब आ रहे हो अमरिका...न इससे बढ़ कर झिलवाया तो नाम बदल कर आलोक रख लेंगे. :)
वैसे राष्ट्रपति भवन पर इस बार तो जरुर लिखा होना था कृप्या पुनः पधारें...सब धन्य हो जाते, कलाम साहब जो आते.
वैसे राष्ट्रपति भवन पर इस बार तो जरुर लिखा होना था कृप्या पुनः पधारें...सब धन्य हो जाते, कलाम साहब जो आते
काश ऐसा होता
पहले था पर सौनिया भौजी ने हटवा दिया :)
अरुण > ...पहले था पर सौनिया भौजी ने हटवा दिया :)
अरे अरुण! सोनिया आपकी भौजी हैं! माफ करना भाईजी, आपसे हंसी-ठिठोली कर गुस्ताखी कर दी. आप इतने हाई स्टेटस के हैं - बताया तो होता! पुराणिक जी क्या रिजर्वेशन के लिये बोलते रहते हैं - अरे अरुण को पकड़ें, अरुण को. क्वात्रोच्ची तो आने वाले नहीं, अरुण ही सारे सीधे-उल्टे काम करायेंगे आपके. :)
भैया रोज-रोजै तो पधारते के ऐसी-तैसी तो करवाते ही है ना, अउर कौनो चारा भी तो नही ना कि इहां पधारे बिना काम चलिहै!!
काश……………………
अरे अरुण! सोनिया आपकी भौजी हैं! माफ करना भाईजी, आपसे हंसी-ठिठोली कर गुस्ताखी कर दी. आप इतने हाई स्टेटस के हैं
भैया जी आपने ही तो अपने कल परसो के लेख मे बताया था ना
ब्लॉगरी में सीनियारिटी/सामाजिक हैसियत/अभिजात्यता/आपका सोर्सफुल होना आदि कोई मायने नहीं रखता. आप ज्यादा ऐंठ में रहेंगे तो कोई इतना ही लिहाज करेगा
इसलिये आप उसे भूल जाये,वो हम गलति से लिख गये समझे :)
आपके लेखन का जवाब नहीं, अतः क्या टिप्पणी करें !
घुघूती बासूती
बढिया है...पर आज हम हँसने के मूड में भी नही है आलोक भैया...:(
शानू
अच्छा लिखा है ।असलियत यही है ।
अइसी तैसी करण अच्छा शब्द है :)
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