Friday, August 3, 2007

LANDLESS LABOR-AMITABH BACHCHAN

का खेती, जब सरकार बेगानी

आलोक पुराणिक

यह देश कृषि प्रधान है, ऐसा कहने का चलन बहुत पुराना हो चुका है।

खेती अब बहुत समस्या वाली है, सो बड़के-बड़के किसान खेती छोड़ रहे है। अभी अमिताभ बच्चन तक खेती छोड़कर निकल गये हैं। उन्होने कह दिया कि खेती की जमीन में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं है। खेती के टेंशन अमिताभ बच्चन ही नहीं झेल पाये, तो बाकी और लोग क्या झेलेंगे।

वैसे अमिताभजी अगर सच्ची के किसान हो लिये होते, तो कई और धंधों के रास्ते खुल गये होते। एक ट्रेक्टर का इश्ति़हार तो वह करते ही हैं। वह कडी धूप में मेहनत करने के बाद उस वाले कोल्ड ड्रिंक का एड करके खेती और कोल्ड ड्रिंक का रिश्ता स्थापित कर सकते थे। कडी धूप में मुलायम त्वचा का राज किसी ब्यूटी क्रीम को बता सकते थे। पर नहीं, अमिताभजी खेती -बा़ड़ी ही छोड़ गये, इससे यह साबित होता है कि कृषि के क्षेत्र में संकट वाकई गहरा रहा है।

अमिताभ बच्चन ने यूपी में खेती जब शुरु की थी, तब मुलायम सिंह उन्हे सलाह देने के लिए मौजूद रहते थे। मुलायम सिंह उखड़े, तो अमिताभजी की खेती भी उखड़ गयी। इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है, कि दूसरों के सहारे खेती करने वाले की खेती उखड़ जाती है। खेती -किसानी अपने ही बूते की भली।
कुछ पुरानी फिल्मों के गानों के लपेटे में कईयों के लिए प्राबलम हो गयी है। मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती-यह गीत एक जमाने में किसान भाईयों के लिए गाया जाता था। पर बाद में इस गीत पर अमल
किया प्रापर्टी डीलरों ने। हर जगह जमीन कब्जिया ली इस उम्मीद में कि थोड़े दिनों बाद सोना उगलेगी। सच भी है कि इस देश की धरती ने सोना उगला है, प्रापर्टी डीलरों के लिए, नेताओं के लिए। अमिताभ बच्चन अलबत्ता प्रापर्टी डीलर नहीं हैं, फिर भी खेती -किसानी की जमीन उन्होने भी ले ली। इससे यह भी पता लगता है कि जमीन खेंचने के लिए प्रापर्टी डीलर होना भी जरुरी नहीं है। इच्छा शक्ति भर होना जरुरी है। अमिताभजी ने इच्छा की और यूपी सरकार ने शक्ति दिखाकर उन्हे किसान बना दिया।

पर सरकार, खेती और फिल्म का कोई भरोसा नहीं होता, कब ढप्प हो जाये।

पर जानकारों का मानना है कि अमिताभजी को इत्ती जल्दी खेत नहीं छोड़ना चाहिए।

इत्ती जल्दी खेत छोड़कर अमिताभजी ने नयी पीढ़ी को सही मैसेज नहीं दिया है। अमिताभजी खेती में लगे रहते, तो और भी कई नौजवान खेती की और आकर्षित हो सकते थे। किसान परिवार-सुखी परिवार की एक बहुत धांसू इमेज विश्व के सामने पेश की जा सकती थी। अमिताभजी हल जोतते दिखते, जयाजी पीछे से खाना लेकर आती दिखतीं। अभिषेक भी साथ में हल जोतते दिखते, ऐश्वर्या राय भी कुछ सहयोगी मुद्रा में होती। भारतीय कृषि की क्या धांसू तस्वीर उभरती। कुछ इस टाइप का गाना भी चलाया जा सकता था-हम मेहनती किसान हैं, मत पूछो देश की जान हैं-टाइप। केंद्र सरकार एक इश्तिहार में बता सकती थी कि किसान सब प्रकार से सुख से हैं। मजे आ रहे हैं, यूपीए सरकार के चार साल।

पर नहीं हुआ।

थोड़ा अमिताभजी लेट हो गये। पचास-साठ के दशक का सा मामला होता, तो सेफ निकल जाते।

तब दिलीप कुमारजी नया दौर जैसी फिल्मों में खेती-किसानी करते थे,, वैजयंती माला वहीं मिल जाती थीं। खेती-किसानी में दि एंड हो लेता था।

अब नयी हीरोईन की खेती-किसानी में कोई दिलचस्पी नहीं। अमिताभजी अब किस मुंह से कहें कि खेती-किसानी के नाम पर कुछ जमीन दी जाये। साथी हाथ बढाना जैसा कोई खेतिहर गाना-यह नयी निशब्द हीरोईन गाने को तैयार ही नहीं होगी।

साठ के दशक और अब में फर्क यह आ गया है कि पहले हीरोईन फार्म पर गाना गाती थी, और अब फार्म हाऊस पर। फार्म तो लीगल होता था, पर फार्म हाऊस अतिक्रमण के लपेटे में होता है।

अमिताभजी ने गलत टाइम पर किसानी में घुसपैठ की।

खेती से जुड़ी एक कहावत है -का वरषा , जब खेत सुखानी-। इसका नया रुपातंरण यह हो सकता है-क्या खेती, जब सरकार हो जानी। या का खेती,जब सरकार हो बेगानी।

आलोक पुराणिक मोबाइल-09810018799

9 comments:

Gyan Dutt Pandey said...

पुराने जमाने में खेती के यंत्र हल/बैल/ट्रेक्टर हुआ करते थे. अब मंत्री और संत्री की जंत्री से खेती होती है. जिसे यह बोध नहीं है वह हैरान परेशानश्च होगा ही!

अनूप शुक्ल said...

आपकी सलाह सही है। पहले अमिताभजी मान लिये होते तो इत्ती बेइज्जती न खराब होती।

Arun Arora said...

अब जमाना ठेकेदारी का है जी,चाहे खेती करो या कुछ् और पर ठेके पर हो,वहा खतरा नही होता ..अनूप जी ज्ञान जी है कोई स्कोप आप के यहा,नही हो तो कैंटीन ही दिलवा दो जी..:)

Udan Tashtari said...

सही कहा और अमिताभ कोकाकोला का भी डबल एड कर लेते-प्यास बुझाये (यहाँ वो इसे पीते) और फिर बचा हुआ खेत में छिडकते हुये कह्ते-कीट भगाये. एक आईटम दो दो काम. :)

बढ़िया है.

36solutions said...

अरे भाई आपका यह ठाकुर सुझौती ईताब बच्‍चनवा को बताना पडेगा वईसे आजकल वो सलाह को मानते है, कोशिस कर के देखें क्‍या मालूम कल आप मैनेज करेंगें अभिशेक के गुड्डू होने के जश्‍न को ।

बधाई !
“आरंभ”

अनुराग श्रीवास्तव said...

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है, कि दूसरों के सहारे खेती करने वाले की खेती उखड़ जाती है।

बसंत आर्य said...

आपकी खेती भी गजब की है . कौन सा खाद डालते है. रोज नयी नयी फसल की आमद होती रहती है.

पुनीत ओमर said...

भाई वैसे तो सब ठीक है पर स्पष्ट नहीं हुआ कि बात पूंजीवाद-समाजवाद की है, नयी पीढ़ी के बदलते "ट्रेण्ड" की है, नेता-नगरी की है या कुछ और। अमिताभ जी सिर्फ़ सिनेमा जगत के ही नहीं बल्की उस दायरे से बाहर भी एक अत्यंत सम्मानित व्यकित्व हैं। बस एक छोटी सी बात इतनी सी है कि व्यंग्य और आक्षेप में थोड़ा सा लकीर भर का ही फ़र्क होता है। इस फ़र्क को बनाये रखें। बाकी सब ठीक ही है।

Sanjeet Tripathi said...

सई है जी!!