tag:blogger.com,1999:blog-4434550844276951229.post2555446057916066572..comments2023-11-03T18:29:07.380+05:30Comments on alokpuranik: प्रार्थनाओं के साथ मेरे कुछ प्रयोगALOK PURANIKhttp://www.blogger.com/profile/09657629694844170136noreply@blogger.comBlogger7125tag:blogger.com,1999:blog-4434550844276951229.post-89826193787935522392007-05-08T21:21:00.000+05:302007-05-08T21:21:00.000+05:30भाई जी मुझे चेला बनालो मेरा भरोसा अब प्राथनाओ से ह...भाई जी मुझे चेला बनालो मेरा भरोसा अब प्राथनाओ से हट कर अब आप पर आ गया है मैने अपने सारे गुरुओ से बोल दिया है कि अब मै पुरानिक जी का चेला बनने जा रहा हू अब वो आप से पंगा ले तो आप झेलनाArun Arorahttps://www.blogger.com/profile/14008981410776905608noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4434550844276951229.post-51591351490503988682007-05-08T17:30:00.000+05:302007-05-08T17:30:00.000+05:30वाह, आलोक भाई, मजा आ जाता है आपको पढ़कर. बहुत लाजबा...वाह, आलोक भाई, मजा आ जाता है आपको पढ़कर. बहुत लाजबाब. और हाँ, आपकी एक्स्ट्रा क्यूरिकुलर गतिविधियों भी शुरु से ही रोचक मालूम पड़ती है. :)Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4434550844276951229.post-3372204517725025072007-05-08T16:24:00.000+05:302007-05-08T16:24:00.000+05:30कविताएं, खासकर जनवादी कविताएं हमारे समय का एक बड़ा...कविताएं, खासकर जनवादी कविताएं हमारे समय का एक बड़ा फ्रॉड हैं। लेकिन व्यंग्य लिखना उससे भी बड़ा फ्रॉड है। आलोक बाबू, व्यंग्य से हटकर जरा अपने भीतर की दुनिया को टटोलिए, शायद कचरे और कीचड़ के साथ कुछ मोती भी मिल जाएं।Unknownhttps://www.blogger.com/profile/03362346877261091863noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4434550844276951229.post-89451765157058515982007-05-08T14:51:00.000+05:302007-05-08T14:51:00.000+05:30वाह लाजवाब. बेहतरीन व्यंग्य. मजा आया.वाह लाजवाब. बेहतरीन व्यंग्य. मजा आया.संजय बेंगाणीhttps://www.blogger.com/profile/07302297507492945366noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4434550844276951229.post-45406858998305357992007-05-08T11:10:00.000+05:302007-05-08T11:10:00.000+05:30अलोक जी,बचपन के अनुभव बहुत कुछ सीखा जाते हैं। लेकि...अलोक जी,बचपन के अनुभव बहुत कुछ सीखा जाते हैं। लेकिन मै चाँहूगा एक बार फिर माँ जी की बात मान कर प्रार्थना करना शुरू करें। फिर जो भी अनुभव हो उसे बताएं।परमजीत सिहँ बालीhttps://www.blogger.com/profile/01811121663402170102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4434550844276951229.post-34051792594558148012007-05-08T10:13:00.000+05:302007-05-08T10:13:00.000+05:30बहुत अच्छे..!!बहुत अच्छे..!!अभय तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/05954884020242766837noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4434550844276951229.post-90195162117055907332007-05-08T10:10:00.000+05:302007-05-08T10:10:00.000+05:30वाह! झकास! इससे बेहतर शब्द ढूंढ नही पा रहा हूँ। आल...वाह! झकास! इससे बेहतर शब्द ढूंढ नही पा रहा हूँ। आलोक जी, आपने अपने बचपन की बात याद दिला कर, फिर लेखन खुजली जगा दी है। हम भी लिख मारते है कुछ जल्दी ही कुछ, मोहल्ला पुराण में।<BR/><BR/>ऐसे ही लिखते रहिए, आपकी कुछ ही पोस्ट पढकर े मै तो आपका मुरीद हो गया हूँ।Jitendra Chaudharyhttps://www.blogger.com/profile/09573786385391773022noreply@blogger.com